साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 29 , मंगलवार , 08/06/2021

साहित्य एक नज़र 🌅


अंक - 29

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जय माँ सरस्वती

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 29

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

मो - 6290640716
🌅🗺️🌍
विश्व महासागर दिवस

अंक - 29
8 जून  2021

मंगलवार
ज्येष्ठ कृष्ण 13 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 8 - 17
कुल पृष्ठ - 18

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆

34. आ. सरिता त्रिपाठी ' मानसी ' जी
35. आ. प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान जी
36. आ. ज्योति झा जी
37. आ. देवप्रिया ' अमर ' तिवारी  जी , ( अंक - 21)
38. आ. अजय कुमार झा जी
39. आ. मधु खन्ना जी , ( अंक - 20 )
40. आ. वीणा सिन्हा , ( अंक - 19 )
41. आ.  वीरेंद्र सागर जी
42. आ. डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल ' जी
43. आ. गणेश चन्द्र केष्टवाल जी



साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 29
Sahitya Ek Nazar
8 June 2021 ,  Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

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अंक - 23
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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा

मो - 6290640716

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कविता - 20(20)

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1.
श्री रामकरण साहू "सजल" जी का कविता संग्रह "गाँव का सोंधापन" पुस्तक का समीक्षा किया गया ।

श्री रामकरण साहू "सजल" जी का कविता संग्रह "गाँव का सोंधापन" पुस्तक का समीक्षा साहित्य एक नज़र के सह संपादक/ समीक्षक आ. प्रमोद ठाकुर जी ने किया । आप सभी सम्मानित साहित्य प्रेमियों से आग्रह है एक बार आ.  रामकरण साहू "सजल" जी का कविता संग्रह "गाँव का सोंधापन" पुस्तक का अध्ययन जरूर करें ।

2.
प्रकाशक -

सरोकार प्रकाशन
30 अभिनव काकड़ा मार्केट,
अयोध्या बायपास,
भोपाल ( मध्यप्रदेश ) - 462041
मोबाइल नम्बर - 9993974799

मैं सरोकार प्रकाशन के बारें में सिर्फ इतना ही कहूँगा। कि जिस तरह हीरे की खदानों से खोज कर एक-एक हीरा निकाला जाता है।उसी तरह सरोकार प्रकाशन भी साहित्य के नायाब हीरों को खोज कर निकलता है।जिसकी लेखनी की सृजनता के एक-एक शब्द की चमक से पूरे समाज को एक नयी रोशनी मिलती हैं। ठीक वैसे ही सरोकार प्रकाशन ने एक ऐसा नायाब हीरा खोज कर निकाल जिसकी चमक पूरे हिंदुस्तान को रोशन करेगी और वो है अद्भुत साहित्यकार श्री रामकरण साहू "सजल" उनकी कलम से निकले शब्दों के मोती जिन्हें शब्दमाला में पिरोकर उन्होंने जन्म दिया एक महान कविता संग्रह "चाँद दागी हो गया"  जिसकी समीक्षा का आज मुझे सौभाग्य प्राप्त  हुआ।
3.

बहती मानवता - व्यंग्य ✍️ कुमार रोहित रोज जी

              मानव सबसे अनूठा थलचर है। जिसके पास विद्या और ज्ञान का अथाह भंडार है। जिज्ञासा और असंतोष ने आविष्कारों की झड़ी लगा रखी है। जलचर और नभचर दोनों थलचर के कई कारनामें देखकर भौचक्कें हैं। स्वयं थलचर भी निज प्रवृति पर किंकर्तव्यविमूढ़ है। दया प्रेम करुणा सद्भाव सहयोग परिश्रम अनुशासन तप साधना साधारणीकरण उचित अनुचित का बोध इत्यादि जैसे विरल भाव ही उसे मानव सिद्ध करते हैं। इन्हीं भावों के कारण मानव सभी जीवों में अलग पहचान रखता है।
             समय गतिमान व परिवर्तनशील है...समय के साथ मानव की भावनाएं भी परिवर्तित हुईं है यह सर्वविदित है। हर वस्तु को पाने की भूख और होड़ ने सबको पीछे छोड़ दिया है। लालच घृणा ईर्ष्या जलन द्वेष आदि दुर्भाव सारे सद्भावों का वध कर रहे हैं। मानव जीवन के कुरुक्षेत्र में अर्जुन भीम युधिष्ठिर नकुल सहदेव अकेले दुर्योधन से परास्त दिखाई दे रहे हैं। चक्रधारी कृष्ण का सुदर्शन शायद परशुराम जी ने वापस ले लिया है। पावन गीता उपदेश की मुनादी तो करती है मगर मानव को सिर्फ स्वार्थ सिद्धि की बातें ही सुनाई देती हैं। मानव को तृष्णा ने अँधा अवश्य किया है किंतु लालच रूपी लक्ष्य देखने की शक्ति संजय की दिव्यदृष्टि को भी मात देती है। द्रोपदी हर चौराहे पर चीख रही हैं उसका चीर दुशासन बेखौफ खींच रहा है... समाज भीष्म बना मौन है।
           गाँधी जी के तीन बंदर अभिधा लक्षणा को छोडकर व्यंजना में उछल कूद कर रहे हैं। बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो इन तीनों वाक्यों से 'मत' लुप्त प्रजाति की भांति हो चुका है। वैसे भी मत से ही मति बना है जिसके दर्शन ईद के चाँद सरीखे हो गये हैं। 'सबको सन्मति दे भगवान'- गांधी जी ने यह भजन न जाने किस मन अवस्था में लिखा था। सुना व पढा है कि गांधी जी एक उच्च कोटि के दार्शनिक थे - मगर मानव की वर्तमान अवस्था ने इस बात को कटघरे में खडा कर दिया है।
          मानव मिट्टी का पुतला जरूर है मगर हृदय पाषाण का बन गया है। इसलिए इंसानियत मानवता सहृदयता सारे मूर्छित हैं। अब हनुमान जी का भी पता नहीं किस कुटी में साधना कर रहें हैं वर्ना संजीवनी ही ला देते। मान मर्यादा कर्तव्यपरायणता वचन बद्धता धर्म इत्यादि सभी वनवासी हैं। मानव केवल निज लाभ की खोज में तल्लीन है। इसके लिए चाहे उसे किसी भी संबध को तोडना पड़े या किसी भी परीक्षा से गुजरना पडे। समष्टिवाद पर व्यष्टिवाद हावी है। आश्चर्य की बात तो यह है कि मानव मानव को नौंच रहा है। चील गिद्ध कौवे मानव के कारनामे देखकर खुद के अस्तित्व पर शंका कर रहे हैं। जानवरों में इंसानियत के गुण देखकर विज्ञान भी हतप्रभ है।
           सामान्य रूप से देखें तो अर्थ ने ही अनर्थ किया है। जहां सबसे ज्यादा है पैसा है वहां मानवता का ह्रास नियम लागू हो जाता है। अर्थशास्त्रियों ने भी इसका जिक्र कहीं नहीं किया। वे भी सिर्फ मांग और आपूर्ति पर ही अटके रहे। राजनेता सफेद परिधान पहनकर जितने काले कारनामे करते हैं इसका आंकलन मुझ जैसा बुद्धिहीन प्राणी नहीं कर सकता। कफन तक से भी अपना लाभांश ले लेना इनकी विशेष अर्हता में शामिल है। ईश्वर ने डाक्टर को जीवन बचाने के लिए भेजा है आज के आंकडे बताते हैं कि ये भगवान मुर्दे से भी अपनी फीस मांग लेते हैं जिसे इनकी व्यवसाय के प्रति इमानदारी...खैर जो कहो।
           पहाड़ों की छाती से निकलता पानी कितना निर्मल और पावन होता है। जैसे जैसे वह आगे बढता है अपनी निर्मलता को खोता जाता है। रास्ते में न जाने कितने अवशेष रूपी कथानक नदी की कहानी को अपने में विलीन कर लेते हैं। ऐसे ही अनगिनत सबूत पुख्ता करते हैं कि मानव संवेदनशील से असंवेदनशील हो गया है। अब केवल साहित्यकारों से एक उम्मीद है कि ये मान मर्यादा और मानवता को सहेजे और संवेदना की तख्ती पर कुछ ऐसा सृजन करते रहे जिसे पढकर समाज में मानवता और इंसानियत फिर से शंखनाद करने लगे... वर्ना आर्तनाद सब कुछ नष्ट करता जा रहा है।

@✍️ कुमार रोहित रोज जी
कार्यकारी अध्यक्ष
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली
4.

कविता - मातृभूमि

दर्द ए कशिस' की वाहिनी है।
सब की, जीवनदायिनी है।।
त्रिलोकी ने भी, ली थी पनाह,
यहां आकर, तेरे दामन में।
हसीं, बहुत लगती हमको'
अल्हड़ अठखेलियाँ ,तेरे आंगन में।।
छुपा लिया था तूने,
गैरों को अपने आगोश में।
देखें जो जख्म तेरे दामन के,
मन भर जाता है, रोष में।।
गोरों तक के दिये दर्द भी,
तूने हँसकर झेले हैं।
डच, कुषाण,और पुर्तगाली,
तेरे आँचल से खेले हैं।। 
हर रोज देखती है तू सिसकते,
बेबस लाचार, अभागिन को।
कोई झोंक देती ज्वाला में,
क्या,माफ करेगी, उस नागिन को।।
हैं कितने उपकार तेरे,
कैसे हम, कर्ज चुकाएंगे।
याद करेंगे जब-जब तुझको,
अश्क, छलक कर आएँगे।
लहुलूहान हो गया, दामन तेरा,
दर्द का कोई छोर नहीं ।
तेरे ही तुझको, जख्मी करते
दूजे कोई, और नहीं।।
कितने जख्म, उभर आये,
आखिर कब तक, सहना होगा।
लगे फिसलती जान हाथ से,
घुट घुट कर ,अब मरना होगा।।

✍ शायर देव मेहरानियां
         अलवर, राजस्थान
      (शायर, कवि व गीतकार)
Mob - 7891640945

5.
" महासागर है कष्ट में "

अथाह जल समेटकर,
सभी को ये बता रहा।
बढ़े चलो सफर में तुम,
मुकाम पास आ रहा।
प्रकृति को सहेजकर,
विनम्रता दिखा रहा।
जीवन आधार बन,
महानता सिखा रहा।
जैव की अनेकता को,
खुद में समेट कर।
प्राप्त करें लक्ष्य हम,
हमको बतला रहा।
फैल रहे ताप को,
खुद ही ये सोखकर।
घर को हमारे देखो,
कष्ट से बचा रहा।
मानव बन जन्म लिया,
फिर भी क्यों मौन हैं।
महासागर है कष्ट में,
देखो सब गौण हैं।
आज गर संभले नहीं,
बहुत देर हो जाएगी।
अपनी करनी ही हमें,
बहुत बहुत रुलाएगी।
चलो आज प्रण लें,
सभी मिल जुल हम।
महासागर बचाने को,
प्रदूषण को करें कम।
चलो आज प्रण लें,
सभी मिल जुल हम।।(इति)
   
               
✍️   केशव कुमार मिश्रा,
अधिवक्ता व्यवहार न्यायालय दरभंगा।
मधुबनी।
🌅🗺️🌍
विश्व महासागर दिवस
6.
विषय- प्रेम

बेरहम दुनियां के
खुशनसीब सितारे
मेरे दिल के हज़ार
टुकड़े करने वाले
मैं तेरे प्रेम में आज भी वहीं
हूँ जहाँ तूने मुझे छोड़ा था,,
तुमने मुझे सहारा देकर
बेसहारा कर दिया था,
मैं तो तेरे प्रेम में हर पल
, रातों दिन तड़पती थी,,
तेरी कही अनकही बातें
हर पल याद करती थी,,
तेरे प्यार में छोड़ना
चाहा सारा जहाँ,,
तुम ही मेरे हमदम
मेरी सारी दुनिया जहाँ,,
तेरे प्रेम के
एहसास में जी रहे है
तेरे प्रेम की खुशबू
फ़िज़ाओं में है
मैंने तुझसे प्यार किया
ऐसे जैसे चंदा
करता चांदनी से,,,,
बादल करता बरसात से,,,
धूप प्रेम करती
रेत के कणों से,,
मछलियों प्रेम
करती जल से,,
भोरे प्रेम करते पुष्पों से,,
पर तूने तो मेरे प्रेम
को मज़ाक बना दिया,
प्रेम के बदले जीवन
भर की रुषवाईयाँ दे दिया,,
मजबूर हूँ इतनी मैं
बददुआ दे नहीं सकती,,,
मैं आज भी तुझसे
ही प्यार हूँ करती,,
तेरे प्यार ने मुझको जीवन
का संघर्ष सीखा दिया,,
तेरे खातिर जिन अपनो
को छोड़ा उनसे
प्रेम सिखा दिया,,,
बेरहम दुनिया के
खुशनसीब सितारे,,,,,,

  ✍️  प्रज्ञा शर्मा
    प्रयागराज

7.

#दिनांक-07/06/2021
#विषय-

विवश कर दे लेखनी तो ....

विवश कर दे लेखनी तो
समझ लेना कवि हृदय हो!
जिन्दगी की हर कहानी
बचपन हो या हो जवानी
सुख और दुःख की व्यथा गर
होती न याद मुंहजबानी
समेटने को जब तुम्हें
उसे ...समेटने को जब तुम्हें
विवश कर दे लेखनी तो
समझ लेना कवि हृदय हो !
प्रेम या वैराग्य को जब
किया हो महसूस तुमने
राग मे उन्मत्त होकर
वैराग्य में ही विरक्त होकर
मुक्त होने को व्यथा से
विवश कर दे लेखनी तो
समझ लेना कवि हृदय हो !
पर पीड अथवा सुख स्वयं का
देखकर मन सन्तप्त होना
पर पीड पर उपकार करना
खुद के सुख का त्याग करना
उपकार करने को तुम्हें जब
विवश कर दे लेखनी तो
समझ लेना कवि हृदय हो !
विवश कर दे लेखनी तो
समझ लेना कवि हृदय हो !

✍️ डॉ देशबन्धु भट्ट
सेम मुखेम
प्रताप नगर , टिहरी गढ़वाल

8.

* हमारी मन की अवस्था का तन
पर भी सापेक्ष असर होता है *।

जब तक हमारे
हाथों में तराजू न था
;हम बड़े आनंद में थे //
जब तक हमें अपनी छवि
दूसरों की आँखों में
देखने की हसरत न थी ;
हम बड़े आनंद में थे //
जब तक हमें यह देखने की
समझ न थी कौन हमसे
आगे निकल गया....
हम कितने पीछे रह गए...
.इस जीवन में कितना पाया....
कितना नुकसान हुआ...
.किसने अपनी भावी पीढ़ियों
के लिए हमसे अधिक संचित
कर लिया... हम बड़े आनंद में थे //
कौन हमें त्वज़जो देता है
या नहीं.... हमारा अहंकार
जब आकर न ले पाया था
कि हमारी हैसियत  कैसी है....
हम बड़े आनंद में थे //
जब हम कितने महत्वपूर्ण हैँ...
ये देखने के लिए दूसरों की
राय जानना न सीखे थे...
. हम बड़े आनन्द में थे //
  जब हम बचपन में थे....
हम बड़े आनंद में थे //
गीली मिट्टी में गिर जाते..
खुद पर हँसते.
सुबह उठते  दौड़ते -भागते..
. जबरदस्ती पढ़ाई करते..
शाम को खेलने की होड़ रहती.
दोस्तों से मिलने का दौड़ होता.
शाम को डांट
मिलने का डर होता //
सुबह उठने का बेसब्री
से इंतज़ार होता //
हम बड़े आनंद में थे,,,
जब से बड़े हुए.....
न डर रहा....
. न खुद पर हँसने का दौड़ रहा..
न किसी के संग खेलने
का होड़ रहा....
एक तराज़ू लेकर बैठे हैँ...
कितनी .बीमारियों का
आगाज़ कर बैठे हैँ....
अपनी खुशियों का आईना
दूसरे के हाथों में दे बैठे हैँ,,,
हमारा पसंदीदा गाना है
"ये दौलत भी ले लो...
ये शोहरत भी ले लो...."

✍️ ~ डॉ पल्लवी कुमारी "पाम"
अनिसाबाद, पटना ,बिहार

9.

#साहित्य एक नजर
# अंक -  28-30
दिनांक -
7/6/2021.
     *
कहानी.

सुनो, सुनना होगा तुम्हें पार्थ
जीवन के नियत महाभारत में
जीवनोत्सर्ग करते कुरूक्षेत्र में
तुम्हारी रची कहानी!
सदियों से सजा है रंगमंच
अपनी अपनी भूमिका ले
अभिनीत करते अभिनेता
बन गांधी और गोडसे
नाजी और नाजेहिन्द
बना जाते खुद को कहानी
होता नही अंत कहानियों का
अभिनय से दर्शक बनाते
कालातीत जब कहानियाँ
अमिट कालजयी बन जाता है
सृष्टि श्रष्टा- विध्वंसक नामधारी
हस्ताक्षरित इतिहास कहलाता है.

✍️ अजय कुमार झा.
      7/6/2021.
10.

रोज सोचता हूं
एक पत्र लिखूं
पर क्या लिखूं
कितना लिखूं
जीवन में जो
कुंठा है, घुटन है
शायद उसे
कम कर सकूं
यहां के जंगल
बहुत घने है
पहाड़ों में
दरारें बड़े बड़े है
उसे देखकर
तुम्हारी यादें लिखूं
या बीते दिनों
की बातें लिखूं
मन कितना बैचेन
है कैसे कहूं
जी करता है हर
शब्द प्रेम ही लिखूं
गगन में पाखी
बनकर तुम तक उडूं
मंदिर की बजती
घंटियां लिखूं
और हुलसकर
तुमसे कहूं..
मैं जल्दी
आ जाऊंगा...
या बैठ कर
किसी नदी के मुहाने
तुम पर कोई
कविता लिखूं
मुझे पता है
पढ़कर तुम
पलकें मूंद लोगी
थोड़ी नम
करोगी आंखें
फिर तकिये
के नीचे रख लोगी
रात गुजर जाने तक
फिर भींग जायेगा
तुम्हारा सिरहाना
सुबह होने तक.......

✍️ पुष्प कुमार महाराज,
गोरखपुर
दिनांक- 07.06.2021

11.

हरी भरी वसुंधरा, हरा-भरा ये द्वीप है.
ये कौन कह रहा है कि,ये प्रेम का प्रतीक है.
ये वन कट रहे जहाँ,मरुस्थलों में आग है.
ये भवरे कह रहे यहाँ,ना फूलों से प्यार है.
ये कौन कह रहा है कि,ये प्रेम का प्रतीक है.
मृग ना रह सके जहाँ,ना पक्षियों का शोर है.
तम से भरा है जीवन,उषा की अब तलाश है.
पथ पे जिधर भी देखों,हर घर का एक शव है.
मातम जहाँ में छाया,हर उर में वेदना है.
ये कौन कह रहा है कि,ये प्रेम का प्रतीक है.
सांसें है सबकी घुटती,दम भी निकल रहा है.
लगता है जैसे मारुत,कोई विष उगल रहा है.
गंगा का हाल देखकर,सूरज भी रो रहा है.
कैसा महा प्रलय है,त्राहि त्राहि सब हो रहा है.
ये कौन कह रहा है कि,ये प्रेम का प्रतीक है.

✍️ प्रभात गौर
नेवादा जंघई
  प्रयागराज  ( उत्तर प्रदेश )

12.

इंकलाब प्रकाशन मुंबई द्वारा प्रकाशित" काव्य सलिल" साझा काव्य संग्रह में आ. प्रमोद ठाकुर जी अपनी रचनाओं से योगदान दिए रहें । " काव्य सलिल साहित्य सम्मान" से आ. प्रमोद ठाकुर जी को सम्मानित किया गया ।

13.

आप सभी का कवियों का अध्यात्म की तरफ से स्वागत करता हूं | सोमवार 8 जून 2021 को कवियों का अध्यात्म द्वारा संचालित मंच से ली गई नृत्य प्रतियोगिता में सभी ने बहुत अच्छा नृत्य प्रदर्शन का वीडियो सेंड किया, एक दूसरों को कुछ नया सिखाना इस हेतु से यह समूह बनाया गया है। हमारी टीम के कमलेश सर, मनस्वी स्वाति मैडम, आस्था पटेल मैडम, और हमारे समूह के एमडी ( MD ) सरिता जैन मैडम इत्यादि सदस्यों के कारण आज हमारा संग यहां तक आया है। मैं समूह का संस्थापक सागर गुडमेवार सभी विजेताओं का हार्दिक अभिनंदन करता हूं।।

🥇 Rashmi Dangwal - first ( प्रथम )
🥈 Aditya Amol Pilajii - second ( द्वितीय )
🥉Bhakti Mishra - third winner ( तृतीय )

14.

नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र

होनी को कौन रोक
सकता होने से ,
जब आँसू आ ही गई
तो कौन रोक सकता रोने से ,
जब इच्छा बन ही गई
छायादार वृक्ष लगाने की
तब कौन रोक सकता
बीज बोने से ।।
जब नींद आ ही गई
तब कौन रोक सकता
सोने से ।।

अंदर पाप ही पाप
तब क्या होगा गंगा में
शरीर धोने से ,
डर हमें है न यह जीवन खोने से ,
डर तो हमें यह है व्यर्थ में
समय न बीते
यही डर आता कोने कोने से ,
तब बताओ प्यारे पाठकों
होनी को कौन रोक सकता होने से ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मंगलवार , 08/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(21)
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 29
Sahitya Ek Nazar
8 June 2021 ,   Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
साहित्य एक नज़र 🌅 के तरफ
से आप सभी को
विश्व महासागर दिवस
की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏💐 ।
🌅🗺️🌍
विश्व महासागर दिवस
अंक - 29 , 08/06/2021
मंगलवार


साहित्य एक नज़र 🌅



साहित्य एक नज़र 🌅



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