साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 27 , रविवार , 06/06/2021

साहित्य एक नज़र 🌅

अंक - 27

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जय माँ सरस्वती


अंक - 26
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साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 27



रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

अंक - 27
6 जून  2021

रविवार
ज्येष्ठ कृष्ण 11 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  8 - 9
कुल पृष्ठ - 10

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆

28. आ. डॉ. मधु आंधीवाल जी
29. आ. पुष्प कुमार महाराज जी


साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 27
Sahitya Ek Nazar
6 June 2021 ,  Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

फेसबुक - 1

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अंक - 23
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सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र
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अंक - 19 से 21   -

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सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र
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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा

मो - 6290640716

अंक - 25

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कविता :- 20(17) , शुक्रवार , 04/06/2021 , साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 25
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अंक - 26
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अंक - 27
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अंक - 24
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अंक - 28 - 30

नमन :- माँ सरस्वती
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
मो :- 6290640716

रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -
साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 28 से 30 तक के लिए आमंत्रित

दिनांक - 07/06/2021 से 09/06/2021 के लिए
दिवस :- सोमवार से बुधवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।

यहां पर आयी हुई रचनाएं में से कुछ रचनाएं को अंक - 28 तो कुछ रचनाएं को अंक 29 एवं बाकी बचे हुए रचनाओं को अंक - 30 में शामिल किया जाएगा ।

सादर निवेदन 🙏💐
# एक रचनाकार एक ही रचना भेजें ।

# जब तक आपकी पहली रचना प्रकाशित नहीं होती तब तक आप दूसरी रचना न भेजें ।

# ये आपका अपना पत्रिका है , जब चाहें तब आप प्रकाशित अपनी रचना या आपको किसी को जन्मदिन की बधाई देनी है तो वह शुभ संदेश प्रकाशित करवा सकते है ।

# फेसबुक के कॉमेंट्स बॉक्स में ही रचना भेजें ।

# साहित्य एक नज़र में प्रकाशित हुई रचना फिर से प्रकाशित के लिए न भेजें , बिना नाम , फोटो के रचना न भेजें , जब तक एक रचना प्रकाशित नहीं होती है तब तक दूसरी रचना न भेजें , यदि इन नियमों का कोई उल्लंघन करता है तो उनकी एक भी रचना को प्रकाशित नहीं किया जायेगा ।

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र 🌅

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अंक - 28
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कविता - 20(20)

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अंक - 29

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अंक - 30
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http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2022-09052021-30.html

1.

खुशखबरी ! खुशखबरी ! खुशखबरी !

हमारी दैनिक पत्रिका साहित्य एक नज़र 1 जून 2021 से "पुस्तक समीक्षा स्तम्भ" शुरू की है पुस्तक की समीक्षा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याती प्राप्त समीक्षक , गीतकार, कवि, शायर, कहानीकार, नाट्यकार और उपन्यास लेखक आ. श्री प्रमोद ठाकुर ग्वालियर मध्यप्रदेश द्वारा किया जायेगा जो पिछले 22 वर्षों से साहित्यिक सेवा में सेवारत हैं। जिनकी अभी तक कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है 2 काव्य संग्रह -कटुकल्पना एवं आँसुओं का वज़न,2 कहानी संग्रह- रॉन्ग नम्बर एवं लल्ली, 2 उपन्यास -पलायन एवं टाइम ट्रेवल, 2 नाट्य संग्रह मुआवज़ा एंव कुंडी का नीलम, 2 साँझा काव्य संग्रह शव्द सागर एवं काव्य सलिल(ई पुस्तक),1साँझा कहानी संग्रह सागर की लहरें भाग-२।

जो भी साहित्यकार इस स्तम्भ से जुड़कर अपनी प्रकशित पुस्तक की समीक्षा करबा कर पुस्तक का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार - प्रसार कर एक नया आयाम देना चाहते है उस सम्मानीय साहित्यकारों का स्वागत है।सभी साहित्यकारों को समीक्षा प्रमाण - पत्र प्रदान किया जायेगा।
कृपया निम्नलिखित विवरण भेजने का कष्ट करें -

1. कृपया पुस्तक की एक प्रति स्पीड पोस्ट द्वारा इस पते पर भेजें
प्रमोद ठाकुर
महेशपुरा अजयपुर रोड़
सिकंदर कम्पू लश्कर ग्वालियर
मध्यप्रदेश -474001
मोबाइल- 9753877785

2. पुस्तक की उपलब्धता
3.एक फोटो
4. प्रत्येक साहित्यकार को रचना समीक्षा के लिए सहयोग राशि 31 /-₹ , एवं पुस्तक समीक्षा के लिए
101 /-₹  इस 9753877785 ------ मोबाइल नम्बर पर फ़ोन पे, पेटीएम, गूगल पे पर भेज कर स्क्रीन शॉट भेजें।

आपका अपना
आ. प्रमोद ठाकुर
सह संपादक / समीक्षक
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
9753877785

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका  "पुस्तक समीक्षा स्तम्भ" में चयनित पुस्तकों के लेखकों की सूची जससे साहित्कारों को समीक्षा प्रमाण पत्र दिया जा सके जून 2021 माह के लिए केवल 60 स्थान है ।

1. आ. श्री रामकरण साहू "सजल" बबेरू (बाँदा) उ.प्र.
2. आ. अजीत कुमार कुंभकार
3.आ. राजेन्द्र कुमार टेलर "राही" नीमका , राजस्थान
4.निशांत सक्सेना "आहान" लखनऊ
5. आ. कवि अमूल्य रतन त्रिपाठी
6. आ. डॉ. दीप्ती गौड़ दीप ग्वालियर
7. आ. अर्चना जोशी जी भोपाल मध्यप्रदेश
8. आ. नीरज सेन (कलम प्रहरी) जी कुंभराज गुना ( म. प्र.)
9. आ. सुप्रसन्ना झा जी , जोधपुर
10. आ.  श्री अनिल "राही" जी

2.

परिचय -
✍️ रामकरण साहू"सजल"ग्राम-बबेरू
जनपद - बाँदा , उत्तर प्रदेश , भारत
शिक्षा- परास्नातक
प्रशिक्षण- बी टी सी, बी एड, एल एल बी
संप्रति- अध्यापन बेसिक शिक्षा
सम्पर्क सूत्र-  8004239966

समीक्षक
✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
साहित्य एक नज़र 🌅
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

श्री रामकरण साहू "सजल" जी का कविता संग्रह "गाँव का सोंधापन"

" समीक्षा "

जैसे पहाड़ों से कई नदियों का उदगमन होता है और वो धरा के विभिन्न क्षेत्रों को स्पर्श करती है। वैसे ही हमारे साहित्यकार श्री रामकरण साहू "सजल" की तुलिका भी एक बड़े भूधर की तरह है। जब आपकी कलम से शब्द तरंगिणी का प्रवाह होता है तो जन्म होता है  "गाँव का सोंधापन" जैसे कविता संग्रह का जिस तरह सरिता हर क्षेत्र को स्पर्श करती हुई अनवरत बहती है उसी तरह श्री रामकरण साहू "सजल" जी की कलम इस पुस्तक में हर विषय को स्पर्श करती है। कोई भी विषय आपकी कलम से अछूता नहीं हैं।
अब मैं बात करता हूँ श्री रामकरण साहू "सजल" जी के कविता संग्रह "गाँव का सोंधापन" इस पुस्तक को हाथ में लेते ही गाँव की मिट्टी की सुगंध ज़हन में समा जाती है। जैसे महान कवि साहित्यकार श्री प्रताप नारायण मिश्र जी ने बात, बुढ़ापा, भौ, मुच्छ और बन्दरों की सभा जैसे विषयों पर सहित्य सृजन किया ठीक उसी तरह श्री रामकरण साहू "सजल" जी ने ओरतिया, खूंटी, अढूवा, मोंवन और गोफनी जैसे शब्दों पर अपनी लेखनी से अद्भुत रचनाओं का सृजन किया।
भाषा ही अपनी सम्प्रेषण शक्ति द्वारा रचना के अंतःस्तरों को पाठकों के समक्ष खोलती है।आपने  इस संग्रह की रचनाओं में आम आदमी की रोज़मर्रा प्रयुक्त होने वाले शब्दों का बखूबी से प्रयोग किया है।
आपने इस एक संग्रह को दो खण्डों में विभक्त किया है प्रथम खण्ड एवं द्वितीय खण्ड । इस संग्रह में गाँव के उस सोंधेपन को कविता शैली में बांधे रखने का पूर्ण प्रयास किया जो सफल भी रहा।
मैं हृदय तल से इस संग्रह "गाँव का सोंधापन" के लिए श्री रामकरण साहू "सजल"जी को हार्दिक बधाई देता हूँ।

समीक्षक
✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
साहित्य एक नज़र 🌅
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

समीक्षक
✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
साहित्य एक नज़र 🌅
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

3 .

साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 06/06/2021 , रविवार
विषय :- स्वैच्छिक , विधा :- घनाक्षरी
विषय प्रदाता :- आ. मनोज कुमार पुरोहित जी
विषय प्रवर्तक :- आ. मनोज कुमार पुरोहित जी

जीवन

जीवन एक कला है , इसमें सब भरा है -
जीत हार , सुख  दुख , से जो कोई लड़ा है ।।

लड़ - लड़कर आगे , बढ़ते हुए चला है ,
जो करना अभी करों , ये समय बड़ा है ।।

जो लौटता नहीं कभी , न किसी लिए खड़ा है ,
मत कहो आप अभी ,  ये जीवन पड़ा है ।

कवि , नेता या कोई भी , जीवन जीने चला है
बताकर आज तक , नहीं कोई मरा है ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
रविवार , 06/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(19)
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 27
Sahitya Ek Nazar
6 June 2021 ,   Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

मनहरण घनाक्षरी 16,15 या 8,8,8,7 यति के साथ चरण होता है।

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4.
*सपना*
✍️🕊️🌞🌙💥🚓🎇

सपना

ख्वाबों को पिरो कर
ख्वाबों को सजो कर,
एक पुस्तक बनाया है,
जिसमें हर पेज सपनों का
सजाया है।
हालात भले हो कमजोर ,
लेकिन सपना मजबूत
बनाया है।
सपना पिरो कर ख्वाबों
का पुस्तक बनाया है।
जमाना भले हमको गिराए ,
लेकिन अम्मा ने उठना सिखाया है।
भले समाज कहे हमें एक लड़की,
बापू ने हमें लड़का बनाया है।
जमाना भले खड़ी करें मुश्किल,
सपनों ने मुश्किलों से
लड़ना सिखाया है।
ख्वाबों को बूंद बूंद भर कर,
सपनों का मटका बनाया है।
आज भले भीड़ में मै हूँ ,
अकेली कल कारवां भी हो‌ जाना है
मुश्किलों से कभी ना हार कर,
कल सफलता के आयाम पाना है।
जमाना चले ना कभी मेरे संग,
अकेले ही मंजिल
को पाना है।
रीति-रिवाजों की
जंजीरों में हम
जकड़े नहीं।
कल ख्वाबों का
परिंदा बन जाना  है।
आज भले हो अंधेरा,
कल आसमा के उजाला
को भी पाना है।
आज भले मै हूँ
भीड़ में हो अकेली,
कल कारवां भी
हो जाना है।
मुश्किलों से कभी
ना हार कर,
कल सफलता के नए
आयाम पाना है।

  ✍️ राजेश सिंह
बनारसी बाबू
* उत्तर प्रदेश , वाराणसी *
8081488312

5.

#विषय-स्वच्छ पर्यावरण
#विधा-

कविता
🌱  🌍 " पृथ्वी का श्रृंगार " 🌳 🌅

"वृक्ष लगाओ,धरा बचाओ"
पर्यावरण रखोगे स्वच्छ ,
तो रहोगे स्वस्थ, एवं मस्त।
पृथ्वी मां हमारी जननी है,
हमें प्राणों से भी प्यारी है।
देती है ,हमको स्वस्थ जलवायु,
यहां अनवरत ,नदियां बहती हैं।
खनिज संपदा की ,खान है ये,
हमें जड़ी -बूटियां देती है....।
जो रखती  है ,स्वस्थ हमें,
हरियाली ,प्रकृति देती है..।
वन उपवन, से भरी यह धरा,
हमारी  जीवनदायिनी है..।
यह देती है आहार, संपूर्ण जग को,
सबके  प्राणों की ,रक्षा करती है।
मत काटो ,वृक्षों को तुम....,
ये हमें ऑक्सीजन देते हैं।
सौंदर्य पूर्ण, हमारी पृथ्वी मां,
क्यों तहस-नहस करते
, इसकी छवि को।
मां की रक्षा करना ,
हमारी जिम्मेदारी है,
मत भूलो, तुम इस बात को....।
पृथ्वी मां के ,कण-कण में..,
मिलती हमको ,ऊर्जा भारी है..।
नतमस्तक है हम ,ऐसी रज के...,
जो हमारी ,जीवनदायिनी है...।
इसको संभाल के रखने की ,
जिम्मेदारी हमारी है.....।
पर्यावरण स्वच्छ होगा ,
तो देश खुश ,और संतुष्ट होगा।
आओ हम सब, वृक्ष  लगाएं,
पर्यावरण को ,शुद्ध बनाएं..।
प्रकृति में,हरियाली लायें...,
धरा को ,खुशहाल बनांये....।

✍️ रंजना बिनानी "काव्या"
गोलाघाट असम
6.

माँ शारदे को नमन--
नमन मंच--
विषय तेरे बिना भी क्या जीना--
शीर्षक --

साजन तेरे संग में--

आया मौसम बारिश का
बैरी सजनवा तुम परदेश में,
आशा भरी तमन्ना जागी
जिया पल-पल तेरे संग में।
पुष्प पत्तियाँ निखर गई हैं
कच्चे कचनार महका रहें,
दामिनी तड़के जिया जब
काँपें भीगी रूत बहकी लगे।
तन मन में सोंधी खुशबू
तेरे मिलन को प्रेम दीवानी है,
बाहर भीतर सब ओर मैं
भीगी सपने बुनती हूँ रंगीले।
अगर सुनते दिल की तरन्नुम
संग डूबते छैल छबीले।।
बाहर बूंदों की छम-छम
भीतर के अहसास भी हैं गीले,
झंकृत अन्तस तार सितार
मखमली ख्बाब नीले पीले।
दूर हो आँखों से बेशक पर
दिल में ही पलछिन रहते हो,
मेरे हमसफ़र स्मृति पटल
तूलिका में अक्सर उभरते हो।
बाहर उमड़ते पयोधर का
शोर धडके धड़कनों का जोर,
काश सुनते दिल की तरन्नुम
ख्बाब बुनते संग सजीले।
खिड़की से झांकते घरोंदे
परिंदों ने  प्रीत से बसाये थे,
डायरी कागज कलम से दिल ने
यादों के दायरें बनाये थे।
तुम गुमशुदा नहीं थे झंकृत तार
से हिया में गुनगुनाये थे,
यादों की बारात में चादर की
सिलवटों से सिमटाये थे।
दिल्लगी तो नहीं ये पास
हरदम लगते क्यों परवानें से,
काश सुनते दिल की तरन्नुम
ख्बाबों में झूमते मस्तानें।
हरी चाय के कप संग में मृदु
चाशनी भीगी तेरी यादें हैं,
मेज पर बिखरी चहुँओर साथ
बिताई मीठी रातें वादें हैं।
अब के बरस आ जाओ अब
ना तड़पें तेरी जोगनियाँ,
मधुर मुरली तेरी बोली ठिठोली
हरपल बाजे मेरे अँगना।
दूर हो पर करीब लगते मन
को मेरे कोई भरम नहीं है,
काश सुनते दिल की तरन्नुम
धड़कन में गुंथी माला से।

✍ सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ
सर्वाधिकार सुरक्षित@

7.

" मेरी सहित्य यात्रा की पहली रचना "

एक दिन मेरे ज़हन में, यह ख़्याल आया।
भगवान ने मृत्यु को आखिर क्यों बनाया।

यह सोच मैं आगे चला जा रहा था।
दूर से एक जनाज़ा चला आ रहा था।
एक व्यक्ति जोर-जोर से रो रहा था।
लेकिन मृत वे ख़बर सो रहा था।

यह देख मेरे ज़हन में फिर वही ख़्याल आया।
भगवान ने मृत्यु को आखिर क्यों बनाया।

यह सोच मैं आगे चला
मुझें एक पागल मिला।
सड़क पर पड़ा कराह रहा था।
एक कुत्ता उसका मुँह चाट रहा था।
लोग तमाशबीन बने देख रहे थे।
कुछ हँस रहे थे, ठहाके लगा रहे थे।

यह देख फिर मेरे ज़हन में,
कोई ख्याल नहीं आया।
भगवान ने मृत्यु को शायद ठीक बनाया।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर , मध्यप्रदेश
9753877785
8.

मैं मूक बना देखता रहा
पीर न देखा तुमने मेरा
कटती रही नसें,
बहती रही लहू
फिर भी न तुमने
चीख सुना मेरा ...
कोई कृष्ण बना नहीं मेरा
जब चीर हरण हुआ मेरा
तुम किस स्वप्न में खोये थे
जब हरित चीर फटा मेरा
हैं मर्म मुझे भी इसका
जो सूनी कर गये धरा
कर सकते हो क्षतिपूर्ति इसकी
दो वृक्ष लगा दो हरा हरा..
तुम चाहो तो हर मौसम में
ला सकते हो बसंत
प्रकृति भी मुस्कुरायेगी
फिर आयेगा गमलों में बसंत.
फिर बरसेंगे जम कर बादल
भर जायेंगी सब ताल तलैया
लहलहा उठेंगी धरती खेल खलिहान
बस रखना होगा पर्यावरण का
ध्यान.....

✍️ पुष्प कुमार महाराज
, गोरखपुर
दिनांक 05.06.2021

9.

डर कर मत बैठो,
हिम्मत हार कर मत बैठो,
बना आत्मविश्वास
को हथियार,
उतर जा युद्धक्षेत्र में,
कर दुश्मन पर प्रहार,
मानसिक विक्षप्ति
का कर संहार,
बैठ अपनो के बीच
बरसा हंसी की फुहार,
कैसी भी हो परिस्थिति,
न छोड़ना अपनो का साथ,
बुरा वक्त है काट जाएगा,
फिर खुली हवा में हसने
का मौक़ा आयेगा,
मिल कर कदम बढ़ाना है,
डर कर मत बैठो,
इस युद्ध में विजय
सेहरा सजाना है।

✍️ -- इं. निशांत सक्सेना "आहान " ...

10.

नमन मंच
विधा
हाइकु  - माँ

मन मंदिर
की मूरत सौगात
ख्वाहिश प्यारी

जीवन मंत्र
ममता की छांव है
ख्वाबों की जान

अटारी  मूरत
अच्छे बुरे कर्म की
दिलासा देती

सद्गुणों की
खान मान सम्मान
रहती साथ

चंदन माला
संकट में है सदा
साथ अमर

पथगामी है
अभिलाषा पूर्ण है
मन मूरत

ममता छांव
आंचल में रखती
देती सीख है

माँ मोल नहीं
कोई तोल नहीं है
है पहचान

✍️ कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान

11.
लेख   - जुबान तेज या तलवार

✍️ सुधीर श्रीवास्तव
        
    पुरानी कहावत है कि जुबान कैंची की तरह चलती है और कतर कतर बात को काटती रहती है। ये कहावत उन पर लागू होती है जो बिना सोचे विचारे अनावश्यक  रुप से औरों की बातचीत के मध्य कूदते रहते हैं। जुबान को अनेक तरह की उपमाओं से भी नवाजने का प्रचलन है,जैसे तीखी जुबान,मीठी जुबान, प्यारी जुबान, सम्मोहित करने वाली जुबान,शहद भरी जुबान, जहरीली जुबान, नश्तर चलाने वाली जुबान, बात कतरने वाली जुबान आदि आदि।
    जहाँ तक जुबान  और तलवार की तुलना का प्रश्न है, तो दोनों ही अस्त्र हैं। दोनों ही तीक्ष्ण धार वाले  और परिणाम बदलने वाले हैं। दोनों की वार करने की और मारक क्षमता भी अपने आप में बेजोड़ होती है और दोनों से ही घाव बहुत गहरे लगने के साथ ही सबकुछ परिमार्जित करने में अव्वल हैं।बस तलवार का घाव दिखता है,जबकि जुबान का घाव अदृश्य रहता है।
     तलवार लौह धातु की बनी, वजन में  भारी होने के कारण बहुत गहरे तक घाव करने में सक्षम होती है।
     किन्तु, जुबान तलवार की तुलना में ज्यादा ताकतवर और ज्यादा गहरा घाव करने वाली बहुत ही तेज मीठी अथवा तीखी भी होती है। होने को तो जुबान वजन में बहुत ही हल्की और बिना हाड़-मांस की लचीली और पिलपिली सी होती है,परन्तु उसके शस्त्र कड़वे और कटु शब्दों के बने होतें हैं जिनके वार शत्रु को बहुत अधिक दूर रहकर भी हानि पहुंचाने में सक्षम होते हैं। इनका निशाना भी सधा हुआ और पक्का होता है, जो सीधे दिल में जाकर लगता है और शत्रु पीड़ा से तिलमिला और बौखला उठता है। यह इतना गहरा घाव करता है कि जीवनभर नहीं भरता। तलवार का घाव तो समय के गुजरने के साथ-साथ भर भी जाता है और कभी न कभी पूरी तरह ठीक भी हो जाता है परन्तु जुबान से लगाया गया घाव कभी नहीं भरता, चाहे कितना ही लम्बा समय गुजर जाए या लाख जतन कर लिए जाएं।  इस बात से शायद ही कोई सहमत न हो कि तलवार से कहीं ज्यादा घातक और तेज जुबान है। क्योंकि कई बार जुबान का वार इतना घातक होता है कि इसका घाव प्रत्यक्ष दिखाई न देने पर भी सामने वाले की जीवनलीला तक समाप्त कर देने का कारण बन जाता है। इसके अलावा तलवार सिर्फ घाव देती है लेकिन जुबान न दिखने वाले मारक घाव देने के साथ-साथ मरहम लगाकर शीतलता प्रदान करने का भी काम बखूबी कर सकती है जिसे कर पाना तलवार के वश की बात नहीं। वो तो केवल काटना और मार डालना ही कर सकती है जबकि जुबान मारना और बचाना दोनों कर सकती है। इस तरह यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जुबान तलवार से अधिक तेज होती है। जुबान का घाव न दिखने के बाद भी पीड़ि़त व्यक्ति के लिए नासूर बन जाता है और सिर्फ एक ही व्यक्ति नहीं व्यक्तियों, परिवार, समूह तक को प्रभावित कर सकने में सक्षम होता है। आ. बजरंग लाल केजड़ीवाल ( तिनसुकिया, असम ) के शब्दों में
"तलवार बड़ी घातक करती गहरे घाव तन पर,
जुबां हृदय विदिर्ण कर मारती तिल तिल कर।"

✍️ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
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©मौलिक, स्वरचित
12.
सीखें - घनाक्षरी लिखना

✍️ मनोज कुमार पुरोहित जी

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सीखें - घनाक्षरी लिखना

✍️ मनोज कुमार पुरोहित जी
सर्वप्रथम माँ शारदे को नमन, साहित्य संगम संस्थान को नमन।
आज का विषय स्वैच्छिक है, अर्थात आप स्वच्छन्द होकर लिखे, किन्तु विधा आजकल की सबसे लोकप्रिय छंद विधा है घनाक्षरी। घनाक्षरी छंद चार तुकांत चरणों का ऐसा छंद है जिसके प्रत्येक चरण में वर्णो की संख्या निश्चित होती है किंतु वर्णो का मातृभार निश्चित नहीं होता है। इन छंदों को वार्णिक छंद कहते हैं। इन छंदों की कोई निश्चित मापनी नहीं होती है। जैसा कि घनाक्षरी नाम से ही प्रतीत होता है इनमे घन यानी बादल के समान गेयता में गर्जन(भारीपन) होता है। इनमे एक निश्चित ली होती है जो अनुकरण से आती है। इन छंदों की लय को निर्धारण करने के लिए कुछ कल संयोजन के नियमो का उल्लेख किया जाता है। जिन शब्दों में दो वर्ण हो उन्हें द्विकल जिनमे टी वर्ण हो उन्हें त्रिकल मान कर चलें तो त्रिकल के बाद त्रिकल यदि रखे तो लय अच्छी आएगी(वैसे यहाँ कल शब्द का प्रयोग मात्र समझने के लिए हुआ है, कल मात्राओं में होता है)
घनाक्षरी के कई भेद है जिनमे सबसे लोकप्रिय है मनहरण घनाक्षरी। मनहरण घनाक्षरी 16,15 या 8,8,8,7 यति के साथ चरण होता है। कुल चरण होते हैं जो संतुकांत होते हैं।
उदाहरण

सुख दुख क्षण के है, चींटी तुल्य कण के है,
सच्चा नाम राम का है, भूल मत जाइए।

भली करे राम नाम, दुख में जो आता काम,
आप भी  सुबह शाम, बस रटे जाइए।

जगत भरोसा कर, फिरते जो दर-दर,
एक बार हृदय से, इसे आजमाइए।

मुझे पूर्ण विश्वास है, जिसकी जो भी आस है,
बिगड़े जो काम बने, देखते ही जाइए।

मनोज कुमार पुरोहित
अलीपुरद्वार, पश्चिम बंगाल

कृपया विषय और संस्थान के नाम के साथ #हेश टेग लगाना न भूलें।

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13.

कविता -
माँ मुझको दीदार करा दे
  (अजन्मी बेटी की आरजू )

माँ मुझको दीदार करा दे,
कैसा संसार है तेरा।
लगी थिरकने जब मैं अन्दर,
बाहर लगा ये कैसा मंजर,
अश्कों का आंखों में समन्दर,
रो-रो हाल बुरा है तेरा।
माँ मुझको दीदार करा दे,
कैसा संसार है तेरा।।
गर मैं कभी तेरे घर आऊँ,
खुशियों से आँगन महकाऊँ,
बेटी नहीं बेटा बन जाऊँ,
कभी साथ ना छोडूं तेरा।
माँ मुझको दीदार करा दे
कैसा संसार है तेरा।।
जिद ना कभी मैं ऐसी करती,
देख निगाहें तेरी डरती,
पर तुझपे दिल जान से मरती,
खेलती खेल घणेरा।
माँ मुझको दीदार करा दे,
कैसा संसार है तेरा।।
तेरी आँख में
आँसू देख ना पाऊँ,
हँस-हँस  कर तेरा
दिल बहलाऊँ,
पर अपने अश्क
रोक ना पाऊँ,
फिर टूट जाये दिल मेरा।
माँ मुझको दीदार करा दे,
कैसा संसार है तेरा।।
यूँ इतना मैं पढ लिख जाऊँ,
दूध तेरा ना कभी लजाऊँ,
नाम तेरा रोशन कर जाऊँ,
इक यही प्रण हो मेरा।
माँ मुझको दीदार करा दे
कैसा संसार है तेरा।।
शायद मेरी बात
समझ ना पायी,
और कौनसी दूँ मैं सफाई,
बरसों से प्राण मेरे
हरती आयी,
बता क्या कसूर है मेरा।
माँ मुझको दीदार करा दे
कैसा संसार है तेरा।।

✍शायर देव मेहरानियाँ
   अलवर राजस्थान
(शायर, कवि व गीतकार )
Mob - 7891640945

कोलफील्ड मिरर आसनसोल में प्रकाशित
06/06/2021 , रविवार
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjisSXeibRnuGe50234uIz65F3eoW7IeD8M5xGoxr7eeWYYC6-Pvx6Hb0rgT4GfNXw2EsLr-Fs09P1_C-qEcuO_OGb5kFe5DJ81S7uD3SP9qwX8JFu7lvU2XKdlh07HyBsH2t8Li_ZiM_I/s2048/CFM+HINDI+06.06.+2021+5.jpg
साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 26
https://online.fliphtml5.com/axiwx/ukdu/


साहित्य संगम संस्थान के पश्चिम बंगाल व असम इकाई - विश्व पर्यावरण दिवस पर  " काव्य पाठ " का विशेष आयोजन किया ।

साहित्य संगम संस्थान बंगाल इकाई में विश्व पर्यावरण दिवस पर  शनिवार 5 जून 2021 को "काव्य पाठ" का विशेष आयोजन रखा गया है । एवं असम इकाई में
विशेष आयोजन " वृक्षमित्र सम्मान " एक दिवसीय 05 जून 2021 शनिवार को  विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में वृक्षारोपण करते हुए स्वंय का फोटोग्राफ एवं अधिकतम चार पंक्तियां की प्रस्तुति करने के लिए आप सभी सम्मानित साहित्यकार आमंत्रित है , आ.  मनोज शर्मा जी विषय प्रदाता है एवं आ. अर्चना जायसवाल सरताज जी की करकमलों से विषय प्रवर्तन किया गया ।। साहित्य संगम संस्थान मार्गदर्शक , उत्तर प्रदेश इकाई अध्यक्ष आ. डॉ. राकेश सक्सेना महागुरुदेव का जन्मोत्सव भी मनाया गया ।  राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी ,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी, बंगाल इकाई उपाध्यक्ष , छंद गुरु  आ. मनोज कुमार पुरोहित जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी , आ. स्वाति पाण्डेय जी ,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी  , समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनायें । मंच का संचालन हरियाणा इकाई अध्यक्ष मंच संचालन  आ. विनोद वर्मा दुर्गेश जी किए ।

https://youtu.be/-gxVYTWJQqU

कोलफील्ड मिरर

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मुख्य मंच

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