साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 16 , बुधवार , 26/05/2021 , YouTube

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

अंक - 16
अंक - 16
https://online.fliphtml5.com/axiwx/dozq/

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/296027035493413/?sfnsn=wiwspmo
26 मई 2021
   बुधवार
वैशाख शुक्ल 15 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  14 ( आ. कवि श्रवण कुमार जी )
कुल पृष्ठ - 15

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 16
Sahitya Ek Nazar
26 May , 2021 , Wednesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
26 मई 2021 , बुधवार
वैशाख शुक्ल 15 संवत 2078

Sahitya Eak Nazar

अंक - 17 के लिए इस लिंक पर जाकर रचना भेजें -
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आपका अपना
रोशन कुमार झा


1.

साहित्य एक नज़र 🌅 , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका , रोशन कुमार झा , मो - 6290640716 , Sahitya Ek Nazar, 11/05/2021 मंगलवार  - YouTube

अंक - 16
https://online.fliphtml5.com/axiwx/dozq/

अंक - 15
https://online.fliphtml5.com/axiwx/bvxa/
साहित्य एक नज़र , अंक - 15
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )

साहित्य एक नज़र , अंक - 16
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
अंक - 16 के लिए इस लिंक पर जाकर रचना भेजें -

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🌅 साहित्य एक नज़र  🀊आ. कवि श्रवण कुमार जी
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साहित्य एक नज़र , प्राईवेट
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आ. कुमार रोहित रोज़ जी
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फेसबुक - 1
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फेसबुक - 2
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आपकी कला को नमन 🙏💐💐🙏

Portrait sketch by :शिवशंकर लोध राजपूत (दिल्ली), व्हाट्सप्प no. 7217618716
Portrait of :roshan kumar jha
25/05/2021 , मंगलवार

साहित्य संगम संस्थान उत्तर प्रदेश इकाई
25/05/2021 , मंगलवार

आप आदरणीय शिवशंकर लोध राजपूत जी
हो प्रसिद्ध चित्रकार व कवि ,
हर दिन ही बनाते है आप किसी न किसी
के छवि की छवि ।।

साहित्य संगम संस्थान हमें
ज्ञान - मान - सम्मान दिया बहुत ।
हम रोशन हमारी छवि को
आप आ. शिवशंकर लोध राजपूत जी
बनाएं है अद्‌भुत ।

धन्यवाद सह सादर आभार 🙏
आ. शिवशंकर लोध राजपूत जी

आपका अपना
  ✍️ रोशन कुमार झा
साहित्य एक नज़र , अंक -16
26 मई 2021 , बुधवार , 20(08)

2.
🙏😀लाइक-कमेंट और शेयर😀🙏
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1233552833745636&id=100012727929862



👍 नवयुग के अचूक हथियार 👍
✍️ राजवीर सिंह मंत्र जी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
साहित्य संगम संस्थान

पुराने खयालात के लोग लाइक- कमेंट और शेयर को पहले पसंद फिर प्यार तत्पश्चात् शादी उसके बाद बर्बादी समझते हैं।😂  इसीलिए वे किसी की रचना न तो लाइक करते हैं और न ही उस पर कोई कमेंट करते हैं, शेयर करने में तो जैसे कोई सांप्रदायिकता और छुआछूत से घबराता है वैसे डरते हैं। जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया/साहित्य इतना तेज़ है कि कोई किसी पोस्ट को देख भी लेता है तो उसका नाम अपने खाते में लिख लेता है। व्यापार जगत में तो कोई किसी को व्यर्थ में न तो लाइक करता है और कमेंट तो भूलकर नहीं करता, शेयर उनके लोग ही करते हैं जो प्रमोशन विभाग से जुड़े होते हैं। व्यापार जगत् में तो प्रतिद्वंद्विता और एक दूसरे से जलन की भावना होती है। यही कुनीति उनका व्यापार बढ़ाती है। पर साहित्य- सम्मान- अच्छाई और *विद्या* तो जितना बांटो उतना ही बढ़ती है। पर आज का मानव व्यापारी सबसे पहले है, वह अपना स्वार्थ सबसे पहले देखता है। यही नवाचार मानवता को लगातार पतन की ओर धकेले जा रहा है। कोई भी सम्मानपत्र हो, अच्छी रचना हो उसे सबसे पहले लाइक कीजिए और फिर उसमें समीक्षात्मक टिप्पणी कीजिए तत्पश्चात् उसे लगे हाथ शेयर भी कर दीजिए।

जब हम कोई पोस्ट देखते हैं तो देखने वालों में तो हमारा नाम जुड़ ही जाता है। पर यदि कहीं लाइक कर दिया तो पूरी दुनिया को पता चल जाता है कि ऐसी कोई अच्छी रचना है जिसे आपने पसंद किया है और यदि उस पर कमेंट कर दी तो आप एक तरफ तो विवेचकों में शामिल हो गए दूसरी ओर वह रचना हजारों की पहुंच में आ जाती है। आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी देखकर अन्य दर्शक भी उसे पढ़ने को उत्साहित होंगे और कमेंट कर जाएंगे। आपने यदि उस रचना या सम्मानपत्र को शेयर कर दिया  और आपका फेसबुक/खाता पब्लिक है तो वह वायरल होने की सीढ़ी के पहले पायदान पर चढ़ जाता है। जितने शेयर करने वाले बढ़ेंगे वह उतनी ही वायरल होती जाएगी। कवि/साहित्यकार क्या चाहता है? आपकी वाहवाही। यदि आप वह भी नहीं दे सकते तो एक लिखता हुआ व्यक्ति रचनात्मकता से उदासीन हो जाएगा। आप सभी जानते हैं कि रचनात्मकता का उल्टा क्या होता है? फिर वह वही करेगा।

साहित्य संगम संस्थान के प्रत्येक सदस्य को जहां नित्य एक रचना करने और कम से कम एक स्वत: दायित्व निर्वहन की शर्त रखी जाती है वहीं लाइक, कमेंट और शेयर की भी बड़ी उम्मीद की जाती है। पांच रचनाओं पर लाइक, कमेंट और शेयर की तो सभी को बाध्यता है। यदि इससे अधिक कर सकें तो यह मंच को आपका साहित्यिक सहयोग माना जाएगा और ऐसे लोग बहुत जल्दी सबके प्रिय भी हो जाते हैं। यहां एक बात सिर चढ़कर बोलती है कि जो जितना बांटता है वह उतना ही बढ़ता है। जो रचना करके फरार हो जाते हैं वे मंच और साहित्य के साधक नहीं बाधक माने जाते हैं। फिर सम्मान मांगने वालों की तो बात ही मत पूछिए। सम्मान भिक्षुकों को नहीं मिलता, सदैव सम्मानीयों को दिया जाता है। तकनीकि से अनभिज्ञ बहुत से लोग ऐसे भी अजूबे पाए गए हैं कि रचना पोस्ट करेंगे आस्ट्रेलिया के किसी मंच पर और  दो महीने बाद आकर साहित्य संगम संस्थान या अन्य किसी मंच पर चिल्लाएंगे कि मैंने भी कविता लिखी थी, मुझे सम्मानपत्र नहीं मिला।😀

अपूर्व: कोsपि कोशोsयं विद्यते तव भारति।
व्ययतो वृद्धिं आयाति क्षयमायाति संचयात्।।

प्रश्न शैली में इस संस्कृत के श्लोक में माता सरस्वती से भक्त पूछता है कि "हे भारति! आपका वह कौन सा अद्भुत कोश है जो बांटने से बढ़ता जाता है और संचय करने से घटता जाता है?"  इसका उत्तर विद्या-सम्मान और अच्छाई/अच्छा साहित्य ही है। कई बार व्यस्तता में पचास-पचास, सौ - सौ सम्मानपत्र प्रदाता एक साथ पोस्ट कर देते हैं, उन्हें कोई इंडिविजुअली शेयर तक नहीं करता। शेयर नहीं करेंगे तो कौन जानेगा कि आपने तीर मारा है?😀 अच्छाई जितना फैलाइए उतना अच्छा है।

साहित्य संगम संस्थान की प्रदेश इकाइयों में और शालाओं में विषय प्रवर्तन वाली पोस्ट को ही पदाधिकारीगण *केवल* अनाउंसमेंट/घोषणा बनाया करें उसे शेयर कदापि न करें। जिन पदाधिकारियों को ऐसा करना न आता हो वे अविलंब सीखें। इससे विषय प्रवर्तन सबसे ऊपर दिखाई देता है और लिखने वालों को आपकी इकाई में लिखने में सुविधा होती है। अन्य सभी पोस्ट(सम्मानपत्र/प्रचारक पंपलेट और वीडियो) जितना नाचें/शेयर किए जाएं उतना ही अच्छा है।

साहित्यिक मंचों पर निस्वार्थ भाव से साहित्य सेवा करने वाले सभी सहयोगियों से अपील है कि वे लाइक-कमेंट और शेयर के महत्व को समझें और इसका सदुपयोग साहित्य और विद्या के प्रचार-प्रचार में रामबाण की तरह  करें।

✍️ राजवीर सिंह मंत्र जी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
साहित्य संगम संस्थान

3.

भगवान महात्मा गौतम बुद्ध जी के जन्मोत्सव / बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर आप सभी सम्मानित देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं ।
गौतम बुद्ध जी की शिक्षाएं संपूर्ण विश्व को पीड़ा व‌ दुख से मुक्ति का मार्ग दर्शाती हैं।

बुद्ध पूर्णिमा -  बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह वैशाख माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था ।
इनका जन्म लुंबिनी नेपाल में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनको इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। 29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।

आपका अपना

  ✍️ रोशन कुमार झा
20(08)
🌅 साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 16
Sahitya Eak Nazar
26 May , 2021 , Wednesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
26 मई 2021 , बुधवार
वैशाख शुक्ल 15 संवत 2078

4.
♟️♟️ *देश के खातिर*♟️♟️
*******♟️♟️♟️♟️********

देश के खातिर लड़ गए
वह लोग ओर थे,
वतन पर जान न्योछावर कर गए
वो लोग ओर थे,
कश्मीर की केसर
क्यारियों में बो गये
बारूद के बीज,
जाने कितने लाल खो गए
माताओं के,
कितनी बहनों की
कलाइयां सुनी हो गई,
जाने कितनी विधवाओं की
सुनी हो गई माँग,
तब जा कर मिली हैं
यह आजादी का दिन,
हो रहा हैं हमें गर्व
अपनी संस्कृति और संस्कारों पर,
आज हम जो मनाने जा रहे हैं
स्वतँत्र दिवस ,
वह उन शहीदों के
शहीद होने से हैं ,
हम खुशनसीब हैं कि
आज याद करें उनकी कुर्बानी को,
जो कुर्बान हो गए
कम उम्र में देश पर दे अपनी जान,
आओ हम मिलकर नाचे गई गाएं ,
आज सजी हैं आरती की थाल,
कश्मीर से कन्याकुमारी
तक हो जय जय भारती,
जिन्होंने दी हैं प्राणों की
आहुति आज याद कर लो,
पथ पर चले उनके बस याद
रखो बात याद इतनी,
रहे सदा सलामत ये
आजादी बस इतनी कर लो
प्रतिज्ञा आज,
जय हिंद जय भारत !!

✍🏻 चेतन दास वैष्णव
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा , राजस्थान

5.
हमने दुनिया के गम उठाए हैं

हमने दुनिया के गम उठाए हैं ।
       तब कहीं रोशनी में आए हैं ।
ये जो परछाईयां सिसकती हैं,
   मेरी मजबूरियों के साए हैं ।
अब किसी पर यकीं नहीं होता ,
हमने इतने फरेब खाए हैं
चार दिन के लिए ज़माने में ,
ज़िंदगानी उधार लाए हैं ।
ये जहां कितना बेमुरब्बत है,
चोट खाकर ही जान पाए हैं ।
इक अंधेरा मिटा नहीं दिल का ,
“दीप”सबने बहुत जलाए हैं

* ✍️ डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप"*

शिक्षाविद् एवम् कवयित्री
ग्वालियर मध्यप्रदेश भारत
सर्वांगीण दक्षता हेतू राष्ट्रपति भवन
नई दिल्ली की ओर से भारत के
भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम स्व.
डॉ. शंकर दयाल शर्मा स्मृति स्वर्ण पदक,
विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न शिक्षक के
रूप में राज्यपाल अवार्ड से सम्मानित
6.
उनकी यादों के साथ-साथ
चला जा रहा हूं तन्हां तन्हां
कई बार जब वो नहीं होती है
तब भी वो होती है
मेरे आस पास.....
जिसे मैं छुआ करता हूं
सोते जागते
और वो भिगो जाती है
मेरे अन्तर्मन को
अपनी आंखों से.....
लगता है
प्यार की उसे आदत नहीं..
पर जब कभी वो अचानक आ जाती
ऐसा लगता गमलों में सुखे पौधों के बीच
कोई कली दिख गयी हो...

✍️ पुष्प कुमार महाराज
, गोरखपुर

7.
अंक 16 हेतु

प्यार करना तू अपनी औकात देख कर
हैसियत ही नहीं बल्कि जात देख कर ।
दिल और दिमाग दोंनो तू रखना दुरुस्त
इश्क़ फरमाना घर के हालात देख कर ।
होशो हवास न खोना आशिक़ी में यारों
ज़िंदगी ज़ुल्म ढाती है ज़ज्बात देख कर ।
करना तारीफे हुस्न मगर कायदे के साथ
खलती है खूबसूरती मुश्किलात देख कर ।
क्या तू भी अजय, किसको समझा रहा
डरते कहाँ हैं ये लोग हादसात देख कर

- ✍️ अजय प्रसाद
8.
नमन मंच
अंक-१६

शीर्षक - बरसात

बरसात का देखो मौसम आया
चारो ओर हरियाली फैलाने आया
ख़ुशहाली का मौसम लाया
आओ मिलकर पेड़ लगाए
प्रदूषण को दूर भगाए।
            बरसात का जब मौसम आता
             पेड़ो के जीवन को हर्षाता
             ऋषि-मुनियो बात ये मानी
             आओ मिलकर पेड़ लगाए
              प्रदूषण को दूर भगाए।
पेड़ पौधे तो जीवन है हमारे
पेड़ नहीं तो जीवन मुश्किल
जीवजंतु सब प्रकति ओर आश्रित
आओ मिलकर पेड़ लगाए
प्रदूषण को दूर भगाए।
             बरसात का जब मौसम आता
              कण्दमूल पेड़ों की शान होते
              कहानी कहते खुशहाली की
              आओ मिलकर पेड़ लगाए
               प्रदूषण को दूर भगाए।
बरसात खुशहाली की निशानी
ये ही हैं जीवन की कहानी
सब ने बात ये ही हैं मानी
आओ मिलकर पेड़ लगाए
प्रदूषण को दूर भगाए।

✍️ डॉ . मंजु सैनी
गाजियाबाद
9.
एक ग़ज़ल .........

आहिस्ता उठा देते, अपने रुख से नकाब
अदब से कर लेते तस्लीम,  ऐ मेरे जनाब ।

शर्म_ओ_हया बनी, आपका बदन महके
हुस्न की हो नूर,दहकता आप का शबाब ।

आपकी खूबसूरती की,  क्या मिसाल दूं
जैसे घटा में छिप गया,  ये कोई महताब ।

चालें आपकी मस्ती भरी, देखते रह गए
मदहोश हो झूम उठे, ये बिन पिए शराब ।

नगमे जो गुनगुनाते रहे, देखकर आपको
क्या इसे इत्तफाक समझें, या मेरा ख्वाब ।

आपकी ये शोखियाँ, हैं नजाकत से भरी
चिलमन से झाँकती आंखें, हैं देते ज़बाब ।

अपने गेसुओं से जो, मुझको उलझा लेते
तस्सबुर मेरे दिल की,बनते आपके नबाब ।

✍️ अवधेश राय
नई दिल्ली ।

10.
नमन मंच🙏
अंक 16
शीर्षक--- प्रेम ही जीवन
**************
प्रेम ही जीवन है
खिलता हुआ उपवन है
महकता हुआ गुलशन है
जीवन में इससे बहार है
जीवन में खुशियां अपार है
चन्दन सी प्यारी खशबू है
महकता हुआ सँसार है
इस प्रेम से जो भर गया
जीवन का उपहार है
खिलते हुए फूलों की
भीनी सुगन्धित बयार है
निश्छल अविरल बहती
प्रेम रस धारा का बहाव है
समूचा सँसार है जगमग
शुद्ध प्रेम रूपी रिसाव है
खिलता है मन दिल संजीवन
प्रेम ही जीवन,प्रेम ही जीवन
●●●●●●●●●
✍️ अनिल राही
ग्वालियर मध्यप्रदेश
11.
नमन मंच
अंक 16
विषय  - ग़ज़ल

हर तरफ है जादू पर्चा चर्चा  आपका
है ये चेहरा  हमेशा मुस्कुराता आपका।।

हमको लगता चेहरा प्यारा आपका
है बड़ा हकीकत  अफसाना आपका।।

आप आते नहीं फिजा में चारों तरफ
है आजकल चारो ओर चर्चा आपका।।

कसने वादे प्यार वफ़ा सब है आपका
शुक्रिया मंजूर हमे.... हमेशा आपका।।

दर्द देता है हमेशा हमे प्यार आपका
गैर की हसरतों में .मुस्कुराना आपका।।

ये बेरहम इबारत जमना आपका
जिधर देखो उधर ही. हंसाना आपका।।

हर सांस में तार मिला हमेशा आपका
आनंद चांदनी में हुस्न निखरा आपका।।

✍️ कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान
12.

||ऊँ श्री वागीश्वर्यै नमः||

        अंगना वही जगत सुहावे
         ******************
              (छंद- चौपाई)

मधुर मनोहर जिसकी वाणी,
सुने आनंदित  होवें    प्राणी|
मधुर स्मित मुख मंडल होवे,
उर विषाद सबके वह खोवे||
पिय संग धर्म मार्ग पर जावे,
कभी कदम भटक नहिं पावें|
श्रेष्ठ जनों  को आदर  देवे,
सदा हृदय से उनको सेवे||

हो वह तीक्ष्ण बुद्धि धारी,
बाधा दूर  करे   वह सारी |
सुभग वसन वह तन पर पहने,
अनुसार शक्ति ही हों गहने||
सदा शील शृंगार सुहावे,
ईर्ष्या वह न उर में जगावे|
सकल कार्य में मंत्री होवे,
अंगना वही जगत सुहावे||

वात्सल्य से प्रजा नहावे,
दया धर्म का पाठ पढ़ावे|
उनकी रुचि का भोग पकावे,
रुचि से उनको भोग खिलावे|
परम मित्र भी उनकी होवे,
निज विवेक प्रतिष्ठा पावे|
जन जन में शुभ चर्चा होवे,
अंगना वही जगत सुहावे||
*****
रचयिता
✍️ गणेश चन्द्र केष्टवाल
मगनपुर किशनपुर
कोटद्वार गढ़वाल , उत्तराखंड

13.
डाॅ पल्लवी कुमारी"पाम
अंक-16

✍️ डाॅ पल्लवी कुमारी "पाम

जाने क्यूँ.....

जो आँखों से ओझल हो जाते हैं ~
जाने क्यूँ सब जगह नज़र आते हैँ //

जिन्हें हम सबसे
ज़्यादा प्रेम करते हैँ ~
जाने क्यूँ सबके सामने
नजरअंदाज़ करते हैँ //

जो ह्रदय से बड़े सरल होते हैँ ~
जाने क्यूँ दुनियाँ के
तौर -तरीकों से खुद
को महफूज़ रखते हैं //

जो जिंदगी में  हमें बड़े
अजीज़ होते हैँ ~
जाने क्यूँ वे हमें सबसे
कम तरजीह देते हैँ //

जाने क्यूँ जो हमसे छिन जाते हैं ~
वो सबसे अधिक याद आते हैं //

जाने क्यूँ जो आँखों से
ओझल हो जाते हैं ~
मानस -पटल पर छा जाते हैं //

जो हमारी जिंदगी में नमक
की तरह शामिल है ~
जाने क्यूँ उनके रहते हम
उनकी अहमियत
नहीं समझ पाते हैँ //

जाने क्यूँ....

✍️ डाॅ पल्लवी कुमारी "पाम
         अनिसाबाद, पटना,बिहार
     9473239513
14.
अंक. .16
ग़ज़ल
..
सोचो तो क्या  रखा है बेइमानी में
जो पाया था सब खोया है पानी में|1

पहले जिसने कद्र .हमारी न जानी
नयनो को है रोज भिगोया पानी मे|2

पापों को कब तक धोयेगी गंगा माँ
मन न धोया तन ही धोया पानी मे |3

हमने तो हर मसले पर पानी डाला
कोई फिर से आग लगाया पानी में|4

ठहरे से पानी मे एक कंकड़ फेका
लहरों को फिर खूब नचाया पानी में|5

मन मे हैरानी है प्रेम समझ ले बाहर
किसने मेरा अक्श ...बनाया पानी में|6

✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद
15.
नमस्कार ,
साहित्य एक नजर दैनिक पत्रिका ,
अंक 16   हेतु
मेरी स्वरचित मौलिक रचना

            *  दिल  दौलत  और  दुनिया    *

          *      दिल   *

               हर इंसान के सीने में
               धड़कता है ,
               फर्क सिर्फ इतना है
               कोई बेरहम तो
               कोई रहम दिल होता है ।
               कठोर बन जाए तो
               तूफां से टकरा जाता है ,
               नाज़ुक इतना ,
               टूट जाए तो
               शीशे सा बिखर जाता है ।

          *      दौलत    *

                आज के इंसानों का
                 भगवान है ।
                 दौलत से ईमान ख़रीदे जाते हैं ,
                  दौलत के लिए
                  अस्मत बेचीं जाती हैं
                   प्यार खरीदा जाता है
                   दिल को बेचा जाता है ।
                   डगर आसां कितनी भी हो
                  जीवन का हर मोड़
                   पैसे  पे  रुक जाता है ।

               *     दुनिया   *

                   छोटी सी चिंगारी को
                   हवा देकर ,
                   शोले बना देती है ।
                   यही दस्तूर है इसका
                   घर जला कर दूसरों का
                   तमाशा देखती है ।
                   हर इंसा यहाँ
                    स्वार्थ का पुतला है ,
                    दुःख आया खुद पर ,
                    तो सहारा ढूँढता है ।
                   औरों पे आया वक़्त ,
                   तो अंजान बन जाता है ।
                               *                                                

✍️   अनीता नायर "अनु
नागपुर  (महाराष्ट्र )

16.
पूरब से दिनकर ने ली अँगड़ाई,
धरा कनक सी हरयाई।

हिमालय को हिम् ने
हिम् की चादर उड़ाई
दिनकर ने किरणों से
उसकी माँग सजाई

पूरब से दिनकर ने ली---

सिंध की उच्छल लहरों में
थी वीरानी सी छाई
दिनकर ने किरणों की
नूपुर माला पहनाई

पूरब से दिनकर ने ली--

फूलों को ओस कणों ने
मुकुट माला पहनाई
दिनकर की किरणों ने
कनक सी दमकाई

पूरब से दिनकर ने ली--

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर , मध्यप्रदेश
9753877785

17.
एक पुत्री की वेदना शराबी पिता से
********************************

पापा मेरी किताब , मेरे अरमान है,
मेरी खुशी है, मेरा भविष्य है,
         सब बेच मेरी खुशियों का
         शराब पी गए,
पापा मां का मंगलसूत्र
सुहाग है मांग का सिंदूर है,
     सब बेच उनके अरमानों का
       शराब पी गए,
पापा जो मिली थी विरासत में
बुजुर्गों से जागीर ,
       सब बेच पगड़ी की शोहरत
       इज़्ज़त शराब पी गए,
पापा बोलते हो पीता हूं
गम भुलाने को
पापा सोचते जो भविष्य मेरा
अपना सब गम भूल जाते ।
सुन पुत्री की वेदना
हाथ से गिर पड़ी शराब,
बोलती शराब है
अब मत मुझे छू,
बेटी के अरमानों का
गला न घोट,
दे उसकी खुशियों को
बुलंदियों की उड़ान,
महक जाए इस धरती से
उस अंबर तक,
  सुन शराब की  बात
बोल पड़े पापा के आंसू
बेटी तू सरस्वती की है अवतार
जो दिखा दिए तुम ज्ञान नूर।

✍️ धीरेंद्र सिंह नागा
ग्राम -जवई, तिल्हापुर,
कौशाम्बी ( उत्तर प्रदेश)  212218
18.
अंक-16
दिनांक-26/05/2021
दिवस-बुधवार

"माँ शारदे वंदना"
---------------------
वीणापाणि,पुस्तकधारिणी
हे माँ शारदे नमो नमः,
नमो नमः, नमो नमः
तू ब्रम्हलोक वासिनी,
है श्वेत कमल विराजनी
पूजत चरण,सेवक वृंद
हे विद्यादायिनी नमो नमः,
नमो नमः, नमो नमः
तू ज्ञान का आधार है,
प्रणाम बारंबार है
कालि पढ़ायो,ज्ञानी बनायो
हे तिमिरनाशिनी नमो नमः,
नमो नमः, नमो नमः
हमें भी ज्ञान दे दो माँ,
शरण में अपनी ले लो माँ
करें गुहार, अनेक बार
हे हंसवाहिनी नमो नमः,
नमो नमः, नमो नमः
वेद प्रदायिनी नमो नमः
माता सरस्वती नमो नमः।🙏
                                                   
                                                        
     ✍️    श्वेता कुमारी
     धनबाद, झारखंड।

19.

अंक-16
दिनांक-26/05/2021
दिवस-बुधवार

मेंहदी वाले हाथ
.......................

कितने खूबसूरत लग रहे थे,
वो मेंहदी वाले हाथ
रंग निखर कर आया था,
खुशियाँ थी चारों ओर
आस-पड़ोस, गली-मोहल्ले से,
तजुर्बेदार औरतों की मुख ध्वनि,
अरे रंग कितना गहरा चढ़ा है,
ससुराल न्यारा मिलेगा,
सखियाँ छेड़ती, सताती,
दूल्हा प्यारा मिलेगा,
सज गई थी गलियाँ,
जल रही थी लरियाँ,
दुल्हन के लाल जोड़े में,
खुश थी,
वो मेंहदी वाले हाथ,
सपने सुहाने सजने लगे थे,
पराये भी अपने लगने लगे थे,
अग्नि की पवित्र ज्वाला में,
दो अजनबी जुड़ने लगे थे,
ममता के आँचल से निकल,
विदा हुई वो पिय के घर,
एहसास नहीं था लेश मात्र,
थाम आई थी हाथ जिसका,
पल में साथ छोड़ देगा,
दहेज का दानव बन निर्दयी,
धधकती लपटों में झोंक देगा,
चिखती हुई आवाजें सुन,
अपना मुंह मोड़़ लेगा,
हर रिश्तों से नाता तोड़़,
संबंधियों को अकेला छोड़,
विदा हुई थी डोली में कभी,
कलशी में सिमट,
फिर वापस आई है
वो मेंहदी वाले हाथ।

✍️ ज्योति कुमारी
धनबाद, झारखंड।
20.
अंक - 16.
26/5/2021.

उपहार का प्रहार!
-------------------
                 1.
कुंभ के सियासी प्रक्षालन से
सत्तारोहन के अलंकरण में
चुनाव आयोग संस्करण में
रोड शो रैलियों सभाओं के
नफरती हिंसा उद्वेलन से
वोटों के अधिग्रहण में
बनते उपकरण में
संचरित होते संक्रमण से
कोरोना ने मचाया हाहाकार   
परिष्कृत हत्या का मौत बन
कर रहा सांसों का शिकार
चल रहा मजे का व्यापार
लोकतंत्री ! आपदा का                             
  नहीं है कोई प्रतिकार.

                  2.
कोरोना नामित शासन काल
लाशों के अम्बार पे इठलाती  
सैकड़ों की गिनती एक करती               
प्रोटोकॉल की है लम्बी लकीर
सूरतेहाल है शहरे सूरत का
लाशों के अनवरत सिलसिले में
धधकते हड्डियों के ताप से
पिघलाती लोहा चिमनियों में
लगी आग शवदाह गृहों में 
मौतों से कांपता बस्ती शहर
यह सत्ता व्यवस्था का कहर
जीवन की आपाधापी में
ना बचा है लखनऊ न भोपाल
अपहृत है जीने का अधिकार
अंतिम संस्कार का है इंतजार  
कोरोना का है नहीं कहीं डर
जागो और करो खबरदार कि
आदमखोर व्यवस्था के खिलाफ
जनता हो रही है मुकम्मल तैयार
अंधेरों के सियासतदानों से
कहता है इतिहास बारंबार 
बेचता हूँ आइना अंधों के शहर में 
रौशनी नहीं देता सबेरे का सूरज                         खोलनी होती है आंखें अंधेरे में. 
------------
@ ✍️ अजय कुमार झा.
     
21.
सुरेश शर्मा
अंक-16
विधा- कविता
शीर्षक- कविता

कुंठित मन के अवगुंठन
शब्दों से खोले जाते हैं
हृदय तीर के तटबन्ध भी
हो सजीव, हरियाते हैं।
रीत-प्रीत, अनुराग-विराग
आपस में जोड़े जाते हैं
मसि-बूँद से कुशल चितेरे
गागर में सागर भर लाते हैं।
          
              प्रेम
प्रेम! दो चेहरों की पैमाइश
से गुजरने के अलावा
मीठे आदर-सूचक शब्दों
के पार का छलावा।
कई अहसासों और परीक्षाओं
का अविश्वास
अंत, सोचने की विवशता में
खोने और पाने का हिसाब।

✍️ सुरेश शर्मा

22.
अभिलाषा ---
-------------
उम्र के इस पड़ाव पर आकर ,
क्या कोई अधिकार नहीं जीने का,
सारी उम्र दबाती रही ,
भावनाओं को नहीं थी कोई
वाह वाह सुनने की उत्सुकता,
बस रहती है एक आशा,
कोई तो आकर सुने उसकी भी दांस्ता ,
दोहराना चाहती है वह कथायें,
जो बीतती थी उसके साथ,
दबाती रहती थी अपने उद् गार
उम्र के इस ढलाव पर ,
बैठी रहती है सूनी आंखो में
लेकर कुछ झिलमिलाते अश्रु बिन्दुओं को,
कितने वसंत दबा दिये ,
पर परिवार को पतझड़ ना होने दिया,
अब सब कुछ भुला कर,
शान्त हो जाती अभिलाषा....

✍️ डॉ. मधु आंधीवाल


23.

कविता :- 20(09)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2009-27052021-17.html

http://sahityasangamwb.blogspot.com/2021/04/blog-post_16.html

विश्व साहित्य संस्थान
http://vishshahity20.blogspot.com/2021/02/11.html

अंक - 17
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/17-27052021.html
वृहस्पतिवार , 27/05/2021
कविता :- 20(10)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2010-28052021-18.html
अंक - 18 🌅
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/18-28052021.html

28/05/2021 , शुक्रवार , आनंद जन्मदिन

हिन्दी काव्य कोश , कविता :-
https://www.facebook.com/groups/hindikavykosh/permalink/884360745376065/?sfnsn=wiwspmo

23.
बेटी बन कर आई हूं इस धरा पर
औरत बन विदा हो जाऊंगी
इस बीच क्या क्या तंज सहे
गर सुनाई वो दास्तां तो
सबकी आंखे नम कर जाऊंगी

इसलिए तो खमोशी से जीना सीखा
घूंट हर दर्द का पीना सीखा
जख्म लगे जो सीने पर
उनको खुद से ही सीना सीखा

मैं उस अबला द्रोपदी का रूप हूं
जो जुवा में हारी जाती हूं
वो सीता भी मैं ही हूं
जो तुच्छ व्यक्ति के आरोप पर
अग्नि परीक्षा की भेंट चढ़ जाती हूं !!

पीहर वाले जिसको पराया धन कहते हैं
और ससुराल वाले पराए घर की बेटी
आखिर कौन सा घर है मेरा यहां
कहां लिखी ईश्वर ने
मेरे हक की रोटी !!!!

बाहर निकलती हूं जब भी
खुद को आजमाने
बहसी नजरों से बचना
मुश्किल होता है
पुरुष प्रधान इस निर्लज दुनिया में
हर कोई औरत को जाने क्यूं
अबला कहता है !!!!

जबकि वो औरत की ही ताकत है
जो खुद की जान जोखिम में डाल
इस समाज को जन्म देती है
फिर क्यूं आंका जाता है कम
उसकी ताकत को
अरे वो तो लोहे से भी मजबूत होती है !!!!

✍️ आरती गौड़ (लेखिका)
फोन no 8859207207
पदनाम - सदस्य जिला पंचायत
उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल
पता आनंद अपार्टमेंट 109
मथरोवाला चौक आई एस
बी टी रोड़ देहरादून
पिन कोड 248001
24.

""इंतजार है हमको""

इंतजार है
हमको
सुनहरे ख्बावों को
हकीकत में
बदलने का
इंतजार है
हमको
अपने अरमानों को
कुछ कर दिखाने का
इंतजार है
हमको
इस जहां को
धरा को
खुशनुमा बनाने का
ये इंतजार
समय आने तक
जारी रहेगा।।

✍️ मनोज बाथरे चीचली
जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश
25.
हम सब रत्न इसी सागर के
सबकी प्यारी बानी ,    
रत्नाकर  तेरे  तल  पर 
कुछ रत्न पी  रहे पानी ।
अलग-अलग है चमक हमारी
देख  रहे  सब  धमक  हमारी ,
कुछ की  मीठी - मीठी चाहत
कुछ की  चाहत नमक हमारी ,
तिमिर  भरा है मन  के अन्दर
गटक  रहे  ले  चमक  हमारी ,
कुछ ने भ्रम मन अन्दर पाला
साफ़ किया  है सड़क हमारी ,
नीले - पीले,हरे - गुलाबी
कुछ रंग धानी-धानी ,
रत्नाकर तेरे  तल पर
कुछ  रत्न पी रहे पानी ।
प्यास-प्यास  कह तेरे अन्दर 
हमने   इतने   अश्क  बहाए ,
सारा जल  खारा कर  डाला 
जल जीवों को बहुत सताए ,
लेकिन चाह मिटी ना अपनी
भूँख प्यास वह किसे बताए ,
छूट  रहा  विश्वास  हृदय से 
पीड़ित क्षपीड़ा किसे सुनाए ,
अवसर पाकर बदल रहे हम
अपनी स्वयं कहानी ,
रत्नाकर  तेरे  तल  पर 
कुछ  रत्न  पी  रहे पानी ।
हमको कितना जलना होगा
कितना उनको छलना होगा ,
बर्फीली  राहों  पर  चल कर
इन  पैरों  को  गलना  होगा ,
ना करने का कौल किया जो
वह ही  हमको करना होगा ,
शेष नहीं  कुछ इन हाथों में
कर को कर में मलना होगा ,
व्यर्थ हो  रही धीरे - धीरे 
अपनी  नेक जवानी ,
रत्नाकर तेरे  तल पर  कुछ
रत्न पी  रहे पानी ।
क्या संकल्प यही था अपना
सारा   जीवन  होगा  सपना ,
क्रोधित हो कर के सूरज सा
शेष रहा अब  केवल ढलना ,
भूँख  प्यास  से उबर न पाए
राहों पर  मुश्किल है चलना ,
"सजल"नहीं शीलत तन मेरा
सारा जीवन ख़ुद को जलना ,
पाएंगे हम वही किया जो
हठ कर के नादानी ,
रत्नाकर तेरे  तल पर 
कुछ रत्न  पी रहे पानी ।

✍️ रामकरण साहू "सजल"
बबेरू (बाँदा) उ०प्र०
***********
26.
प्यार का एहसास

आज आईने ने पूछा,
क्यों चेहरे पर मुस्कान है।
रंग खिला है क्यों तेरा,
क्यों अलग दिख रही शान है।।
खो गई हो किसकी चाहत में,
कर रही किसे हो याद तुम।
धड़कन क्यों तेज तुम्हारी है,
बतलादो वो मुझको बात तुम।।
सुनकर आईने की बातें,
मै खुद में ही शरमाने लगी।
मेरे होंठ तो कुछ कह पाए न,
आँखें अंदाज जताने लगी।।
बस शर्म हया सी थी छाई,
दिल में भी बेचैनी थी।
न समझ आ रहा था मुझको,
खुद से क्या बातें कहनी थी।।
तब किया इशारा आईना ने,
दिल में कुछ बात तुम्हारे है।
तेरे हिय में कोई समाया है,
ये बेसिक इश्क इशारे है ।।
खुद को समझो खुद को जानो,
तेरा दिल तुझसे कुछ कहता है।
अब ख्याल तुझी से नही जुड़े,
दिल में भी कोई रहता है।।
टिप्पणी आईने की सुनकर,
मेरी साँसे जैसे थम सी गई।
बढ़ गयी मेरे दिल की हलचल,
उमड़ता हिय मे संगम सा कोई।।
मैंने फिर आईने से पूछा,
मेरे संग हो रहा क्यों ऐसा।
चेहरा कोई दिखता छिपता,
ये खेल चल रहा है कैसा।।
मुस्काया आईना और बोला,
प्रिये बहुत हो तुम नादान।
सब बात समझती हो फिर भी,
खुद से बन रही क्यों अंजान।।
कुछ बात अलग है अब तेरी,
इसलिए अलग दिख रही हो तुम,
वो चेहरा प्यार तुम्हारा प्रिये,
तेरे हिय में छाई प्रेम की धुन।।
मै बात समझ गई उसकी,
क्यों ऐसा हाल हुआ मेरा।
टकराई थी मै कल जिससे,
उसने दिल पर डाला डेरा।।
फिर याद किया मैंने उसको,
आईने पर विश्वास किया।
मेरे दिल की हलचल थमी तभी,
जब मधुर प्यार अहसास किया।।
जब मधुर प्यार अहसास किया।।

कवयित्री ✍️ सरिता त्रिपाठी ' मानसी '
सांगीपुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
27.
         -ग़ज़ल
किसी का पद प्रतिष्ठा और
कद से नाम होता है!
कोई लाचार बेबस
भूख से बदनाम होता है!

मेरी मां ने बचपन से मुझे
बस ये सिखाया है,
कोई छोटा या बड़ा नहीं
होता,काम काम होता है!

बाहर से ही मेरी शख्सियत का
अंदाजा ना लगाना,
हर दुकान का अपना ,
अलग गोदाम होता है!

एक हम थे जो चल दिए
अनजान सफर में वरना,
लोग वहीं से गुजरते हैं
जहां से रास्ता आम होता है!

मुझे परवाह कहा कि कोई
मेरा साथ ना देगा,
जिसका कोई नहीं होता ,
उसका राम होता है!

- ✍️  क़लम ( प्रहरी),
कुंभराज गुना ( म प्र)
28.
✍️ श्रीमती सुप्रसन्ना झा
      जोधपुर

29. ✍️ सुरेश शर्मा

30.
नमस्ते-मंच
दिनांक-26.05.2021
दिन -बुधवार
मौलिक व स्वरचित रचना

*कविता का शीर्षक*

* आत्मनिर्भर भारत *

आत्मनिर्भर बनेगा भारत,
स्वावलंबन से जियेगा भारत।
यह विश्व विजित भारत है ,
ये 21वीं सदी का भारत है ।।
हमारी माटी हमारी चॉकी,
हमारा खेत खलियान है।
क्यों हम झांके क्यों हम तांके,
हमारा निज स्वाभिमान है।।
रोटी अपनी कपड़ा अपना,
अपना पशुधन का बाजार है।
130 करोड़ का अपना,
हरा-भरा परिवार है।।
लोकल को वोकल बनाकर,
भारत दुनिया को दिखलायेगा।
क्या चाइना अमरीका क्या,
विश्व ग्लोबल पर छा जायेगा।।
ऋषि पुत्र हैं हम सब सारे,
ज्ञान विज्ञान से भरे पड़े ।
विश्व जानता पर नहीं मानता,
भारत के गुणों से दबे पड़े ।।
अपनी सीमा अपने सैनिक,
हर बच्चा यहाँ श्रीराम है।
युद्ध गर ठन गया किसी से,
  हर बाला फिर रणचण्डी है ।।
शिल्पी में  विश्वकर्मा हम,
आविष्कार के भारद्वाज हैं।
शून्य शास्त्र के दाता ज्ञाता,
चिकित्सा में वागभट्ट हैं।।
सभ्यता भारत से फूटी,
ज्ञानोदधि की बहती धारा।
हिमसागर से विश्वक्षितिज
तक, प्रतिदिन बहती रसधारा।।
तंत्र की निराली चाल से,
हम सब को निकलना होगा।
अपने निज ज्ञान ध्यान से, नया
भारत गढ़ना होगा ।।
खोई हुई विरासत को,
निश्चय कर लौटाएंगे ।
सच्चे अर्थों में फिर, 
ऋषिपुत्र कहलाएंगे ।।
नई प्रात: की बेला पर, 
दृढ़ संकल्प लेना होगा।
नये भारत के खातिर,
नए ढंग से ढ़लना होगा।।

✍️ डॉ0 श्याम लाल गौड़
सहायक प्रवक्ता
श्री जगद्देव सिंह संस्कृत महाविद्यालय
सप्त ऋषि आश्रम हरिद्वार
"नये भारत की नई पीढ़ी को समर्पित"
31.

*प्यार बात जब से कही है*
*********गजल********
*बह्र :-2122122122*
*काफ़िया :- सही-रदीफ़ - है
**********************

यार   दिलदार  पीड़ा  सही है,
प्यार की बात जब से कही है।

आप  मुझको सदा हो रुलाते,
इस  कदर यूँ  रुलाना सही है।

कान   सुनना  यही  चाहते  हैं,
बात  दिल की बताना  नहीं है।

कौन  दिल की  दवाई करेगा,
प्रेम  की  बन्द लगती  बही है।

दूध सी श्वेत आत्मा चमकती,
प्रेम की खूब  निकली दही है।

चाँद  भी  बादलों  में  समाया,
चाँदनी  चन्द्र  की आ  रही है।

यार   सीरत  यहाँ  रोज रोता,
साथ ही  रो पड़ी  भी  मही है।
***********************
✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)
32.
समय हूँ मैं

प्रचण्ड हूँ मैं, प्रकाण्ड हूँ मैं
समय हूँ मैं
जब कुछ न था
तब भी विद्यमान था मैं
मैंने ग्रह नक्षत्रों को बनते देखा
सृष्टि की उत्पत्ति देखी
वेदों को भी रचते देखा
समस्त मानव का इतिहास देखा
प्रचण्ड हूँ मैं, प्रकाण्ड हूँ मैं
समय हूँ मैं

सत्युग देखा, हरिश्चंद्र का त्याग देखा
त्रेता में मर्यादा पुरुषोत्तम राम देखा
निष्कलंक सीता पर, लगाया गया दाग देखा
द्वापर में पांचजन्य की गूँज सूनी है
द्युतक्रीड़ा में घसीटी गई
भरत वंश की मर्यादा देखी
पांचाली के खुले बाल देखा
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में
रक्तों की बहती धार देखा
देख रहा हूँ कलयुग भी
निरजा का भी काम देखा
और कितनी निर्भया वाला भी
काण्ड देखा
प्रचण्ड हूँ मैं, प्रकाण्ड हूँ मैं
समय हूँ मैं

अच्छे अच्छे की यारी देखी
नर - नारी की
ख्याति देखी
पल में जुड़ते रिश्ते देखा
पल में बिछड़ते अपने को देखा
भरे बाज़ार में बिकते हुए
जज़्बात देखा
लगाव देखा
शब्दों से भी बनते घाव देखा
बिगड़े हुए को बनते देखा
बनते को बिगड़ते देखा
पलकों पर रहने वालों को भी
नज़रों से उतरते देखा
भरे-पूरे परिवार वाले को
बच्चे को कचड़े के डब्बे में डालते देखा है
बाज़ार में बिकाऊ तवायफ़ को
अपने बेबाप बच्चे को दूध पिलाते देखा है
प्रचण्ड हूँ मैं, प्रकाण्ड हूँ मैं
समय हूँ मैं

लोभ मोह हर मोह माया से परे हूँ मैं
न हर्ष मुझको, न शोक मुझको
फिर भी आँसू आ जाते हैं
न उत्थान-पतन का भय है मुझको
न जन्म मृत्यु का डर
न आदि मेरा, न अंत मेरा
निश्छल, निर्मल, निष्पाप हूँ मैं
गतिशीलता का प्रत्यक्ष प्रमाण हूँ मैं
प्रचण्ड हूँ मैं, प्रकाण्ड हूँ मैं
समय हूँ मैं ।

       ✍️   ~ आलोक पराशर
                मुजफ्फरपुर

33.
*(जीवन सन्देश)* संगति का हमारे जीवन में गहरा प्रभाव पड़ता है। कहा भी गया है- जैसी संगत वैसी रंगत। हर व्यक्ति की अपनी सोच, क्षमता और विशेषता अलग है। वह उसी के अनुसार प्रदर्शन करता है, किन्तु उसकी संगति ज्यादा अच्छी है तो उसे अच्छी बातें एवं आदतें जानने-सीखने को मिलेंगी, उसका प्रदर्शन निखरेगा। लेकिन वहीं संगति खराब हुई तो उसके सद्गुण को दुर्गुण में बदलते देर नहीं लगेगी।

तुलसीदास जी ने भी कहा है कि ‘बिनु सत्संग विवेक न होई’ यानी अच्छे लोगों की संगत के बिना अच्छा ज्ञान नहीं मिलता। विवेक जागृत नहीं होता। दुर्गुण हमें चारों ओर से अपने वश में कर लेता है। महाभारत में क्या हुआ था? पाण्डवों ने कृष्ण की संगति किए थे और कौरवों ने शकुनि की, इतिहास गवाह है। क्या परिणाम हुआ?

इसलिए तो हर धर्म-शास्त्र, साधु, संत, ऋषि-मुनि, पीर-पैगम्बर सब ने अपनी वाणी- संदेश में संगत के महत्व को समझाया है, बताया है कि जिसकी हम संगति करते हैं उसका हमारे जीवन में कितना गहरा प्रभाव पड़ता है। समझाया है कि अच्छे लोगों के साथ रहने से बुरे लोग भी वैसे ही अच्छे बन जाते हैं, जैसे चंदन के वृक्ष को काटने वाली कुल्हाड़ी में भी चंदन की सुगंध समा जाती है।

हमारी संगत का सीधा जुड़ाव हमारे विचारों से है। हमारी इंद्रियों के माध्यम से जो अभिव्यक्ति हमारे अंदर प्रवेश करती है, वही हमारे चिंतन में बनी रहती है, हमें प्रभावित करती है और हमारे जीवन में परिवर्तन लाती इसलिए हमें हमेशा अच्छी ही संगति करनी चाहिए।

✍🏻 * सत्यम सिंह बघेल *
       *लखनऊ (उ.प्र.)*
34.

दिलों की रवायत

सबको हमसे है शिकायत
मनाने की हम से कवायत नहीं होती
सबके दिलों का रख लेते ख्याल
बस खुद पे कभी इनायत नहीं होती

दिल के बंजर इस जमी पर
बहुत है कांटो के दरख्त
खुद के खातिर हमसे तो
गुलाबों की कवायद नहीं होती

जाना है तो शौक से जाओ
हमको कांटों के दरमियां छोड़ के
सहरा से कभी मेरे खुदा
चश्मों की गुंजाइश नहीं होती

उमरे हमने है गुजारी बे सबब यूं ही
भटकते सुकून की तलाश में
आती-जाती इन हवाओं से
रुकने की हमसे फरमाइश नहीं होती

एक पत्थर के खातिर
खुद को पत्थर कर डाला
और पत्थरों में कभी
जिंदगी की गुंजाइश नहीं होती

✍️ रेखा शाह आरबी
जिला बलिया उत्तर प्रदेश
35.

खुशखबरी ! खुशखबरी ! खुशखबरी !

माँ सरस्वती, साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका मंच को नमन 🙏 करते हुए आप सभी सम्मानित साहित्य प्रेमियों को सादर प्रणाम 🙏💐।

हमारी दैनिक पत्रिका साहित्य एक नज़र 1 जून 2021 से "पुस्तक समीक्षा स्तम्भ" शुरू करने जा रही है पुस्तक की समीक्षा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याती प्राप्त समीक्षक , गीतकार,कवि, शायर,कहानीकार,नाट्यकार और उपन्यास लेखक आ. श्री प्रमोद ठाकुर ग्वालियर मध्यप्रदेश द्वारा किया जायेगा जो पिछले 22 वर्षों से साहित्यिक सेवा में सेवारत हैं। जिनकी अभी तक कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है 2 काव्य संग्रह -कटुकल्पना एवं आँसुओं का वज़न,2 कहानी संग्रह- रॉन्ग नम्बर एवं लल्ली, 2 उपन्यास -पलायन एवं टाइम ट्रेवल, 2 नाट्य संग्रह मुआवज़ा एंव कुंडी का नीलम, 2 साँझा काव्य संग्रह शव्द सागर एवं काव्य सलिल(ई पुस्तक),1साँझा कहानी संग्रह सागर की लहरें भाग-२।

जो भी साहित्यकार इस स्तम्भ से जुड़कर अपनी प्रकशित पुस्तक की समीक्षा करबा कर पुस्तक का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार - प्रसार कर एक नया आयाम देना चाहते है उस सम्मानीय साहित्यकारों का स्वागत है।सभी साहित्यकारों को समीक्षा प्रमाण - पत्र प्रदान किया जायेगा।

साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका  "पुस्तक समीक्षा स्तम्भ" में चयनित पुस्तकों के लेखकों की सूची जससे साहित्कारों को समीक्षा प्रमाण पत्र दिया जा सके जून 2021 माह के लिए केवल 60 स्थान है ।

1. श्री रामकरण साहू "सजल" बबेरू (बाँदा) उ.प्र.
2. अजीत कुमार कुंभकार
3.राजेन्द्र कुमार टेलर "राही" नीमका , राजस्थान
4.आ. निशांत सक्सेना "आहान" जी , लखनऊ
5. आ. कवि अमूल्य रतन त्रिपाठी जी
6.आ. डॉ. दीप्ती गौड़ दीप जी , ग्वालियर
7. आ. अर्चना जोशी जी भोपाल मध्यप्रदेश
8. आ. नीरज सेन (कलम प्रहरी)जी कुंभराज गुना ( म. प्र.)
9. आ. सुप्रसन्ना झा जी , जोधपुर

नोट:- कृपया अपना नाम जोड़ने का कष्ट करें कृपया सहयोग राशि 30/- रुपये इसी नम्बर 9753877785 पर फ़ोन पे/पेटीएम/गूगल पे करकें स्क्रीन शॉट भेजने का कष्ट करें।

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सिकंदर कंपू,लश्कर , ग्वालियर
मध्यप्रदेश - 474001
9753877785

रोशन कुमार झा




अंक - 16
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अंक - 15
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साहित्य एक नज़र , अंक - 15
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Sahitya Eak Nazar
26 May , 2021 , Wednesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 16
26 मई 2021
   बुधवार
वैशाख शुक्ल 15 संवत 2078
पृष्ठ - 
प्रमाण पत्र -  आ. कवि श्रवण कुमार जी )
कुल पृष्ठ -
अंक -

साहित्य एक नज़र , अंक - 15

( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
अंक - 14

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अंक - 15
दिनांक :- 25/05/2021 , सुबह 11 बजे तक
दिवस :- मंगलवार
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✍️ रोशन कुमार झा
अंक - 15

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कविता :- 20(07)
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बुधवार, 26/05/2021
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_________________
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कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
    

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

प्र. पत्र . सं - _ _ 007 दिनांक -  _ _  26/05/2021

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

आ.  _ _ कवि श्रवण कुमार  _ _  जी

ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _ _ 1 - 16  _ _ _ _  में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको

         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।


रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा

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अंक - 17
दिनांक :- 27/05/2021 , सुबह 11 बजे तक
दिवस :- गुरुवार
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✍️ रोशन कुमार झा
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26 मई 2021
   बुधवार
वैशाख शुक्ल 15 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  14 ( आ. कवि श्रवण कुमार जी )
कुल पृष्ठ - 15

अंक - 17 के लिए इस लिंक पर जाकर रचना भेजें -
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/296684158761034/?sfnsn=wiwspmo


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