साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 28, सोमवार , 07/06/2021

साहित्य एक नज़र 🌅



अंक - 28

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अंक - 27

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जय माँ सरस्वती

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 28



रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

अंक - 28
7 जून  2021

सोमवार
ज्येष्ठ कृष्ण 12 संवत 2078
पृष्ठ -  12
प्रमाण पत्र -  8 - 11
कुल पृष्ठ - 12

🏆 🌅 पुस्तक समीक्षा सम्मान पत्र  🌅 🏆

30. आ. रामकरण साहू " सजल " जी
( पुस्तक समीक्षा सम्मान पत्र - " गाँव का सोंधापन " )
🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆

31. आ. काजल चौधरी जी
32. आ. मनोज बाथरे चीचली  जी
33. आ. नेहा कुमारी चौधरी जी .


साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 28
Sahitya Ek Nazar
7 June 2021 ,  Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

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अंक - 25 से 27

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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा

मो - 6290640716



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कविता - 20(20)

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अंक - 29

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1.

साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई द्वारा आयोजित पहेली बूझो कार्यक्रम के परिणाम घोषित हुए ।

साहित्य एक नज़र 🌅 , सोमवार , 7 जून 2021

साहित्य संगम संस्थान हरियाणा इकाई - 4 जून 2021 पिता विषय पर वीडियो प्रतियोगिता हुई रहीं ।
पिता वीडियोज़ आयोजन पर आधारित ' बूझे तो जानें ' पहेली प्रतियोगिता में 6 जून 2021 , रविवार को आ. विनीता सिंह जी प्रथम व आ. वंदना भंसाली जी द्वितीय स्थान प्राप्त किए । इस कार्यक्रम का मुख्य आयोजक अध्यक्ष हरियाणा इकाई आदरणीय विनोद वर्मा दुर्गेश जी आयोजक डॉ दवीना  अमर ठकराल जी , अलंकरण प्रमुख डॉ अनीता राजपाल जी डॉ दवीना अमर ठकराल जी महागुरुदेव डॉ. राकेश सक्सेना जी (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश इकाई ) । राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह मंत्र जी , कार्यकारी अध्यक्ष आ. कुमार रोहित रोज़ जी , सह अध्यक्ष आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, संयोजिका आ. संगीता मिश्रा जी है ।,  पश्चिम बंगाल इकाई अध्यक्षा आ. कलावती कर्वा जी ,  राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी व पश्चिम बंगाल इकाई सचिव रोशन कुमार झा  ,आ. अर्चना जायसवाल जी , अलंकरण कर्ता आ. स्वाति जैसलमेरिया जी, आ. मनोज कुमार पुरोहित जी,आ. रजनी हरीश , आ. रंजना बिनानी जी, आ. सुनीता मुखर्जी , आ. मधु भूतड़ा 'अक्षरा' जी , आ. रीतु गुलाटी जी ,आ. भारत भूषण पाठक जी ,  समस्त सम्मानित पदाधिकारियों व साहित्यकारों ने  भाग लेकर कार्यक्रम को सफल बनाएं ।।

हरियाणा इकाई

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2.
घन केश पाश बदरा से लहराये
चुनरी से अपने अधरों को छुपाये।
दिनकर से धधकतें होंठ तुम्हारे
बैठी आँखों में तुम शरारत छुपाये।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर
9753877785
3.
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅

नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक : - 07/06/2021 से 09/06/2021
दिवस :- सोमवार से बुधवार
विषय :- प्रेम के कितने रंग
विधा :- छंदमुक्त कविता
विषय प्रदाता :- आ. मनोज कुमार पुरोहित जी
विषय प्रवर्तक :- आ. स्वाति पाण्डेय जी

माँ सरस्वती साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई को नमन 🙏 करते हुए आप सभी सम्मानित साहित्यकारों को सादर प्रणाम । आज की विषय और विधा बहुत ही शानदार है , विषय प्रदाता आ. मनोज कुमार पुरोहित जी को धन्यवाद सह सादर आभार , एवं समस्त पदाधिकारियों को भी धन्यवाद । आ.  स्वाति पाण्डेय जी की व्यस्तता के कारण हमें विषय प्रवर्तन करने का अवसर मिला । प्रेम के कितने रंग पर
छंदमुक्त कविता के माध्यम से अपनी भाव को प्रकट कीजिए -

समाज में आधुनिक प्रेम के है कितने रंग ,
सुबह किसी और शाम में किसी और के संग ।।
प्रेम करने का सभी का है अलग- अलग-अलग ढंग ,
प्रेम स्वतंत्र है इसे पाने के लिए करना नहीं चाहिए तंग ।।

ऐसा हाल हो गये है समाज में ! अब कहाँ है सीता , उर्वशी , देवयानी , प्रभु श्रीराम , कवि घनानंद
औरों की तरह प्रेम निभाने वाले ।

अतः आप सभी सम्मानित साहित्यकार आमंत्रित है , अपनी मन की भावनाओं को प्रेम के कितने रंग पर
छंदमुक्त कविता के माध्यम से  07/06/2021 से 09/06/2021 , सोमवार से बुधवार तक प्रेषित कीजिए । एवं अन्य रचनाकारों के रचना को पढ़कर सटीक टिप्पणी करके रचनाकारों को प्रोत्साहित कीजिए ।।

जय हिन्द , जय हिन्दी
धन्यवाद सह सादर आभार 🙏💐

आपका अपना
रोशन कुमार झा

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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 28
Sahitya Ek Nazar
7 June 2021 ,  Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
मो - 6290640716

4.

श्री रामकरण साहू " सजल " जी

पुस्तक हेतु सम्पर्क -

प्रकाशक
1. लोकोदय प्रकाशन प्रा. लि.
65/44 शंकरपुरी छितवापुर रोड़
लखनऊ ( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नम्बर - 9076633657

लेखक
2. रामकरण साहू "सजल"
कमासिन रोड़ नील कंठ पेट्रोल
पम्प के पास, ग्राम-पोस्ट बबेरू
जनपद- बाँदा ( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नम्बर - 8004239966

5.

अंक - 28

नमन मंच
शीर्षक-

इस्तेमाल किया मुझे

खिलौने की तरह इस्तेमाल किया मुझे
दर्द की दौलत से मालामाल किया मुझे

ग़लती मेरी थी जो बेपनाह मोहब्बत की
तभी तो पागलों जैसा बेहाल किया मुझे

उसकी आँख में एक आंसूं न आने दिया
मैं रोता हूँ ख़ुद पर किस हाल किया मुझे

गुमाँ होता है अपने इश्क़ पे मुझको अब
झूठी चाहत देकर तूने निहाल किया मुझे

कहीं का न छोड़ा तूने मुझे बेवफा सचिन
बर्बादी की एक जिंदा मिसाल किया मुझे

✍️ सचिन गोयल
गन्नौर शहर
सोनीपत हरियाणा
Insta@,,
Burning_tears_797
6.
मौसम बदल जाएं

मौसम वाला प्रभाव,पड़ता है हर मन
हम भी उदास, कुछ, मौसम उदास है।
बरस रहा जो जल,मन हो गया विकल
तन में बढ़ी जलन,मिलन की प्यास है।
मौसम में हो उमस,लगे सब ही नीरस
अलसाए भले मन,अटल विश्वास है।
मौसम बदल जाएं, इसमें न भरमाएं
ढूंढ़ते रहे उसे जो,खुशी आसपास है।।

मौसम में हो घुटन,घट जाए ऑक्सीजन,
जनजीवन में ऐसा,हो न कभी रामजी।
मौसम न हो उदास, ऐसा करिए प्रयास,
इसके लिए ही मित्र, करिएगा काम जी।
करके पौधारोपण,उनका करो पोषण,
सुखद पर्यावरण,होगा धरा धाम जी।
मौसम में ये उदासी, रहेगी नहीं जरा सी,
खुशनुमा ये  मौसम, हो सुबह शाम जी।
* डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर,उत्तर प्रदेश
7.
* मैं आज की स्त्री हूँ *

हाँ मैं आज की स्त्री हूँ!
तुम मुझे चाहे जैसे रखो,
मैं हर हाल में रह लूंगी।
मुझसे ही तुम्हारा अस्तित्व है,
मुझसे ही तुम्हारी पहचान है।
भले मुझे निचले पायदान पर रखो,
अब मुझे सीढ़ियाँ चढ़नी आती हैं,
मुझे अपनी मंजिल पाना आता है।
हर असफलता को पीछे छोड़कर,
अब मैं सफलता पाना जानती हूँ।
बचपन में जब बीमार हुई थी तब,
सबको यही कहते हुए सुना था,
बिटिया है देखना यह बच जायेगी,
वह भी मेरी संघर्ष क्षमता ही थी।
देखो मुझमें भी अब हर दक्षता है,
अब सारे कटु अनुभवों के साथ भी,
मैं अच्छे से जीना जानती हूँ।
जो तुम मेरे लिए सुनते आये हो,
अब वह मेरा बीता हुआ अतीत है,
अब मेरा भविष्य उज्ज्वल है।
मिले हुए थोड़े से अवसर को भी,
सम्भावना में बदलना जानती हूँ,
मैं इतिहास रचना भी जानती हूँ।
जब मैं प्रसव पीड़ा सह सकती हूँ,
तब कौन सा दर्द मुझे तोड़ सकता है,
मैं हर वेदना से पार पाना जानती हूँ।
अब मुझे पुरूषों जैसे दिखने की,
या पुरूष बनने की इच्छा नहीं है।
मैं स्त्री हूँ स्त्री ही रहना भी चाहती हूँ,
मैं अब स्त्रीत्व पर गर्व करना चाहती हूँ,
मैं स्त्री हूँ तो भी अब मैं हार नहीं हूँ,
मैं स्त्री हूँ तो भी अब मैं जीत ही हूँ।

            ✍️  भारतेन्द्र त्रिपाठी *
                    * शिक्षक *
    * प्रयागराज * * उत्तर प्रदेश *
bhartendra07@gmail.com

नाम -भारतेंद्र त्रिपाठी
पिता -स्व.बद्री प्रसाद त्रिपाठी
माता -स्व.विजयलक्ष्मी त्रिपाठी
जन्मस्थान -प्रयागराज
शिक्षा -एम.ए.,बी.एड.
सम्प्रति -शिक्षक व स्वतंत्र लेखन
सम्मान -प्रयागरत्न सम्मान, युवा हस्ताक्षर पुरस्कार
पता या संपर्क -ग्राम व पोस्ट देवनहरी, प्रयागराज, उ.प्र.221507
मोबा.9450126837
Email-bhartendra07@gmail.com

8.
एक स्वनिर्मित गीत आपके समक्ष प्रस्तुत किया है

पर्यावरण संरक्षण गीत

पर्यावरण हमारा,
हम सबको वो प्यारा।
पर्यावरण हो शुद्ध अगर
तो जीवन सुखी हमारा।
हवा शुद्ध नहीं शुद्ध नहीं जल।
रोज करें पेड़ों का कतल हम ।
वृक्षों के कटने से ही तो,
दुखी हुआ जग सारा।
पर्यावरण हमारा ...
वृक्ष नहीं यह तो है देवा ।
करते हैं हम सब की सेवा ।
जड़ पत्ती फल-फूल आदि सब,
आता काम है सारा ।
पर्यावरण हमारा ....
ध्वनि प्रदूषण हम फैलाते।
वायु में हम जहर मिलाते ।
उल्टे करते काम प्रभु का,
कैसे मिले सहारा।
पर्यावरण हमारा ...
औषध मिलती है पेडों से ।
छुटकारा मिलता रोगों से ।
दारू मांस नशे में बन गया,
जीवन नरक हमारा।
पर्यावरण हमारा ..
मिलकर वृक्षारोपण करिए ।
पर्यावरण को शुद्ध बनाइए ।
कहे महेश वृक्षों की रक्षा,
है कर्तव्य हमारा।
पर्यावरण हमारा,
हम सबको वो प्यारा।
पर्यावरण हो शुद्ध अगर
तो जीवन सुखी हमारा।

✍️ लेखक , कवि
   महेश चन्द सोनी 'आर्य'
पता - करौली ( राजस्थान )
______________________________

जिसे सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇

https://youtu.be/SxzQFuXCJxY

लेखक &कवि
   महेश चन्द सोनी 'आर्य'
पता - करौली(राजस्थान)

9.

धन्यवाद🇮🇳🙏

||ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः||
परिवार

परिवार की महिमा निराली,
इससे शाश्वत सुख है मिलता |
माता जी का नेह निर्मल,
औ पिता का प्यार मिलता |
दादा दादी भाई बहनें,
प्यार से सब मिलके रहते |
सब पदारथ इस जगत के,
कुटुंब में रह सब हैं पाते ||१||
सुख सभी मिल बाँटते हैं,
दुःख में भी वे एक रहते |
त्योहारों पै धूम मचाते,
रीतियों को भी निभाते |
रीति के धागे में बँधकर,
एकता का पाठ पढ़ते |
परिवार के वे अंग रहकर,
इसकी हैं वे शान बढ़ाते ||२||
शिक्षा का आरंभ यहाँ से,
नीति का सब पाठ पढ़ते |
सहिष्णुता परिवार में ही,
जन सभी रहकर हैं पाते |
अंब आदि गुरु है होती,
अपनी भाषा है सिखाती |
भाषा ऐसी मूरि है जो,
उन्नति का मग दिखाती ||३||
अनुभवों का कोष मिलता,
द्वार उन्नतियों का खुलता |
संस्कार सलिला सतत् बहती,
इसमें कुल का नर नहाता |
अपनी थाती पुष्ट करके,
निखिल जग को है बताता |
अचल ख्याति इस जगत में,
परिवार ही हमको दिलाता ||४||

✍️ गणेश चन्द्र केष्टवाल
मगनपुर किशनपुर
कोटद्वार गढ़वाल उत्तराखंड
10.

डॉ 0 प्रमोद शर्मा प्रेम नजीबाबाद बिजनौर

                  ग़ज़ल

मतलब से ही निभाना  चल रहा है
मुहब्बत का जमाना  चल रहा है | 1
किसी दुश्मन की क्या है जरूरत
दीये से खुद  घराना जल रहा है | 2
भले दिल मे गमो का हो समन्दर
बस होठो  पर तराना चल रहा है | 3
हर दिल आज बंजर सी जमी है
ये  कैसा ताना  बाना चल  रहा है | 4
हवा पानी नही  अब पहले जैसे
मगर  झूठा  फसाना  चल रहा है | 5
हवस  को ही  मुहब्बत मान बैठे
इज्जत  का  लुटाना  चल रहा है | 6
लिबासो  से  लगी है  शर्म  आने
फैशन का ये  बहाना चल रहा है | 7
किसे किस से यहाँ है लेना देना
अच्छा  लूट  खाना   चल रहा है | 8
हवा मे उडके भी तुम क्या करोगे
अच्छा है आबो दाना चल रहा है | 9
कहा था प्रेम तुमसे तुम न माने
तुम्हारा सच निभाना चल रहा है | 10

डॉ. प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद बिजनौर
11.

मंच को नमन
शीर्षक- मैं नहीं चाहती....

मैं नहीं चाहती,
परिस्थितियों से हारना,
और विचारों में विजेता भी|

बस मैं नहीं चाहती,
जीवन से हार मान करूँ,
मृत्यु को आत्मसमर्पण|

मैं नहीं चाहती,
मृत्यु से डर कर करूँ,
जीवन में दासता कबूल|

मैं नहीं चाहती,
सिर्फ अपने जीने के लिए,
मैं करूँ दूसरे का शोषण|

इंसानों की दुनिया में,
आने के साथ ही,
प्रेम दुनिया में आया|

मैं चाहती हूँ समर्पण,
मानवीयता के प्रति,
मुझे जीवन से प्यार है|

.... ✍️ प्रेम लता कोहली

12.
# नमन मंच 
दिनांक 06-06-21
🌹🌹🌹🌹🌹🌹

" ऐसा ही आजाद हूँ "

कलम कहीं तू
सच ना बोले,
यह सोचकर
परेशान हूँ l
गुलामी की
आदत वाला,
सिर्फ नाम का
खुशहाल हूँ l
कचड़े में छूपे
भविष्य का ,
मैं भी एक
गुनाहगार हूँ l 
नंगे- भुखे
नौनिहाल को ,
हर पल निहारता
एक लाचार हूँ l
शिक्षा के
बाजारीकरण का ,
मैं भी एक शिकार हूँ l
मिटती सभ्यता-
संस्कृति का ,
दम तोड़ता
पहरेदार हूँ l
बदलते शोषक के
चेहरे से अनभिज्ञ,
एक शोषित
परिवार हूँ l
पिंजड़े में
कैद बुलबुल के ,
आजादी के
तराने वाला सार हूँ l
चुप कर री कलम,
शायद ,मैं ऐसा
ही आजाद हूँ l

✍️ भूपेन्द्र कुमार भूपी
       नई दिल्ली
13.

फौजी की पत्नी
✍️ भगवती सक्सेना गौड़

सबने फौजी की तो बहुत सी कहानी सुनी होगी आज मैं एक फौजी की पत्नी के दिल की नगरी का हाल लिखूंगी । अनुराधा अपने फौजी पति का इंतेज़ार कर रही थी, फौजी तो सरहद पर ड्यूटी देता है पर फौजी की पत्नी घर मे रहते हुए भी हर क्षण डर और  आशंकाओं से घिरी रहती है । आज पूरे सात आठ महीनों बाद मधुर चंद दिनों की छुट्टी पर घर आने वाला था । आखिर वह क्षण भी आया , जिसका इंतेज़ार था वो उसकी बाहों में था । दोनों मस्ती से छुट्टियां बीता रहे थे पर जब भी फ़ोन की घंटी बजती, अनु के चेहरे पर तनाव घिर जाता था, दिल धड़क जाता था कही कोई इमरजेंसी के कारण वापस तो नही बुला रहे ।
बड़े प्यार से मधुर कह रहा था ,"तू रोटी बना, आज सब्जी मैं बनाऊंगा " । अनु देख रही थी कितना खुश् लग रहा था हमेशा ग्रनेड और बंदूक थामते हाथ आज प्याज टमाटर काट रहे थे । समय अपनी गति से बीत गया, आज रात उसे वापस जाना था ।"बैग की बाहर वाली चेन में टिफिन रखा है, रास्ते में खा लेना याद करके, अबकी बार भूले तो लड़ाई हो जायेगी हम दोनों की" उसने गुस्से वाले अंदाज में बोला फिर अलमारी से कपड़े निकाल के सुटकेश में रखते हुये टॉवल को लम्बी सांस में सूंघा ओर उसको साइड में रखते हुये
"ये आपका यूज किया हुआ टॉवल मैं रखूंगी, आपकी ख़ुश्बू आती रहेगी । नया टॉवल रख दिया है सबसे नीचे वाली तह में निकाल लेना जाके । पैकिंग खत्म हो गयी थी पर बैग को छोड़ने को मन नही कर रहा था , जैसे वो चाहती है उसे रोकना ,पर रोक भी नही सकती , इधर उधर तेजी से घूम रही है जैसे कुछ खोया है ओर किसी को बता भी नही सकती! फिर अनु बहते पानी के नीचे अपने आँसू बहाती रही, फौजी की बीबी सामने खुल कर रो भी नहीं सकती , जानती थी उसके सामने रो पड़ी तो वो भी कमज़ोर पड़ जाएगा । दोनों ने भगवान् को प्रणाम किया, अनु की मांग में सिंदूर भर और फिर नज़र भर देख कर फौजी चल पड़ा अपनी डगर पर ।  एक तरफ पत्नी का प्यार था दूसरी तरफ देश के प्रति कर्तव्य भावना , इस समय दोनों एक दूसरे पर हावी हो रही थी । मधुर जब भी मौक़ा मिलता फ़ोन जरूर करता था, पर आज 15 दिन हो गए उसका कोई फ़ोन नही आया, अनु परेशान थी, गले मे कुछ फसा था, अंतर में अकुलाहट थी, पचासों बार फ़ोन उठाकर देखा, सात बजे तक चैन से बैठ नहीं पाई, छाती में सांस घुट सी रही थी, एक तूफान से आता महसूस हो रहा था। तभी फ़ोन की रिंग बजी, दौड़ कर फ़ोन उठाया, उसकी आवाज़ सुनकर चैन की सांस ली, और लगा मन का तूफ़ान गुजर गया । वह चैन अभी तो है, कितने घंटे बरकरार रहेगा पता नहीं, अगले ही पल क्या होगा, फौजी की पत्नी नहीं जानती.....

✍️ भगवती सक्सेना गौड़,
बैंगलोर

स्वरचित

14.
मुल्क अपना अमन चाहता है
सुगंधित पुष्प महकना चाहता है
नफरत से  बीज ना उगाओ तुम
मुल्क अपना अब सुकून चाहता है
तेजाब से न सींचो  क्यारियों को
अब ये खेत लह लहराना चाहता है
कसूर पुष्पों का नहीं कीड़ों का देखो
बीमार गुलशन इलाज दवा चाहता है
मुल्क अपना अमन चाहता है
सुगंधित पुष्प महकना चाहता है
आजाद परिंदा है जबरन से कैद यहां
अब ये परिंदा आजाद उड़ना चाहता हैं
हुकूमत में कानून तो जायज है
पर मुल्क हिफाजत रोटी चाहता है,
सबका जीवन हवा सूर्य पानी है
पर ये मुल्क बेचना नहीं चाहता है
रात की चांदनी अंधेरी रोशनी है
ये मुल्क रोशनी रोशनी चाहता है
अब मुल्क अपना अमन चाहता है
सुगंधित पुष्प महकना चाहता है।

लेखक– ✍️ कवि धीरेंद्र सिंह नागा
( ग्राम -जवई ,तिल्हापुर,
कौशांबी ) उत्तर प्रदेश :
फोटो नहीं

15.

नमन मंच
शीर्षक:

अतीत के पन्नें

आज भी अतीत के
पन्नें पलटती हूँ तो...
मेरे पापा मुझे आज
भी बहुत याद आते हैं।
मेरे लिए धरती पर
मेरे भगवान हुआ करते थे
मेरे परिवार का आधार
मेरे पापा हुआ करते थे
उनसे ही घर में खुशियों
के अंबार हुआ करते थे
मेरी तो हर परेशानी में
वो आगे खड़े हुए करते थे।
आज भी अतीत के
पन्नें पलटती हूँ तो...
मेरे पापा मुझें आज
भी बहुत याद आते हैं।
दिन में खुशियों की शुरुआत
उनसे ही हुआ करती थी
कोई भी होती दिक्कत तो
उनको बताया करती थी
और उनके प्यार की छाया को
सदा साथ पाया करती थी
उनके स्नेह तले हरदम
खुशियाँ मेरे पास रहा करती थी।
आज भी अतीत के
पन्नें पलटती हूँ तो...
मेरे पापा मुझें आज
भी बहुत याद आते हैं।
आज न जाने कहाँ
खो गए हैं वो दिन
भूल नहीं पाती आपका
हमें छोड़कर जाने वाला दिन
कभी तो देखनें आओ
बेटी को चुन लो बस एक दिन
आपकी गोदी में सिर रख
रोयेगी आपकी बेटी उस दिन
कितना अभागा हुआ
मेरे लिए वो १६ दिसंबर वाला दिन।
आज भी अतीत के पन्नें पलटती हूँ तो...
मेरे पापा मुझें आज
भी बहुत याद आते हैं।
सोच कर आज भी सिहर
उठती हैं बेटी आपकी
क्या जाते वक्त भी बार याद
नहीं आई बेटी आपकी
न जानें क्यों आज भी रह
नहीं पाती हैं बेटी आपकी
आज भी हरपल याद करती
हैं आपको बेटी आपकी।
आज भी अतीत के
पन्नें पलटती हूँ तो...
मेरे पापा मुझें आज
भी बहुत याद आते हैं।

✍️ डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद

घोषणा:स्वरचित

16.

माँ आस है विश्वास है,
माँ बच्चों को देती स्वांस है।
माँ हर घर की उल्लास है,
माँ कभी बहु तो कभी सास है।।
माँ प्यार है उत्साह है उमंग है,
माँ की गोद बच्चों का पलंग है।
माँ दया है करुणा है सुसंग है,
माँ घर  घर की सत्संग है।।
माँ सुख, और सम्पदा है,
माँ से कोई भी न जुदा है।
माँ के न होने पर विपदा है,
माँ पर तो भगवान भी फिदा है।।
माँ सृष्टि,दृष्टि और विस्तार है,
माँ हर जीव का सद संसार है।
माँ स्नेह है प्रेम है और प्यार है,
माँ जीवन जगत का व्यवहार है।।
माँ धेय है ज्ञेय है ज्ञान है,
माँ जीव का प्रथम विज्ञान है।
माँ हर समाज का सम्मान है,
माँ से बड़ा न कोई भगवान हैं।

✍️ डॉ. जनार्दनप्रसादकैरवान
प्रभारी प्रधानाचार्य
श्री मुनीश्वर वेदाङ्ग महाविद्यालय
ऋषिकेश उत्तराखंड

17.

"" इंतजार "

कर रहे हैं हम

इंतजार

वर्षा के आगमन का

जिससे मिले

हमारे मन को

तपिश से निजात

और

हो जाए

हमारा मन

थोड़ा सा ठंडा

क्योंकि

अब बहुत
बेचैनी होती है

तपिश से

चाहता है मन अब

थोड़ा सा सुकून

ठंड के एहसास का।।

✍️  मनोज बाथरे चीचली
जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश


साहित्य एक नज़र 🌅



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