साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 25 , शुक्रवार , 04/06/2021

साहित्य एक नज़र

अंक - 25
जय माँ सरस्वती

अंक - 25
https://online.fliphtml5.com/axiwx/xhjc/

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 25

मो - 6290640716

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक

अंक - 25
4 जून  2021
शुक्रवार
ज्येष्ठ कृष्ण 9 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  13 - 17
कुल पृष्ठ - 18

प्रमाण पत्र संख्या - 20 , आ. डॉ. दीप्ति गौड़ ‘ दीप ’ जी ( संशोधित सम्मान पत्र )
किताब समीक्षा सम्मान - पत्र से
🏆🌅 पुस्तक समीक्षा सम्मान - पत्र 🏆🌅

🏆🌅 रचना समीक्षा सम्मान - पत्र 🌅🏆
22. आ. डॉ . श्याम लाल गौड़ जी
23. आ. अजीत कुमार कुंभकार जी

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆

24. आ. पूजा कुमारी जी ( चित्रकला , मधुबनी / मिथिला पेंटिंग )
25. डाॅ॰ रश्मि चौधरी जी

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 25
Sahitya Ek Nazar
4 June 2021 ,  Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

फेसबुक - 1
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अंक - 23
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सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र
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अंक - 19 से 21   -

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अंक - 22 से 24 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
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अंक - 25 से 27 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -

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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा







अंक - 25
नमन :- माँ सरस्वती
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
मो :- 6290640716

रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -
साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 25 से 27 तक के लिए आमंत्रित

दिनांक - 04/06/2021 से 06/06/2021 के लिए
दिवस :- शुक्रवार से रविवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।

यहां पर आयी हुई रचनाएं में से कुछ रचनाएं को अंक - 25 तो कुछ रचनाएं को अंक 26 एवं बाकी बचे हुए रचनाओं को अंक - 27 में शामिल किया जाएगा ।

सादर निवेदन 🙏💐
# एक रचनाकार एक ही रचना भेजें ।

# जब तक आपकी पहली रचना प्रकाशित नहीं होती तब तक आप दूसरी रचना न भेजें ।

# ये आपका अपना पत्रिका है , जब चाहें तब आप प्रकाशित अपनी रचना या आपको किसी को जन्मदिन की बधाई देनी है तो वह शुभ संदेश प्रकाशित करवा सकते है ।

# फेसबुक के कॉमेंट्स बॉक्स में ही रचना भेजें ।

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र 🌅

अंक - 25 से 27 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -

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अंक 19 - 21
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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा


अंक - 25

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कविता :- 20(17) , शुक्रवार , 04/06/2021 , साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 25
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अंक - 26
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/26-05062021.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2018-05062021-26.html
अंक - 27
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अंक - 24
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http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/05/2016-03062021-24.html

आ. बजरंग लाल केजडी़वाल 'संतुष्ट', जी की प्रस्तुति -
सचिव, साहित्य संगम संस्थान असम इकाई -
🌹🙏 शिवसंकल्प 🙏🌹
https://m.facebook.com/groups/3349261775136126/permalink/4248267531902208/

https://youtu.be/uEAkEeInGDE

साहित्य एक नज़र रचना समीक्षा सम्मान - पत्र से सम्मानित किया -

कोलफील्ड मिरर आसनसोल में प्रकाशित - 04/06/2021 , शुक्रवार

साहित्य एक नज़र कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका मंगलवार 1 जून 2021 को समीक्षा स्तम्भ के अंतर्गत साहित्य एक नज़र के सह संपादक / समीक्षक आ. प्रमोद ठाकुर जी ने आ. श्रीमती सुप्रसन्ना झा जी व आ.श्री अनिल राही जी की रचना का समीक्षा किये । साहित्य एक नज़र के संस्थापक / संपादक रोशन कुमार झा आदरणीया श्रीमती सुप्रसन्ना झा जी , आ.श्री अनिल राही जी को रचना समीक्षा सम्मान - पत्र व आ. डॉ. मंजु अरोरा जी को साहित्य एक नज़र रत्न सम्मान से सम्मानित किए । साहित्य एक नज़र पत्रिका का शुभारंभ  11 मई 2021 मंगलवार को हुआ रहा , सहयोगी सदस्य  आ. आशीष कुमार झा जी , आ. रोबीन कुमार झा जी , आ. पूजा कुमारी जी , आ. ज्योति झा जी , आ. प्रवीण झा जी , आ. नेहा भगत जी , आ. कवि श्रवण कुमार जी , आ. धर्मेन्द्र साह जी एवं आ. मोनू सिंह जी हैं ।।


कोलफील्ड मिरर

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फेसबुक
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1.

शुभ जन्मदिन , Happy Birthday , শুভ জন্মদিন  🎈 🎈 🎈 🎈 🎈🎈 🎈 🎈🎈🎈
🎁 🎂

साहित्य संगम संस्थान , रा. पंजी . संख्या एस 1801/2017 ( नई दिल्ली ) के पश्चिम बंगाल इकाई की सह अलंकरण - कर्ता

आ.  _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ अर्चना जायसवाल सरताज जी

को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏💐💐💐🙏🎂🎈🎁🍰🎉🎈🎂🎁🍰🎈🌅

2.

खुशखबरी ! खुशखबरी ! खुशखबरी !

विश्व पर्यावरण दिवस पर  " काव्य पाठ " का विशेष आयोजन रखें है साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल व असम इकाई ।

साहित्य संगम संस्थान बंगाल इकाई में विश्व पर्यावरण दिवस पर  शनिवार 5 जून 2021 को "काव्य पाठ" का विशेष आयोजन रखा गया है । एवं असम इकाई में
विशेष आयोजन " वृक्षमित्र सम्मान " एक दिवसीय 05 जून 2021 शनिवार को  विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में वृक्षारोपण करते हुए स्वंय का फोटोग्राफ एवं अधिकतम चार पंक्तियां की प्रस्तुति करने के लिए आप सभी सम्मानित साहित्यकार आमंत्रित है , आ.  मनोज शर्मा जी विषय प्रदाता है एवं आ. अर्चना जायसवाल सरताज जी की करकमलों से विषय प्रवर्तन किया जाएगा ।।

महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी, बंगाल इकाई उपाध्यक्ष , छंद गुरु  आ. मनोज कुमार पुरोहित जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी , आ. स्वाति पाण्डेय जी ,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी  , समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनायेंगे । अतः आप सभी सम्मानित साहित्यकारों व साहित्य - प्रेमियों पश्चिम बंगाल व असम इकाई में सादर आमंत्रित है ।


3.
साहित्य एक नज़र रचना समीक्षा सम्मान - पत्र से सम्मानित किया -

कोलफील्ड मिरर आसनसोल में प्रकाशित - 04/06/2021 , शुक्रवार

साहित्य एक नज़र कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका मंगलवार 1 जून 2021 को समीक्षा स्तम्भ के अंतर्गत साहित्य एक नज़र के सह संपादक / समीक्षक आ. प्रमोद ठाकुर जी ने आ. श्रीमती सुप्रसन्ना झा जी व आ.श्री अनिल राही जी की रचना का समीक्षा किये । साहित्य एक नज़र के संस्थापक / संपादक रोशन कुमार झा आदरणीया श्रीमती सुप्रसन्ना झा जी , आ.श्री अनिल राही जी को रचना समीक्षा सम्मान - पत्र व आ. डॉ. मंजु अरोरा जी को साहित्य एक नज़र रत्न सम्मान से सम्मानित किए । साहित्य एक नज़र पत्रिका का शुभारंभ  11 मई 2021 मंगलवार को हुआ रहा , सहयोगी सदस्य  आ. आशीष कुमार झा जी , आ. रोबीन कुमार झा जी , आ. पूजा कुमारी जी , आ. ज्योति झा जी , आ. प्रवीण झा जी , आ. नेहा भगत जी , आ. कवि श्रवण कुमार जी , आ. धर्मेन्द्र साह जी एवं आ. मोनू सिंह जी हैं ।।

4.

परिचय:
अजीत कुमार कुंभकार
पेशा: गणित शिक्षक सह प्रधानाध्यापक
संप्रति: उत्क्रमित मध्य विद्यालय पुण्डीदा खरसावां
रुचि : कविता, गजल , गीत, नवगीत, दोहा, छन्द, लघुकथा, लेख, इत्यादि साझा संग्रह कविता काव्य यश छप चुका है, लघुकथा संग्रह पारिजात छपने की प्रक्रिया में है।

आपके आग्रह पर पुनः एक रचना भेज दे रहा हूँ।
रचना

रचना -

     * दुआ हम सभी *

जी सको तो जिओ हो सबर जिंदगी।
जी सको तो जिओ हो निडर जिंदगी।।
लीलती जा रही अब हरिक पल अभी।
ये खुदा कुछ करो ना बिखर जिंदगी।।
मांगते अब दुआ हम सभी के लिए।
लोग सब कर सके अब गुजर जिंदगी।।
रब दया कर वबा से मिले अब रहम ।
अब किसी का नहीं हो ठहर जिंदगी।।
हैं परेशां अभी लोग जब इस कदर।
खोजते लोग अब है किधर जिंदगी।।
फैल ना अब वबा इस कदर हर जगह।
लोग सबके बचे अब कसर जिंदगी।।
भीड़ इतनी कयामत दिखाती अभी।
सब तबाह है हर नगर जिंदगी।।
साथ बीमार के अभी दे वबा के समय।
साथ दे नाम हो अब अमर जिंदग़ी।।
है वबा का कहर लाश अब हर गली।
अब दुआ तुम सभी  साथ कर जिंदगी।।
ये खुदा गर बंदे आपके हम अभी।
दे हमें  खुशनुमा इक सहर जिंदगी।।
लोग गर जी रहें बिन वबा के अभी।
अब दुआ है खुदा का ही असर जिंदगी।।
* बनके साया रहो अपने परिवार का *।
* रहने पाये न कोई कसर ज़िन्दगी *

✍️ अजीत कुमार ,

मौलिक, अप्रकाशित,
स्वरचित,02/06/2021
××××××××××××××××××××××××

समीक्षा :-

अजीत कुमार कुंभकार की ये रचना ज़िंदगी को निडरता से जीने   एक आह्वान करती ये रचना किसी सभी के लिए दुआ करती की कहाँ है बो हस्ती खिलखिलाती ज़िंदगी ,कभी फ़िज़ाओं में बे ख़ौफ़ पल रही थी लेकिन ये फ़िज़ाओं में कैसा ज़हर घुल गया कैसा  तिमिर  सा फैला है कब एक नया सहर देखेगी ये जिंदगी।
अजीत जी आपकी ये रचना इसमें आप ने अल्फाज़ो की एक अद्भुत शब्द माला है सृजन किया।
आपको अनन्त शुभकामनाएं

समीक्षक ✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
ग्वालियर , मध्य प्रदेश
9753877785

5.

" परिचय "
===========
डॉ श्याम लाल गौड़
सहायक प्रवक्ता
श्री जगद्देव सिंह संस्कृत महाविद्यालय सप्त ऋषि आश्रम हरिद्वार

पिता का नाम- श्री  भरोषा नन्द गौड़
माता का नाम- श्रीमती उर्मिला देवी
शिक्षा -m.a. ( एम.ए ) B.Ed (बीएड),  पीएचडी हिंदी साहित्य
अभिरुचि -साहित्य लेखन, कविता, गीत, आलेख आदि।
प्रकाशित कृतियां - नागार्जुन के उपन्यासों का समाजशास्त्रीय अध्ययन, मेरे शोध लेख, अपूर्व काव्य संग्रह।
पिन कोड -24 9410 मोबाइल नंबर-
98371 65447
ईमेल आईडी-shyamlalgaur11@gmail.com

रचना -

" प्रहरी "

* मैं देश का सच्चा प्रहरी हूँ,
मैं देश को न झुकने दूँगा।
न देश को बिकने दूँगा।।*
आये चाहे कितनी भी विपदा,
सामने खड़ी हो चाहे संकटा ।
मैं न हटूँगा डटा रहूँगा,
सीना ताने  खड़ा रहूँगा।।
* मैं देश का सच्चा प्रहरी हूँ,
मैं  देश को न झुकने दूँगा।
न देश को बिकने दूँगा।।*
राष्ट्र का नायक हूँ मैं,
देश का सच्चा गायक हूँ मैं।
सौगन्ध मुझे अपनी माटी की,
तिरंगे को झुकने न दूँगा।।
* मैं देश का सच्चा प्रहरी हूँ,
मैं  देश को न झुकने दूँगा।
न देश को बिकने दूँगा।।*
तिरंगे से बढ़कर कोई नहीं,
माटी से ऊपर कोई नहीं।
जो इन का मान भंग करेगा,
निश्चय ही काल
कवलित हो जाएगा।।
*मैं देश का सच्चा प्रहरी हूँ,
मैं देश को न झुकने दूँगा।
न देश को बिकने दूँगा।।*
माटी के लिए जन्मा हूँ, माटी
पर मिट जाऊँगा।
शत्रु को पहले मिटाऊँगा,
अंत में प्रणाम माटी को कर जाऊँगा।।
* मैं देश का सच्चा प्रहरी हूँ,
मैं  देश को न झुकने दूँगा।
न देश को बिकने दूँगा।।*
हम रहें या ना रहें,
देश था, है और रहेगा।
हर बच्चा यहाँ का सीना ठोक कर,
देश के बलिदानी की जय कहेगा।।
मैं देश का सच्चा प्रहरी हूँ,
मैं देश को न झुकने दूँगा।
न देश को बिकने दूँगा।।

✍️ डॉ. श्याम लाल गौड़

" समीक्षा "

डॉक्टर श्याम लाल गौड़ की ये रचना के भाव उनके दृढ़ संकल्प को ऐसे संकल्पित करते है जैसे स्वयं रण में खड़े हो अपने देश की ख़ातिर अगर मैं ये कहूँ कि उनका अडिग विश्वास ऐसा है जैसे उत्तर में देश की रक्षा के लिए खड़ा देश प्रहरी हिमालय ,तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगा। हो कोई भी दुर्गमता में देश का शीश नहीं झुकने दूँगा मैं राष्ट्रनायक हूँ तिरंगे को न कभी झुकने दूँगा । अगर सिपाही सरहद पर हथियारों से देश की रक्षा करता है अपने प्राणों की आहुति देता है ।तो एक साहित्यकार भी अपनी कलम से समाज को आइना दिखता है।ऐसी रचनायें सरहद पर खड़े सिपाही में एक जोश पैदा करती है अगर सिपाही देश के प्रहरी है तो डॉक्टर श्याम लाल कलम के प्रहरी है।
मैं अपनी एक रचना से समीक्षा ख़त्म करना चाहूंगा।

क्या दिनकर किसी के आगोश में रहता है।
सरहद का प्रहरी हमेशा जोश में रहता है।
उठाये आँख अगर हिन्द पर कोई।
दिल में जज़्बा आँखों मे रक्त बहता है।

डॉक्टर श्याम लाल गौड़ साहब की कलम को मेरा नमन।

समीक्षक ✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
ग्वालियर , मध्य प्रदेश
9753877785
6.

https://hindi.sahityapedia.com/?p=129718
विधा :- कहानी
शीर्षक :- नई खून , सोच से शून्य

बात कोरोना काल के बाद दो हज़ार बीस नहीं वर्ष इक्कीस की शुरुआती माह की प्रथम सप्ताह के अंत द्वितीय सप्ताह की शुरुआती के दुसरी दिन शनिवार नौ जनवरी की है , जब हम रोशन सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय से द्वितीय वर्ष हिन्दी आनर्स की परीक्षा देने के बाद रामकृष्ण महाविद्यालय से ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के बी. एस .सी, बी.कॉम नहीं बी.ए प्रथम खंड हिन्दी आनर्स की परीक्षा देने बिहार आएं रहें , देव नारायण यादव महाविद्यालय में परीक्षा का केन्द्र पड़ा रहा , पहली तल्ला के कमरा संख्या बयालीस “अ” में हमारा सीट बीच कतारों की प्रथम बेंच पर ही रहा , हर बेंच पर चार – चार परीक्षार्थियों को बैठाया गया था इससे हमें पता ही नहीं चला हम परीक्षा देने आएं हैं या पढ़ने ….
और भी बातों से , परीक्षार्थियों फोन रखेंगे अपने जेब में पर बंद करके, इस तरह भी परीक्षा होती है , मानते हैं इस काल में फ़ोन रखना जरूरी है तो आप परीक्षकों परीक्षार्थियों की फोन उनके बैग बस्ता में रखने के लिए कहिए , आप जैसे परीक्षकों का भी सोच अच्छा है कहीं किसी का फोन चोरी न हो जाएं , आप मोबाइल बंद करवा कर रखने के लिए कहते परीक्षार्थियों को, वे अपने बंद भी रखते है , आप जैसे परीक्षकों कभी सोचे है ,आज एक अंक , दो नम्बर जैसी प्रश्न आते है जिसका वह उत्तर अपने मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से आसानी से जान सकता है , वह कैसे भले परीक्षार्थी आपके डर से परीक्षा रूम में फोन न निकाले , न खोलें , लेकिन वह बाहर तो पांच – दस मिनटों के लिए तो जा ही सकता है न , बस वही कुछ प्रश्नों का जवाब अपने फ़ोन इंटरनेट से जान लेंगे , खैर कोई बात नहीं , अब आते है हम कहानी की शीर्षक पर “नई खून , सोच से शून्य” मतलब नई खून नव शिक्षक को कहा गया है यानि परीक्षक को , परीक्षक शायद प्राईवेट से परीक्षा लेने आया रहा इस बात का पता हमें उनके चेहरों से चल रहा था, द्वितीय पाली में हिन्दी आनर्स की द्वितीय पेपर की परीक्षा रहा जहां यानी डी.एन.वाई कॉलेज में आर.के. कॉलेज व अमीर हसन सकुर अहमद कॉलेज के परीक्षार्थियों बी.ए , प्रथम वर्ष की परीक्षा देने आएं रहें , उस दिन एक सरकारी प्रोफेसर रहे , और दो नई खून ? जो आप समझ ही चूके होंगे मतलब प्राईवेट से परीक्षा लेने वाले परीक्षकों , दोनों परीक्षकों को नई खून इसलिए कहा गया है कि नव खून की एक अलग ही गर्मी होती है और उन दोनों परीक्षकों ने गर्मी का शानदार प्रदर्शन दिए , ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना और बात उसे छोड़िए , जब हिन्दी की ही परीक्षा रही तो प्रश्न हिन्दी साहित्य से ही रहता न और प्रश्न भी बहुत आसान आसान थे , वही विद्यापति , कबीर, घनानंद , तुलसीदास , सूरदास आदि से संबंधित , हम तो हर परीक्षा को त्योहार मानते और उसे मनाते भी है उस दिन भी हम अपनी साहित्य से लगाव भरी प्रेम को दर्शायें इन शब्दों में …..

” जब आएं भगवान राम , लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र ,
तब जनक राज्य मिथिला हुए और पवित्र ”

ये शब्द धनुष भंग प्रसंग वाली प्रश्न , भगवान श्रीराम, लक्ष्मण , गुरु विश्वामित्र और मिथिला भूमि के लिए वर्णित किए , दोनों परीक्षकों प्राईवेट से रहें दोनों एक ही तरह व्यवहार किए , एक पतला दुबला रहा दूसरे थोड़ा ठीक ठाक रहा , वैसे दोनों परीक्षकों ने नव खून की गर्मी की परिभाषा दिए , जो पतला दुबला से ठीक ठाक रहा , अब उन्हीं परीक्षकों के बारे में बताने जा रहे है , परीक्षा आरंभ के समय ही एक परीक्षार्थी ने गेस पेपर से लिखना प्रारम्भ कर दिया , पतला दुबला से ठीक ठाक रहा जो परीक्षक वह आकर उस परीक्षार्थी का उत्तर पत्र छीन लिया , वह परीक्षार्थी भी खूब शोर गुल किया अंत में उस परीक्षार्थी को प्रधानाचार्य के पास ले गया , फिर वही परीक्षक अधिकांश सभी परीक्षार्थियों को दो नम्बर वाले प्रश्न का उत्तर बताने लगे , अचानक मेरी नज़र उस परीक्षक के पास गया वह उत्तर बता रहा था , मैंने इस तरह अपनी आंखों से देखा कि वह परीक्षक सीधे मेरे पास आएं , और बोले आपको कौन सा बता दूँ , मैं दो नम्बर वाली प्रश्न का आठ कर लिया था , दो का उत्तर पता नहीं था , फिर भी हम उन परीक्षक को कहें मेरा सभी प्रश्नों का उत्तर हो गया है , और वह परीक्षक कहने लगा सभी को लेकर चलना पड़ता है जी । वे हमारे बगल वाले लड़का को बताने लगे , और हमसे पूछें कोई समस्या नहीं न , समस्या होते हुए भी हमने बहुत ही गंभीर से उत्तर दिए नहीं सर कोई समस्या नहीं , समस्या हमें भी नहीं थी पर समस्या इस लिए थी क्योंकि वही परीक्षक ने एक लड़का का उत्तर पत्र कुछ समयों के लिए ले लिए रहें , मेरा कहना है जब नकल ही करवाना है तो फिर दिखावा क्यों ? इन सभी कारणों के लिए ही हम इस कहानी की शीर्षक रखें है ..
नई खून , सोच से शून्य
अर्थात खून तो नई है पर सोच से शून्य है , क्योंकि एक का उत्तर पत्र ले लिए फिर आप उत्तर बताने भी लगे तो आपकी सोच से ही शून्य है , न जाने इस प्रकार कितने परिक्षाएं हुए , हो रहे और होते रहेंगे ।।

✍️ रोशन कुमार झा
रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनी
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
शनिवार , 09/01/2021 , कविता :- 18(70)

साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 25
04/06/2021 , शुक्रवार


https://hindi.sahityapedia.com/?p=129718

7.

नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅

एक , दो , तीन , चार नहीं
मुझ पर मुसीबत लाख है ,
देखने वाला कोई और नहीं
देखने वाला मेरा आँख है ।।
फिर भी हार नहीं माना हूँ
साँस लेने में लगा हुआ मेरा नाक है ।।
लाख मुसीबत के बाद भी जी रहा हूँ ,
मुझे देख कर दुनिया अवाक् है ।

कि मैं कैसे जिंदा है ,
मुसीबत में जीना भी
आज की समाज में निंदा है ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
शुक्रवार , 04/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(17)
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 25
Sahitya Ek Nazar
4 June 2021 ,  Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

8.

मंच को नमन
साहित्य एक नज़र पत्रिका
अंक 25-27 में प्रकाशन हेतु रचना

पर्व...

अखंड भारत वर्ष को
हमारा कोटि- कोटि नमन,
जहाँ कई प्रकार के
रंग- बिरंगे मौसम आते- जाते हैं|
गरमी, सरदी या बरसात,
पतझड़ हो या बसंत- बहार,
हर मौसम में हर धर्म के हम
सब पर्व- त्योहार मनाते हैं||
इठलाता आता सावन
मन-भावन धरती
होती जब गुलज़ार,
मेले लगते, झूले पड़ते, लोग
नाचते -गाते हर्षित हो जाते हैं|
कभी सुहानी हवाओं में,कभी
झुलसती गर्मी में,वर्षा की बूंदों से,
कभी सर्द-बर्फ़ीली फ़िज़ाओं में,
लोग हंसते- खाते खो जाते हैं ||
कभी शहीदों के नाम,
देश को सलाम,
राष्ट्र- गर्व,आज़ादी- पर्व,
धर्म- निरपेक्ष भारत को अपनी
एक अहम् पहचान दिलाते हैं|
गुरु-पर्व, क्रिसमस, ईद, दीवाली,
पोंगल, लोहड़ी और होली,
त्योहारों की बेला में सब कुछ
पल आनंद विभोर हो जाते हैं||
भारत की समृद्ध संस्कृति के
संवाहक ये हमारे पर्व- त्योहार,
हर्ष और उल्लास सहित परस्पर
मेल और भाईचारा बढ़ाते हैं|
सर्व-धर्म साम्प्रदाय में एकता
एवं अखंडता की जलाकर मशाल,
भारतीयता एवं मानवता का सबके
हृदयों में उजाला फैलाते हैं||

✍️ प्रेम लता कोहली

फोटो नहीं



9.

काश आज प्रभात न होता
काश  आज धनधोर बादल न होते
आज  कोई  उम्मीद भरी किरण
मुझे जगाती और
सुबह हो जाती
इस  सुबह में सुंदर
प्रफुल्लित भोर होती
कोई ख्आब नहीं ,
हर उम्मीद पूरी होती
जिस तरह जूगनू 
चांद तारे सब मिल
निशा को रोशन करते हैं ,
उसी तरह भोर
को भी कोई रोशन करता
पुष्प भी उम्मीद के
साथ विकसित होते हैं
अभिलाषी  प्रभु चरणों के
तितलियां रंग-बिरंगी ,
पंछी कलरव करते
एक भोर ऐसी , जिसमें
प्रभु हर उम्मीद पूरी करते

✍️ अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश

फोटो नहीं

10.

वर्षा के पल

रिमझिम मदमस्त फूहरें थी।
मद्धम शीतल सी बहारें थी।
मनमोहक वर्षा की बूँदें
मुखपर मुस्कान हमारे थी।।
देख उन्हें थी खुशी बहुत।
जैसे ईश्वर मिलने आये खुद।।
चाहत थी उनके चूमूँ चरण।
झूमू नाचू मै होके मगन।।
पर घर से भी पाबंदी थी।
बाहर जाने से बंदी थी।।
फिर भी मेरा मन थमा नही।
घर से छतरी लेकर निकली।।
पैरों के संग जल मे खेलूँ।
वर्षा के जल अंजुलि लेलू।।
रहरहकर देती छतरी हटा।
बूँदें पड़ती मेरी नयन जटा।।
बूँदे नयनों में यूँ खोती।
जैसे शीप में बनता मोती।।
खोई थी उनकी बाहों में।
थी मचल गई उन राहों में।।
गिरती सम्हलती रही डगर।
शीत सुहावन सहज सफर।।
मै जी भरके हर्षाई थी।
बस कुछ पल कठिनाई थी।।
तब इतने में आया झोंका।
मुझे मध्य धार में ही रोका।।
डगमग होने लगे कदम।
मै थोड़ी सी गई सहम।।
इतने में छतरी पलटी।
मुझे छोड़ वो खुद चल दी।।

मैं उसे पकड़ने को दौड़ी।
पैरों में चुभी मेरे कौड़ी।।
मैं अंतरमन से चीखी।
ध्वनि मेरे प्रियतम ने सुनी।।
वो दौड़ पड़ा मेरे खातिर।
चन्द छणों में हुआ हाजिर।।
आते ही मुझसे बोला।
समझती न हो तुम बौला।।
घर से निकलना जरूरी था।
भीगना कोई मजबूरी था।।
बतलादो मुझको आई क्यों।
ये ऐसा हाल बनाई क्यों।।
मैंने तब धीरे से बोला।
अंतर्मन का फाटक खोला।।
वर्षा बादल के ही छाते।
आ रही थी बस तेरी यादें।।
तुझसे मिलने को मै निकली।
माँ पापा की नाजुक सी कली।।
न फिकर है वर्षा में भीगी।
खुश हूँ मै तुमसे मिलली।।
इतना सुन वो नाराज हुआ।
ठीक हो ईश्वर की है दुआ।।
पर नही चलेगा अब ऐसा।
कुछ करना न ऐसा वैसा।।
तब कान पकड़ लिया मैंने।
मै मुस्का के लगी कहने।।
फिर से ऐसा न होगा कुछ।
मान लिया अब तो हो खुश।।
तब हाथ हटा मुझको देखा।
माथे सिकन की थी रेखा।।
वो बोला तुम घबराओ न।
अब आई हो तो आओ न।।
हम प्यार के पल जी लेते है।
बरखा का मजा संग लेते है।।
वर्षा का लुफ्त तब साथ उठा।
सुरक्षित घर वो दिया पहुँचा।।
सुरक्षित घर वो दिया पहुँचा।।

✍️ सरिता त्रिपाठी ' मानसी '
सांगीपुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

11.
🌳 " पर्यावरण " 🏝️

मुझको काटो और जलाओ
बढ़िया सी कुर्सी बनवाओ।
बेलन मेज पलंग बनवाओ उस
पर बैठकर मौज उड़ाओ।।
तनिक शरम यदि बची हो मन
में नव पौधे नव बीज उगाओ।
इन कलरव करते  पक्षी  दल
को  तो बेघर मत  करवाओ।।
स्वयं दौड़ते पेट के खातिर कुछ
इन प्रकृति प्रेमी हित त्यागो।
बेजुबान खग विहग के मुख से
खाना लेकर  के  मत  भागो।।
पर्यावरण समाज लाभ हित
नए सृजन की नींव भरवाओ।
एक वृक्ष यदि काट रहे हो
सौ सौ वृक्ष के बाग लगवाओ।।
स्वच्छ हवा जीवन हित देते यह
तो हमसे कुछ नहीं लेते।
छाया फल लकड़ी सब देते
तो इनके हित हम क्या करते।।
कुछ विचार अब करना होगा
नया रास्ता चुनना होगा।
संरक्षण  हो वृक्षों का  भी
सही तरीका चुनना होगा।।

✍️ राम प्रकाश अवस्थी 'रूह'
जोधपुर, राजस्थान
🙏
(स्वरचित एवं मौलिक रचना)


12.
सादर प्रेषित

डा0 प्रमोद शर्मा नजीबाबाद बिजनौर

                     ग़ज़ल

भुलाया है  हमे  दिल  से खुशी से बात करता है
जिसे  हमसे अदावत  है  उसी  से बात करता है|1

छिपाने से नहीं छिपती मोहब्बत की मुलाकाते
जमाने में हर एक लम्हा  सदी से बात करता है| 2

अमीरों को नज़र आयी नहीं गुरबत की तंगहाली
समन्दर कब  कहाँ  सूखी  नदी से बात करता है| 3

वफा की उम्रभर जिससे जफा हमको नहीं आयी
वही फिर भी हमी....से बेऱूखी से बात करता है| 4

उसे कुछ तो अदब होता नहीं हासिल हुआ कोई
मेरा दिल प्रेम ये अक्सर  मुझी से बात करता है| 5

✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद , बिजनौर
नजीबाबाद

13.

✍️  भ्रष्टाचार✍️

आज हर कार्यालय में
हो रहा है खूब भ्रष्टाचार,
नीचे से लेकर ऊपर तक
चपरासी से लेकर
अधिकारी तक
खूब चला रखा है
रिश्वत का बड़ा ही कारोबार,
क्योंकि.....,
बिना दाम दिए होते नहीं काम,
खाये कौन चक्कर कार्यालयों के,
समय नहीं आज किसी के पास,
इसलिए वो भी नहीं रखते आस,
लिया और दिया करा
दिया अपना काम,
इस चक्कर में नहीं हो रहा है
भ्रष्टाचार कम,
दिन-दोगुना और रात-चौगुना
बड रहा यहाँ भ्रष्टाचार
इसमें पीछे नहीं मेरे देश के
भ्रष्ट नेताओं की भ्रष्टाचारी,
इसमें तो शामिल है पूरी की
पूरी जमाती भरी पड़ी है,
जो देश की अर्थव्यवस्था को
चौपट करने को लगी पड़ी है,
इनकी छत्रछाया में ही
फल-फूल रहा है भ्रष्टाचार,
मानो ऐसा लगता है जैसे बन गया है
हर जगह यह शिष्टाचार,
आओ आज से हम
सब मिलकर करें प्रण,
हम देंगे रिश्वत और
ना ही लेंगे हम रिश्वत !!

    ✍🏻 चेतन दास वैष्णव
   गामड़ी नारायण ,
बाँसवाड़ा , राजस्थान

14.

आओ आशा दीप जलाएं।

जूझ रहे हैं जो विपदा से,
जिनके मन में भरी निराशा।
आशा भरे हुए शब्दों से,
उनको दे दीजिए दिलासा।।
कोई पीड़ित यदि पड़ोसी
उसकी पूरी करें जरुरत।
हिम्मत उसकी बनी रहेगी,
मोबाइल नंबर दे आएं।
आओ -----
अन्न से,धन से,मन से,तन से
करें मदद, जैसे भी सक्षम।
सावधानी इतनी सी रखनी,
स्वयं चपेट में न आएं हम।।
गाइड लाइन का पालन करते
हर संभव सहयोग को तत्पर।
मास्क लगाएं मुंह पर अपने,
बीमारों को दवा दिलाएं।
आओ आशा --------
बातें करते रहिए ऐसी
जिनसे बढ़ता रहे मनोबल।
मन में नयी उमंग भरे जो,
सुखदायी दिन होगा कल।
कोई भी लापरवाह न हो
वैक्सीन से रहे न वंचित।
मोबाइल से करा पंजीकृत,
सबका टीकाकरण कराएं।
आओ आशा----
यदि इसमें लगती कठिनाई
हिम्मत रखना मत घबराना।
अपने घर के भीतर रहना
डरना मत और नहीं डराना।
ईश्वर से प्रार्थना यह करना,
सभी रहे,सुखी निरोगी।
कृपा करो दुनिया पर प्रभुजी
कोरोना न कुछ कर पाएं।
आओ आशा ----

✍️  डॉ.अनिल शर्मा ,अनिल
धामपुर, उत्तर प्रदेश

15.
कविता -
ये कैसा अनचाहा मेहमान..

ये कैसा अनचाहा,
मेहमान घर आया है
जिसने सारे जहाँ में,
हाहाकार मचाया है
रख दी हिला के,
जिसने सारी हुकुमत
हर कोई आगे इसके,
कितना लाचार पाया है।
कहने को एक जैविक,
हथियार बना के छोड दिया,
पर चलाया किसने ,ना
कभी समझ में आया है।
बिलख रहे थे जो पहले,
अपनो के खो जाने पर,
भुला के रंजो गम सारे,
बस खुद को बचाया है।
बिखर गया अब कारवां,
उजड़ रही हैं महफिलें,
तन्हा-तन्हा से लगे हैं रहने,
ऐसा माहोल बनाया है।
भूल गये अब हाथ मिलाना,
सीने से किया किनारा है,
एक फीकी मुस्कान लिये,
बस सर को झटकाया है।
रहें सलामत मेरे अपने,
या रब खैर करे इतनी,
करो विदा 'देव' कोरोना,
अल्फाज लबो पे आया है।

✍ शायर देव मेहरानियाँ
    अलवर,राजस्थान
(शायर, कवि व गीतकार)
_7891640945

16.
नमन मंच

महकती शाम( ग़ज़ल )
=============
वज्न-1222  1222  1222  1222
काफिया - आज (आ स्वर )
रदीफ  - देती है

महकती शाम की यादें मुझे आवाज देती हैं।
बुलाओ गीत वो गाएँ  कि साँसे साज़ देती हैं ।

भटकता मैं फिरा करता तिरे दीदार की खातिर ,
घड़ी भर को दिखे जब तू मां आवाज देती है ।

उड़े आजाद होकर गगन ऊपर चांद को चूमें,
कुदरत पंछियों को इसलिए कई परवाज देती है ।

झुकाना पलक शर्मा के उठाना फिर घबरा के
अदा तेरी धड़कने का दिलों को साज़ देती है।

लरजते "स्नेह "समंदर जब पुकारेंगे तुझे दिलबर ,
किनारे बैठ तू सुनना लहर आवाज देती है ।

✍️ प्रेमलता उपाध्याय" स्नेह "
दमोह (मध्य प्रदेश)

17.
मजदूर हूँ साहब"

मजदूर हूं मैं,
मजबूर नहीं।
किसी और सा,
मगरूर नहीं।
हालात हों जैसे,
जीवन में।
यदि राग द्वेष,
आए मन में।
फिर भी मजबूत,
बना खुद को।
हालात से,
लड़ता आया हूँ।
सबके चेहरे को,
खुश रखने।
मैं खुद ही,
हंसता आया हूँ।
है किया बहुत,
मेहनत मैंने।
सबके सपने,
साकार किए।
सब ख़ुश हों,
खुद में खोए हैं।
अब मुझको ही,
दुत्कार दिए।
दो वक़्त की,
रोटी के खतिर।
अब भी वही,
मजदूर हूँ मैं
अब भी वही,
मजदूर हूँ मैं।।

    ✍️   केशव कुमार मिश्रा
         मधुबनी,बिहार।

18.

Rani Sah

माँ एक शब्द प्यार का,
फिर ख्वाब आँखों में
तेरे इंतेजार का,
मां तेरे ना होने से
मै टूट सा गया हूँ ,
हर लम्हे में दर्द से
सिमट सा गया हूं,
माँ तेरी तलाश में इधर
से उधर जाता हूं ,
मैं जितनी बार चलने
की कोशिश करता,
हर बार गिर जाता हूं,
मां तेरी उंगलियों
का सहारा नहीं रहा,
अब मैं किसी के
लिए प्यारा नहीं रहा,
माँ तेरी कमी हर वक्त खलती है,
मेरे चारो ओर एक उदासी फैली है,
तेरी आंचल का छाव नहीं सर पे मेरे,
ना ममता वाली हाथ है,
सब कुछ है पर मां तू
क्यों नहीं साथ मेरे,
माँ थक चुका हूं ज़िन्दगी
की इस फिजूल लड़ाई से,
अब सुकून भरी नींद चाहिए ,
आंखे बंद हो जाएगी मेरी
शायद तेरी जुदाई में।
     
          ✍️  रानी साह ✍

19.

सोच रहा हूँ किस तरह
से संस्कृत को पढ़ाऊँ में,
किस तरह से पाश्चात्य की
मानसिकता को मिटाऊँ में।
किस तरह से नव सृजनों
को अपनी बात बताऊँ में,
अंग्रेजों की अंग्रेजी को
किस तरह से भुलवाऊँ में।।
किस तरह से कालिदास
की रचनाओं को गुनगुनाऊँ में,
किस तरह से पाणिनी के
सूत्रों को सिखलाऊँ में।
किस तरह से साहित्य
की महत्ता को बतलाऊँ में,
किस तरह से वेदांत की
परिभाषा को समझाऊँ में।।
किस तरह से वेदाङ्गों के
भावों को बतलाऊँ में,
किस तरह से उपनिषदों के
गूढ़ रहस्य समझाऊँ में।
किस तरह से न्याय सांख्य
के भेदों को बतलाऊँ में,
किस तरह से मीमांसा में
धर्म,ब्रह्म को बतलाऊँ में।।
किस तरह से संस्कृत को
जन जन तक पहुँचाऊँ में,
किस तरह से संस्कृत के
गौरव को बतलाऊँ में।
किस तरह से देववाणी को
हर मानव तक पहुँचाऊँ में,
किस तरह से अमर भाषा के
वैभव को बतलाऊँ में।।
किस तरह से राजभाषा की
वास्विकता को बतलाऊँ में।
सरकारों के छल छदमो को
किस तरह से दिखलाऊँ में।।

    ✍️ डॉ. जनार्दन कैरवान
     ऋषिकेश उत्तराखंड

20.
नमन मंच
साहित्य एक नज़र पत्रिका
अंक ...25
विधा ...कविता
शीर्षक ...किनारा

  *    किनारा    *

  नदी की निरंतर यात्रा में
  किनारे का महत्व    
  बस इतना है ,
   हर आने वाली नई लहरों को
   चूम कर ये कहना ,
    अभी तो दूर है मंज़िल
   बढ़ जाओ बस आगे यूँ ही ,
   लहराती हुई .. मचलती हुई ..
  बलखाती हुई ...
  समंदर के आगोश में
   समाने के लिए ,
जो प्रतीक्षारत है सदियों से
जो आतुर है ..
बेकल है ..... बेचैन है
प्यार की  अथाह गहराई के साथ
अपनी नदी से मिलन के लिए  !
                
   अनीता नायर " अनु
  शहर . नागपुर ( महाराष्ट्र )

21.
मन में आता है फकीरों की तरह
बेपरवाह सा निकल पडूं
किसी अनजान सी राहों पर
जहां बंदिशें ना हो लौटने की
चाहे सुबह हो या हो शाम
ना हो कोई व्यवधान..
दे सकूं सुकून उन्हें
जो दर्द दबा के बैठें हैं बरसों से
सुलझा आऊं उनके बीच की
अनसुलझी गांठों को....
खुद से बातें करूं,
इस घुटन से दूर
खुली हवा में सांसें लेता रहूं
बारिशों में जी भर के भींगता रहूं...
मौन संन्यासी की तरह बैठा रहूं
खेतों की मेड़ों पर
गदराई मतवाली झुमती सरसों को
बस देखता रहूं .... अंधेरा होने तक
कभी किसी बकरी के मेमने को
गोद में बिठाकर हाथ फेरता रहूं        
जब नींद लगे तो
सो जाऊं उस बूढ़े पीपल के नीचे
बिछाकर गमझे के ऊपर
या किसी मंदिर की सिढियों पर
सुबह की घंटियों के बजने तक...
भूख लगे तो खा लूं
ईटों को जोडकर, बना लूं
दो मोटी-मोटी रोटियां
हरी मिर्च और नमक प्याज के साथ..
डर के भागूं अंधेरे में
हिलते डोलते पेड़ों को देखकर
फिर किसी बूढ़ी सी औरत से पूछूं
दादी आपने भू..भू..भूत देखा है क्या.....

✍️ पुष्प कुमार महाराज,
गोरखपुर
गोरखपुर , दिनांक 28.05.21

22.
# नमन मंच
साहित्य एक नज़र पत्रिका
अंक 25-27 में प्रकाशन हेतु रचना
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

" गंगा की व्यथा "

मैं तो स्वच्छ निर्मल चली,
जब भगीरथ ने बुलाया l
शिव जी की जटा से निकली ,
पापनाशिनी कह तुमने पुकारा l
गौमुख से निकल सोचा ,
हर लूँगी तेरे दर्द ,बनुँगी तेरा सहारा l
कलकल मेरी धारा ,अमृत रूपी जल
नित देगी तुझे ,जीवन में सौगात प्यारा l
पर तुमने ही तो तोड़ा,
मेरे इन अरमानों को,जो था न्यारा l
रोकी मेरी राह ,मेरी चाल
मेरी वो स्वच्छंद अविरल धारा l
लोभ रूपी विष से कर दिया विषाक्त ,
हे पुत्र ,ये कैसा उपहार तेरा निराला l
आज मेरे भाई बहनों का क्रोध ,
मैं भी विवश हूँ ,देख लो तुम ही नजारा l
तेरी ही सड़ते-गलते लाशों को,
ढ़ोने को मजबूर,मैं अभागन बेसहारा l
मुझे भी दिख नहीं रहा ,मेरे लाल
मेरे जीवन का कोई किनारा l

✍️ भूपेन्द्र कुमार भूपी
        नई दिल्ली

23.
अम्बर तुम अपनी
नीलिमा को छोड़कर
क्यों कर रहे हो
काले,भूरे, सुनहरे,
लाल पुष्पों से
अपना अति विचित्र श्रृंगार
तुम बदलना चाहते हो
या फिर बदल गए हो
अम्बर तुम शब्द हीन
होते हुए भी भर रहे हो
, तगड़ी हुँकार
ललकारते हुए तुम अचानक
दहाड़ने लगते हो
ऐसा प्रतीत होता है
तुम करना चाहते हो
युद्ध या फिर विजय
का शंखनाद
अम्बर तुम हमेशा
रहते हो प्रकाश
युक्त वह चाहे
दिन में सूर्य का हो
अथवा रात्रि में चन्द्रमा का
फिर भी थोड़े से
तिमिर में आखिर क्यों
बिखेरने लगते हो
रंग-बिरंगी रोशनी
जिससे सहम जाता
है आम जनमानस
अम्बर तुम शायद
बदल रहे हो अपना
स्वभाविक गुण
अथवा ओढ़ना चाहते
हो परिवर्तन की चादर
या फिर मोहित हो रहे
हो देखकर प्रकृति के
सुन्दर मनोहारी रूप और रंग को
रंगना चाहते हो तुम
उसी के रंग में खुद को‌
अम्बर अब मुझे
विश्वास होने लगा है
देखकर तुम्हारी
चपलता तुम्हारा भी
मन फैलाना चाहता है
मयूरी जैसे परों को
करना चाहता है एक बार
भावनाओं के आंगन
में अपना सुन्दर नृत्य
यह सच है ना जो मैं
कह रहा हूँ बोलो-बोलो

✍️ रामकरण साहू " सजल "
बबेरू (बाँदा) उ०प्र०

प्रकाशन हेतु धन्यवाद।

24.
छत की मुँडेर पर कुछ दीये,
टिमटिमा रहे थें।
आज अमावस की रात थी,
शायद वो चाँद की चिड़ा रहे थे।
चाँद भी उनकी इस शरारत से,
मौन था।
सुबह दियों से दिनकर ने पूछा
रात में कौन था।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर , मध्यप्रदेश
9753877785

25.
आओ हम सब मिलकर के
ऑक्सीजन बनाते हैं .

आओ हम सब मिलकर
के कसम खाते हैं,
अपने अपने जन्मदिन
पर वृक्ष लगाते हैं,
हम सब अपनी जिंदगी
बिता रहे रो रो के
आओ बच्चों का
जीवन खुशहाल बनाते हैं
जंगलों को काट हम
सब अपनी उम्र घटाते हैं,
आओ वृक्ष लगा कर के
घटती उम्र बढ़ाते हैं,
घर-घर नलकूप लगाकर 
व्यर्थ पानी बहाते हैं,
गांव गांव जलकुंड बना
सबका जीवन बचाते हैं।
आओ हम सब मिलकर
चिपको आंदोलन चलाते हैं,
बहुगुणा जी के विचारों
को जन-जन तक पहुंचाते हैं,
सड़क सड़क वृक्ष लगा
ऑक्सीजन लेवल बढ़ाते हैं,
आओ हम सब मिल करके
पर्यावरण दिवस मनाते हैं।
    
    लेखक - ✍️ धीरेंद्र सिंह नागा
    ग्राम जवई, तिल्हापुर
   ( कौशांबी ) उत्तर प्रदेश



साहित्य एक नज़र 🌅






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