साहित्य एक नज़र , 🌅 अंक - 14 , सोमवार , 24/05/2021
साहित्य एक नज़र , अंक - 14
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
https://online.fliphtml5.com/axiwx/eyqu/
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
Sahitya Eak Nazar
24 May , 2021 , Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
अंक - 14
24 मई 2021
सोमवार
वैशाख शुक्ल 13 संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण पत्र - 14 ( आ. संजीत कुमार निगम जी )
कुल पृष्ठ - 15
अंक - 14
साहित्य एक नज़र , अंक - 15
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अंक - 14
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🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
Sahitya Eak Nazar
24 May , 2021 , Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
अंक - 14
24 मई 2021
सोमवार
वैशाख शुक्ल 13 संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण पत्र - 14
कुल पृष्ठ - 15
अंक - 14
रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -
साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 14
दिनांक :- 24/05/2021 , सुबह 11 बजे तक
दिवस :- सोमवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।
सादर निवेदन 🙏💐
समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716
आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
अंक - 14
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अंक - 14
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/14-24052021.html
अंक - 15
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/15-25052021.html
कविता :- 20(07)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2007-15-25052021.html
कविता :- 20(05)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2005-23052021-13.html
अंक - 13
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/13-23052021.html
अंक - 13
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/13-23052021.html
https://online.fliphtml5.com/axiwx/ptrj/
कविता :- 20(06)
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24/05/2021 , सोमवार
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फेसबुक - 2
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मिथिलाक्षर
https://youtu.be/B5bsN0aRgV8
अंक - 14
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कविता :- 20(04)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2004-22052021-12.html
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 13
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
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अंक - 16
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कविता :- 20(08)
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बुधवार, 26/05/2021
1 -14 तक साहित्य संगम संस्थान
साहित्य एक नज़र
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
Sahitya Eak Nazar
সাহিত্য এক নজর
अंक -1
11/05/2021
मंगलवार
वैशाख कृष्ण 15 संवत 2078
पृष्ठ - 1
कुल पृष्ठ - 4
वैशाख कृष्ण 15 संवत 2078
कविता :- 19(92) - 19(93)
अंक - 1
11/05/2021 , मंगलवार ,
https://online.fliphtml5.com/axiwx/uxga/?1620796734121#p=3
अंक - 2
https://online.fliphtml5.com/axiwx/gtkd/?1620827308013#p=2
अंक - 3
https://online.fliphtml5.com/axiwx/ycqg/
अंक - 4
https://online.fliphtml5.com/axiwx/chzn/
आहुति पुस्तक
https://youtu.be/UG3JXojSLAQ
अंक - 5
https://online.fliphtml5.com/axiwx/qcja/
अंक - 6
https://online.fliphtml5.com/axiwx/duny/
1.
दो घंटे के कार्यक्रम में ही रच दिया इतिहास साहित्य संगम संस्थान ।
साहित्य एक नज़र 🌅 , कोलकाता , सोमवार , 24 मई 2021
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली के काव्य मंच पर रविवार 23 मई 2021 को शाम 4 बजे 6 बजे तक का एक कार्यक्रम किया गया संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी की सहयोग से । आदाब ,नमस्कार इस महफिल में तशरीफ लाए हुजूर राजवीर जी ,रोहित जी ,मिथलेश जी एवम मेरे भाई और बहनों आप सबको संगीता मिश्रा का आदाब कुबूल हो|
आज की शाम कुछ खास होने वाली है नज्मों, शेरो,शायरी की बहार होने वाली है समा बंधने वाला है|
आज दिल के जज्बातों को खुल कर लिख दीजिए क्योंकि न विषय है न है न गिनती है | कितना चाहे शेरो शायरी ग़ज़ल से महफिल को सराबोर कर दीजिए|
आज सब की मौजूदगी महफिल को शानदार ,जोरदार ,दमदार बनाने में कामयाब होगी|
तो आइए आज की शाम शेरो शायरी के नाम लिख दीजिए... न रुकना है,न थकना है , ए मेरी कलम बस लिखना है। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी , पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी , राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा , हरियाणा इकाई आदरणीय विनोद वर्मा दुर्गेश जी , डॉ दवीना अमर ठकराल जी , अलंकरण प्रमुख डॉ अनीता राजपाल जी डॉ दवीना अमर ठकराल जी, महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों के सहयोग से एक दूसरे की रचनाएं पर सार्थक टिप्पणी करते हुए लगभग 1100 कॉमेंट्स आएं जो कि संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है ।
2.
https://m.facebook.com/groups/3538796993012375/permalink/3706696029555803/
साहित्य संगम संस्थान तमिलनाडु इकाई
विषय- मौसम
🙏विषय प्रवर्तन🙏
मौसम बड़ा सुहाना है।
करने रचना आना है।।
😀🙏😀🙏😀🙏😀
नित्य एक रचना और पांच रचनाओं को पढ़कर समीक्षात्मक टिप्पणी करने का आज शिवसंकल्प लीजिए।
🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏
संपूर्ण विश्व में आर्यावर्त्त/भारतवर्ष/हिंद जैसी जलवायु अन्यत्र कहीं नहीं। देवता भी यहां जन्म लेने को लालायित रहते हैं और इसके गीत गाते हैं। ईश्वर ने सबसे पहले इसी धरा पर नर सृष्टि का श्रीगणेश किया था। यहां छः ऋतुएं प्रभावी रूप में दिखाई देती हैं। इस कारण स्वास्थ्य, खान-पान और उपज की दृष्टि से यह देश सर्वोत्तम है। उन छः ऋतुओं के नाम बिरले ही लोगों को याद होंगे। इन्हें हिंदी में अवश्य याद कर लें- जाड़ा, गर्मी, बरसात, शिशिर, हेमंत, बसंत।
इस संसार में बहुत से देश ऐसे हैं कि जहां बारहों मास इतनी गर्मी पड़ती है कि आदमी को तो छोड़िए वहां के सुवर भी एसी में रहते हैं😀 और बरसात का तो नाम मत लीजिए दस-दस पंद्रह पंद्रह साल तक होती ही नहीं। सोचिए आदमी वहां रहता क्यों है। अच्छा है, वहां रहता है। वरना आप तो देख ही रहें हैं कि भारत की जनसंख्या कितनी बढ़ गई है। कुछ देशों में ऐसी सर्दी पड़ती है कि एसी से बाहर निकल गए तो बर्फ बन जाएं। वहां भी बिना एसी के काम नहीं चलता। इसके साथ-साथ उन्हें निकालने में भी बडी मुश्किल होती है।😀 वहां लाइब्रेरी बनाकर रखते हैं और निकालने के लिए कुर्सीनुमा/कोमोड लगवाते हैं। उनकी मॉर्निंग बिरले ही दिनों में गुड होती है। तभी उन्होंने संबोधन के लिए गुड मॉर्निंग कहना शुरू किया। जिस दिन सूर्योदय होता है उस दिन वे सब बाहर निकलते हैं और एक दूसरे को गुड मॉर्निंग बोलते हैं। साथ ही समुद्र के किनारे बालू में निर्वस्त्र हो धूप/बिटामिन डी लेते हुए पड़े रहते हैं। रात रंगीन और विलासिता भरी हो इसलिए गुड नाइट बोलना शुरू किया। हमारे देश के संभ्रांत लोग उनकी सारी नकल व्यर्थ में करते हैं अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता का नाश करते हैं। फ्रिज के आविष्कार की आवश्यकता भारत के लोगों को ध्यान में रखकर की ही नहीं गई है। आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। यह उन देशों को ध्यान में रखकर बनाया गया है जहां न तो कोई पैदावार होती है और न कुछ बना-खा सकते हैं। सोनू (भांजा, मारुति में इंजीनियर है) जब इंडोनेशिया गया तो अपने साथ रेडी टू ईट खाद्य सामग्री लेकर गया था। क्योंकि वह पहले कई देशों में जाकर आया था तो उसे खाने की दिक्कत हुई थी। उनके पास इस मौसम के कारण खाने के लिए कुछ है ही नहीं। वे घिनौरियों को उबालकर उसमें नमक-मिर्च मिलाकर मांस-मछली खाने के बाद उसे हाजमोला की तरह चटखारे लेकर खाते हैं। सोचिए, काक्रोच की पकौड़ियां और सांप का सूप आप पीने की छोड़ दीजिए यह सोचने में उल्टी कर देंगे कि ऐसे देशों के लोगों का खाद्य है।
जिनके पास खाने को है ही नहीं कुछ, उन्हें खाने दीजिए ऊटपटांग। पर आपके यहां तो हर मौसम में प्रकृति ऐसे फल और सब्जियां देती है कि कोई कभी बीमार न पड़े। पर इन आविष्कारवादियों ने इसे भी कहां सही छोड़ा। रात में लौकी की छोटी बतिया में भैंस के दूध वाला इंजेक्शन लगाकर उसे बड़ा करके बाजार लाते हैं। संतरे में गंदा पानी इंजेक्शन से भरकर उसका वजन बढ़ा देते हैं। सेव और अन्य फलों और सब्जियों को रंग देते हैं। मानव ने अपने विनाश के सारे साधन जुटा रखे हैं।
प्रकृति के साथ जुड़िए, मौसमी हर फल का आनंद लीजिए, सब्जियां अधिक से अधिक खाइए। कचड़ा खाद्य/जंक फूड से दूरी बनाइए तभी कल्याण संभव है। आज तो मैं ही सारा लिख गया। अब आप क्या लिखेंगे?😀🙏 पर बैठना मत, जो बैठ गया वह गया। कुछ रचनात्मक अवश्य होइए और आज कुछ ऐसा लिखिए जो युगों-युगों तक सराहा जाए। प्रमाणपत्र के लिए लिखा तो क्या लिखा?
✍️ राज वीर सिंह मंत्र जी
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली
राष्ट्रीय अध्यक्ष
3.
कवियत्री आ. अर्चना जोशी जी "साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित हुई -
साहित्य एक नज़र 🌅 , कोलकाता , सोमवार , 24 मई 2021
23 मई 2021 , रविवार को " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से कवियत्री आदरणीया अर्चना जोशी जी को "साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित किया गया । जोशी जी पत्रिका के अंक 1 - 13 तक में अपनी रचनाओं से योगदान करते हुए प्रचार प्रसार करने में भी अहम भूमिका निभाई है । साहित्य एक नज़र कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका है , जो नि: शुल्क में साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली , इंकलाब मंच मुंबई , हिंददेश परिवार , विश्व साहित्य संस्थान , माहेश्वरी साहित्यकार, विश्व न्यूज़ , विश्व साहित्य सेवा संस्थान एवं अन्य मंचों का साहित्य समाचार प्रकाशित व साहित्यकारों की रचनाएं , पेंटिंग ( चित्र ) प्रकाशित करके साहित्य व कला की सेवा कर रहें हैं , इस पत्रिका का उद्घाटन रोशन कुमार झा के हाथों से 11 मई 2021 मंगलवार को हुआ रहा केवल एक सप्ताह में ही यह पत्रिका सोशल मीडिया पर छा गया । साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका में जिन - जिन रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित हुई है उन सभी को हर एक दिन एक एक रचनाकार को " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान पत्रिका के अंक के साथ सम्मानित किया जाएगा , अर्चना जोशी जी को समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों बधाई दिए ।
4.
सेनेटाइज किया गया हावड़ा बामनगाछी के दशरथ घोष लेन में ।
साहित्य एक नज़र 🌅 , कोलकाता , सोमवार , 24 मई 2021
अमित राय , सुखदेव यादव , कमलेश चौबे जी के नेतृत्व में अभिषेक चौबे जी के टीम के सहयोग से हावड़ा के बामनगाछी नोनापाड़ा दशरथ घोष लेन में शीतला माता की मंदिर, सड़क , व घरों का सेनेटाइज किया गया ।
5.
जंगल....
सिर्फ जंगल नहीं है हम
मौसम भी बदलते हैं हम
सिर्फ झाड नहीं जीवन भी है हम
पृथ्वी और आकाश के संतुलन भी है हम.....
चांदनी रात में कभी आकर
हवाओं के गीत सुनो
बरसात की थाप पर गिरती
वृक्षों का संगीत सुनो......
देखो हममें कैसा सौंदर्य समाया है
पतझड़ के बाद अभी तो बसंत आया है
तितलियां गुनगुनाने लगी है
फुलों ने अभी तो रंग दिखाया है......
मेरे वृक्ष स्थल का विस्तार देखो
आकर मेरे भीतर का संसार देखो
उगा रक्खें है हमने पेड़ पौधे वनस्पतियां
चंदन चीड़ शाल और औषधियां....
जीवों के पालनहार है हम
सरहदों की रक्षा के दीवार हैं हम
धर्म कर्म की तपोभूमि है हम
चाहे राम का हो वनवास
या पांडवों का हो अज्ञातवास
रिषि मुनियों के एकान्तवास है हम
सृजन व आस्था के आकाश है हम......
जिस शाख को काट रहे हो तुम
उसपर है किसी का बसेरा
कुछ सपने पर रहे हैं उनमें
मत करो उनके जीवन में अंधेरा...
हमने देखा है शहर तुम्हारा
सड़कों फुटपाथों पर सो रहे हैं लोग
दो रोटियों की तलाश में
रिश्तों में जहर घोल रहें हैं लोग....
जंगल के जानवरों को नचा रहे हैं लोग
करके व्यापार हमारा
अपना पेट पाल रहे हैं लोग......
धीरे-धीरे जंगल जब उजड़ जायेगा
तब आपदाओं का कहर तुम्हें रूलायेगा
जंगल के जीव तुम्हारे शहर आयेंगे
फिर सोचना तुम कहां जाओगे....
✍️ पुष्प कुमार महाराज,
गोरखपुर
6.
नमन मंच:साहित्य एक नजर
अंक-१४
दिनाँक-२४-५-२०२१
दिन-सोमवार
हम खास वक्त के इंतजार में
ही क्यो आ बात करे....
क्यो न इस वक्त को खास
बनाने की कोशिश की बात करे...
बारिश के सुरूर को आ कैद
करने की बात करे...
मोर नाचते हैं बारिश को देख आ
हम भी पाँव चलाने की बात करे...
फूल खिल उठे हैं आज हम
खिलखिलाने की बात करे...
तितलियां मचली आज हम भी
मचलने की बात करे...
पेड़ पर हमसफ़र बन लता से आ
हम भी बनने की बात करे...
आगोश में बून्द आज धरती की
सी आ हम भी बात करे...
दादुर बोलते बारिश प्रेम में आ हम भी
प्रेम की बात करे...
बिजली खुश बारिश आगमन से आ
हम भी आने की बात करे...
प्रेमी भीग रहे आज आ हम भी
भीगने की बात करे...
हम भी साथ बैठ आज अपनी
ही बस बात करे...
✍️ डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद
7.
सुरेश शर्मा
नमन मंच :- साहित्य एक नज़र
दिनांक: २४-५-२१(सोमवार)अंक-१४
चंद शे'र, हालातों को बयां करते---
१इस दौर का तक़ाज़ा है,
ज़ायज़-ए-जम्हूरी है!
रिश्तों की शिद्दत को,
ये दूरी भी ज़रूरी है!
२ क़लम पे लाज़िम है के
मुख़ालिफ़त भी होनी चाहिये,
बात लाख तल्ख़ हो मग़र,
अदब से कहनी चाहिये।
३ दौरे-तरक़्क़ी में आये हैं,
क्या कुछ न हार कर!
वो लोग कहाँ गये, जो
मिलते थे बाँहें पसार कर!!
४ रन्ज़िशें, अदावतें, वो
मुझसे बेहिसाब रखता है,
चलो, यूँ ही सही! कोई
मुझे याद तो करता है।
५ गोद में चाँद सा मैं,
वो आसमान सी!
मेरी माँ मेरे लिए,
पूरा जहान सी!!
✍️ सुरेश शर्मा
8.
नमन मंच:साहित्य एक नज़र
अंक:,14 में प्रकाशित करने के लिए
उसे अपने खुबसूरती पे बहुत नाज है
मगर मेरी आँखो के लिए तो खाज है।
न पढ़े मैने कसीदे ,न फिदा ही हुआ
शायद इसीलिए वो ,मुझसे नाराज है।
हो गया है उसे वहम-ओ-गुमान बेशक़
जवानी पे जो कल नहीं बस आज है ।
चलिए ये तो फितरते हुस्न है क्या कहें
वक्त कहेगा,कौन किसका मोहताज है ।
नादानी है अजय तुम्हारी ,मान भी लो
हुस्न ने किया अक़सर इश्क़ पे राज है ।
✍️ अजय प्रसाद
कसीदा = प्रशंशा
9.
साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 14
शीर्षक :- तुम मेरी भीख हो ।
क्यों तुम मुझे
तुम से आप बनायी ,
प्यार की हमसे
पर अपने बच्चों का
किसी और को बाप बनाई ।।
लाख सपने दिखाई तोड़कर
गयी ख़्वाब ,
क्यों छोड़कर गयी
अभी तक दी न जवाब ।।
खुद पढ़ी हमसे अपने
सहेलियों को भी पढ़ाई ,
दूर गयी हमसे
मेरी याद तुम्हें
अभी तक न आई ।।
तो तुम अब ठीक हो ,
तुम जिसके नज़दीक हो ।।
उसका भी गुरु
पर तुम हमारे लिए भीख हो ,
मैं भिक्षुक नहीं
मैं दानी हूँ
मैं रोशन तुम्हें हारा हूँ
मेरे नाम का तुम्हारा
हर एक छींक हो ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(05)
24/05/2021, सोमवार
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
Sahitya Eak Nazar
24 May , 2021 , Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
10.
गीत _ पीओके की आजादी
कहने को तो बहुत ही,
मासूम सा दिखता हूँ।
खरीदोगे 'जहाँ ए नफरत',
मोहब्बत में बिकता हूँ।
गुजर गया वक्त 'इजहार ए इश्क'
,बेवफाई के जिक्र का, आजकल
'देव' दुश्मनों की,
मैं बर्बादियाँ लिखता हूँ।
अब बस एक ही जतन करें ,
पी ओ के की आजादी का
एक नया इतिहास लिखें हम,
दुश्मन की बर्बादी का।।
तीन सौ सत्तर हटा दई,
माहौल घाटी का शान्त हुआ,
रास न आया दुश्मन को,
मन उसका बहुत क्लान्त हुआ,
जीते जी प्राणान्त हुआ,
मोह छूट सका ना वादी का।
एक नया इतिहास लिखें,
हम दुश्मन की बर्बादी का।।
आतंकी अड्डा बना हुआ,
मिल रहा है साथ पड़ोसी का,
अब की बार जो करी हिमाकत
, काट देंगे सर दोषी का,
करें लहू से तिलक आज,
नर मुंडों की शहजादी का।
एक नया इतिहास लिखें हम,
दुश्मन की बर्बादी का।।
पिछ्ली मार भी भूल गया,
फन फिर से नाग तू उठा रहा
अमन चैन तुझे रास न आता ,
आतंकी सब बुला रहा
मौत की नींद तू सुला रहा,
साथी बनता हर वादी का
एक नया इतिहास लिखें हम,
दुश्मन की बर्बादी का।।
भारत माता के दामन,
पर अब जो भी दाग लगायेगा,
सौगन्ध हमें माँ काली की,
वो नहीं कभी बच पायेगा,
बना उसे फिर हम मेहमाँ दें,
मरघट की आबादी का।
एक नया इतिहास लिखें हम,
दुश्मन की बर्बादी का।।
बहुत सह लिये जुल्मों सितम,
अब तो प्रतिकार करो
ओ! महलों के सिंहासन जादो,
खुला अब यलगार करो
थर्राएँ दुश्मन देख जिगर,
कैसे बना ये 'देव' फौलादी का
एक नया इतिहास लिखें हम,
दुश्मन की बर्बादी का
अब बस एक ही जतन करें ,
पी ओ के की आजादी।
एक नया इतिहास लिखें हम,
दुश्मन की बर्बादी का।।
✍ शायर देव मेहरानियाँ
अलवर,राजस्थान
(शायर, कवि व गीतकार)
11.
अंक- 14
दिनांक- 24/05/2021
दिवस- सोमवार
विषय- कविता
विधा- कविता
मैं श्मशान हूँ
..................
निर्जन हूँ, वीरान हूँ,
अस्थियों का भंडार हूँ,
मानव जीवन मुक्ति का,
मैं ही खोलता द्वार हूँ,
इहलोक से परलोक का,
जोड़ता मैं ही तार हूँ,
अग्नि की लपटों का,
न बुझने वाला खान हूँ,
दुर्गंधों से भरा हुआ,
अपवित्र स्थान हूँ,
सड़े हुए नरमुंडों का,
अनोखा खलिहान हूँ,
जीवन की सत्यता का,
एकमात्र आधार हूँ,
अंत में अपनाने वाला,
मैं श्मशान हूँ।
✍️ ज्योति कुमारी
धनबाद झारखंड।
12.
किसी ने हमसे बड़े तालिम से पुछा,
अजी सुनिए....!
आप कहां रहते है?
हमनें भी उन्हें, उन्हीं के तवज्जो में कहा,
अजी जरा ध्यान से सुनिए!
हम उन बदनाम गलियों में रहते है
जहॉ आशिक, दिवाने मरने से नहीं डरते है
बल्कि, निलाम हो सरेआम
बेपनाह, बेबाक मोहबत किया करते है
और....
दुनिया की नजरों में रोज ही सूली चढ़ते है
हॉ... जी... हॉ...
हम उन्हीं बदनाम गलियों में रहते है!
●●●
✍️ ज्योति झा
बेथुन कॉलेज, कोलकाता
13.
*पत्रिका हेतु रचना स्वरचित एवं मौलिक*
कैसे प्रेम को मुक्त किया ?
प्रेम.....
..जिस को कभी जाना नहीं ।
बिंध जाता है नेसा नेसा
उधड़ जाते हैं दिल के टाँके
रह जाती है अधूरी सीवन
पपडाये होठों पर जमा रक्त
पीत नैत्रों से बहती पीर
गर्म तेजाबी ,
बना के कपोलों पे लकीर
चुभती है कोई किरच
बीच हथेली के दरम्यान ।
और तुमने प्रेम को मुक्त किया ?
कितना आसान है उस पीड़ा से भागना,
कितना सरल था अनचीन्हे निशां मिटाना ,
कितना भयातुर हो जाता है भोला मन
किसी को खोने के ख्याल से ही।
जिसे पूरा पाया ही नहीं ...।
कैसे तुमने प्रेम मुक्त किया ??
दूर तलक नभ में सूनापन बिखरा
हवाओं ने तन को नोंचा ,छेदा ,
लू के थपेड़ों ने तन्हाई को सहलाया
आती जाती श्वांसों के स्पंदन ने
बस...बदन को जिंदा बतलाया ।
खिंच जाते हैं जैसे जंत्री सेतार
पोर पोर में बजता है सितार ..
बिना यह जाने कैसे मुर्दा बनते हैं
और तुमने प्रेम को मुक्त किया ?
शेष बचा क्या सीने मेंफिर
बचा क्या हथेलियों के दरम्यान
एक बजबजाता सा अहसास ..
दरम्यान हमारे कोई डोर नहीं
अगर होती तो प्रति उत्तर मिलता
कि ....
कैसे तुमने खुद से
प्रेम मुक्त किया ???
जा ...प्रेम तुझे उन्मुक्त किया
✍️ मनोरमा जैन पाखी
24/05/2021
दिन सोमवार
14.
मैं भारत हूँ ।
मैंने हर मंज़र देखा है
मैं भारत हूँ
मैंने समंदर भी सूखते देखा है।
गुलामी की जंज़ीरों को तोड़,
आज़ादी का सूरज निकलते देखा है।
जो शहीद हुए आज़ादी के रण में,
माँ को खून के आँसू पीते देखा है।
मैं भारत हूँ
मैंने हर मंज़र देखा है।
वो कहते है हम पड़ोसी है,
पड़ोसी का फर्ज़ निभाते देखा है।
सरहद की फ़िज़ाओं में,
गंध बारूद की फैलाते देखा है।
मैं भारत हूँ
मैंने हर मंज़र देखा है।
जब होते है साम्प्रदायिक दंगे,
हर धर्म का खून बहते देखा है।
हो किसी भी कौम का,
एक ही मिट्टी में दफन होते देखा है।
मैं भारत हूँ
मैंने हर मंज़र देखा है।
ग़मगीन है माहौल फ़िज़ाओं का,
सांसों की डोर टूटते देख रहा।
भाषणों से गला घोंटती हवा,
नाम के लिये दवा बटती देख रहा
मैं भारत हूँ
मैं ये भी मंज़र देख रहा
आज मैं समंदर को सूखते देख रहा।
✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर , मध्यप्रदेश
9753877785
15.
||ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः||
माँ शारदा-वंदना
***************
(छंद- वसंततिलका)
हे शारदे शरद अंबुज कांति युक्ता,
माला सुशोभित सदा तव हाथ मुक्ता|
विज्ञान ज्ञान वितरे नित हाथ पोथी,
वीणा निनादित हमें नव गीत देती ||१||
हे श्वेत हंस सुविराजित पंकजाक्षी,
अज्ञान से विरत हों हम ज्ञान दात्री|
संसार भीति हमसे नित दूर होवे,
मूल्य महा समय का इसको न खोवें ||२||
अच्छे विचार मन में निज वास पावें,
माता पिता व गुरु को हम रोज सेवें|
देखें निराश नर को उसको हँसावें,
हे भारती तव कृपा हमको सिखावे||३||
✍️ गणेश चंद्र केष्टवाल
मगनपुर कोटद्वार गढ़वाल , उत्तराखंड
16.
जिंदगी का यही है फसाना,
कम हो या ज्यादा हर
दशा में है मुस्कुराना,
मंजिलों की खोज में
चलते जाना है,
दिन हो या रात,
स्फूर्तिवान होकर
जगमगाते जाना है,
पकड़ कर हाथ आत्मविश्वास का,
निष्ठापूर्वक आगे बढ़ते जाना है,
थोड़ा-थोड़ा जुड़कर बड़ा हो जाएगा,
पर्त दर पर्त आह्लाद जुड़ जायेगा,
यूं तो कम है जिंदगी,
सब कुछ पाने के लिए,
बदल दो मेहनत का पैमाना,
किसी को भी मुकम्मल नहीं
मिलता यह जमाना,
खुशहाल जिंदगी की कला सीख लो,
दुख हो या सुख हर स्थिति में
हंसना सीख लो,
ना देखो पैर के छालों को,
कांटो पर भी मुस्कुराना सीख लो,
अपनो का हाथ पकड़ चलते जाना है,
जिंदगी के खूबसूरत गुलदस्ते में
खुशबू बिखेरते जाना है।
✍️ निशांत सक्सेना
17.
चेहरे से हटा लो जुल्फों को ,
थोड़ा सा उजाला होने दो ,
सूरज को ज़रा शर्मानें दो ,
मुँह रात का काला होने दो !
सजना क्या संवरना अच्छा है,
तनहाई भरी इन रातों में,
जुगुनू की बँधी पाँखें खोलो,
झिलमिल सा नजारा होने दो !
हम तुम तुमको तुम हम हमको ,
नज़रों से नजारों को देखें ,
पलकों से कहो कुछ खुल करके ,
थोड़ा सा इशारा होने दो !
पागल हूँ यही हमको कहते ,
इसमें है हमारा दोष कहाँ ,
होता अब वही जो होना है ,
अपना भी गुज़ारा होने दो !
भींगा यह बदन सूखा है गला ,
मैं समझ नहीं अब तक पाया ,
धारा से किनारे पर आओ ,
हाथों का सहारा होने दो !
होते यह "सजल" काले नैना ,
चितवन से सदा घायल करते ,
किश्ती को सहारा कुछ दे दो ,
कुछ अपना हमारा होने दो !
*******************************
✍️ रामकरण साहू "सजल"
बबेरू (बाँदा) उ०प्र०
18.
ये कैसी आजादी है ?
✍🏻 चेतन दास वैष्णव
--------========
( 1 ) भाग
ये कैसी आजादी है ?
यहां रोज सवेरा होता
शामें यहां सिसकती है
अधियारें में आँसू पीकर
राते यहां गुजरती है,
ये कैसी आजादी है ?
धरती लम्बि चौडी है,
मन चाही फसलें होती है ,
आग पेट की बुझती नहीं,
जनता भूखी सोती यहां,
ये कैसी आजादी है ?
मीलों में मीले फैली है ,
कपडो की रैलम पैली है,
मानो फैसन ही ऐसा है ,
आधी मानवता ही नंगी है
ये कैसी आजादी है ?
महलों में नेता मंत्री है ,
बंगलों में है उधोगपती ,
फ्लेटों में व्यापारी नौकर सरकारी है ,
झोपडीयों में जनता लाचारी है,
ये कैसीआजादी है ?
स्कूल कोलेजो में जगह नहीं ,
बिना चंदे ऐडमीशन नहीं,
फिसों में कोई कमी नहीं ,
बिना ट्यूशन शिक्षक करते नहीं पास ,
ये कैसी आजादी है ?
छात्र यहां कब पढने जाते ,
नकल चले या नगद डिग्रियां वो पाते,
राजनीति के चक्कर में पडकर,
तोड फोड हडताल जुलूस उन्हे भाते,
ये कैसी आजादी है ?
सफर रेल का यहां बडा खोटा है ,
भाडा ज्यादा सुख सुविधा का टोटा है,
खिडकी पर नहीं टिकट का कोटा ,
ऐजेन्टों से ले लो कहीं नहीं टोटा,
ये कैसी आजादी है ?
अस्पतालों में खाली मिलता बेड नहीं,
बिना पैसे वाले रोगी में डॉक्टर
को इंटरेस्ट नहीं है,
दवा इलाज इतने महंगे रोगी तो रोगी,
घर वाले भी सोचें मर जाए बस बेस्ट यही है,
ये कैसी आजादी है?
थाने में डंडे की थानेदार चलती है,
रिपोर्ट लिखाने की दस्तूरी लगती है,
अन्याय जुल्म की वे रहम छुरी चलात हैं,
न्यायालय में पैसों की "जी" हुजूरी चलती है ,
ये कैसी आजादी है ?
टैक्सों की ऐसी भरमार यही है ,
सरकार भिखारी की बही है,
बजट में घाटा खर्चे की कमी है,
पीटे दीवाला चाहे अामदानी की पड़ी नहीं,
यह कैसी आजादी है?
नेताओं के ठाठ देखकर दिल जलता,
जनता के पैसों से इनका हर चक्कर चलता है,
बदमाश शरीफों के बल पर यह शासन चलता है,
मानव मुर्दा देश बना जाने कैसे यह पुतला चलता है,
ये कैसी आजादी है ?
मंदिर मस्जिद गिरजेे गुरुद्वारे हैं,
हिंदू मुस्लिम ईसाई सरदार हैं,
महज तो सबको प्यार सिखाता है,
फिर क्यों चलती है आपस में तलवारें है,
यह कैसी आजादी है?
✍🏻 चेतन दास वैष्णव
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा , राजस्थान
19.
अंक _ 14 में प्रकाशनार्थ .......
समर्पण ......
तुम आतुर चंचल शलभ
मैं प्रज्वलित शिखा सारंग,
जले विग्रह की अगन में
करते समर्पण अंग प्रत्यंग ।
तेरे प्राणों की मैं गुंजन
तेरे ही मन की मयूर हूं,
तेरे आधारों की मिठास
तेरी तृप्ति की मधुर हूं ।
तुम अलिंद अलिवृति तेरा
मैं रही प्रसून उपवन कुंज,
अलमस्त सा चित्त विभोर
मैं पीयूष पुष्प पराग पुंज ।
तुम तृषित हो प्रेम के
मैं तुम्हारी हर प्यास हूं,
तुम प्रदीप्त हो दीप के
मैं आलोकित प्रकाश हूं ।
तुम सागर असीम गंभीर
मैं तो चंचला नदी नीर हूं,
तुम हिमाद्रि निश्चल अडिग
मैं स्पंदित रत अधीर हूं ।
तुम काया कामदेव के
मैं प्रतिबिंब रति रूप हूं
तुम रमण माधुर्य मान्य
मैं समर्पित रत मीत हूं ।
✍️ अवधेश राय
नई दिल्ली ।
20.
प्रेम पथिक बनी स्त्री सृजक और पुंसवादी सोच की साहित्य में पैठ देख कर, यह आलेख लिखा है.
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--- *"प्रेम" का बिम्बारोपन* ---
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'प्रेम' शब्द का निहितार्थ साहित्य और दर्शन के फलक पर बहुआयामी और व्यापक है.अतएव इसकी व्याख्या में एकांगी होने का खतरा बना रहता है. इस खतरे के मध्य इसे बिम्ब के रूप में चयन करना एक साहसिक प्रयास कहा जा सकता है.
किसी प्रतिक्रिया अथवा अभिमत का संप्रेषण उस वक्त कठिन हो जाता है जब पाठक उसे पूरे मनोयोग से पाठ कर और उसकी गहनता में पैठ बनाने की कोशिश करता है. रचनाकार का संवेदित संप्रेषण पाठक की बाह्य ग्राह्यता पर भी निर्भर करता है.
अस्तु इसके सार्वभौम और दर्शनशास्त्रीय स्वरूप के इतर स्त्री विमर्श के तौर पर इसे देखा जाय तो शौष्ठव अक्षरबोध से लिपटा विडम्बनाओं का सुंदर संयोजन है.
प्रथमतः इंकार और इकरार के द्वैध स्वरूप की सहज अनुभूति, समुचित शब्द नियोजन द्वारा स्त्री सुलभ प्रतिकात्मक अभिव्यक्ति सामाजिक बोध के अनुरूप स्वभाविक ग्राह्यता को विलक्ष्णता के साथ चलचित्र की तरह रेखांकित करती दिख रही है. इसने रचना को साहित्यिक सौंदर्य का लिबास पहना दिया है.
कालांतर आग्रह, अनुग्रह और अनुदेशात्मक आकांक्षा के विडंबित बोल को मुखर करता नजर आता है. समाहार स्वानुभूति संप्रेषण की स्वतंत्र अभिलाषा का परिधान ओढ़ समर्पण की निवेदित लालसा का प्रकटीकरण प्रदर्शित करता दिखता है. इसे स्त्री विमर्शात्मक दृष्टि कही जा सकती है जो उदबोधन के प्रयास में शब्दों के आच्छादन की परिधि लांघने में पूर्णतः सफल नहीं हो पाता है.
दरअसल अभिव्यक्ति जब बनाई न जाय और स्वयं स्फुटित हो तो संप्रेषण उसमें कूट कूट कर भर जाता है. इसमें कोई खलिश या लाचारी नहीं होती है. यह बिम्ब ( प्रेम ) एक तरफ गंभीर किन्तु मन को बिंधती सी आवाज का अहसास है तो दूसरी ओर खुरचती, छीलती सी आवाज - कभी पास आती और एक तीखी सी खरोंच देकर न जाने कहाँ गुम हो जाती, पुनः खरोंच देने की अहसास तक..... इस आवाज का शोर और फुसफुसाने दोनों का गुंफन दृष्टिगत होता है. दर्द से उभरे मनुहार की अभिव्यक्ति की बिडम्बना का स्वर गुंजन अभिसारित है.
सदियों से परिभाषित प्रेम की चौखट से ठोकर खाती संवेदना की चोट की एक टीस उभर कर आ रही है. वहीं वीरता के अभियान के मध्य विहंसते व्यंग्यात्मक मुस्कान श्रृंगारित है.
काव्य विधा का यह बिम्ब अपनी विलक्षणता के साथ शब्द शक्ति के तीनों रूपों में भिन्न भिन्न अर्थ का संचार भी करता दिखता है. नि:संदेह उसमें उसके अनुपम भावस्वर प्रस्फुटित होते हैं. यथा- प्रेम के प्रतीक में जब संध्या को संयोजित किया जाता है तो अभिधा में सूर्यास्त और रात्रि के संधिकाल का आभास देता है, लक्षणा में " चिड़ियों " के घर वापसी का संकेत निहित हो जाता है, वहीं व्यंजना में उसे नायिका के श्रृंगारकाल से अभिव्यंजित कर सकते हैं. इस तरह प्रतीक और बिम्ब के संयोजन से भावस्वर को अभिव्यंजित किया जाता है. किंतु स्त्री विमर्श में इनके संयोजन के औचित्य को हमें निरखना होता है.
निःसंदेह यह स्त्री विमर्श की परिधि में संस्कृति सम्प्रति राष्ट्रीय चिति की अंतःचेतना से मानवीय आवेग और संवेदनाओं के उत्स की एक विवेचना का यथासंभव व यथायोग्य प्रयास है.
साधुवाद.
✍️ अजय कुमार झा
21.
सादर प्रेषित एक गजल
पत्रिका हेतू
डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम नजीबाबाद बिजनौर यू पी
ग़ज़ल
सवालों जवाबो ने मार डाला.
तेजाबी खयालों ने मार डाला|1
अंधेरा घना है उजाले न देखो
फरेबी उजालों ने मार डाला|2
आँखों सेदेखे थे जो भी सपने
हमारे उन ख्वाबे ने मार डाला|3
कोरोना ही फैला सारे मे देखो
कातिल अजाबों ने मार डाला|4
न भूले से पढना ऐसी किताबें
विषैली किताबों ने मार डाला|5
किसे प्रेम क्या समझा सकोगे
हाँ खाना खराबों ने मार डाला|6
प्रमोद शर्मा प्रेम नजीबाबाद
✍️ ङा 0 प्रमोद शर्मा प्रेम़
नजीबाबाद , बिजनौर
22.
वीरान-सी जगह
......................
आँखें बंद करके ज्यों
कल्पना में डुबकी लगाई,
स्वयं को वीरान-सी जगह में पाई,
कँकरीले पत्थर के टुकड़े
जमीन पर थे पडे़,
और खुले आसमान थे उस पर अड़े,
कँटीली झाड़ियाँ थी, थे सिर कटे पेड़,
मनचली हवाएँ लगा रही थी ऐड़,
दुर्गम थी वहाँ की पहाड़ियाँ,
शायद कर रही हो किसी के
आने की तैयारियाँ,
खंडहर थे जीर्ण-शीर्ण,
जैसे चुकाना हो अपने का ऋण,
डटकर खड़ी थी विशालकाय दीवार,
रौशनी का बस कर रही इंतजार,
रात्रि की आई घनी ऐसी बेला,
झींगुर सो रही हो चादर फैला,
चारों ओर थी सन्नाटा छाई,
उम्मीद की किरणों के
साथ सुबह की घड़ी आई,
सबने कहा,वीरानता
जीवन का अंत होती है,
मैंने देखा, अंत से
ही सृजन आरंभ होती।
✍️ श्वेता कुमारी
धनबाद, झारखंड।
23.
" भूल जाता हूं "
तुम्हें पाकर के दिल की हर,
तमन्ना भूल जाता हूं!
मैं अपने घर की गलियों से
गुजरना भूल जाता हूं!
कहीं रस्ता भटक जाऊं,
अंधेरों से ना थक जाऊ,
इसी के डर से मै घर से
निकलना भूल जाता हूं!
अभी हालात ऐसे है,
सभी की जात पैसें है,
बिना इसके कदम भी एक
मैं चलना भूल जाता है!
अभी पीपल के पत्तों की
हवा वाजिब है चलने दो
ये कुदरत की दवा पाकर
सिसकना भूल जाता हूं!
मेरी नन्ही सी बिटिया की हंसी,
मेरा खिलौना है,
खिलौना देख कर अपना,
मचलना भूल जाता हूं!
सुना बचपन की हर हरकत
बड़ी बेबाक होती हैं,
मैं बच्चे के कदम जैसा
संभलना भूल जाता हूं!
बड़ा होकर बड़प्पन से
छिपाया दर्द जो हमने
गुजारे के लिए रातो में
जगना, भूल जाता हूं!
पढ़ाई में फिसड्डी था,मगर
सपनों का जिद्दी था,
बरफ की सिल्लियों पर भी
फिसलना भूल जाता हूं!
तमाम आवाम के किस्से,
मेरे हिस्से में आए है
सुलगती आग का दरिया हूं,
जलना भूल जाता हूं,
जहन में था बदल डालू, ये
नफ़रत की आबोहवा
मगर घर के देखकर हालात,
उछलना भूल जाता हूं!
✍️ - नीरज सेन ( क़लम प्रहरी )
कुंभराज, गुना (म. प्र.)
24.
#साहित्य एक नजर
#सादर नमन मंच🌷🙏
#विषय श्री राम 🙏
#विधा कविता
#दिनाँक-24 मई 2021
#दिन सोमबार ( सोमवार )
#अंक 14 में प्रकाशनार्थ
🌹🌴🌷🙏🌴🌹🌷🙏🌴
विषय - श्री राम
नोमी तिथि मधुमास अति पावन
शुक्ल पक्ष मध्य दिवस सुहाबन
सरयू तट नीर अति मन भावन
नगर मध्य दुंदभी नगाड़े बज आये
अयोध्या नर नारी फूले नहीं समाए
महल में एक प्रकाश पुंज है आया
आते ही माँ कौशल्या की गोद समाया
गुरु वशिष्ठ ने पावन नाम सुझाया
जग में विख्यात नाम राम कहलाया
कौशल्या को राम हैं प्यारे
अवध के हैं राज दुलारे
दशरथ के हैं आंख के तारे
धनुष यज्ञ में राम पधारे
जनकपुरी सब नर नारि सुखारे
तोड़ धनुष जग सीता राम पुकारे
अनन्य भक्ति की प्रीति हो ऐसी
पवन पुत्र हनुमान के जैसी
प्रिय सेवक बन राम काज कोआये
जग विख्यात राम दूत कहलाये
बर्षों से बाट जोह रही शबरी के घर आये
चख चख झूठे बेर प्रेम से राम ने खाये
दिया ज्ञान शबरी के मन में समाए
नवधा भक्ति से मन ह्रदय हर्षाये
कर उद्धार अहिल्या शबरी का
निज पावन धाम पंहुचाये
युग युगांतर से गूंज रहा है एक ही नाम
इस जग के पालन हार है श्री राम
मर्यादा में रह यह संदेश ले आये
संसार में मर्यादा पुरुषोत्तम नाम कहलाये
कोशलाधीश भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम राम
नमन करे सेवक राही का बारंबार प्रणाम
✍️ कवि अनिल राही
ग्वालियर मध्यप्रदेश
25.
✍️स्वरचित🙏
श्री साहस्त्रबाहु का वंशज
मै राष्ट्र के प्रति मेरी प्रीत
चाह दिलों को जीतने का
सब कहते मुझे सुजीत
नित नूतन काव्य प्रवाह
करूँ यही दें मुझको आशीष
अनमोल सा है जीवन मेरा
कहीं व्यर्थ न जाये बीत
गृह शोभा मार्बल से नही,
न ही शोभित लग्जरी कार
मात- पिता ही कुटुम्ब के,
हैं धन, सम्पदा अपार
जिनसे मानुष तन मिला,
वो हैं मेरे सीता - राम
मात -पिता आशीष मिले
तभी सपना होगा साकार
ससुराल प्रेम मे भूल ना
जाना,पिता के प्रति सम्मान
साली, सरहज के रुपजाल
मे, उलझो नही श्रीमान
उल्टी गंगा ही बह रही
अब उन पति पत्नी के बीच
पतिदेव पत्नी चरणनन
छुवैँ बेमन ही बोलें मेरी जान
मंडप के वो फेरों के सुवचन
कर नष्ट भ्रस्ट बिसराय
रच प्रेम पड़ोसन से अपने
बस कामुकता ही दर्शाय
अब के ऐसे छात्रगण ज्यों
गरजें नित भादौँ मेघ
इम्तहान मे करें नक़ल सेंध
न गुरु सम्मुख वो लजाय
छोकरियां भी कम नहीं जो
दिखलाएं अब निज अंग
पहन फटी टीशर्ट जींस नित
करतीं वो ध्यान को भंग
कलरव करते चंचल लड़के
जिनकी लीला नही सही
मस्त हैं फेसबुक वाट्सअप
पर राष्ट्र समाज प्रति बेढंग
जर्ज़र स्थित से ग्रसित अब व्याकुल
सुजीत करै पुकार
हे बजरंग बली महराज अब तो
लीजिए नव अवतार
इशू,अल्ला, गुरुनानक के दया,
कृपा से होगा बदलाव
निर्भया कांड मन व्यथित करे
अब न हो कोई व्यभिचार
✍️ सुजीत जायसवाल 'जीत'
सरायआकिल , कौशाम्बी
युवा कवि एवं मंच संचालक
मोबाइल -8858566226,
7007560002
ईमेल -sujeetuptiger@gmail.com
26.
!! माँ तुझे प्रणाम!!
मां तुझे प्रणाम कोटि कोटि प्रणाम
तू जननी मात भवानी
तू है शिक्षा के देवी।
तू आराध्या हम सबकी करो
हम सब का समाधान ।।
तू पालक मैं तेरा बालक कर
दे मुझ पर कृपा अपार।
तेरे ऋणों का भार क्या चुकाऊँ
मैय्या कैसे हो मेरा उद्धार।।
मां तुझे प्रणाम कोटि कोटि प्रणाम
तेरी दी हुई शिक्षा से
आज मैं पूर्ण मनु हूं तैय्यार।
क्या आदेश है मैय्या क्या करूं
कैसे करूं मैं नारी सम्मान।।
धरती क्या सर्ग में भी तेरे
बिन हम सब हैं निष्प्राण ।
आशीष अपना देकर कर
दो नूतन प्राणसंचार।।
मां तुझे प्रणाम कोटि कोटि प्रणाम
जरायुज अण्डज स्वेदज हो चाहे
या फिर हों उद्विज।
क्या देव दनुज या फिर मानव तेरे
बिन जगत का न हो विस्तार।।
तू धरा है हम बीज है तेरे तेरे
उर्वराशक्ति बिन फल न पाये हम।
मां किया सिंचन पोषण तूने जो दिनरात
क्या मैं कर पाया तेरा सतकार।।
मां तुझे प्रणाम कोटि कोटि प्रणाम
मां तेरा त्याग ममता जो तूने
कर दी मुझ पर न्यौछावर।
देखें तूने सपने कुछ नैक कुछ
अच्छे क्या मैं कर पाया
हूं तेरा गुणगान।।
मां यदि मैं न कर पाया उपकार तेरा।
कभी न हो अपकार मेरा आशीष
फलता रहें तेरा ज्यूँ नदी का
जल पेड़ों के फल जैसा।।
मां तुझे प्रणाम कोटि कोटि प्रणाम
✍️ डॉ0 श्याम लाल गौड़
सहायक प्रवक्ता श्री
जगत देव सिंह संस्कृत महाविद्यालय
सप्त ऋषि आश्रम हरिद्वार
व्हाट्सएप नंबर- 98371 65447
Mail. shyamlalgaur11@gmail.com
अंक - 1
11/05/2021 , मंगलवार ,
https://online.fliphtml5.com/axiwx/uxga/?1620796734121#p=3
अंक - 2
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अंक - 3
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अंक - 4
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आहुति पुस्तक
https://youtu.be/UG3JXojSLAQ
अंक - 5
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अंक - 6
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अंक - 7
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अंक - 8
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अंक - 9
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अंक - 10
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अंक - 11
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अंक - 12
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अंक - 13
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अंक - 14
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🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
🏆 सम्मान - पत्र 🏆
प्र. पत्र . सं - _ _ 005 दिनांक - _ _ 24/05/2021
🏆 सम्मान - पत्र 🏆
आ. _ _ _ संजीत कुमार निगम _ _ _ जी
ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक _ _ 1 - 14 _ _ _ _ _ _ में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको
🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।
रोशन कुमार झा , मो :- 6290640716
आ. प्रमोद ठाकुर जी
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा
कोलफील्ड मिरर आसनसोल व साहित्य एक नज़र में प्रकाशित
24/05/2021 , सोमवार
कोलफील्ड मिरर
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साहित्य एक नज़र
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नव कार्यक्रम करते हुए साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई रचा एक इतिहास -
साहित्य एक नज़र 🌅 , रविवार , 23 मई 2021
साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई 21 मई 2021 , शुक्रवार को माँ विषय पर कविता , गीत , ग़ज़ल विधा में सृजन करने के लिए साहित्यकारों को आमंत्रित किए । जैसा कि आपको विदित है कि नवरात्र में हमने अपना यूट्यूब चैनल आरंभ किया था और सर्वश्रेष्ठ वीडियोस यूट्यूब चैनल पर अपलोड की थी ।उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज माँ विषय पर आपकी वीडियोस आमंत्रित हैं। मातृ दिवस पर हम सबने आलेख लिखकर माँ की महिमा पर अपना सृजन किया। आज माँ विषय पर ही आप वीडियोस प्रेषित करेंगे। माँ को परिभाषित करना मुश्किल ही नहीं असंभव है -लेकिन फिर भी माँ की सहजता सरलता ममता की पराकाष्ठा माँ जन्नत है ,दुनिया है ,जन्नत है ,तक़दीर है ,ख़ुशी है ,सांत्वना है ,शान्ति है ,भावना है ,दुनिया का हर सुखमय शब्द है।
यह सर्वविदित है माँ सा कोई नहीं हो सकता ।माँ के समान कोई छाया नहीं ,कोई सहारा नहीं ,कोई रक्षक नहीं ,कोई प्रिय नहीं ,माँ कभी पलायन नहीं करती केवल जीवन सँवारती है। आईए माँ विषय पर सृजन कर वीडियोस बनाएँ व यूट्यूब पर अपलोड करवाएँ ।
इस कार्यक्रम में मुख्य आयोजक अध्यक्ष हरियाणा इकाई आदरणीय विनोद वर्मा दुर्गेश जी आयोजक डॉ दवीना अमर ठकराल जी , अलंकरण प्रमुख डॉ अनीता राजपाल जी डॉ दवीना अमर ठकराल जी महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी , पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी , राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी , समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों के सहयोग से एक दूसरे की रचनाएं को वीडियो के माध्यम से सुनकर सार्थक टिप्पणी करते हुए लगभग 1000 कॉमेंट्स आएं जो कि संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है ।
हरियाणा इकाई
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पानागढ़ की कवियत्री नेहा भगत "साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित हुई -
साहित्य एक नज़र 🌅 , रविवार , 23 मई 2021
22 मई 2021 , शनिवार को " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से बंगाल भूमि के पानागढ़ की कवियत्री नेहा भगत जी को "साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित किया गया । नेहा जी पत्रिका के अंक 1 - 12 तक में अपनी रचनाओं से योगदान करते हुए प्रचार प्रसार करने में भी अहम भूमिका निभाई है । साहित्य एक नज़र कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका है , जो नि: शुल्क में साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली , इंकलाब मंच मुंबई , हिंददेश परिवार , विश्व साहित्य संस्थान , माहेश्वरी साहित्यकार, विश्व न्यूज़ , विश्व साहित्य सेवा संस्थान एवं अन्य मंचों का साहित्य समाचार प्रकाशित व साहित्यकारों की रचनाएं , पेंटिंग ( चित्र ) प्रकाशित साहित्य व कला की सेवा कर रहें हैं , इस पत्रिका का उद्घाटन रोशन कुमार झा के हाथों से 11 मई 2021 मंगलवार को हुआ रहा केवल एक सप्ताह में ही यह पत्रिका सोशल मीडिया पर छा गया । इस पत्रिका में साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका में जिन - जिन रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित हुई है उन सभी को हर एक दिन एक एक रचनाकार को " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान पत्रिका के अंक के साथ सम्मानित किया जाएगा , नेहा जी को समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों बधाई दिए ।
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