साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 62 , रविवार , 11/07/2021

साहित्य एक नज़र

अंक - 62
जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
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माह - 2
अंक - 62
11 जुलाई  2021
रविवार
आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा
संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण - पत्र -  8
कुल पृष्ठ -  9

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
साहित्य एक नज़र  , मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक पत्रिका ( मासिक ) - मंगलवार
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी - गुरुवार

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1.  आ. साहित्य एक नज़र ( माह - 2 )
2.  आ.  देवानन्द मिश्र सुमन जी
3. आ.  रीता झा जी ,  कटक, ओडिशा
4. आ. कृष्ण कुमार महतो जी
5. आ. अरुण कुमार शुक्ल जी
6. आ. आनंद कुमार पांडेय जी
7.आ.  केशरी सिंह रघुवंशी' हंस' जी ,  मध्य प्रदेश
8. आ. सरिता त्रिपाठी 'मानसी' जी , उत्तर प्रदेश
9. आ. डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम जी , बिजनौर
10. आ. रोशन कुमार झा
11. आ. अभिव्यक्ति पत्रिका , अंक - 63
12. सम्मान पत्र -

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
124. आ. देवानन्द मिश्र सुमन जी

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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

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साहित्य एक नज़र
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 61 ,  शनिवार
10/07/2021

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 62
Sahitya Ek Nazar
11 July ,  2021 ,  Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

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रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र  🌅 ,
Sahitya Ek Nazar , Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

आ. ज्योति झा जी
     संपादिका
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साप्ताहिक - मासिक पत्रिका

आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम "  जी
          संपादिका
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
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कविता :- 20(53)
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अंक - 61
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अंक - 61
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कविता :- 20(45)
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कविता :- 20(54)
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अंक - 62
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कविता :- 20(55)
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अंक - 63
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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 1
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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 3

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अंक - 57

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साहित्य एक नज़र , अंक - 59 , गुरुवार , 08/07/2021 , विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी, अंक - 3

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अंक - 62
11  जुलाई  2021
रविवार
आषाढ़
संवत 2078
पृष्ठ - 
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जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
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अंक - 62 , रविवार , 11 जुलाई  2021 ,
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रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
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अंक - 62
11 जुलाई  2021
रविवार
आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा
संवत 2078
पृष्ठ - 
प्रमाण पत्र - 8
कुल पृष्ठ - 9

माँ शारदे बुद्धि प्रदायनी जय हो

माँ शारदे बुद्धि प्रदायनी जय हो
तू विवेकहीन को विवेक देती हो
अज्ञान में ज्ञान भी भर देती तू माँ
चंचल हृदय में स्थिरता लाती माँ
माँ वीणाधारिणी तू हंसबाहिनी है
तूँ सरस्वती पुस्तक धारिणी है माँ
तू बोध ज्ञान प्रवर्तक प्रतिष्ठात्री माँ
सद्बुद्धि प्रदान सबको करती माँ
स्वेत वस्त्र धारण पद्मासन विराजे
बुद्धि प्रखर स्वर कोकिल सा कर दे
राग रंग कंठ भर कोकिल स्वर दे माँ
वीणाधारिणी तू है मेरी सरस्वती माँ
ज्ञान की ज्योति जला शील मुझे दो
स्वर रूपी गंगा बहा दुख हर ले माँ
वंदन मेरा स्वीकार करो माँ तू शारदे
ज्ञान भक्ति भर तूँ मेरा कल्याण कर
तुम बिन कौन जगत में है मेरा माता
मुझमें भी ज्ञान का भंडार भर दे माँ
वेदों की भाषा पुराणों की वाणी को
समझने की ज्ञान बुद्धि मुझको दे माँ
मुझ तुच्छ मनुज को ओझल न करना
अपनी छाया में सतत  सानिध्य रखना

✍️ देवानन्द मिश्र सुमन

हम साथ साथ हैं

अपनों के बीच दूरी,
रोटी की है मजबूरी।
आभासी जुड़ाव पूरी!
हम साथ साथ हैं।
दूरी नहीं कभी भाए!
याद अपनों की आए‌।
किया मिलन उपाय!
हम साथ साथ हैं।
खुशी पाए नव रंग।
त्योहार का हो उमंग।
मनाते हैं मिल संग।
हम साथ साथ हैं।
सुख अपनों की भाए।
दुख सभी को रुलाए।
मिल उसको हसाएँ।
हम साथ साथ हैं।
पकवान जो बनाए।
खुशबू सबको भाए।
मिले ईश की दुआएँ!
हम साथ साथ हैं।
शादी ब्याह में हो मस्ती।
कहकहे ही गूंजती‌।
  रात बातों में कटती।
हम साथ साथ हैं।
सदा रहे प्रेम भाव!
दिखे खुशी का प्रभाव।
रहे ऐसा ही लगाव।
हम साथ साथ हैं।

✍️ रीता झा
कटक,ओडिशा

Ank.. 62...

ग़ज़ल

उसमें दुश्मन . बता दिया है मुझे
ये वफा का . सिला दिया है मुझे!1
मुझसे हंसने . का वायदा करके
आज रोना . सिखा दिया है मुझे!2
तुमसे मरहम ..की आश रखी थी
जख्म कितना ..बडा दिया है मुझे!3
उम्र भर साथ . जिसके चलना था
उसने रास्ता. दिखा दिया है मुझे ! 4
उसका दिल ही .हुआ था धर मेरा
उसने बे घर  .बना दिया है मुझे ! 5
कल किसी ने जो मुझसे बोला था
सच वो करके .दिखा दिया है मुझे! 6
कैसे उसको मैं . क्या सजा देता
उसनें रो कर दिखा ..दिया है मुझे! 7
अब तो खुद से ही प्यार करता हूँ
आज मुझसे ..मिला दिया है मुझे! 8
प्रेम उसका मेरी . तो जन्नत था
करके दोजक .दिखा दिया है मुझे! 9

✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद बिजनौर

शादी

किया शृंगार वर-वधु ने ,मधुर बेला खुशी लाई।
चली है संग सखियों के, पिया वर माल डलवाई।
बराती नाचते गाते, पटाखों की जला लड़ियांँ.
गगन में रोशनी चमके, सजी है शहर की गलियाँ.
बड़ी ही शान शौकत अश्व असवार है दूलहा.
अदाकारा कलाबाजी, दिखाती नृत्य के जरिए.
मधुर हर बीतता लम्हा,सरस संगीत शहनाई।
कियाशृंगार वर-वधु ने, मधुर बेला खुशी लाई।
पिता ने हाथ बेटी का,किया वर को समर्पित तब.
किया गठबंध पल्लू से, लगाए अग्नि के फेरे
लिये हैं हाथ मेंअक्षत, युगल पर फूल बरसाते
जलाकर अग्नि बेदी में, पुरोहित मंत्र शुभ पढ़ते
लगाए साथ में फेरे, निभाने की कसम खाई।
किया शृंगार वर-वधु ने,मधुर बेला खुशी लाई।
विविध रस्में निभाते है सखी जूता चुरा लेती.
मनोरंजन हुआ सबका , चुकाना नेग भी पड़ता.
खिचाते साथ में फोटो, मधुर यादें संँजोते हैं
, विनोदी बात जब निकले ठहाके लग ही जाते हैं
हुई बेटी विदा घर से, पिता की आंँखभर आई।
किया शृंगार वर-वधु ने, मधुर बेला खुशी लाई।

✍️ केशरी सिंह रघुवंशी' हंस'
अशोकनगर मध्य प्रदेश

विषय-

🐦🕊️🦜🦆
      पक्षी
🦅🦢🦚🦉

पक्षी उड़ते हैं
पक्षी तैरते नही हैं
पक्षी बहते नहीं हैं
पक्षी उड़ते हैं।
पक्षी तैरते नहीं हैं
पक्षी बहते नहीं हैं
पक्षी उड़ते हैं।
पक्षी अपने गंतव्य
की ओर उड़ते हैं।
पक्षी तैरते नहीं हैं
पक्षी बहते नहीं हैं
पक्षी उड़ते हैं।
पक्षी हवा के
विपरीत उड़ते हैं।
आदमी चलता है
आदमी उड़ता नहीं है
आदमी तैरता नहीं है
आदमी बहता है अपने
जीवन के प्रवाह में।

✍️ देश दीपक
ईश्वरपुर साई हरदोई
उत्तर प्रदेश

रोटी

भूख मिटाती सबकी रोटी
स्वयं जलती है आग पर
बड़ी कीमती रोटी ठहरी
नाच नचाती चाक पर  ॥
हो पेट में आग लगी
रोटी की याद तब आती है
गेहूं पीसे बिन चक्की में
रोटी कहाँ बन पाती है   ?
बड़ी मेहनत करते किसान
शीत ताप सह जाते हैं
तब जाकर धरती से
गेहूं की फसल पाते हैं॥
रोटी का हीं चक्कर है
जो सबको दौड़ कराती है
तब जाकर कहीं हलक से
दो रोटी पेट में जाती है  !
रोटी का हीं चक्कर है
सब घर-द्वार तज देते हैं
मेहनत मजदूरी करते दिन - रात
तब घर में रोटी देते हैं  ॥

✍️ कृष्ण कुमार महतो


#नमन मंच
शीर्षक-
स्वप्न

लोग कहते जिंदगी का है सफर छोटा,
जानकर के भी मगर मैं भूल जाता हूँ।
जिस समय मैं सोचता बेचैन रहता फिर,
स्वप्न के झूलों में फिर से झूल जाता हूं।।
जानते हैं लोग किन्तू करते न ऐसा,
मोह के बातों को मन पे थोप देते हैं।
अटलता को वे सदा ठुकराते ही रहते,
सत्य में संदेह पौधा रोप देते हैं-२।।...
है सही ये बात किन्तू सत्य ये प्यारे,
जिंदगी की राह केवल सत्य ही तो है।
स्वप्न के बल पर यहां मुर्दा भी जीता है,
स्वप्न न हो तो ओ हिम्मत दफ्न ही तो है।।
हर छला,टूटा,थका,इस स्वप्न पर जीता,
आज न तो कल मुझे मंजिल मिलेगा ही।
प्रेमिका हो या पिता ये सोचते इक सा,
प्राणप्रिया का भी कभी अंजलि मिलेगा ही।।
स्वप्न है बलवान इससे सम्हलना हर पल,
टाल दें मृत्यू को जो इसने कहीं ठाना।
जो सनातन धर्म ओ ही धर्मता करना,
स्वप्न खातिर स्वप्न पर पर
तुम चले जाना-२।।....

✍️ लेखक- अरुण कुमार शुक्ल

मेरा काश्मीर

माँ वैष्णों का धाम यहाँ की
शोभा और बढ़ाता है,
खड़ा हिमालय इसकी महिमा,
मूक स्वर में हीं गाता है।
मैं कितना गुणगान करूँ
प्रकृति ने रूप सँवारा है,
बोले हिन्द के रखवाले
ये काश्मीर हमारा है।।
सोने की चिड़ियाँ कहते हैं,
ये भी क्या कुछ कम है।
जो आँख दिखाये
इसको उसका,
काल बन खड़े हम हैं।।
इसी हिमालय से निकली
गंगा की निर्मल धारा है।
बोले हिन्द के रखवाले ये
काश्मीर हमारा है।।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई,
चारों धर्म समान यहाँ।
अनेकता में भी एकता है,
होता नित है गान यहाँ।।
धूल चटाया वीरों ने जिसने
इसको ललकारा है।
बोले हिन्द के रखवाले
ये काश्मीर हमारा है।।
संजीवनी सी कितनी जड़ी,
बूटियों का ये संगम है।
हिंदुस्तान से बाहर भी इसकी,
महिमा का वर्णन है।।
गीतकार आनंद ने अपना
तनमन इसको वारा है।
बोले हिन्द के रखवाले
ये काश्मीर हमारा है।।
     
   गीतकार
✍️ आनंद कुमार पांडेय
बलिया उत्तर प्रदेश
    Mo- 9454261955

कविता :- 20(54)
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र
कविता -  ईश्‍वर कैसा आपका नियति है ।

हे ईश्‍वर कैसे आपकी पूजा पाठ करूँ
कैसा आपका नियति है ,
समय से पहले ही कितने को अलग
कर देते जिसके चलते
कितने पति बिना पत्नी के और
कितने पत्नी के न पति है ।
दुख पर से दुख जिसके कारण
उस घर परिवार की बाल बच्चों
की जीवन दुर्गति है ,
जन्म मरण बंधन है इससे
छुटने वाला अभी तक
न कोई महारथी है ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(54)
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
11/07/2021 , रविवार
✍️ रोशन कुमार झा
, Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 62
Sahitya Ek Nazar
11 July 2021 ,  Sunday
Kolkata , India
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মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर

नव जीवन

जीवन के अपने नये राग चुन लूं
उठती उमंगों की पहचान कर लूं
नई राह में नव प्रखरता सी फैलू
नई जिन्दगी मे नये रंग भरलू ......
डगर है कठिन रास्ते भी हो निर्जन
राह कैसी भी हो खुदको न समझू निर्बल
अग्निपथ हो या राहें हो कंटको की
सामना कैसे करना ये अनुमान कर लूं
नई जिन्दगी मे नये रंग भर लू.......
दुनियादारी की गहरी समझ न है मुझमे
जुड़ी हूँ अपनो से जानू बस उनके सपने
मुझे न पता जिन्दगी कैसे जीते
खुद के अनुभव व औरों से ज्ञान कर लूं
नई जिन्दगी में नये रंग भर लूं.....
जीवन का पथ मेरा कैसा भी होगा
साथी राह का चाहे जैसा भी होगा
मुस्कान संग हर कदम है बढ़ना
जीवनकला आज से मन में धर लूं
नई जिन्दगी में नये रंग भर लूं.....
नया जिन्दगी पर सफर है पुराना
मेरा लक्ष्य बस मेरी मंजिल को पाना
बने ये सफर मेरा खुशहाल इतना
हिय मे सारे दिलों का प्यार भर लूं
नई जिन्दगी में नये रंग भर लूं......

✍️ सरिता त्रिपाठी 'मानसी'
सांगीपुर, प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)










साहित्य एक नज़र



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