साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 64 , 13/07/2021 , मंगलवार

साहित्य एक नज़र

अंक - 64
जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
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अंक - 64
13 जुलाई  2021
मंगलवार
आषाढ़ शुक्ल 3
संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण - पत्र -  6
कुल पृष्ठ -  7

सहयोगी रचनाकार  व साहित्य समाचार -

1.  आ. साहित्य एक नज़र 🌅
2.  आ. कौंच फ़िल्म कवि सम्मेलन में डॉ. पुरोहित ने किया काव्य पाठ -
3. आ. डॉ. राजेश कुमार पुरोहित जी
4. आ.  महेन्द्र प्रसाद निषाद जी , सुल्तानपुर
5. आ. रंजना बिनानी जी , असम
6. आ. राजेश "तन्हा" जी , रतनाल, बिश्नाह,  जम्मू 
7.आ.  सुनील कुमार सिंह "सुगम" जी , खगड़िया , बिहार
8. आ. कंचन शुक्ला जी , अहमदाबाद
9. आ. कैलाश चंद साहू जी , बूंदी , राजस्थान
10. आ.  " उत्कर्ष उपाध्याय 'राजा " जी ,  प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश
11. आ. सोनू विश्वकर्मा ' समर '
12.  आ. रोशन कुमार झा

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
126 . आ. सुनील कुमार सिंह "सुगम" ,  खगड़िया , बिहार


अंक - 62 से 67 तक के लिए इस लिंक पर जाकर  रचनाएं भेजें -
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हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏💐
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
साहित्य एक नज़र  , मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक पत्रिका ( मासिक ) - मंगलवार
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी - गुरुवार

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 64
Sahitya Ek Nazar
13 July ,  2021 ,  Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी



सम्मान पत्र - 1 - 80
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फेसबुक - 1

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अंक - 54 से 58 -
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विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका, अंक - 2 )
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मधुबनी - 1
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साहित्य एक नज़र
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रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र  🌅 ,
Sahitya Ek Nazar , Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

आ. ज्योति झा जी
     संपादिका
साहित्य एक नज़र 🌅 मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक - मासिक पत्रिका

आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम "  जी
          संपादिका
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने
वाली दैनिक पत्रिका का इकाई












अंक - 61

http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/61-10072021.html

कविता :- 20(53)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2053-10072021-61.html

कविता :- 20(45)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2045-53-02072021.html

कविता :- 20(54)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2054-11072021-62.html
अंक - 62
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/62-11072021.html
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कविता :- 20(55)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2055-12072021-63.html

अंक - 63
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/63-12072021.html

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कविता :- 20(56)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2056-13072021-64.html

अंक - 64
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/64-13072021.html

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अंक - 65
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/65-13072021.html
कविता :- 20(57)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2057-14072021-65.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 1
http://vishnews2.blogspot.com/2021/04/blog-post_95.html
मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 2

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/2.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 3

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/3-2000-18052021-8.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 4
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/4-03072021-54-2046.html

अंक - 57

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अंक - 58
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विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी , अंक - 3
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अंक - 59
Thanks you
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कौंच फ़िल्म फेस्टिवल डिजिटल कवि सम्मेलन में डॉ. पुरोहित ने किया काव्य पाठ -

कौंच:-बुंदेलखंड कौंच इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दूसरे वर्ष में भी वैश्विक महामारी कोरोना के चलते , कौंच इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के संयोजक पारसमणी अग्रवाल जी की डिजीटल  आयोजन व्यवस्था में  भवानीमंडी जिला झालावाड राजस्थान से सुप्रसिद्ध कवि साहित्यकार डॉ राजेश पुरोहित जी नें शानदार प्रस्तुति दी। आदरणीय राजेश पुरोहित जी देश के माने जाने महान कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं कौंच इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल बुंदेलखंड में आयोजित कवि सम्मेलन मे आदरणीय राजेश जी ने शिरकत करके बुंदेलखंड फिल्म फेस्टिवल का मान बढ़ाया है, आपकी शानदार प्रस्तुति पर देश विदेश की जानीं मानीं हस्तियों नें बधाई दी।

कविता
* चाँद *

नील गगन में रहते शशि
कितने सुन्दर लगते हो
पूरनमासी के दिन तो
गोल थाल सम लगते
प्रेमी राह देखते तुम्हारी
कितने अच्छे लगते हो
धरा पर चाँदनी फैलाते
सबके मन को भाते हो
मयंक कहे कोई चाँद
महिमा सब जन गाते
चन्दरकलाओ से तुम
कृष्ण व शुक्ल पक्ष
तुम्हीं तो बनाते हो
कभी बादलों में छिपते
कभी दर्शन देते हो
इन्हीं अठखेलियों से
तुम सारी रात जगाते हो

✍️ डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित
कवि,साहित्यकार
भवानीमंडी

#साहित्यसंगमसंस्थान #पश्चिमबंगालइकाई
#दिनांक-१२/७/२०२१
#विषय-रथ यात्रा
#विधा- काव्य

    🙏🌹रथयात्रा🌹🙏

आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को,
रथ यात्रा का पावन पर्व है आता,
आज के दिन भगवान जगन्नाथ की,
रथ यात्रा निकाली जाती ।
उड़ीसा राज्य की पूरी नगरी को
,खूब सजाया जाता,
रथयात्रा को जगन्नाथ, बलभद्र ,
संग सुभद्रा को भ्रमण कराया जाता ।
जगन्नाथ जी ,सुभद्रा, व बलभद्र जी
के तीन रथ सजाए जाते,
इनकी रश्शियों को पकड़कर
,भक्तगण रथ को आगे ले जाते।
श्रद्धा से विह्वल हो ,भक्त दूर
देश से दर्शन को है आते,
यात्रा में रथ को खींचने की रस्सी को,
पकड़ने की होड़ लगाते ।
धूमधाम गाजे-बाजे से,
रथयात्रा निकाली जाती,
शंख नगाड़े की धुन चंहुओर,
गुंजायमान हो जाती।
इस अनुपम रथ यात्रा के दर्शन कर,
भक्त धन्य हो जाते,
सोलह पहिए रथ के होते ,
ध्वजा तिरंगी होती....।
जो गरुड़ध्वज वा तालध्वज के
नाम से जानी जाती,
यहां के महाप्रसाद को प्राप्त कर,
जैसे वो भवसागर तर जाते ।
कहते हैं,मूर्ति निर्माण का कार्य ,
राजा की आने से बीच में रह गया था,
इसी लिए मूर्ति के नाखून व
पंजों का, निर्माण नहीं हुआ था।
यह पावन पवित्र जगन्नाथपुरी ,
चारों धामों में मानी जाती,
जगन्नाथ धाम जाने से, सबकी
जीवन नैया तर जाती ।
भारत में जगन्नाथ पुरी की ,
रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है,
क्यूं कि इस दिन ,भगवान
मंदिर से बाहर आ,
नगर भ्रमण करते हैं।
इस रथ यात्रा के दर्शन
का, बड़ा महत्व है,
नर नारी इसका दर्शन कर,
मानते स्वयं को धन्य है।

✍️  रंजना बिनानी " काव्या"
गोलाघाट , असम

🌍🌴 वृक्षों का लाभ 🌴 🌍

जीवन में सांसों की कमी है,
आओ एक वृक्ष लगाए।
सूरज की भीषण गर्मी से,
वृक्षों से मिलती है छांव।।
वृक्षों से मिलती है स्वच्छ हवा,
हर जीव को मिलता जीवनदान।
बड़े उपकारी वृक्ष हैं सारे,
बदले में न लेते हैं कोई दाम।।
आंधी हो , तूफान हो चाहे,
सीना तान खड़े रहते हैं।
चाहे कितना भीषण गर्मी हो,
देते हैं सबको शीतल छाया।।
खट्टे-मीठे फल देकर,
सबके सेहत का रखते ध्यान।
कभी किसी से गिला न शिकवा,
हर दुख सहते रहते वृक्ष।।
हरे-भरे वृक्षों से मिलती,
शांति और समृद्धि का जीवन।
वृक्षों में भी होती है जान,
बेजुबानों को मत
पहुंचाओ नुकसान।।
बिना वृक्ष के,
धरा है सूनी।
हरे-भरे प्रकृति से ही,
धरती का श्रृंगार है बनती।।

✍️ महेन्द्र प्रसाद निषाद,
सुल्तानपुर

........रोशन कुमार झा जी (एडमिन)के एवं

साहित्य एक नज़र के लिए ....

हँसी आती  बिन आईना  कोई,
कर देता इंसाफ किसी का भी!
रूक-रूक राह चले चौकस चक्षु,
पीछे शोर मचाता है पागल भिक्षु !!
सुनाकर घर-घर सबके आग लगाता,
जिसके ताप -जलन में घुट-घुट जीता!
वो पागल एक अकेला दौड़तफिरता,
द्वार-द्वार पहुँच सबको ऐनक दे जाता ।

✍️  सुनील "सुगम"

🌹..फूल..💐

अम्बर से उतरकर
आँख में ठहर गई
हमारे  पूर्वजों  के
  शौर्य की गाथायें!
विक्षिप्त हुुई जमीं पर
आत्म  -  गौरव   की
वो  वासंती  मधुर
कोकिल   बोलें!!
संवेदना   सहमी
शाम के साये में
कोसती मन ही मन
गुम  हो गई  !!
मर्यादाएं नीलाम हो रही
अब   सबकी   बाहर
सड़क चौक चौराहों
और  चबूतरों  पर !
मृत  मानवता  की
मालाएं टंगी पड़ी
चौकठ पर मुरझाई
शोकग्रस्त हो चुकी!!
जनाजे कफन मिलता नहीं
औरौं  के  गुलदस्ते  में
एक  और फूल
सजाए  जा  रहे!

   ✍️  सुनील कुमार सिंह "सुगम"
कैदी, चौथम, खगड़िया , बिहार

नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅
कविता -  वीर हनुमान

वह भी पा लेते
जिसका लगाये नहीं होते अनुमान ,
कर्म करो फल देते है भगवान ।
धर्म और कर्म से लोग बनते है महान ,
धन्य हो प्रभु आप वीर हनुमान ।।
हरते हो दुख , भरते हो ज्ञान ,
आपके हाथों में ही है कला और विज्ञान ।।
मंगलवार है आज करूँ आपका ध्यान ,
भक्तों के हर इच्छा पूर्ण करते हो
आप प्रभु
श्रीराम भक्त हनुमान ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(56)
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
13/07/2021 ,  मंगलवार
, Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 64
Sahitya Ek Nazar
13 July 2021 ,  Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
विश्‍व साहित्य संस्थान / साहित्य एक नज़र 🌅
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर

#tanhawritings

नज़रों से तुम मेरे दिल में,
जबसे उतर गये हो!
कैसे कहूँ ,बनके जुनूँ,
तुम मुझमें अचर गये हो!!
मैं तो अब न होश मे हूँ,
न करार है मुझे....,
खुशबु बनके सांसों मे
मेरी तुम बिखर गये हो!
आसाँ नहीं अब, बिन
तेरे, सनम मेरा जीना,
छोड़के जाना तुम भी,
अब मुझे  कहीं ना...
मैं हुआ हुँ तेरा, कहो
तुम भी, मेरी हुई ना...
जिंदगी ये तेरे बिन,
अब एक सज़ा है,
बेमतलब सा अब,
जीने का मज़ा है..
आईना देखो तुम भी
कितने निखर गये हो....
नज़रों से तुम मेरे दिल में,
जब से उतर गये हो!

✍️ राजेश "तन्हा"
रतनाल, बिश्नाह,  जम्मू 
जे के यू टी -181132

#नमन मंच

कलम की ताकत के सभी पदाधिकारियों और साहित्यकारो को बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं स्वागत अभिनंदन

उठो साथियों कलम उठाओ
देश के पहरेदार बनकर
हर शब्द हर घड़ी हर तरफ
संघर्ष का बिगुल फूंक दो
संघर्ष ही जीवन संघर्ष ही
हमारा हर्ष है, दुःख सुख
जीवन के साथी, हर्ष हो
विषाद हमें क्रांति लानी है।
जीवन हर्ष हमारा साथी है
दुःख है तो स्वर्ग भी आनी
और जानी है शोक विषाद
हमारे अरमान नहीं फिर
भी जीवन एक जुबानी है।
संघर्ष करो तुम ये हिन्द
की सुनहरी कलम माटी है
बदलेगी तस्वीर हमारी
बदलेगी तकदीर हमारी
एक दिन सुख दुःख तो
यारो आना जाना है।
बनेगा जीवन उत्कर्ष हमारा
हर्ष जीवन में आना बाकी है
संघर्ष से तुम हार न मानो
अपनी आवाज को बुलंद करो
संघर्ष को तुम अपनाओ
हर्ष तुम्हे उजाला देगा।
तुम्हारे जीवन में
विषाद नहीं होगा
बढ़ते चलो तुम राह में
कांटे हटते जाएंगे, जीवन
हर्ष से भर जाएगा।
कलम में ताकत भर देगा।
नव निर्माण हमें करना है
कलम की ताकत से
सबको भरना है,
हर्ष में रहे हम सब,
संघर्ष को अपनाना है।
कलम की ताकत बन,
देश बचाना है।।

✍️ कैलाश चंद साहू
बूंदी , राजस्थान

" कहो प्रिये तुम कब आओगे "

कौशल्या की विवशता कैसी,
उस पर ज्ञान का परना है।
सीता की चंचलता ऐसी,
उर्मिल को बस मरना है।।
सबरी के तप का क्या,
गान तो होगा लक्ष्मण का।
झूठे बेर कहते हो तुम,
चीख सुनो रक्त कण कण का।।
सीता की सी विरह वाटिका,
हनुमत को ही फिर भेजोगे।
पीरा पी रही सुलोचना,
विभीषण को ही फिर खेलोगे।।
अब पिआ से जिरह जरूरी,
जिरह में तुम कब आओगे।
कहो प्रिये तुम कब आओगे
,कहो प्रिये तुम कब आओगे।।
फितरत राधा की मस्तानी होगी,
पर राधा नहीं दिवानी होगी।
यार सुदामा की कहानी होगी,
पर द्वारिका नहीं रवानी होगी।।
आस तनिक ही शेष बची,
सारा तन है बिसरे बंजर।
मीरा की तान वही रहेगी ,
चाहे कंठ ना उतरे शंकर।।
अर्जुन सा हाल बिना जुआ के,
क्या सारथी नहीं कहलाओगे।
कर्ण का साथ नहीं देते हो,
क्या षणयंत्र फिर रचवाओगे।।
हार गये तन मन सब जीने
की मंसा कब बतलाओगे?
कहो प्रिये तुम कब आओगे,
कहो प्रिये तुम कब आओगे।।

  ✍️  " उत्कर्ष उपाध्याय 'राजा "
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश

विधा- लघुकथा
#मेरीलिखावट

शीर्षक-
लघुकथा - गुड़ियाघर ✍️ कंचन शुक्ला ( अहमदाबाद )

पूजा कर, प्रसाद खा। खूब फुलझड़ी और पटाखे चला रहें हैं, पूर्वी और पापा। बहुत दिनों बाद इतना सुख महसूस कर रही हूँ। आज दिवाली का उत्साह उतना भी फीका नही लग रहा, जितना सालों साल बचपन में लगा करता था। पापा और मेरे बीच की दूरियाँ, कुछ पटती नज़र आ रही हैं। ये सब पूर्वी, मेरी नौ साल की बेटी की समझाइश का नतीज़ा है। दिवाली के दिन, कितने साल, मैं रंगोली बना फुलों से सज़ा, पापा का इंतज़ार करती। सोचती वे देखेंगे तो खुश हो जायेंगे।
हर छुट्टी, हर इतवार, सब बच्चे अपने परिवार संग, इधर उधर, मिलने मिलाने घूमने फिरने जाते। पापा की अंतहीन ड्यूटी में हमें ये अनुलाभ लगते, नाममात्र नसीब होते। पुलिस इंस्पेक्टर बड़ा चुनौतियों, जोख़िम व अतिशय व्यस्ततम दिनचर्या वाली नौकरी थी। मेरे और मम्मी के लिए, पापा के पास बहुत सीमित समय होता। उसमें ना मम्मी, ना मेरा ही दिल भरता। हम तीनों कुछ अधूरा सा महसूस करते। पापा तो काम में व्यस्त हो, कुछ भूलने का प्रयास भी करते। पर हम...
हर बार जन्मदिन पर वादा करते। मेरी पसन्द का गुड़ियाघर लाने को। ना खुद आते और उपहार तो भूल ही जाते। बड़े होते हुए, मैंने तो सारी आशा ही छोड़ दी। मम्मी भी अजीब सी कुढ़ी, चिड़चिड़ी सी दिखती। पापा के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से अनुपस्थित होने का दंश, कैसे झेल रही थी, पता नही?? सारी चेतना श्यामल हो खत्म हो गई। मम्मी के नही रहने से पापा ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और सुदूर यात्राओं पर चले गए। उनका भी मन बहुत खिन्न रहा होगा। मैं पूर्णतः अकेली पड़ गई।
मेरी शादी से पहले ही, माँ इस संसार को अलविदा कह गयीं। मैं कारगर वकील थी। शादी कर सुभान के घर आ गई। पापा को माँ की असामयिक मृत्यु का दोषी मान बैठी। दस दिन पहले ही किसी सरकारी काम के सिलसिले में, पापा, दस साल बाद, शहर आये हैं। मुझसे और पूर्वी से मिले। पूर्वी उनसे मिलते ही, एकदम उन्हीं की हो गई है। सुभान और मेरे तलाक के बारे में भी उन्हें पूर्वी से पता चला। बहुत से वार्तालाप क्रम शुरू होते और लगभग बहस में समाप्त होते। कितने सालों की शिकायतें। मेरी, मम्मी और उनकी भी शायद। अपने साथ कई जगह पापा, पूर्वी को भी ले जाते। सर्विस में रहते हुए, कितने लोगों के हित संरक्षित रखे, इसका नमूना उन्ही के महकमें के लोगों द्वारा पता लगा। रोज़ आकर सारी कहानी पूर्वी बताती। यह सब सुनकर गर्व महसूस हो रहा है। उन दिनों, जब वे अपना कर्तव्य मेहनत, लगन और सच्चाई से कर रहे थे। उनका हमारे साथ ना होना। वह कमी बड़ी लगती थी। पूर्वी ने मुझे समझाया। गलती, अनदेखी, अज्ञानता हम सभी से कभी ना कभी हो ही जाती है। कितना भी कोशिश करें, कुछ ना कुछ कहीं ना कहीं, कम पड़ ही जाता है। आप खुद और पापा(सुभान) को ही देख लो। छोटी सी उम्र में बने पूर्वी के इन मनोभावों ने, पापा के प्रति, हृदय की सभी मलिनता को धो डाला है। पिछले दस दिनों के घटनाक्रम, मात्र पापा का यहाँ होना ही, सुखद लग रहा है। ढेरों उपहार पापा, मेरे और पूर्वी के लिए लाये हैं। एक कोने में गुड़ियाघर रखा है। आश्चर्यचकित मैं कभी उनको, कभी गुड़ियाघर देखती हूँ।

✍️ कंचन शुक्ला-
अहमदाबाद
07.07.2021

समझौता

दिल से दिल का मिलन करो
इस दूरी में क्या रखा है
आ कर ले समझौता मानुष
इस विग्रह में क्या रखा है -१
छू लो तुम आकाश गगन को
कर लो अपनी मुठ्ठी में
पर इतना हो ज्ञात तुम्हे
द्विज कदम धरा पर रखा है /
रहने को आवास नहीं
बच्चो को आहार ना मिलता है
इनके मां बापो को भी
समझौता करना पड़ता है
इन भूखों को बांटो खुशियां
धन वैभव में क्या रखा है /
कुछ रिश्ते जो सफल हुए
कुछ बीच समंदर अटके हैं
कुछ आशाओं में फंसकर के
उस प्रेम मार्ग को तकते हैं
खुद ही खुद का आशिक सा बनो
इस प्यार में क्या अब रखा है /
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख सभी
मिलकर हम सब अब चलते हैं
हैं भारत माता के सुत हम
अब सुलह गीत के रचते है
तुम सुनो षड्यंत्रकारी देशों
इस साजिश में क्या रखा है /
दुनिया को मुठ्ठी में कर
जब वीर सिकंदर आया था
जीता दुनिया भर को वो
पर खुद से ही जीत ना पाया था
हुई जीत समझौतों से
इन युद्धों में क्या रखा है /
राधा के प्रियतम कान्हा से
दिल की जुड़ी कहानी थी
उद्धव की मति मंद पड़ी
वो जीती प्रेम कहानी थी
दिल से कर लो समझौता तुम
इस मति में क्या अब रखा है /
दिल से दिल का मिलन करो
  इस दूरी में क्या रखा है
आ कर ले समझौता मानुष
इस विग्रह में क्या रखा है -७

✍️ सोनू विश्वकर्मा ' समर '
अध्यापक (बेसिक शिक्षा विभाग )






साहित्य एक नज़र 🌅

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