साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 15 , मंगलवार , 25/05/2021

साहित्य एक नज़र

अंक - 15
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 15

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साहित्य एक नज़र , अंक - 15
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

साहित्य एक नज़र , अंक - 16
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
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🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
25 May , 2021 , Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 15
25 मई 2021
   मंगलवार
वैशाख शुक्ल 14 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 16 ( आ. डॉ प्रमोद शर्मा प्रेम जी )
कुल पृष्ठ - 17
अंक - 15

साहित्य एक नज़र , अंक - 15

( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
अंक - 14

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अंक - 14
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1.

खुशखबरी ! खुशखबरी ! खुशखबरी !

हमारी दैनिक पत्रिका साहित्य एक नज़र 1 जून 2021 से "पुस्तक समीक्षा स्तम्भ" शुरू करने जा रही है पुस्तक की समीक्षा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याती प्राप्त समीक्षक , गीतकार,कवि, शायर,कहानीकार,नाट्यकार और उपन्यास लेखक आ. श्री प्रमोद ठाकुर ग्वालियर मध्यप्रदेश द्वारा किया जायेगा जो पिछले 22 वर्षों से साहित्यिक सेवा में सेवारत हैं। जिनकी अभी तक कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है 2 काव्य संग्रह -कटुकल्पना एवं आँसुओं का वज़न,2 कहानी संग्रह- रॉन्ग नम्बर एवं लल्ली, 2 उपन्यास -पलायन एवं टाइम ट्रेवल, 2 नाट्य संग्रह मुआवज़ा एंव कुंडी का नीलम, 2 साँझा काव्य संग्रह शव्द सागर एवं काव्य सलिल(ई पुस्तक),1साँझा कहानी संग्रह सागर की लहरें भाग-२।

जो भी साहित्यकार इस स्तम्भ से जुड़कर अपनी प्रकशित पुस्तक की समीक्षा करबा कर पुस्तक का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार - प्रसार कर एक नया आयाम देना चाहते है उस सम्मानीय साहित्यकारों का स्वागत है।सभी साहित्यकारों को समीक्षा प्रमाण - पत्र प्रदान किया जायेगा।
कृपया निम्नलिखित विवरण भेजने का कष्ट करें -

1. कृपया पुस्तक की एक प्रति स्पीड पोस्ट द्वारा इस पते पर भेजें
प्रमोद ठाकुर
महेशपुरा अजयपुर रोड़
सिकंदर कम्पू लश्कर ग्वालियर
मध्यप्रदेश -474001
मोबाइल- 9753877785

2. पुस्तक की उपलब्धता
3.एक फोटो
4. प्रत्येक साहित्यकार को सहयोग राशि 30/-₹ इस
9753877785 ------ मोबाइल नम्बर पर फ़ोन पे, पेटीएम, गूगल पे पर भेज कर स्क्रीन शॉट भेजें।





आपका अपना
आ. प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
9753877785

रोशन कुमार झा

2.

साहित्य संगम संस्थान तोड़ दिए अपने सारे रिकॉर्ड -

साहित्य संगम संस्थान, रा. पंजी . संख्या एस 1801/2017 ( नई दिल्ली )  दैनिक लेखन के अंतर्गत सोमवार , 24 मई 2021 को आ. सुनीता जौहरी जी के करकमलों से विषय प्रवर्तन हुआ रहा ,
अस्तित्व विषय पर छंद लिखना रहा , आ. कीर्ति दूबे जी द्वारा विषय प्रदान की गई रहीं । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा , हरियाणा इकाई आदरणीय विनोद वर्मा दुर्गेश जी , डॉ दवीना अमर ठकराल जी , अलंकरण प्रमुख डॉ अनीता राजपाल जी डॉ दवीना अमर ठकराल जी,  महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी, आ. नवल किशोर सिंह जी,  समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों के सहयोग से एक दूसरे की रचनाएं पर सार्थक टिप्पणी करते हुए लगभग  3500  कॉमेंट्स आएं जो कि संस्थान के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है ।

________________

नमन मंच 🙏
नमस्कार सभी साहित्यकार मित्रों को 🙏
मैं सुनीता जौहरी हाजिर हूं आज का विषय प्रवर्तन लेकर। इस मंच पर यह मेरा पहला प्रवर्तन है आशा है आप लोगों का स्नेह व आशीर्वाद अवश्य मिलेगा 🤗
आज विषय है " अस्तित्व" जिसके कई मायने हैं जैसे- हस्ती़, वज़ूद, सत्ता, मौजूदगी आदि ।
और साथ ही विधा भी बहुत सुंदर है--छंद ।
जब वर्णों की संख्या, क्रम, मात्रा-गणना तथा यति-गति आदि नियमों को ध्यान में रखकर पद्य रचना की जाती है उसे छंद कहते हैं। जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है।
जैसे चौपाई, दोहा, आर्या, इन्द्रवज्रा, गायत्री छन्द इत्यादि।
छंद को पद्य-रचना का मापदंड कहा जा सकता है।
छंद के प्रकार----
________________
मात्रिक छंद ː जिन छंदों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है उन्हें मात्रिक छंद कहा जाता है। जैसे - अहीर, तोमर, मानव; अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई; पीयूषवर्ष, सुमेरु, राधिका, रोला, दिक्पाल, रूपमाला, गीतिका, सरसी, सार, हरिगीतिका, तांटक, वीर या आल्हा ।
वर्णिक छंद वृृृृत्त ː वर्णों की गणना पर आधारित छंद वर्णिक छंद कहलाते हैं। जैसे - प्रमाणिका; स्वागता, भुजंगी, शालिनी, इन्द्रवज्रा, दोधक; वंशस्थ, भुजंगप्रयाग, द्रुतविलम्बित, तोटक; वसंततिलका; मालिनी; पंचचामर, चंचला; मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी, शार्दूल विक्रीडित, स्त्रग्धरा, सवैया, घनाक्षरी, रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी, कवित्त / मनहरण।
वर्णवृत्त ː सम छंद को वृत्त कहते हैं। इसमें चारों चरण समान होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु गुरु मात्राओं का क्रम निश्चित रहता है। द्रुतविलंबित, मालिनी वर्णिक मुक्तक : इसमें चारों चरण समान होते हैं और प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या निश्चित होती है किन्तु वर्णों का मात्राभार निश्चित नहीं रहता है जैसे मनहर, रूप, कृपाण, विजया, देव घनाक्षरी आदि।
मुक्त छंदː भक्तिकाल तक मुक्त छंद का अस्तित्व नहीं था, यह आधुनिक युग की देन है। इसके प्रणेता सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' माने जाते हैं। मुक्त छंद नियमबद्ध नहीं होते, केवल स्वछंद गति और भावपूर्ण यति ही मुक्त छंद की विशेषता हैं।

उदाहरण-
चौपाई-
कुमुद कलेवर कोमल काया
कस्तूरी कमली की माया ,
कंवल -कामना कविवर कारी
किंशुक नैना लगे कटारी ।।

कनक कलापी कुंञ्जल बोली
कुहु कुहु दिनभर करत ठिठोली
कलश कुसुम की सुंदरताई
कटि- कम्पित- कौतुक कविताई ।।
_________________________

तो आइएं कलमवीरों छंद के अनुसार सृजन करें, किसी भी छंद पर सृजन करें मगर करें जरूर..
और अंत में जैसा मैं हमेशा कहती हूं.....
"लिखें और लिखाएं
सबका मनोबल बढ़ाएं"...🙏

✍️ सुनीता जौहरी

https://www.facebook.com/groups/sahityasangamsansthan/permalink/1388228201548245/?sfnsn=wiwspmo

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3.
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष आ . राजवीर सिंह मंत्र जी को वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🙏💖 🎈🎂🎁🎉🍰
4.

होकर सूत पुत्र दान किया ,
मेरा न कोई अभिमान किया।
सारे देवता मिल जुल कर ,
एक वीर योद्धा को परास्त किया।
उस महाभारत के जंगल में
अर्जुन तो केवल एक पौधा था,
कर्ण चलता जहां , उसके
जैसा कहां कोई योद्धा था।

द्रोण कोई कसर छोड़ी नहीं
अर्जुन को श्रेष्ठ बतलाने में ,
माँ धरती ने भी श्राप दिया ,
अर्जुन को जीताने में।
परशुराम ने भी श्राप दिया ,
सारे विद्या भुलाने में ।
कुंती ने भी नहीं अपनाया ,
अपना बेटा मानने में।

इन्द्र ने भी छल किया ,
अर्जुन को बचाने में।
पांचों पाण्डव का गुण ,
अकेले मैं रखता हूँ।
अर्जुन जैसा धनुर्विद्या या
फिर भीम जैसा ताक़त हो,
सहदेव , नकुल जैसा
विवेक अकेले मैं गढ़ता हूं।
और युधिष्ठिर की दानविरता से ,
बढ़कर मैं दान देता हूं।
मैं चलता जहां हूं ,
विजय को भी पीछे आना पड़ता है।
और मुझ जैसा योध्दा को हराने में ,
कृष्ण को भी सुदर्शन उठाना पड़ता है।

  🙏🙏🙏.

✍️ धर्मेन्द्र साह
        
  ( DK )

5.

---------------------
निठल्लेलालों की दुनियां...

             निठल्लेलाल दुनिया के सबसे बुद्धिजीवी प्राणी होते हैं। विधाता ने मानव शरीर दिया है इसकी पूरी सुरक्षा करना सबसे अहम जिम्मेदारी समझते हैं। शरीर को कोई कष्ट न हो इसका प्रयास निठल्लेलालों की प्रायिकता सूची में प्रथम स्थान पर सदैव विराजमान रहता है। हो भी क्यों न? काया को कष्ट देना भला कहां की समझदारी है। और फिर कहा भी तो गया है कि निज शरीर की सुरक्षा स्वयं ही कर सकते हैं कोई दूसरा नहीं।
          समय तो अपनी रफ्तार से दौड रहा है। इसकी गति धीमी कदापि नहीं होगी। निठल्लेलाल इसे बखूबी समझते हैं। खास बात यह है कि ये अपने मतलब के लिए पूरे ब्रह्मांड में घूम सकते हैं। जैसा मैने पहले ही कहा कि निठल्लेलाल सबसे बुद्धिजीवी होते हैं, लिहाजा लाभ की कंदराओं में विचरण करना इनका स्वभाव है। वैसे आलतू फालतू काम करने के लिए निठल्लेलालों के पास समय का अभाव ही रहता है। और फिर बुद्धि को व्यर्थ में खर्च करना इनकी प्रवृति में शामिल है। 'बिना कुछ किये सब मिल जाये' - इनके जीवन यापन का सरल सिद्धांत है। अब यह मुझ जैसे मूर्खों को समझ न आये तो इसमें निठल्लेलालों का क्या दोष? इनकी सबसे बडी खासियत यह है कि कुछ भी कहो समय का अभाव हमेशा बताते हैं। कल्पना को विस्तार करके देखूं तो इनकी कार्ययोजना को लिखते हुए चित्रगुप्त जी की लेखनी भी थक सकती है। क्यूंकि इनके जवाब देने के तौर तरीके बताते हैं कि देश के प्रधानमंत्री इन्हें सारे काम सौपकर आराम कर रहे हैं।
           साहित्य के क्षेत्र में भी ऐसे बुद्धिजीवियों की भरमार है। साहित्यिक सफर में मेरा इनसे पाला खूब पडा है। मैं कुछ समझाऊं ये मेरी औकात नहीं किंतु ये मुझे समयाभाव व अन्य पहलू शोध व पुख्ता सबूत के साथ आसानी से समझा जाते हैं। मैं भी बहुत निकम्मा हूं इनसे जीवन दर्शन पर वार्तालाप करने की जिज्ञासा पाले रहता हूं। ताकि मुझे भी इनके तजुर्बे से कुछ मिल सके। इन निठल्लेलालों से जब मैं दायित्व निर्वहन की बाबत कुछ प्रस्ताव रखता हूं तो समयाभाव का ज्ञानदर्शन देकर मुझे धराशाई कर देते हैं। यह बात अलग है कि बाद में आजू बाजू से सिफारिश आने लगती हैं कि कोई उच्च पद व सम्मान मिल जाये तो अच्छा रहे। ओहहहहह.... मैं भी कितना मूर्ख हूं पूरब से पश्चिम पहुंच गया।
            हां तो मैं निठल्लेलालों की बुद्धिमता के बारे कह रहा था कि ये तेज दिमाग और सुस्त बदन के होते हैं। स्वार्थ सिद्ध करना वो भी शरीर और मन को कष्ट दिये बिना इनके जीवन का लक्ष्य है।
       'अपना काम बनता
       भाड में जाये जनता' - सरकार या निठल्लेलालों की नियती है। मेरा तजुर्बा तो यही है। आपका कुछ और हो तो अवश्य बताइयेगा। मैं आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में बैठा हूं😀😀😀

आपका मुंतजिर
✍️ @कुमार रोहित रोज
कार्यकारी अध्यक्ष - साहित्य संगम संस्थान

6.

संसार को नाथ तुम ही बचादो

श्रृष्टि रचना अजब है तुम्हारी विधाता।
समझ आये न तू न तेरी भाषा।।
कभी सत्य धारा की गंगा बहाये।
कभी श्रेष्ठ मानव में दानव समाये।।
कभी संसार उन्नति तपस्या है दिखती।
कभी कोविड महामारी समस्या है दिखती।।
आज दुनिया को ऐसी समस्या ने घेरा।
चहुँ ओर शव शैया है दिखता अंधेरा।।
अनोखी तेरी माया से हम आज भ्रम में।
तू दिखलायेगा रहें है इस वहम में।।
इस विपदा से लड़ हम थक चुके है।
अपनों को खो अब हम कुछ ही बचे है।।
कोरोना का भय मृत्यू भी सामने है।
प्रभू तेरी श्रृष्टि अब तेरे हाथ मे है।।
आज दुनिया को तेरे सहारे की चाहत।
पाना चाहे तुझे सुनना तेरी आहट।।
ये दुनिया तुम्हारी भँवर मे पड़ी है।
बस विश्वास रूपी लड़ी से जुड़ी है।।
गिरते सम्हलते भ्रमित है सफर में।
राहें धुंधली पड़ी हम चकित है डगर में।।
अब तो राहें दिखा अब ये अंधेरा मिटाओ।
अमावस्या की रजनी में पूनम ले आओ।।
मानव ने फिर नाथ तुमको पुकार।
भँवर मे है नईया हमें दो किनारा।।
कोई चाहत न हमें खुद के प्राण की है।
पर बात परिवार व संसार की है।।
कहीं अपने अपनों से छुट न जाये।
असमय मानव की साँसे रुक न जाये।।
आज कोराना रूपी हम विष पी रहे है।
हरपल सुरक्षा बोझ में जी रहे है।।
सब जतन कर रहे फिर भी अपनों को खोते।
कोई दामन न छूटे इसी भय में सोते।।
नाथ शक्ति दो की सामान कर सकें हम।
जंग जीते कोराना टूट जाये सभी भ्रम।।
कोविड विष की अब एंटीडॉट लेआदो।
इस संसार को नाथ तुम ही बचादो।।
इस संसार को नाथ तुम ही बचादो।।

            ✍️ सरिता त्रिपाठी
     सांगीपुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

7.
""संघर्ष ही जिंदगी""

मानव को

जीवन में

कदम दर कदम

संघर्ष करना होता है

और

संघर्षों के परिणाम

से ही वह

अपनी सफलता के

नये नये सोपान गढ़ता है

जिनसे वह

अपना वो मुकाम

हासिल कर लेता है

जिसकी उसको

ख्वाईश रहती है।।

✍️ मनोज बाथरे चीचली
जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश
8.
लिखा रह गया मतला
होश  में आ गये यूँ ,नशा रह गया।
छूट के हाथ से जाम सा रह गया।1

सामना मयकदे में हुआ आपका
पूछने को वही हादसा रह गया ।2

लोग आते रहे ,लोग जाते रहे
साथ मेरे वहाँ करबला रह गया।3

फासला क्यूँ रहा जानते हो सनम
होसला खो दिया सिलसिला रह गया4

नाखुदा तू नहीं ,फिर बता दो मुझे
तैरते क्यों नहीं ,शव  सजा रह गया।5

बात करते नहीं ,दायरा भी नहीं
फिर क्यों दीदार से ये गिला रह गया।6

कायदे से लिखी है सफ़ीना मगर
नाम पाखी मिटाया,लिखा रह गया।

✍️ मनोरमा जैन पाखी

9.
रचयिता:  प्रमोद पाण्डेय 'कृष्णप्रेमी' गोपालपुरिया

होंठों  से  लेकर  तुम, सियाराम नाम  भजलो।
प्रभु   कृष्ण  के  चरणों  में, राधे-राधे  जपलो।।

ना   कोई   बहाना   हो, ना  कोई   हो  बन्धन।
हर वक्त घड़ी हरपल, प्रभु चरण का हो अर्चन।।
हरे राम  हरे  कृष्णा, प्रभु कीर्तन  तुम कर लो।
होंठों  से  लेकर  तुम, सियाराम नाम  भजलो।।
प्रभु  कृष्ण  के  चरणों में, राधे - राधे जप लो।।

जीवन   का   सूनापन, सब  दूर  करें भगवन।
सांचा  होगा  वो मन, जो ह्रदय से हो सुमिरन।।
हरिनाम की ये माला, तुम आज वरण कर लो।
होंठों  से  लेकर  तुम, सियाराम  नाम भजलो।।
प्रभु  कृष्ण  के चरणों  में, राधे - राधे जप लो।।

                      

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
-माँ श्री राधारानी के पावन श्रीचरणों की पावन ' रज '
        ✍️  "कृष्णप्रेमी" गोपालपुरिया प्रमोद पाण्डेय
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

10.
जो सच में प्रेम करते हैं
वो प्रेम गीत नहीं लिखते हैं
वे हार जाना चाहते है
एक दुसरे से
जीतने की कोशिश नहीं करते...
ना ही एक-दूसरे से 
जीने मरने की कसमें खाते हैं ....
अपने जीवन के कुछ           
बेमेल रंगों को सहेज कर
बस इन्द्रधनुष बनाते रहते हैं
फिर डबडबाई आंखों से
उसे निहारते रहते हैं....

✍️ पुष्प कुमार महाराज,
22.05.2021

11.

कहाँ तक निभाएँ साथ हम उनका
वो है कि साथ निभाना नहीं चाहते।
कहां तक हाथ थामे हम उनका।
वो हमसे अपनी उंगली तक छुड़ाना चाहते।
कहां तक मिलाएं कदम से कदम हम उनका।
वो अब साथ हमारे एक भी
कदम बढ़ाना नहीं चाहते।
समझाई हर एक बात बड़ी बारीकी
से हमने उन्हें मगर जानक कर भी सभी बातें वो
अनजान बन जाना चाहते।
जो सजाते थे सपने कभी हमारे नाम के
आज वो नजर उठा कर हमसे नजरें
मिलाना नहीं चाहते।
जब बना ही लिया है जाने का इरादा उन्होंने
तो हम भी अब उन्हें वापस बुलाना नहीं चाहते।

●●●
✍️ ज्योति झा
बेथुन कॉलेज, कोलकाता

******************

एक ग़ज़ल -----------

दोस्त  अपने सब  सितारों  की तरह हैं ,        
कुछ  धधकते  सूर्य, तारों  की  तरह हैं ।

पढ़  रहे  जीवन  के  नुक्ता  हर्फ अपने ,
पृष्ठ छोड़िए  सब, किताबों की तरह हैं ।

महकते  सभी  गुलशनों  के फूल जैसे ,
काफी  वसन्ती  के बहारों  की तरह हैं ।

कई गरजते कुछ घुमडते कुछ चमकते ,
काफी  सावन के  फुहारों  की  तरह हैं ।

याद  हमें, कुछ भूलने  के बाद  साथी ,
अपने  खातों  में  हिसाबों  की तरह हैं ।

कुछ हमारे हम उन्हीं के सिलसिला यह ,
"सजल"कई में कुछ दुलारो की तरह हैं ।

✍️ रामकरण "साहू" सजल
बबेरू (बाँदा) उ०प्र०

12.
नमस्कार 'साहित्य एक नजर मंच,
१५ अंक के प्रकाशन हेतु,
     
      *लम्हा*
गुम हुआ है *लम्हा* कोई
गिर पड़ा था यही कही,

लेकर यादों की संदूक,
क्या बैठी मै जरा देर,
एक एक यादों के लम्हों को
देख, फिर संजोग रही थी,
उतने में एक लम्हा गिरा
देखो मिलता है क्या यही कहीं
गुम हुआ है *लम्हा* कोई

बड़े जतन से रखा था,
बड़े नाजो से तराशा था
हाथ से छूटा यही कही,
ढूंढ ना होगा यही कही,
गुम हुआ है *लम्हा* कोई!!!
 
जब भी अतीत को टटोलती हूं
  कुछ  बीते लम्हों को
    आस पास बिखेर लेती हूं,
   देखती हूं  महसूस कर लेती हूं
   उन बीते लम्हों में फिर जी लेती हूं
  पर आज ये क्या हुआ, अनजाने में
     गुम हुआ है * लम्हा * कोई

कलमकार:_ ✍️ सौ. अल्पा कोटेचा, महाराष्ट्र.
13.
🙏 क्यों.....? 🙏

सबूत भी है, गवाह भी है,
फिर भी हम लाचार क्यों हैं?
अदालत में सारी बातें साफ है,
लूटी है अस्मत निर्भया की,
फिर भी फांसी से दूर क्यों हूं ?
कैसी विडंबना है ? कैसा यह देश है?
सजा मुकर्रर है- - -!!
फिर फांसी में देरी क्यों है ?
उनके कर्मों के काम पर- - ,
मोहर लगाई है मौत की ,
कागज पर लिखी फांसी की सजा ,
नीब कलम की तोड़ी है कोर्ट ने,
फिर भी वह फांसी से दूर कैसे हैं ?
वकील को प्यार है नोटों से,
नेताओं को लगाव है वोटों से ,
लगता है संविधान में सुधार की जरूरत है,
ऐसे दरिंदों को फांसी देना ही जरूरत है,
हम सब शर्मिंदा हैं निर्भया तेरे कातिल जिंदा है,
गवाह भी हैं, सबूत दे दिए,
कानून ने सजा मुकर्रर की,
फिर भी फंदे से दूर क्यों है ?
यूं ही बचाते रहेंगे बलात्कारियों को,
हौसले बुलंद रहेंगे बलात्कारियों के ,
फिर रोज होंगे यूं ही बलात्कार ,
हम तुम सब देखते रहेंगे यूं ही,
और ...........,
मां बहन बेटी की यूं ही लुटती रहेंगी अस्मतें है,
कहे "चेतन वैष्णव" बदलाव जरूरी है,
ऐसा कानून पारित किया जाए,
ऐसे दरिंदों को तुरंत चौराहे पर लटकाया जाए,
आज नहीं तो  फिर कभी नहीं,
होते रहेंगे ऐसे ही बलात्कार,
हम तुम सब यूं ही देखते रहेंगे,
बलात्कारी यूं ही बचते रहेंगे !!

✍🏻 चेतन दास वैष्णव
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा , राजस्थान
14.
अंक-15
दिनांक-25/05/2021
दिवस-मंगलवार

शवों की चीत्कार
......................
मुझे आज भी याद है वो मंजर,
जहाँ की जमीन थी
बिल्कुल बंजर,
फिर भी उठ रहा था,
चीत्कारों का बवंडर,
मार गये मुझे अपने
विश्वासघात का खंजर,
एक बार झाँककर भी
नहीं देखा हमारे अंदर,

फेंक दिया जहाँ-तहाँ
कूड़े के ढेर पर,
चील,कुत्तें नोंच-खसोंट
बना रहें अस्थि पंजर,
तुम्हें पता है अपमान
सीना छलनी कर जाती है,
फिर भी बेमुरादों को
लाज-शर्म नहीं आती है,

जीवित थे तो क्या खाक
थी चिंता हमारी,
लावारिस छोड़ गये,क्योंकि
निगल गई महामारी,
ऐ मेरे मालिक, ये तूने कैसी सृष्टि बनाई,
मानव के अंदर दिल ही न लगाई,
फेर ली तूने भी नजरें और
जमकर कहर बरपाई,

कहने को एक सफेद कफन थी हमारी,
वो भी बेच खा गए व्यभिचारी,
कहीं अधजला हूँ तो कहीं सड़ा हूँ,
इसलिए अपना जी करता कड़ा हूँ,

सच कहता हूँ, एक दिन ऐसा आएगा,
न कहीं सड़ेगा, न कहीं बहेगा,
मानव को मारकर मानव ही खाएगा,
ऊपरवाले और समाज से नहीं
है हमारी पुकार,
ये है हम शवों की विदीर्ण हृदय चीत्कार।

✍️ श्वेता कुमारी
  धनबाद, झारखंड।
   
15.

||ऊँ श्री वागीश्वर्यै नमः||

               शाश्वत उपकार
                ***********
               (हरिगीतिका छंद)

सब प्राणवायु बिना महाभय से भयंकर भीत हैं|
फिर ढूँढ में उसकी गए नर आ रहे कर   रीत हैं|
भय से सभी घबरा रहे हम पा सकें कहँ जीत हैं|
मरते कई  घिर रोग में  तजते यहाँ  सब मीत हैं ||१||

समझो धरा कहती दिवा-निश काटते तुम पेड़ हो|
मद में सभी  धरती तथा नभ  छोड़ते तुम धूम हो |
तुमको सदा  वितरे सुवायु  कभी नहीं तुम जानते |
उपकार वो   करते निरीह  सदा नहीं तुम   मानते ||२||

यदि चाहते उपकार शाश्वत रोपते तरु को चलो|
मनमोहिनी धरणी सजाकर जीतते उर को चलो|
सब पा सकें तब प्राणवायु सभी सुजीवन जी सकें|
बढ़ता रहे सबका मनोबल औ सभी सुख पा सकें||३||

रचयिता- ✍️ गणेश चन्द्र केष्टवाल
मगनपुर किशनपुर ,कोटद्वार गढ़वाल
उत्तराखंड
२४-०५-२०२१
   16. 
  नमन मंच ,
साहित्य एक नजर दैनिक पत्रिका ,
१५ अंक के प्रकाशन हेतु ,

" मन तू क्यों व्यथित हुआ रे ...''

          मन तू क्यों व्यथित हुआ रे .........
          ये नव यौवन नव चेतना से
          पल्लवित होता बचपन है ,
          संस्कृति को भूल आधुनिकता से
          काल के अंतर को पाटता
          नव सोच है नव विचार है ।
          मन तू क्यों व्यथित हुआ रे .............

          क्षणिक आडंबर मिथ्या आवरण
          रचा संसार विकट प्रारूप है ,
          मृगतृष्ण की मरीचिका में
          पराकाष्ठा भटकन की अक्षम्य भूल है ।
          मन तू क्यों व्यथित हुआ रे ...............

          ह्रदय अचंभित हुआ मौन है
          क्या हमने ये ही रोपा था ,
          ममता की छाँव तले
          आँचल से हवा देकर ,
          क्या ये ही उपवन सींचा है ।
          मन तू क्यों व्यथित हुआ रे .................

         क्षोभ के अनुत्तरित प्रश्नों से
         क्यों तन  बिंधा - बिंधा सा लगता है ,
         देख - देख नव कोपलों को
         यूँ  धुँए - धुँए के संसार  में ,
         " अनु '' मन तू व्यथित हुआ रे .............
          मन तू व्यथित हुआ रे ..................

                                                      
     ✍️  अनीता नायर "अनु'
नागपुर (महाराष्ट्र )
9766442053
17.
दिनांक-25-05-2021
अंक-15
कविताशीर्षक- मैं अजर अमर हूँ

✍️ डॉ श्यामलाल गौड़
सहायक प्रवक्ता
श्री जगदेव सिंह संस्कृत महाविद्यालय
सप्त ऋषि आश्रम हरिद्वार
98371 65447
shyamlalgaur11@gmail.com

# मैं अजर अमर हूँ #

मैं भारत का सैनिक हूँ
मैं अजर अमर हूँ
मैं कभी न मरता हूँ
मैं अपनी माटी के
खातिर हर बार जनमता हूँ।।
मैं शाश्वत तिरंगा हूँ,।।
हिमालय शीश है मेरा।
तिरंगा और राष्ट्रगान दो
दिगदर्शक आंखे हैं मेरी।
यहाँ का ज्ञान विज्ञान कान हैं
मेरे जो संदेश मुझे सुनाते।
संस्कृति घ्राण है मेरी जो
सुगन्ध मुझे दिलाती।
सभ्यता है जिह्वा मेरी जो
अखिल विश्व को जीने की शिक्षा देती।
रगों में बहती जलधारा लहू
और रक्तवाहिनी है मेरी।
माटी को तुम मूर्तरूप जानों मेरा।
शेष भारत वक्षस्थल है मेरा ।
जवान दृढ़ भुजायें हैं मेरी जो दिन
रात सीमा रक्षित करती।
किसान उदर है मेरा जो बोता
सबको खिलाता
मजदूर रीड़ है मेरी जो मुझे
जीने की ऊर्जा प्रदान करती।
संविधान प्राण हैं मेरे जो
मुझे जीवित दिखलाता
कन्याकुमारी हैं पग मेरे
जिन्हें दिनरात सागर पखारता।
दिशायें उत्तरीयवस्त्र हैं मेरा जो
मुझे आवर्णित कर साकार
आकार प्रदान करती।
भारत का सार्वभौम दर्शन आत्मा है मेरी
मैं भारत का सैनिक हूँ
मैं अजर अमर हूँ।।

     
18.
    "प्रहरी का पत्र"
मेरे हिस्से का आराम कहां है!
तेहरीर सुनाती सुबह है शाम कहा है!

यूं रफ्तार से दौड़ती जिंदगी,पकड़ सकू,
मेरे हाथ में लगाम कहां है!

नमुना ही दिखाते रहोगे,
या फिर बताओगे भी, गोदाम कहां है!

सुना है नाम रोशन किया है समाज में
गुमनाम नाम का मुकाम कहां है!

तपती दोपहरी चौराहे ताकता रहता हूं
खून पसीने का दाम कहां है!

बतियाते सुना हू दोस्तों को अक्सर
सरकारी नौकरी है,काम कहां है!

कोरोना के अहम लक्षण है, कल से मुझे
साहब कहते है जुकाम कहां है!

सिपाही को लेबर ही समझते हैं अफसर
तो ये झूठ है कि गुलाम कहां है!

मेरी होली, ईद, दीवाली, राखी
क्रिसमिस, इतवार तमाम कहां है!
मेरे हिस्से का आराम कहां है!

- ✍️ नीरज सेन (कलम प्रहरी)
कुंभराज, गुना (म. प्र.)




19
शीर्षक : नई सुबह नई स्फूर्ति

हर बार जब आप जागते  हैं तो आप एक अलग व्यक्ति होते हैं  | नए दिनकर के साथ शरीर स्फूर्ति से परिपूर्ण होता  हैं | आलस्य भी विभावरी के साथ उड़नछू हो जाता है|  सुबह एक ऐसा वक्त है जिसमें शरीर जिस वक्त शरीर में सर्वाधिक स्फूर्ति  संचरण करती है  सुबह की चाय के साथ पूरे दिनचर्या की योजना  करने का एक अलग ही मजा है  सुबह उठकर  प्राकृतिक सुंदरता का आनंद, विहंगो  का मधुर संगीत सभी मन व  मस्तिष्क को तरोताज़ा  करते हैं  | अपने सपनों को पूरा करने के लिए तत्परता और लगन से कार्य को करने की शक्ति  हर सुबह हमको प्राप्त होती है |  बीता कल शर्वरी के साथ छोड़ कर,  एक नई सुबह का अभिनंदन कर एक बेहतर भविष्य के लिए कदम बढ़ाना चाहिए  | ढलते दिन के साथ शक्ति स्फूर्ति का भी ढलाव  शुरू हो जाता है इसलिए बीते कल के बारे में सोच कर भविष्य को अंधकार में नहीं करना चाहिए |  ताजे मन व मस्तिष्क होने के कारण ही सुबह आप हर सुबह अलग व शक्तिशाली व्यक्ति होते हैं  अच्छे सरल व्यक्तित्व के निर्माण की ओर सोचते हुए बस कदम आगे बढ़ाइए और सपनों को जुनून में बदल आगे बढ़ते जाइये |

निद्रामग्न हो गयी है विंभावरी ,
आयी है नव्य प्रभात वेला ,
द्विजो ने भी त्याग दिए है था,
अकर्मण्यता को त्याग  उठ  जाओ ,
मंज़िलो के अभ्र में उड़ जाओl

-- Er. Nishant Saxena "Aahaan" ✍️
Lucknow
✍️ निशांत सक्सेना

20.
नमन मंच🙏
अंक 15
विधा - कविता
शीर्षक - आईना
*************

जिंदगी भी एक आईना है
जैसा देखोगे बैसा ही दिखेगा
कोरा कागज का पन्ना है
वही दिखलायेगा जो लिखेगा
आईना कभी झूठ नहीं बोलता
जैसा सोचोगे वैसे ही
मन के भावों को खोलता
आईना है जीवन की सच्चाई
जैसी है बैसे आईने ने दिखाई
आईने के सामने खड़े हो जाओ
जैसी है सूरत बैसी  ही पाओ
थोड़ी नजर घुमाओ
आईने से ओझल हो जाओ
जीवन को आइना जैसा बनाओ
इंसान बनकर इंसानियत को पाओ
जब आईना के सामने जाओ
इंसानियत से भरा सुंदर चेहरा पाओ
*****************
*** ✍️ अनिल राही ****
** ग्वालियर ,  मध्यप्रदेश ****

21.
अंक 15 के लिए
मुझें साहित्यकार समझने की आप भूल न करें
उबड़-खाबड़,कांटेदार रचनाओं को फूल न कहें।
मेरी रचनाएँ बनावट और सजावट से हैं महरूम
कृपया  अलोचना करें मगर  ऊल-जुलूल न कहें ।
हाँ चुभते ज़रूर हैं चंद लोगों  की नज़रों में यारों
हक़ीक़त में हैं नागफनी ,इन्हें आप बबूल न कहें।
कुछ तो बदलाव लाया जाए परंपरागत लेखन में
सदियों से रहा यही है साहित्य का उसूल न कहें ।
बड़े आए अजय तुम साहित्य के सुधारक बनकर
बहुत सह लिया हमनें आपको,अब फ़िज़ूल न कहें 

✍️  अजय प्रसाद
अण्डाल,वेस्ट बंगाल
22.

कलम शब्दों को उकेरने के लिए उत्सुक हैं,
कभी उनकी वाह वाही का सहारा तो मिलें।

निराश कलम से अब सिर्फ दर्द-ए-अलफ़ाज़ निकलते है,
हो जाये ख़त्म ये जुदाई कभी उनका सहारा तो मिलें।

लिख सकता हूँ तुम्हारें रूप पर गज़ल कविता,
कभी मुहोब्बत से उनका इशारा तो मिलें।

लिख सकूँ अनवरत बहती सरिता की तरह।
इस भटके सफ़ीने को कभी साहिल तो मिलें ।

देखता हूँ राह आँखों के कोरों पर मोती लिये,
कभी भूले से उनका इश्क-ए-फ़रमान तो मिलें।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर मध्यप्रदेश
9753877785

23.
अंक _ 15
विधा _ कविता
शीर्षक _ कमल पुष्प वर्णन

शोभना पुहुप, बीच पंक अंक पर
लखत कंज भानु, तेज पुंज प्रखर,
मंद मंद जो बहत,  शिशिर  समर
लेत मकरंद रहत, उड़त जो भ्रमर ।

          विलोचित ये छवि, लेत  उर लहर
          अपलक नयन न हटे, जात कगर,
          श्वेत,गुलाबी पद्म पुष्प, लखे चहर
          सुशोभित ये सुमन, नीर भरे नहर ।

पात सरोज तिरत, जल  जो कमर
हरितवरण धारे, ये  धात्र सा प्रसर,
श्वेत निहारिका चमके, होत निखर
जस लगे आभा, होत रजत निसर ।

          मयंक उगत, शर्वरी  ये ढात कहर
          मूर्छित पड़े, हिय पान करत जहर,
          बाट जोहत ये, बीतत अंतिम पहर
          सुखद मिलन दिनेश, देखत  डगर ।

संग बांधवी कुमुद, रहे नीर छहर
निशि शशांक देखि, वियोगि  हर,
नयन सुख पावे,  आँखि न कजर
जबतक रहे रजनी, अंतिम  प्रहर ।

         क्षीरसागर हैं मुकुंद, करत  बसर
         भाग बड़े पंकज के,हरि सेज धर,
         संग सहचरी पद्मा, हिलाए  चंवर
         देख छवि पुलकित, नलिन नजर ।

✍️ अवधेश राय
नई दिल्ली ।
24.
#दि0-21/05/21

विषय- आत्मविश्वास
विधा- मुक्तक
छंद- वास्रग्विणी
मात्रा-212 212
           212 212

आत्मविश्वास रख,मन लगा के पढो।
लक्ष्य पाओ सभी,तन लगा के बढो।
जान अपनी लगा  दो  उसी के लिए।
तोड़  चट्टान  दो  और  ऊँचा   चढो।।

मान लो  है  अँधेरा  बहुत   ही  घना।
चीर लो आत्मबल  से  करो साधना।
बेझिझक तुम जलो दीप की लौ बनो
हाल हरहाल   में   है  हमें  जीतना।।

सूर्य से सीख विस्तार कर  लालिमा।
आत्मविश्वास से दूर  कर  कालिमा।
लाख  बाधा  बने   ये  घटायें  मगर।
व्योम में  छा गई  प्रात  में लालिमा।।

मंजिलों को छुओ! स्वप्न पूरा  करो।
सैनिकों की  तरह  जंग जीता करो।
मुश्किलें पार कर राह चलता गया।
हारना  है  मना  जीत   पूरी   करो।।

रचयिता- ✍️ रोशन बलूनी
           प्रवक्ता
रा0इ0का0गडिगाँव
पाबो पौडीगढवाल
     उत्तराखण्ड

@..copyright act..
25.

सच है अपना भारत फिर महान हो जाता
*************************

ऊंची मीनारों में रहने वाले
जरा रहकर इक व्रत देख लेते
एहसास हो ही जाता
भूख होती है क्या?
मजलूम मजदूरों का निवाला
छीन कर खाने वाले,
एहसास हो ही जाता
भूख से बिलखते बच्चों की
भूख होती  है क्या?
इन बच्चों में जो देख लेते
अपना खुद का बच्चा
सच है अपना भारत
फिर महान हो जाता।

गरीब लाचार बेबस बच्चों का
हक छीन कर
अपने बच्चों को खिलाने वाले,
सोच लेते जरा
इन बच्चों का क्या होगा ?
फिर किसी गरीब के हक का
निवाला  न खाते,
सच है अपना भारत
फिर महान हो जाता।

गरीब झोपड़ियों का
चिराग बुझा
अपनी ऊंची मीनारों में
उजाला करने वाले,
देख लेते जो इन झोपड़ियों में
इक पल अपना घर
सच है इन झोपड़ियों में
कभी अंधेरा न होता,
सच है अपना भारत
फिर महान हो जाता।

ठंड से सिकुड़ते मजलूमों के
बच्चों के कपड़े बेच कर
अपने बच्चों को ब्रांड पहनाने वाले,
जो देख लेते इन बच्चों में
अपना खुद का बच्चा,
सच है अपना भारत
फिर महान हो जाता।

गरीब, मजलूम, मजदूरों का
घर ,कॉलोनी बेचकर,
अपने आलीशान महलों  में
संगमरमर लगवाने वाले,
देख लेते जो इन बेबस, लाचार, मजलूम घरों में अपना खुद का घर‌,
सच है अपना भारत
फिर महान हो जाता।

गरीब मजदूरों की रोटी बेचकर
काजू ,बदाम ,मेवा ,मिठाई खाने वाले
देख लेते जो इनकी भूख में
अपनी खुद की भूख ,
सच है अपना भारत
फिर महान हो जाता।

✍️ कवि धीरेंद्र सिंह नागा
ग्राम -जवई ,तिल्हापुर
(कौशांबी) उत्तर प्रदेश

26.

सुप्रभात...
25.05.21

                      ग़ज़ल
डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम नजीबाबाद बिजनौर

इतना था दर्द दिल से संभाला नहीं गया
दम अपना अपने आप निकाला नहीं  गया|1

चाहा था कडवी याद समंदर में फेंक दूँ
गहराइयों को दिल की खँगाला नही गया|2

सपने में देख के तुझे रोये थे देर तक
मंजर खुशी का हम से सँभाला नहीं गया|3

सच बोलने की मुझको हीआखिर मिली सजा
झूठों पे  एक  दोष  भी  डाला नही गया|4

वादा किया था रोज ही सपने में आऊंगी
वादा था वादा  माँ से ये  टाला नहीं गया|5

होंगे भला क्या और के माँ बाप के नहीं
बच्चों  को अगर  प्रेम से पाला नहीं गया|6

✍️ डॉ. प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद बिजनौर , यू0 पी0 भारत

27.

साहित्य एक नजर.
नमन मंच.
दिनांक -25/5/2021.
अंक - 15.

विधा - कविता.
      
जय जवान ! जय किसान !!
-------------------------------------
किसी खोये हुए वक्त के,
बीत जाते विस्मृत समय,
भूली- बिसरी सी,
भावुक सी कहानियाँ.
चमक उतर आती है,
आंखों में,
दस्तक दे रहा है,
दरवाजे पर,
एक पुराना समय,
विस्मृत युग का अहसास.
खुशी और आह्लाद का,
अद्भुत क्षण,
धन्यवाद के दो शब्द,
जय जवान! जय किसान!!
संविधान मुखरित है,
शब्दों में,
ध्वनि देती शब्दों को,
अर्थों की व्यंजना.
आरोह- अवरोह से,
है बंधी ध्वनियाँ,
ताल और लय में,
सृजित करता एक गूंज,
अलग-अलग भावों का.
सांस लेती नायिकाएं,
रक्त संचारित धमनियाँ,
क्रियाशील हाथ- पांव,
ताल से बेताल हो,
उठ खड़े हैं किसान,
जय जवान! जय किसान!!
जाति- धर्म संसद के,
बारूदी ढेर पर,
लकड़ियों की कमी है,
लाशों की नहीं,
पेट्रोल की कमी है,
खून की नहीं.
जागो!
मद् की चिर निद्रा से,
नतमस्तक है,
काल और मृत्यु,
कि बोलो!
जय जवान! जय किसान!!
-------------------------------------------------

@ ✍️  अजय कुमार झा.
    सहरसा, बिहार.

28.
सुरेश शर्मा
अंक-१५
विधा- कविता
शीर्षक - माँ

माँ जब भी बच्चों संग
बचपन बाँटती है
पोंछ कर पसीना माथे का
अतीत में झाँकती है
एक पुराना फ़ोटो लाती है
खिलखिलाते हुए बताती है
तुम्हारी माँ,
यही दो चोटी वाली है
कितनी सहजता से
वो पल छाँटती है,
रोज सतत प्रक्रिया सी
सूर्य रश्मियों ओ'चन्द्र किरणों सी
अंधेरा छांटती है
आशाएं बाँटती है
ब्रह्मांड की धुरी बन
घर में ही क्षितिज तक
घूम कर लौट आती है,
हाँ, माँ धरा की धुरी होती है,
क्योंकि माँ तो बस माँ होती है।

✍️ सुरेश शर्मा

29.
अंक- 15
दिनांक- 25/05/2021
दिवस- मंगलवार

कोरोना तुमने सीखला दिया
....................................
हैंड शेक करने वालों को,            
नमस्कार करना बतला दिया।         
रिश्तों में दूरियाँ थी कभी,               
उन्हें संग जीना सीखला दिया।      
पुरानी संस्कृतियों को तुमने,             
पुनः जीवन बना दिया।                  
संकट की घड़ी में सुनो,                   
अपनों की पहचान करा दिया।       
उतने भी बुरे नहीं तुम,                     
लोगों को जिंदादिल बना दिया।        
मजदूरों के हौंसलों से,                    
हमारा परिचय करा दिया।               
दुत्कारे जाते थे जो कभी,
उन्हें सम्मान दिला दिया।
हिंदी साहित्य में तुमने,
एक नया विमर्श ला दिया।।
नारी के बंदी जीवन को,
अपनो का सानिध्य दिला दिया।
घर पर रहना आसान नहीं,
संपूर्ण विश्व को सीखला दिया।
अपने कालक्रम में तुमने,
अपनों का महत्व बतला दिया।
एकता में ही बल,संपूर्ण विश्व को,
कोरोना तुमने सीखला दिया।

   ✍️  ज्योति कुमारी
धनबाद, झारखंड।

30.
नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 24/05/2021 से 26/05/2021
दिवस :- मंगलवार से वृहस्पतिवार
विषय :- कविता
विधा :- कविता
विषय प्रदाता :- आ. मनोज कुमार पुरोहित जी
विषय प्रवर्तक :- आ. रोशन कुमार झा
https://m.facebook.com/groups/1719257041584526/permalink/1924899574353604/?sfnsn=wiwspmo

साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
विषय :- कविता
विधा :- कविता

एक जीवन जीना तो ही था ,
सुख - दुख में ये जीवन बीता ।
पढ़कर जाने राम और सीता ,
शब्द शब्द को जोड़ते गये
बनते रहा कविता ।।

शब्द पड़े हैं मीठा - मीठा ,
दर्द है कुछ नये , कुछ पुराने
लगातार ज़ख़्म को ही पीता ।
ज्ञानों का इच्छुक है हम
कभी कर्ण के बारे में
जानने के लिए पढ़ते महाभारत
तो कभी पढ़ लेते रामायण , गीता ,
फिर पढ़कर जो भाव आता
उस भाव को प्रकट करते
फिर बन जाता वही एक कविता ।।

कहीं हारा , कहीं जीता ,
शब्द - शब्द ने दिल और
दिमाग़ को पीटा ।
नहीं लिखते तो मन में
शांति नहीं था ,
व्याकुल कंठ
कैसे न उसकी प्यास बुझाऊं
लिखकर एक नई कविता ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716, कविता :- 20(07)
25/05/2021 , मंगलवार , अंक - 15
🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
26 May 2021 , Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
31.
कहाँ तक निभाएँ साथ हम उनका
वो है कि साथ निभाना नहीं चाहते।
कहां तक हाथ थामे हम उनका।
वो हमसे अपनी उंगली तक छुड़ाना चाहते।
कहां तक मिलाएं कदम से कदम हम उनका।
वो अब साथ हमारे एक भी
कदम बढ़ाना नहीं चाहते।
समझाई हर एक बात बड़ी बारीकी
से हमने उन्हें मगर जानक कर भी सभी बातें वो
अनजान बन जाना चाहते।
जो सजाते थे सपने कभी हमारे नाम के
आज वो नजर उठा कर हमसे नजरें
मिलाना नहीं चाहते।
जब बना ही लिया है जाने का इरादा उन्होंने
तो हम भी अब उन्हें वापस बुलाना नहीं चाहते।

●●●
✍️ ज्योति झा
बेथुन कॉलेज, कोलकाता
32.

_________________
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
    

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

प्र. पत्र . सं - _ _ 006 दिनांक -  _ _  25/05/2021

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

आ.  _ _डॉ. प्रमोद शर्मा "प्रेम" _ _  जी

ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _ _ 1 - 15  _ _ _ _  में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको

         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।


रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा

_________

अंक - 15

https://online.fliphtml5.com/axiwx/bvxa/
साहित्य एक नज़र , अंक - 15
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

साहित्य एक नज़र , अंक - 16
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
अंक - 16 के लिए इस लिंक पर जाकर रचना भेजें -

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/296027035493413/?sfnsn=wiwspmo

🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
25 May , 2021 , Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 15
25 मई 2021
   मंगलवार
वैशाख शुक्ल 14 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 16 ( आ. डॉ प्रमोद शर्मा प्रेम जी )
कुल पृष्ठ - 17
अंक - 15

साहित्य एक नज़र , अंक - 15

( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
अंक - 14

https://online.fliphtml5.com/axiwx/eyqu/

अंक - 14
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रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -
साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 15
दिनांक :- 25/05/2021 , सुबह 11 बजे तक
दिवस :- मंगलवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।

सादर निवेदन 🙏💐

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
अंक - 15

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साहित्य एक नज़र

अंक - 15

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कोरोना काल
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कविता :- 20(07)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2007-15-25052021.html
अंक - 16
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/16-26052021.html

कविता :- 20(08)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2008-26052021.html
बुधवार, 26/05/2021
अंक - 14
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/14-24052021.html

https://online.fliphtml5.com/axiwx/eyqu/
कविता :- 20(06)

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2006-24052021-14.html

_________________
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
    

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

प्र. पत्र . सं - _ _ 006 दिनांक -  _ _  25/05/2021

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

आ.  _ _डॉ. प्रमोद शर्मा "प्रेम" _ _  जी

ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _ _ 1 - 15  _ _ _ _  में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको

         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
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रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा

Portrait sketch by :शिवशंकर लोध राजपूत (दिल्ली), व्हाट्सप्प no. 7217618716
Portrait of :roshan kumar jha
साहित्य संगम संस्थान उत्तर प्रदेश इकाई
25/05/2021 , मंगलवार
धन्यवाद सह सादर आभार 🙏
आ. शिवशंकर लोध राजपूत जी

रोशन कुमार झा

https://m.facebook.com/groups/203753100596285/permalink/444741246497468/?sfnsn=wiwspmo

काव्य मंच
https://m.facebook.com/groups/365510634417195/permalink/577605743207682/?sfnsn=wiwspmo

पश्चिम बंगाल

https://m.facebook.com/groups/1719257041584526/permalink/1926260617550833/?sfnsn=wiwspmo

धन्यवाद सह सादर आभार 🙏
आ. शिवशंकर लोध राजपूत जी

अंक - 15

https://online.fliphtml5.com/axiwx/bvxa/
साहित्य एक नज़र , अंक - 15
अंक - 15

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/15-25052021.html

कोरोना काल
https://www.facebook.com/groups/sahityasangamsansthan/permalink/1388968081474257/?sfnsn=wiwspmo

https://drive.google.com/file/d/1UbJyGTDZVNde-28nv3CvPvs2ESE-aKFu/view

कविता :- 20(07)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2007-15-25052021.html
अंक - 16
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/16-26052021.html

कविता :- 20(08)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2008-26052021.html
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

साहित्य एक नज़र , अंक - 16
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
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🌅 साहित्य एक नज़र  🌅
Sahitya Eak Nazar
25 May , 2021 , Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 15
25 मई 2021
   मंगलवार
वैशाख शुक्ल 14 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 16 ( आ. डॉ प्रमोद शर्मा प्रेम जी )
कुल पृष्ठ - 17
अंक - 15

साहित्य एक नज़र , अंक - 15

( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
अंक - 14

https://online.fliphtml5.com/axiwx/eyqu/

अंक - 14
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कविता :- 20(09)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2009-27052021-17.html
पश्चिम बंगाल विषय प्रवर्तन
http://sahityasangamwb.blogspot.com/2021/04/blog-post_16.html

अंक - 17
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/17-27052021.html
वृहस्पतिवार , 27/05/2021
पश्चिम बंगाल विषय प्रवर्तन - कविता
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1 -15 तक साहित्य संगम संस्थान

साहित्य एक नज़र
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

Sahitya Eak Nazar
সাহিত্য এক নজর

अंक -1
11/05/2021
मंगलवार
वैशाख कृष्ण 15 संवत 2078
पृष्ठ - 1
कुल पृष्ठ - 4
वैशाख कृष्ण 15 संवत 2078
कविता :- 19(92) - 19(93)

अंक - 1
11/05/2021 , मंगलवार ,
https://online.fliphtml5.com/axiwx/uxga/?1620796734121#p=3
अंक - 2
https://online.fliphtml5.com/axiwx/gtkd/?1620827308013#p=2
अंक - 3
https://online.fliphtml5.com/axiwx/ycqg/
अंक - 4
https://online.fliphtml5.com/axiwx/chzn/
आहुति पुस्तक
https://youtu.be/UG3JXojSLAQ

अंक - 5
https://online.fliphtml5.com/axiwx/qcja/
अंक - 6
https://online.fliphtml5.com/axiwx/duny/

अंक - 7
https://online.fliphtml5.com/axiwx/fwlk/ https://online.fliphtml5.com/axiwx/fwlk/#.YKJFU5FVC0M.whatsapp

https://online.fliphtml5.com/axiwx/fwlk/

अंक - 8
https://online.fliphtml5.com/axiwx/xbkh/
अंक - 9
https://online.fliphtml5.com/axiwx/myoa/

अंक - 10
https://online.fliphtml5.com/axiwx/kwzu/
अंक - 11
https://online.fliphtml5.com/axiwx/qlzb/
अंक - 12
https://online.fliphtml5.com/axiwx/hnpx/
अंक - 13
https://online.fliphtml5.com/axiwx/ptrj/
अंक - 14
https://online.fliphtml5.com/axiwx/eyqu/

अंक - 15
https://online.fliphtml5.com/axiwx/bvxa/
सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/295588932203890/?sfnsn=wiwspmo

मिथिलाक्षर भाग - 3
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/3-2000-18052021-8.html
मिथिलाक्षर भाग - 2
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/2.html

मिथिलाक्षर भाग - 1
http://vishnews2.blogspot.com/2021/04/blog-post_95.html

1 -15 तक साहित्य संगम संस्थान

साहित्य एक नज़र
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

Sahitya Eak Nazar
সাহিত্য এক নজর

अंक -1
11/05/2021
मंगलवार
वैशाख कृष्ण 15 संवत 2078
पृष्ठ - 1
कुल पृष्ठ - 4
वैशाख कृष्ण 15 संवत 2078
कविता :- 19(92) - 19(93)

अंक - 1
11/05/2021 , मंगलवार ,
https://online.fliphtml5.com/axiwx/uxga/?1620796734121#p=3
अंक - 2
https://online.fliphtml5.com/axiwx/gtkd/?1620827308013#p=2
अंक - 3
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अंक - 4
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आहुति पुस्तक
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अंक - 5
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अंक - 6
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अंक - 8
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अंक - 10
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अंक - 11
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अंक - 12
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अंक - 13
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अंक - 14
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अंक - 15
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सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र
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फेसबुक - 1

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25/05/2021 , मंगलवार , आज 15 दिन साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 15









Portrait sketch by :शिवशंकर लोध राजपूत (दिल्ली), व्हाट्सप्प no. 7217618716
Portrait of :roshan kumar jha
साहित्य संगम संस्थान उत्तर प्रदेश इकाई
25/05/2021 , मंगलवार
धन्यवाद सह सादर आभार 🙏
आ. शिवशंकर लोध राजपूत जी

रोशन कुमार झा

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काव्य मंच
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पश्चिम बंगाल

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धन्यवाद सह सादर आभार 🙏
आ. शिवशंकर लोध राजपूत जी

अंक - 15

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साहित्य एक नज़र , अंक - 15
अंक - 15

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कोरोना काल
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( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

साहित्य एक नज़र , अंक - 16
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Sahitya Eak Nazar
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25 मई 2021
   मंगलवार
वैशाख शुक्ल 14 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 16 ( आ. डॉ प्रमोद शर्मा प्रेम जी )
कुल पृष्ठ - 17
अंक - 15

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अंक - 14

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कविता :- 20(09)
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पश्चिम बंगाल विषय प्रवर्तन
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कविता :- 19(92) - 19(93)

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11/05/2021 , मंगलवार ,
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मिथिलाक्षर भाग - 3
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मिथिलाक्षर भाग - 2
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मिथिलाक्षर भाग - 1
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