साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 21 , सोमवार , 31/05/2021

साहित्य एक नज़र 🌅




अंक - 21
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
मो - 6290640716

अंक - 21
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31 मई 2021
सोमवार
ज्येष्ठ कृष्ण 5 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 9 ( आ. चेतन दास वैष्णव )
कुल पृष्ठ - 10

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 21
Sahitya Ek Nazar
31 May , 2021 ,  Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর


अंक 20
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सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र
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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा




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कविता :- 20(11)

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अंक - 19
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कविता :- 20(12)
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अंक - 20

अंक 20
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कविता :- 20(13)
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अंक - 21

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अंक - 22
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अंक - 23
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अंक - 24
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🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

1.

खुशखबरी ! खुशखबरी ! खुशखबरी !

माँ सरस्वती, साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका मंच को नमन 🙏 करते हुए आप सभी सम्मानित साहित्य प्रेमियों को सादर प्रणाम 🙏💐।

साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका  "पुस्तक समीक्षा स्तम्भ" में चयनित पुस्तकों के लेखकों की सूची जससे साहित्कारों को समीक्षा प्रमाण पत्र दिया जा सके जून 2021 माह के लिए केवल 60 स्थान है ।

1. आ. श्री रामकरण साहू "सजल" बबेरू (बाँदा) उ.प्र.
2. आ. अजीत कुमार कुंभकार
3.आ. राजेन्द्र कुमार टेलर "राही" नीमका , राजस्थान
4.निशांत सक्सेना "आहान" लखनऊ
5. आ. कवि अमूल्य रतन त्रिपाठी
6. आ. डॉ. दीप्ती गौड़ दीप ग्वालियर
7. आ. अर्चना जोशी जी भोपाल मध्यप्रदेश
8. आ. नीरज सेन (कलम प्रहरी) जी कुंभराज गुना ( म. प्र.)
9. आ. सुप्रसन्ना झा जी , जोधपुर
10. आ.  श्री अनिल "राही" जी

नोट:- कृपया अपना नाम जोड़ने का कष्ट करें कृपया सहयोग राशि 30/- रुपये इसी नम्बर 9753877785 पर फ़ोन पे/पेटीएम/गूगल पे करकें स्क्रीन शॉट भेजने का कष्ट करें।

आपका अपना
किताब भेजने का पता
प्रमोद ठाकुर
महेशपुरा, अजयपुर रोड़
सिकंदर कंपू,लश्कर
ग्वालियर
मध्यप्रदेश - 474001
9753877785
रोशन कुमार झा

2.

🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

प्र. पत्र . सं - _ 012  दिनांक -  _  31/05/2021

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

आ.  _ चेतन दास वैष्णव     _  जी

ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _  1 - 21  _   में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको

         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।

रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा

_____________________________
3.
" समीक्षा स्तम्भ "

ज्ञान की बात , आपके साथ ,
" समीक्षा स्तम्भ " के अंतर्गत
करवाते है सम्मानित साहित्यकारों
व पाठकों से मुलाक़ात ।

2 जून 2021 , मंगलवार  को "समीक्षा स्तम्भ" के अंतर्गत मिलिये सम्मानित प्रसिद्ध साहित्यकार आ. नीरज सेन (कलम प्रहरी) जी और आ. राजेन्द्र कुमार टेलर "राही" जी से ।


4.
नमन मंच
अंक :-21
दिनांक :-31/5/2021
विषय :-

अनकहे एहसास

कुछ अनकहे अहसास हैं
दिल में दबे कुछ राज़ हैं
उमड़ती काली घटा सी
छाती लबों पर खामोशियाँ
बरबस तटों को तोड़ जाती हैं
आंखों में उफनती नदियाँ।
चाहता है दिल,
कह दे जो अहसास है
रोकता है मन,
रहने दे जो अधूरे प्यास हैं
लता सी उलझी हुई हैं,
अहसासों की गुत्थियाँ
दिल ठकठका रहा खोलने को,
बंद अहसासों की खिड़कियाँ।।

✍️ संतोष सिंह राजपुत
मेदिनीनगर, पलामु , झारखण्ड।।
5.
⛩️🏰🕋🕌
मैं तो कहता हूँ,
सारे मंदिर-मस्ज़िद
प्रतिमाओं को तोड़ दो।
जो तुममें है, हम सब
में है,हम सब से परे है।
जो हम सब में समाया है,
जो कण-कण में व्याप्त है।
उसकी आराधना करों
बाक़ी सब छोड़ दो।
मैं तो कहता हूँ,
सारे मंदिर-मस्जिद
प्रतिमाओं को तोड़ दो।
जो पापी और महात्मा है,
ईश्वर और निकृष्ट है।
जो दृश्यमान है, ज्ञेय है ,
सत्य है, सर्व व्यापी है।
सिर्फ उसी का पूजन
करो बाकी सब छोड़ दो
मैं तो कहता हूँ,
सारे मंदिर-मस्जिद
प्रतिमाओं को तोड़ दो।
हे मनुष्य उस जाग्रत
देव की उपेक्षा मत कर,
अनन्त प्रतिबिम्बों से ये
विश्व है जो सामने है।
उसकी उपासना कर
जैसे माँ - बाप और गुरु
कल्पनाओं का पीछा छोड़ दो ।
मैं तो कहता हूँ,
सारे मंदिर-मस्जिद
प्रतिमाओं को तोड़ दो।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर
9753877785
6.
विषय*कविता
**********************
कविता

कविता का स्वरूप

कविता -कविता नहीं,
वह कविता-कविता नहीं,
जिसका कोई अर्थ नहीं,
जिसकी कोई भाषा नहीं,,
और जिसका कोई भाव नहीं।।
कविता-कविता नहीं,,,,
जिसमें कोई लय न हो,
जिसमें कोई रस न हो,
जो मधुर न हो,
जो बोधक न हो।।।
कविता -कविता नहीं
जो तीर हो,तलवार हो,
जो बाणों की बौछार हो,
जो शूल हो, त्रिशूल हो,,
और सत्यता से दूर हो।।
कविता-कविता नहीं,,
मैं न लिखूँ ऐसी कविता,
जिसमे कोई पहचान न हो,
ज्ञान न हो ,सम्मान न हो,
जिसमें मौलिकता न प्रेम हो,
जिसमें हृदय के भाव न हो,
वह कविता कविता नहीं ।।

✍️ प्रज्ञा शर्मा
प्रयागराज
7.

रचना ;-

बड़ा चंचल सा मन

बड़ा चंचल सा मन ,
इधर उधर विचरता मन ,
कभी गोते लगाता
भविष्य की उलझनों में,
कभी ले जाता
अतीत के ख्यालों में,
कभी डूबकी मारता
ग़मों के सागर में,
कभी कल्पनाओं में
खुशियों के अम्बार सजाता ,
ठहरता नही ,थकता नही
बस भ्रमण करता रहता हैं
ये बड़ा  चंचल सा मन ..
तन रहेगा यहाँ ,मन घूमेगा वहां ,
इसकी बहुत पहचान हैं ,
बिन डोर खिंचा जाता हैं ,
हर तरफ चला आता  हैं ,
बड़ा चंचल सा मन ..
नहीं चाहिए इसे 
कोई घोड़ा  -गाड़ी,
ये खुद से कर आता सवारी ,
सोचता बहुत हैं
,समझता भी कम नहीं हैं ,
इसके गुणों की क्या बात करे ,
पुरे शरीर को संभालता ये मन ,
इठलाता ,मंडराता
,भटकता ,
बिखरता सा मन ,
खुद ही खुद को
संवारता सा मन ,
बड़ा चंचल सा मन ...2

✍️  रक्षा  गंगराडे
8.
विषय-

" विश्वास का आधार "

आज है विषम परिस्थितियां,
"विश्वास का ही है आधार"।
सकारात्मक सोच से ही,
होगा बेड़ा पार.....।
ईश्वर पर विश्वास कर ..,
जो हर मुसीबत में देते साथ।
जल्दी ही इस, संकट से होगा उद्धार,
विश्वास के आधार पर,
होता है चमत्कार....।
तभी तो पत्थर की मूर्ति में ,
दिखते हैं भगवान....।
विश्वास की पतवार से ..,
तूफान में नैया लगती पार।
जीवन के हर मोड़ पर ...,
विश्वास का थामो हाथ...।
विश्वास और प्यार से ...,
बन जाते बिगड़े काम.…।
तभी तो प्रातः नित उठ ...,
करते प्रभु को प्रणाम...।

✍️ रंजना बिनानी "काव्या"
गोलाघाट असम
9.
गौरव है हिंदुस्तान की

संघर्षों से जीवन भरा
जब दुःख रहे हर छण हरा
लड़ने की शक्ति रखे जो
गरिमा है नारी जहान की
गौरव है हिंदुस्तान की ..
दुःख हंसकर वह सह लेती है
कष्टों को दिल में सेती है
महसूस नही होने देती
जो तकलीफों के खान की
गौरव है हिंदुस्तान की..
जीवन का अर्थ बताती है
भूलें तो राह दिखाती है
माँ बनके चिंता रखती हरदम
प्राण प्रिय संतान की
गौरव है हिंदुस्तान की..
सबकी सुख दुःख सहभागिनी
मोह माया सब त्यागिनी
रक्षा में रहती समर्पित
आन मान सम्मान की
गौरव है हिंदुस्तान की..
हर तूफ़ाँ से लड़ने की रखे शक्ति
जीवन परिपूर्ण कर्तव्य भक्ति
कर्म का शस्त्र लेकर जो रण में
भीड़ जाती तूफान सी
गौरव है हिंदुस्तान की..
सहन शक्ति की सीमा पार
कर जाती कुछ परिस्थिति ऐसी
नारी फिर भी अपनाती है
चाहे हो राह अंगार जैसी
असंभव को कर सम्भव होती
पूज्यनीय भगवान सी
गौरव है हिंदुस्तान की..
महसूस करो व पूछो हृदय से
इक नारी की चोट को
आशा है समझ जायेंगे
अपने अंदर के खोट को
क्यों रही नही परवाह तुम्हें
भारत भविष्य के प्राण की
गौरव है हिंदुस्तान की..
अब करो प्रतिज्ञा जीवन में
नारी का मान बढ़ाओगे
उन्हें मान सम्मान दिल
जग के अरमान जगाओगे
बेटे के खातिर बेटी का
न करना बलिदान कभी
गौरव जो हिंदुस्तान की ।
गौरव जो हिंदुस्तान की।।

✍️ सरिता त्रिपाठी 'मानसी'
  प्रतापगढ़,  उत्तर प्रदेश
10.

* मेरी बिटिया मेरी लाड़ो *

मेरी बिटिया मेरी लाड़ो,
परियों जैसी लागे है,
सो जा सो जा राजकुमारी
क्यों तेरी अँखियाँ जागे हैं ।
मेरी बिटिया मेरी लाड़ो..
नीला अंबर तेरा बिछौना,
चाँद का तकिया लागे है,
चादर तेरी झिलमिल तारे,
फ़िर काहे तू जागे है ।
सो जा सो जा बाबा की प्यारी
क्यों तू निदियाँ से भागे है
मेरी बिटिया मेरी लाड़ो...
सपनों में तेरे परियाँ आएँ ,
गोद में लेकर तुझको झुलाएं      
दुप-दुप करता जगमग जुगनू
झाँक किवडिया भागे है
सो जा सो जा जान से प्यारी
क्यों तेरी अँखियाँ जागे हैं।
मेरी बिटिया मेरी लाड़ो..
बाबा की तू गुड़िया प्यारी,
मैय्या की तू राजदुलारी ।
पूरे घर की खुशियाँ है तू
सो पाये जो माँगे है।
सो जा सो जा राजकुमारी,
क्यों तू निदिया से भागे है।
मेरी बिटिया मेरी लाडो!!

✍️ देवप्रिया 'अमर' तिवारी
दुबई, यूएई
11.

स्वरचित और मौलिक रचना
साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 31/05/2021 से 02/06/2021
दिवस :- सोमवार से बुधवार तक
विषय :- चित्रचिंतन
विधा :- स्वैच्छिक
विषय प्रदाता :- आ. राजवीर सिंह मंत्र जी
विषय प्रवर्तक :- आ. कलावती कर्वा जी

बांधा हो पाँव ज़ंजीर से ,
आज़ाद हो सकते हो तुम फिर से ।।
मुक्त होने का जुनून होना
चाहिए दिल से ,
व्यर्थ है ग़ुलामी की साँस
लेना इस शरीर से ।।
कट नहीं सकता ज़ंजीर
काट दो खुद का पाँव ,
ग़ुलामी रहकर अच्छा
है कटा हुआ पाँव में रहें घाव
घाव से भी डर है
तो लाओ कुछ ऐसा भाव  ।
उस भाव से जंजीर से बांधने
वाला भी विवश होकर
बदल लें अपना स्वभाव ,
तब तुम भी मुक्त हो
जाओगे ज़ंजीर से ,
कुछ सीख लो सूर्य कुमार कर्ण और
चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे वीर से ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(13)
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 21
Sahitya Ek Nazar
31 May , 2021 ,  Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

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12.
एक नज़्म

ए कलम चल तू कहीं वीराने में
लिखेंगे जहाँ के दर्द अफ़साने में ।1
खुशबू सी महकी कहीं अंजाने में
बीते पल लौट आये मयखाने में। 2
यूँ ही बेसाख्ता था  कोई दर्द उठा 
आँख मेरी भर आई अंजाने में । 3
साँसे तो चलती रहती हैं अनवरत्,
जिंदगी बीत जाती है तहखाने में। 4
साथ चलने की आरजू चंद कदम
हर कदम मौत प्यार आजमाने में । 5
चलो अच्छा हुआ भरम कोई टूटा
जरा सा सुकूँ मिला अश्क बहाने में । 6
सपने खुली आँखों या गहरी नींद के
तोड ही जाते हैं वजूद तो जमाने में। 7
वक्त लगा हमको बिखर कर सँवरने में
वो फिर आमादा हैं ठोकर लगाने में। 8
गम भुला कर  चाहा चंद पल मुस्काना
बात चुभ गयी उनको लगे बहलाने में । 9
मयस्सर कहाँ है ये खुशियाँ हमको ए मन
लोग लगे है बेवजह बात वो  बढ़ाने में । 10
चलो समेट लो पंख अपने अय पाखी
बाज न आयेगी दुनिया तुझे रुलाने में । 11

✍️ मनोरमा जैन पाखी
मेहगाँव ,भिंड मध्यप्रदेश

13.

''वाह रे इंसान तूने गजब कर दिया''

इंसान इंसान से घृणा
करता हैं यहां, 
व्यवहार इंसानियत का
तूने अजब कर दिया ||
वाह रे इंसान तुमने गजब कर दिया ||
जाति धर्म में सबको बांटकर तूने,
अलग-अलग सबका मजहब कर दिया ||
वाह रे इंसान तूने गजब कर दिया||
साथ साथ परिवार में खुश रहते थे सभी,
अलग अलग सबका तूने घर कर दिया ||
वाह रे इंसान तूने गजब कर दिया||
आग लगाकर घर में किसी के,
घर से उसे बेघर कर दिया ||
वाह रे इंसान तूने गजब कर दिया||
छोटी छोटी बस्ती हुआ करती थी कभी,
उन बस्तियों का तूने नगर कर दिया ||
वाह रे इंसान तूने गजब कर दिया||
जन्म नाम घर दिया जिसने,
उन्हीं मां-बाप को तूने दरबदर कर दिया ||
वाह रे इंसान तूने गजब कर दिया||
जिंदा रहने पर तूने कदर ना की कभी भी, 
मरने के बाद रो-रो घर भर दिया ||
वाह रे इंसान तूने गजब कर दिया||

- ✍️ वीरेंद्र सागर
-शिवपुरी मध्य प्रदेश
14.
पापा खूब भाते हैं
( बाल कविता )

पापा बाज़ार से आते हैं
चॉकलेट, बैलून लाते हैं
  जन्मदिन मेरा मनाते हैं
केक बड़ा कटवाते हैं
  पापा खूब भाते हैं
दूध मुझे पिलाते हैं
  बॉन बीटा डलवाते है
अपने हाथों से खिलाते हैं
रविवार को नहलाते हैं
पापा खूब भाते हैं
  साथ में सुलाते हैं
  कहानी सुनाते हैं
   कविता पढ़ाते हैं
  खूब प्यार जताते हैं
   पापा खूब भाते हैं
   पार्क में घूमाते हैं
    झूला मुझे झुलाते हैं
सवालों को बताते हैं
   रोज़ ज्ञान बढ़ाते हैं
  पापा खूब भाते हैं  ।। 

✍️  नेतलाल प्रसाद यादव  ।
संपर्क- चरघरा नवाडीह, पंचायत-जरीडीह
थाना-जमुआ ,जिला-गिरिडीह (झारखंड)
पिन कोड-815318
व्हाट्सएप-8294129071

यह रचना प्रकाशित करने के लिए है 🙏
15.
खंडहर

देखो देखो! वहां छाई आज  वीरानियां है
जहां कभी मशहूर रही जहां जवानियां है
वो दीवारो ने जोओढ़ रखी खामोशियां हैं
जहां छाई कभी जलवे की मदहोशियां है।
वह दीवारें हमे पुकार कर याद दिला रही
वह चीख चीख हमें कुछ -कुछ बता रही
वह अपनी पुराने किस्सों को दोहरा रही
क्या थे हम क्या हो गए वह ये दिखा रही
यहां भी रोशन ऐ महफिले सजा करती थी
जहां सदा  घुंघरू की थाप सुनाई देती थी
जहां रोशन  हर शाम गुलजार सी होती थी
जहां महकता हुआ सा शमा भी होती थी।
यहां की हर चीज में शान शौकत न्यारी थी
जहां की हर चीज कुछ अलग  निराली थी
लगते थे हर दिन शाम को निराले
से मेले आज छाई विरानी हो गए 
कितने अकेले।
जहां अत:पुर में बसती थी सुंदर नारियां
सौंदर्य से हवा में भी होती थी खुमारियां
कितना सुंदर आहा! दृश्य हुआ करता था
जब राजा -रानी और महफिले सजती थी।
यह खंडहर कभी खुद पे इतना मगरूर था
सानो शौकत भी यहां  दिखता भरपूर था
जहां सिर्फ दौलत सौंदर्य दिखाई देता था
जहां चारों ओर ये जलवा दिखाई देताथा।
ये खंडहर नारियों की चीख भी सुनता था
जहां अत्याचार भी इसे  दिखाई  देता था
नारी कुमारी की इज्जत भी लूटी जातीथी
बाहर उसे दिखाने को वो पूजी जाती थी।
कुछ खुशी कुछ गम भी खुद में समेटे हुए
बने गया खंडहर सब कुछ वह सहते हुए
बता रहा  दौलत ना शोहरत काम आती है
वक्त एक दिन सबको खंडहर बानाती  है।
तो छोड़िए गुरुर कुछ तो ऐसा काम कर ले
जाना है पर इतिहास में नाम अमर कर ले
जितनी हो शक्ति इतनी करें अपनी भक्ति
जीवन हो सार्थक लगाये कुछ ऐसी युक्ति।

✍️ डॉ अरुणा पाठक  आभा रीवा
16.

जीवन में अच्छे संस्कार और आदतों का महत्व

हमारे जीवन में अच्छे संस्कार और आदतों का बड़ा ही महत्व है। अगर हम अच्छे संस्कार अपनाते हैं तो वह हमें अभूतपूर्व सफलता की ओर अग्रसर करते हैं। और वही बुरे संस्कार और गलत आदतें ,पतन और असफलता के गहरी खाई में धकेल देते हैं ।जहां से हम निकलने का लाख प्रयास करके भी नहीं निकल पाते, यदि हम जीवन में किसी अच्छी आदत को सोच विचार कर बुद्धिमत्ता पूर्वक अपने व्यक्तित्व में शामिल कर ले, तो वह व्यक्ति के स्वभाव में शामिल हो जाती है और हमारी जीवन पद्धति को उच्च बनाने में मदद करती है, और वहीं पर बुरी आदत यदि किसी व्यक्ति को लग जाए तो जीवन पर्यंत उसका पीछा नहीं छोड़ती और उसके स्वभाव में रच-बस जाया करती है और उसकी बहुत-सी असफलताओं का प्रमुख कारण बन जाती है। शिशु की प्रथम शिक्षक उसकी मां होती है और उसकी शिक्षा-दीक्षा जन्म उपरांत ही शुरू हो जाती है। बालक जो घर में वातावरण संस्कार देखता है वही अनकहे रूप में भी ग्रहण करता जाता है ।और उसी के अनुसार उसका चरित्र निर्माण भी शुरू हो जाता है यदि हम उसी समय से उसके अंदर नेक तथा अच्छी आदतों का रोपण, करें तो उनका चरित्र आगे चलकर दूसरों के लिए एक आदर्श बन जाता है किसी भी मनुष्य की 20 वर्ष की आयु ऐसी होती है। जब उसके अंदर संस्कार जड़ पकड़ लेते हैं और वे अच्छे बुरे संस्कार उसके चरित्र में शामिल हो जाते हैं उसके ही अनुसार उसका आचार व्यवहार विचार कर्म भी उसी के मुताबिक होते जाते हैं। कभी-कभी हम बच्चों की छोटी गलतियों को सामान्य कह कर नजरअंदाज कर देते हैं ,पर वही गलतियां धीरे-धीरे विशाल वृक्ष बन जाती हैं और उस विशाल वृक्ष  को उखाड़ फेंकना नामुमकिन नहीं, पर मुश्किल जरूर हो जाता है हमारी पारिवारिक परंपराएं और रीति रिवाज व्यक्ति तथा समाज को प्रभावित करती हैं अगर परंपराएं अच्छी है तो समाज पर इनका अच्छा प्रभाव पड़ता है तथा बुरी है तो समाज को दूषित कर देती हैं बुरी आदतें नदी की धारा के समान ही हैं इन्हें अपनाने में कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती पर छोड़ने में बहुत करना पड़ता है
हेजलेट. ने बुरी आदतों के विषय में एक स्थान पर लिखा है--- मनुष्य के मन से बुरी आदतों की लौह श्रृंखला किसी जहरीले नाग की भांति लिपट जाती है तथा उसके दिल में घातक प्रभाव डालती है और तोड़ मरोड़ कर उसे खाली करती जाती है
इसका नतीजा यह होता है कि वक्त से पहले ही उस व्यक्ति का जीवन समाप्ति की ओर अग्रसर हो जाता है दरअसल बुरे संस्कार उस फिसलन भरी चिकनी ढलान के समान है जिस पर पर अचानक पैर पड़ने के उपरांत मनुष्य कितना भी संभालने की कोशिश करें फिसलता ही जाता है और पतन के उस गहरे गड्ढे की ओर बढ़ जाता है। जहां सिर्फ उसके संस्कारों का और उसकी अच्छाइयों का समापन होता है।
इसलिए हमें अपने बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार और आदतों का विकास करना चाहिए ।

✍️ रेखा शाह आरबी
जिला बलिया उत्तर प्रदेश

17.
कुछ सीखें बातों बातों से
कविता :- 17(49) , हिन्दी

नमन 🙏 :-
तिथि :- 09/09/2020
दिवस :- बुधवार
विधा :- कहानी
विषय :- कुछ सीखें बातों बातों से !

कहानी
कुछ सीखें बातों बातों से !

कोरोना काल से दस साल पहले दो हज़ार नौ , दस की बात है , जब गंगाराम अपने गाँव झोंझी के राजकीय प्राथमिक विद्यालय से पाँचवी पढ़कर बग़ल के गांव के राजकीय मध्य विद्यालय नरही में छठवीं कक्षा में नामांकन करवाया रहा, वह अपने दोस्त व भानजा मुकेश के साथ अपने अपने साईकिल से विद्यालय एक साथ ही आते जाते ,श्री सच्चिदानंद झा जी उस वक़्त उस विद्यालय के प्रधानाध्यापक पद पर रहें , नाटा होने के कारण लोग उन्हें भुतवा सर कहकर पुकारते , उस समय टिफ़िन के समय विद्यार्थियों अपने अपने बस्ता लेकर घर चलें जाते फिर खाना खाकर आते, कितने तो टिफ़िन के बाद आते ही नहीं, और जो आते नहीं उनका मार्ग रोशन से अंधकार हो जाते, और जब वह अगले दिन विद्यालय आते या तो प्रधानाध्यापक जी नहीं तो कक्षा अध्यापक महफूज सर जी वह इलाज़ करते की, फिर से टिफ़िन के बाद आना ही आना पड़ता , दुर्गा पूजा की छुट्टी से पहले एक दिन अर्चना टिफ़िन के समय गंगाराम के सामने आकर ऊँगली दिखाकर पूछी कि तुम्हारा ,, टाईटल क्या है, यूँ मैथिली भाषा में पूछी रही … कि तोहर टाईटल की छोअ , गंगाराम को लगा कि हमसे पूछ रही है कि मेरी प्रेमिका कौन है, गंगाराम क्या खुश हो गया नदी के निर्मल जल से सागर की ओर एक ही बार में चला गया , फिर उत्तर दिया ,कीछो नैय मतलब कोई न । आरती , चाँदनी, छोटी , ज्योति, पूजा ,दीक्षा, दीप्ती, श्वेता, बबली , मिली, मनीषा व अपने सहेलियों के साथ अर्चना विद्यालय के बगल वाले आम के बग़ीचे में खेलने चली गई , और गंगाराम अपने मित्र मुकेश के पास आया और बोला, जानैय छीही अर्चुआ हमरा स्अ पूछलक कि तोहर टाईटल की छोउ, हम कहलियै कीयो नैय ,तब मुकेश हँसते हुए बोला अरे तोहरा सऽ पूछलको तोहर जाति की छोअ , गंगाराम बोला अच्छा भाई उसे यह पता न जब कक्षा में हाज़िरी होता है 93 ( तिरानवे ) के बाद क्रमांक 94 ( चौरानवे ) जो झा है तो उसे पता न कि हम ब्राह्मण हैं हद है , तब से गंगाराम को जब भी टाईटल की बात याद आते तो उसे अपने दोस्त मुकेश और चमकीले आँखों वाली अर्चना की याद आ जाते, ये सीख उन्हें इन्हीं दोनों के सहयोग से प्राप्त हुआ रहा, जब भी कोई रचना लिखने से पहले रचना का शीर्षक गंगाराम देता है तो वह अपने आप को शर्मिंदा महसूस करता हैं, कि एक वक्त पता न था कि टाईटल , शीर्षक क्या होता है और आज प्रत्येक दिन ही कोई न कोई शीर्षक पर कुछ न कुछ यूँ ही लिख लेते हैं, सब माँ सरस्वती की दया प्रेम और आशीर्वाद है, और उसे वह अनमोल पल याद आ जाता है, जब अर्चना पूछी रही तुम्हारा टाईटल ( Title ) क्या है, क्या वह ज़िन्दगी थी ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
कविता :- 17(49) , बुधवार , 09/09/2020
मो :- 6290640716 , कविता :- 20(13)
साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 21
31/05/2021 , सोमवार

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18.

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साहित्य संगम संस्थान
🌹स्वमंतव्यामंतव्यप्रकाश🌹

वरम्विरोधोsपिसमम्महत्मभि:

मैं स्वमंतव्यामंतव्यप्रकाश में आदित्यवार को अपने मन की बात लिखता हूँ। आप सबका स्नेह और आशीर्वाद मुझे लिखने की प्रेरणा और संबल प्रदान करता है। दुष्टों का संग जहां जीवन को बर्बाद करने वाला होता है वहीं विग्रह तो और भी ख़तरनाक होता है। परंतु सज्जनों का साथ जहां जीवन को उत्तरोत्तर उन्नति के पथ पर ले जाता है वहीं यदि किसी कारण विरोध हो जाए तो भी वह वरदान ही साबित होता है। क्योंकि सज्जन होते ही ऐसे हैं। वे किसी भी परिस्थिति में हमारा अहित नहीं करते। यह सज्जनता की सबसे बड़ी पहचान और परिभाषा है। जहां अध्यापन करते हुए न जाने कितने छात्रों का जीवन बनाने का सुअवसर मिला वहीं साहित्य संगम संस्थान के माध्यम से असंख्य लोगों को सम्मानित करने और लिखने-पढ़ने, सीखने-सिखाने का सौभाग्य मिला। यह मैं अपने जीवन में पूर्व जन्म के कृत कर्मों का पुण्य/प्रारब्ध ही मानता हूँ। जब किसी विद्वान और देवी को सम्मानित किया तो इतना आशीर्वाद मिला कि जीवन सात्विकता से भर गया। वहीं यदि गलती से कोई दुष्टात्मा सम्मानित हो गई तो उसने दिन का सुख और रात का चैन छीन लिया। कुछ तो ऐसे मिले कि जिनसे बहुत प्यारा संबंध था पर जैसे ही कोई मौका मिला तो वे अपनी महानता की छाप छोड़ गए। किसी गलत व्यक्ति को विद्या/अलंकरण/संपादन/छंद प्रशिक्षण आदि दे दिया तो उसने सदैव मेरे ही पैर पर कुल्हाड़ी मारकर मुझे अपमानित करने का प्रयास किया और बार-बार यह सोचने पर मजबूर किया कि बहुत बड़ी गलती हो गई। पर आप सभी का संगम सदा ढाढस बढाता रहा।  संगम अगम है, इसमें अनेक रत्न हैं। मैं तो इस संस्थान की सबसे छोटी कड़ी हूँ और सदैव खुद को सेवक मानता हूँ। मुझे एक संत मिले जो स्नेह- प्यार, रिश्तों की अहमियत बताते रहते पर मैं सदैव इन सबसे ऊपर साहित्य सेवा और संस्थान को रखता हूँ। कई बार उन बाबा जी से मेरा मतभेद हुआ पर कभी मैं उन्हें व्यक्त नहीं कर पाया। महामारी के दौरान वे भी पॉजिटिव हो गए और उनके बाद मैं भी। वे पहले अस्वस्थ हुए थे, जीवन और मौत से लड़कर मौत को पराजित कर पहले ठीक हो गए और मैं उनके बाद उनके दिशानिर्देश में और आप सबके आशीर्वाद से स्वास्थ्य लाभ पा गया। जैसा कि मैंने अपने पूर्व आलेख में लिखा था कि बीमारी के अंतिम समय मेरा बीपी बढ़ गया था। जिस कारण नकारात्मकता हावी हो गई थी। इसी मध्य एक विषय को लेकर मतभेद हुआ और मेरी उन संत से बहस हो गई। पहली बार मैंने उनसे बहस की थी। वे बहुत आहत हुए साथ ही मेरी भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। मैं भले ही स्नेह- प्यार और रिश्तों को साहित्य सेवा और संस्थान के बाद महत्व देता हूँ पर आख़िर हूँ तो आदमी ही। स्नेह - प्यार और रिश्ते कहीं न कहीं मुझे भी उद्वेलित करते हैं, यह बात अलग है कि मैं रिश्तों आदि को और मानापमान, हानि-लाभ, सुख-दुख को परे रख दीवानों/पागलों की तरह साहित्य और इस संस्थान के विकास में लगा हुआ हूँ। दो दिन बाद मन न माना फिर उनसे संपर्क किया तो पता चला कि वे पुनः भयंकर रूप से बीमार हो गए हैं। उनके अनुसार पूरा शरीर छलनी कर दिया गया है, कभी इंजेक्शन लगाने के नाम पर तो कभी ब्लड सैंपल लेने के नाम पर। मैं द्रवित हो उठा और दृढ़ संकल्प किया कि अब ये कितना भी भड़कें पर जब तक स्वस्थ नहीं हो जाते मैं इनका साथ नहीं छोडूंगा। काहे कि बाबा जी भी जिद्दी कम नहीं हैं। आख़िर आराध्य किसके हैं!!! अब वे पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं और फिर से अपने पूर्ववत फॉर्म में आ चुके हैं। आज उनका सुबह-सुबह आशीर्वाद मिला तो लगा कि दुनिया की सारी न्यामतें मिल गईं। जहां आवेश में आकर वे बहुत कुछ बोले थे जिनकी प्रतिक्रिया मैंने भी इतनी भंयकर बनाई थी कि यदि वह भेज देता तो अनर्थ हो जाता। पर मैं सदा कहता हूँ न कि साहित्य सेवा करते हुए मुझे सदैव उस नियंता का अहसास होता है, प्रतिक्रिया भेजने ही जा रहा था कि एक देवी का फोन आ गया। ये वही देवियां हैं जिनकी नवरात्रों में मैने/हमने पूजा की थी। लोगों को जड़ देवियां और देवता लाभ पहुंचाते हो या न हों पर ये सजीव देवियां मुझे अपना आशीर्वाद अवश्य प्रदान कर रही हैं। यह फोन भी वैसा ही था जैसा अनुजा सुमति श्रीवास्तव का आया था, अप्रत्याशित नए नं० से। मेरी आदत नए नं० से फोन न उठाने की होने के बावजूद न जाने क्यों फोन उठा लिया। लंबी वार्ता के बाद उन्होंने संत जी को किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से मना किया। मैंने अपने आवेग को किसी तरह शांतकर देवी जी का आदेश शिरोधार्य किया। आज उसका सुपरिणाम मैं साक्षात् देख रहा हूँ। जहां बाबा जी बहुत कुछ बोले थे, जिससे मैंने सोच लिया था  कि अब ये भी अन्यों की तरह मेरी बुराई करेंगे समाज में। वे सारी बातों को भूल पुनः अपने साहित्य हितैषी अंदाज़ में पुनीत भाव से लग गए। वे जब मुझे आशीर्वाद देते हैं तो लगता है संसार की सारी खुशियां मुझे मिल गईं। मुझे छब्बीस साल पहले पढ़ा किरातार्जुनीयम् का वह श्लोक याद आ गया कि संतों के संग विरोध भी वरदान साबित होता है। मैं अपने जीवन में सदा ही उनका आशीर्वाद चाहता हूँ और सदा प्रार्थना करता हूँ कि साहित्य संगम संस्थान को फलता-फूलता देखकर वे सदैव आह्लादित होते रहें। अब आपने इतना पढ़ ही लिया है तो मेरे दो प्रश्नों के उत्तर प्रतिक्रिया में दीजिए, कि वे संत कौन हैं और वह देवी कौन है? लेख से न समझ में आए तो खोजिए और आप भी कोई ऐसा संत तलाशिए जिससे वैर होने पर भी वह आपका उपकार ही करे।

✍️ राजवीर सिंह मंत्र जी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली


साहित्य एक नज़र




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