साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 23, बुधवार , 02/06/2021

साहित्य एक नज़र 🌅






साहित्य एक नज़र

अंक - 23
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 23
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अंक - 23
2 जून  2021
बुधवार
ज्येष्ठ कृष्ण 8 संवत 2078
पृष्ठ -  13
प्रमाण पत्र -  10 - 12
( आ. रंजना बिनानी जी , आ. राजेन्द्र कुमार टेलर राही जी , आ. नीरज सेन ( क़लम प्रहरी ) जी
कुल पृष्ठ - 13

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 23
Sahitya Ek Nazar
2 June 2021 ,  Wednesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর






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अंक - 22 से 24 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा






कविता :- 20(11)

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अंक - 19
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कविता :- 20(12)
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अंक - 20

अंक 20
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कविता :- 20(13)
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अंक - 21

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अंक - 22
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अंक - 23
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अंक - 24
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🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

प्र. पत्र . सं - _ 016  दिनांक -  _  02/06/2021

🏆 सम्मान - पत्र 🏆

आ.  _  रंजना बिनानी     _  जी

ने साहित्य एक नज़र , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका अंक  _  1 - 22  _   में अपनी रचनाओं से योगदान दिया है । आपको

         🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
सम्मान से सम्मानित किया जाता है । साहित्य एक नज़र आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।

रोशन कुमार झा   , मो :- 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
अलंकरण कर्ता - रोशन कुमार झा

1.

साहित्य एक नज़र 🌅 का स्वयंसेवी बनने हेतु -

साहित्य एक नज़र  🌅 , बुधवार , 2 जून 2021

हमारी दैनिक ई पत्रिका साहित्य एक नज़र 🌅  जो कोलकाता से प्रकाशित होती है। देश की सभी राज्यों से एक- एक न्यूज एवं सहित्य स्वयंसेवी प्रतिनिधि नियुक्त करने जा रही है जो अवैतनीय पद होगा।
नियम व शर्ते:-

1. साहित्य लेखन की जानकारी रखता हो ।

2.साहित्यकारों को हिंदी भाषा की सेवा के लिए पत्रिका से जोड़ सके।

3. समय आने पर अपने प्रदेश के स्वयंसेवियों को जोड़ कर उसका विस्तार कर सकें।

4.यह अभियान हिंदी भाषा व साहित्य के विस्तार एवं साहित्यकारों को प्रकाश में लाना है।

5. इसके लिए न किसी से कोई शुल्क लिया जाएगा और न पत्रिका द्वारा कोई मानदेय देय होगा।

6. अपने क्षेत्र की साहित्यक खबरे और साहित्यकारों की रचनाएं प्रकाशन हेतु भेज सकते है।अगर प्रकाशन हेतु सही होगी तो प्रकाशित की जाएगी अंतिम निर्णय प्रकाशन मण्डल का होगा।

7. इसके लिए कोई भी स्वयंसेवी किसी से कोई धनराशि नहीं लेगा।

नोट ( सूचना )  :- जो भी स्वंयसेवी बनना या कार्य करना चाहते हो कृपया अपना परिचय फ़ोटो के साथ हमारे वाट्सएप्प नम्बर 9753877785 पर भेज सकता है।पत्रिका द्वारा उनसें सम्पर्क किया जाएगा। यदि पत्रिका का कोई भी पदाधिकारी सम्पर्क नहीं करता तो वो उसे निरस्त समझें कोई किसी तरह का पत्राचार्य न करें।

आपका
प्रमोद ठाकुर
सह संपादक / समीक्षक
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
9753877785

रोशन कुमार झा  
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक


2.

परिचय -
राजेन्द्र कुमार टेलर राही
राजकीय उच्च माध्यमिक
विद्यालय रायपुर पाटन,
सीकर
राजस्थान 332718
प्रकाशित पुस्तकें:-
मंज़र
अहसास
ये खुशबू का सफर
ये लम्हों का सफर
वक़्त की दहलीज पर
ये दस्तक दिल के दर पे
भर्तृहरि मंजरी
बच्चों के गीत
पत्रिकाओं और अखबारों में प्रकाशित रचनाएँ :-
जैसे कादम्बिनी
साहित्य अमृत
आधुनिक साहित्य
सार्थक
विश्वगाथा
माही संदेश
काव्य रंगोली आदि

रचना

अँधेरे वहम के छाने लगे हैं चिराग जलाओ।
मेरे अपने ही बेगाने लगे हैं चिराग जलाओ।

सदियों से रहते आये हैं एक दूजे के दिल में हम
वो दीवार कोई उठाने लगे हैं चिराग जलाओ।

मुखौटों में भी रहते हैं असल चेहरे ये अक्सर
ये ऐय्यार मुस्कुराने लगे हैं चिराग जलाओ।

दिलों के उजाले की अब जरूरत बड़ी शिद्दत से है
कि वो रूठ के यूँ जाने लगे हैं चिराग जलाओ।

कभी लुट न जाये ये कारवाँ भी मेरा यूँ राही
नकाबों में अब वो आने लगे हैं चिराग जलाओ।

✍️ राजेन्द्र कुमार टेलर राही
फोन - 9680183886

समीक्षा

राजेन्द्र जी की अद्भुत ग़ज़ल लेखन का मैं भी कायल हो गया ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जो अपने हर अल्फ़ाज़ में बहुत कुछ समेटे होती है। जैसे राजेन्द्र जी की ये ग़ज़ल जैसे अपने परायों का फ़र्क समाज के बदलतें चेहरे  किसी अपने का रूठने का ग़म किसी से बिछड़ने का दर्द मुखोटों में छुपाये अपने असली चहरे  अगर ये देखना है तो चिराग़ जलाओ प्रेम का सौहार्द का ।
ग़ज़ल की इतनी बारीकी की समझ रखने बाले हमारे ओजस्वी कवि श्री राजेन्द्र जी को अनेकों शुभ कामनाएं और अपना साहित्यिक सफर यूं ही जारी रखें और हम सभी को अपनी रचनाओं से ओतप्रोत करतें रहें।

समीक्षक ✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
ग्वालियर , मध्य प्रदेश
9753877785
3.

परिचय

नाम: नीरज सेन(क़लम प्रहरी)कुंभराज
पिता का नाम: श्री हरि सिंह सेन
शौक: गीत, ग़ज़ल, कविता एवं लेखन कार्य
पेशा: मध्यप्रदेश पुलिस में आरक्षक
प्रकाशित रचनायें: कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन
मोबाइल नम्बर: 9981089220

" ग़ज़ल "

बदलती तारीखों में ,बदलता हुनर सीखो!
कुरेंदो किश्म केशर की ,महकना नर सीखो!

गुजरते  वक्त में , गुजरे  हैं किस्से प्रीत के
दरारे  दामने  थामो  संवरता  घर सीखो!

  कैलेंडर ही पलटते जाओगे क्या दोस्तो,
पलटकर नज़्म नीयत की उम्र भर सीखो!

गली का कूंच बदले बेटियां बेशर्म  लड़कों
पलटकर देखले दुश्मन भी वो नज़र सीखो!

पुराने गांव की बन छांव चलता साथ हो,
जमीं  से  जुड़   उभरता  शहर सीखो!

बदलते सत्र में खुशियां हज़ारों पार हो
सभी की गलतियां भूलो सबर सीखो!

उछलते हो हवा में क्यों मुशाफिर बेवजह,
सलीके से निभाले साथ वो सफ़र सीखो!

निवाले छीनते हाथों से कहदो आदमी हो
बांटलो  वक्त  बोझिल सा   बसर सीखो!

बिखर जाओगे क्या तुम किसी जज़्बात से
निखरने का सबक दिन रात जबर सीखो!

यूं अफ़वाहों के चलते दौर में शामिल ना हो
किसी की बात बनती हो ऐसी खबर सीखो!

✍️ नीरज सेन ( क़लम प्रहरी )
कुंभराज, गुना (मध्यप्रदेश)

समीक्षा

आप लेखन के सशक्त हस्ताक्षर है आपकी कई रचनायें विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
मैं इनकी लेखनी की बात करूं तो  इनकी इस ग़ज़ल में की इंसान को  कठिन परिस्थितियों में  भी विचलित नहीं होना चाहिए । जैसे कलेंडर की तारीख बढ़ती जाती है   बैसे ही इंसान को कठिन से कठिन स्थिति में भी बढ़ते ही रहना चाहिये स्थितियां कुछ भी हो अगर एक रोटी हो तो उसे भी बांटना सीखों सुनी अफवाओं पर  भरोसा मत करो अपने विवेक को जगाओ और कुछ अच्छा सीखों।
नीरज सेन जी की ये ग़ज़ल समाज का एक आईना है।

समीक्षक ✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
ग्वालियर , मध्य प्रदेश
9753877785
4.

पीवे बैठे कल्लू भैया,
सब दोस्तान के संगे।
मंगाई बोतल,
होन लगी हर-हर गंगे।
पीके सबकों मदहोशी सी छाई।
तब नॉनवेज खावे की याद आई।
कल्लू चुपके से घर पहुँचे,
बकरा खोल ले  आये।
ऐसो बनाये हम जाये,
जो सब के मन को भये।
ऐसो बनो लज़ीज़,
सबई खा के लमलेट हो गये।
कल्लू खो भी आयी झपकी,
उनई के संगे सो गये।
पहुँचे सवेरे कल्लू घर पे,
बकरा देख भौ चक्के से रह गये।
पत्नी को आवाज़ लगाई,
बोले जो बकरा किते से आओं।
पत्नी बोली छोड़ो बकरा,
एक बात हमें बताओं।
चोरन जैसे घुसे घर में,
जो का गजब कर गये।
पहले जा बताओं,
रात में कुत्ता खोल के किते ले गये।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर
9753877785

5.

नमन 🙏 :-  साहित्य एक नज़र 🌅
कुछ लिखूं ।

कुछ लिखना है ,
पर कहाँ से शुरूआत करूँ ।
व्यर्थ की क्यों बात करूँ ,
अकेले चलने से बेहतर
है साथ चलूं ,
कभी सड़क पर
तो कभी गंगा घाट चलूँ ।।
वहां चलकर प्रकृति
की सौन्दर्य चित्रण करूँ ,
हल्का अपना मन करूँ ।।
रच - रच कर रचना रचते रहूँ ,
कड़ी मेहनत के बाद मैं
इसी तरह हंसते रहूँ ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
बुधवार , 02/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(15)
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 23
Sahitya Ek Nazar
2 June 2021 ,  Wednesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
6.

02/06/2021 , बुधवार , साहित्य एक नज़र 🌅
अंक - 23

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https://youtu.be/YJ6xadiJAvI

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा , बिहार
लनमिवि ( एलएनएमयू )
बी.ए, बी.एस.सी , बी.कॉम , नोन हिन्दी , द्वितीय वर्ष की प्रश्र -

Lalit Narayan Mithila University
Darbhanga, Bihar

_____________
LNMU , B.A,B.SC,B.COM , Non-Hindi ( Part –2 )

गंगावतरण का कथासार संक्षेप में प्रस्तुत करें ।

LNNU , B.A,B.SC,B.COM , Non-Hindi ( Part – 2 )
पाषाणी , गंगावतरण , भगीरथ , हिन्दी
Pashani , Gangavataran , Bhagiratha

गंगावतरण का कथासार संक्षेप में प्रस्तुत करें ।

गंगावतरण की कथा पौराणिक है। देवराज इन्द्र की प्ररेणा से भगीरथ के पूर्वजों ने मुनिश्रेष्ठ कपिल को अपमानित करना चाहा किन्तु महर्षि कपिल के तपोबल के ताप में उनका अस्तित्व ही दग्ध (जल गया) हो गया और आश्चर्य यह कि भागीरथ के पूर्वजों का भस्मावशेष (राख के रूप में बचा अंश)
शीतल ही नहीं हो पा रहा था । भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार करने के लिए तप का सहारा लिया ‌। उनकी तपोनिष्ठा ( तप करने की भाव ) के परिणामस्वरूप ही स्वर्ग की गंगा पृथ्वी पर उतरी । इस विषय में किसी ने ठीक ही कहा है :-

भगीरथ को अपने पूर्वजों को करना रहा उद्धार ,
तब किया उन्होंने तप विद्या को स्वीकार ।
लगा रहा तप में, छोड़ कर ये सुख, सुविधा, संसार ,
तब पूर्वजों को उद्धार की और बनी गंगा
पावन देश धरती की हार ।।

गंगावतरण भगीरथ की तपोनिष्ठा के यश:कल्प की कथा गाथा है । उनके यश की यह गाथा तीन दृश्यों में बांटा है । प्रथम दृश्य भागीरथ के उग्रतप के निश्चय से होता है । पितरों के उद्धारार्थ तप के अतिरिक्त ( अलाव ) उनके समक्ष (सामने) कोई दूसरा विकल्प नहीं है ‌। अतः उनका निश्चय है –

मैं करूँगा तप , महातप मौन –
ऊर्ध्व बाहु , कनिष्ठिका भर टेक-
भूमि पर , कंपित न हूंगा नेक !
अपने पूर्व निश्चय को वह गंगोत्री के पुण्य-तीर्थ में कर्मणा चरितार्थ है । निराहार तपस्या में वह निरत है । भगीरथ के तप की ख्याति चतुर्दिक ( चारों तरफ ) फैली हुई है ‌। भगीरथ के तप से सूर्य , चन्द्र, नक्षत्र सभी प्रकंपित है । इन्द्र को यह सूचना नारद से उपलब्ध होती है। इन्द्र भगीरथ के उग्रतप से अत्यंत चिन्तित हो उठते हैं । परन्तु उन्हें उर्वशी, रंभा जैसी अप्सराओं का भरोसा है । वह अतः उर्वशी और रंभा को भगीरथ की तपस्या के स्खलनार्थ पृथ्वी पर भेजते हैं । यह दृश्य अपनी प्रस्तावना में भगीरथ की चारित्रिक- दृढ़ता एवं इन्द्र के षड्यंत्र निश्चय से संपृक्त है ।
द्वितीय दृश्य का सूत्रपात अत्यंत मादक वातावरण से होता है ‌। आधी रात का समय है , दूध की धोयी चांदनी दिक् – दिगन्त में छितराई है । उन्मादक वायु का शीतल प्रवाह वातावरण में तंद्रिलता बिखेर रहा है । नीरव शांति का सन्नाटा चतुर्दिक व्याप्त है । ऐसे कामोद्दीपक वातावरण में भी वह स्तूपवत् खड़े हैं । वे वातावरण में सर्वथा अलिप्त हैं । तपस्या में निर्बाध निरत भगीरथ संकल्प-दृढ़ता के उत्कर्ष में अधीष्ठित है ‌। इसीलिए अप्सराओं सम्मोहन भी उनके लिए निरर्थक ही सिद्ध होता है । रंभा और उर्वशी के सम्मोहन से भगीरथ छले नहीं जाते । वे अपनी तपस्या में शान्त भाव से लीन हैं । अप्सराओं के समक्ष भगीरथ की तपस्या विचलित नहीं होती । अप्सराओं का कामोद्दीपन भगीरथ को थोड़ा भी प्रभावित नहीं कर पाता । वे निष्काम ही बने रहते हैं । धरती की तप : साधना के समक्ष देवलोक का दंभ धूमिल हो जाता है ।
भगीरथ की तृप्तकाम निष्कामता तृतीय दृश्य में पुरस्कृत होती है । अनेक वर्ष बीत गए किन्तु तपोनिष्ट भगीरथ का मस्तक विचलित नहीं हुआ ‌ । तन शिराओं का बन गया, पर मनोरथ इष्ट-सिद्धि के पूर्व कभी क्लान्त नहीं हुआ। उनके प्रबल संकल्प के सामने ब्रह्मा का कमलासन हिल उठता है । वे ‘ब्रह्मब्रूहि’ के आश्वासन के साथ भगीरथ के समक्ष प्रस्तुत होते है । वे भगीरथ को स्वर्ग का प्रलोभन देते है किन्तु स्वर्ग – सुख के प्रलोभन से वह छले नहीं जाते। अपने पूर्वजों के उद्धारार्थ वह पृथ्वी पर गंगाअवतरण की याचना करते है । ब्रह्मा कर्मफल की दुहाई देते हुए यह प्रस्तावित करते है कि भगीरथ के पुण्यकर्म उनके पितरों के उद्धार में तो असम्भावना ही व्यक्त करते हैं। भगीरथ ब्रह्मा के कर्मज संस्कार को निरर्थक सिद्ध करते है। कहते हैं –
मैं उतारूँ पार औरों को न जो ,
धिक् तपस्या , नियम ! तब सब ढोंग तो ।
भगीरथ के अनुसार सूर्य की व्यापकता केवल उसी तक सीमित नहीं रहती , वह सभी को प्रकाश देती है । कर्म का शीतल प्रभाव चाँदनी के रूप में सबको स्निग्धता में डुबो देता है। फिर भगीरथ की तपस्या पितरों को भी प्रभावित नहीं कर सकेंगी क्या ? अतः उनकी कामना है –
मेरे पितर क्या ? भस्म ही उनका अरे , अब शेष ,
उनके बहाने हो हमारा पतित पावन देश ।
पूर्वजों का उद्धार तो एक बहाना है ‌ । भगीरथ की कामना सम्पूर्ण देश की पावनता से संपृक्त है । ब्रह्मा भगीरथ की इस मूल्यजीविता पर ही रीझते है। प्रसन्नता के आह्लाद में वह कहते है-
कुल कमल राजा भगीरथ धन्य
स्वार्थ – साधक स्वजन होते अन्य ।।
मानता , जग कर्म-त़त्र – प्रधान ,
पर भगीरथ असामान्य महान् ।
लोक-मंगल के लिए प्रण ठान –
तप इन्होंने है किया , यह मान-
हम, इन्हें देंगे अतुल वरदान ,
ये मनुज उत्थान के प्रतिमान ।
ब्रह्मा की धारणा में भगीरथ ‘मनुज उत्थान के प्रतिमान’ की सिद्धि अर्जित करते है । उनकी कामना है कि कीर्ति-गाथा गगन चढ़े ऊपर, सबसे ऊपर फहरे , लहरे । इस क्षण देवाधिदेव शंकर का आशीष ( आशीर्वाद ) भी भगीरथ को सुलभ होता है। भगीरथ का शिवधर्मातप तृप्तकाम होता है। स्वर्ग की गंगा धरती पर अवतरित होती है ।

03/03/2021 , बुधवार , कविता :- 19(24)
रोशन कुमार झा , Roshan Kumar Jha , রোশন কুমার ঝা
रामकृष्ण महाविद्यालय , मधुबनी , बिहार
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार
साहित्य संगम संस्थान , पश्चिम बंगाल इकाई (सचिव)
मोबाइल / व्हाट्सएप , Mobile & WhatsApp no :- 6290640716
roshanjha9997@gmail.com
Service :- 24×7 , सेवा :- 24×7

https://youtu.be/YJ6xadiJAvI
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7.

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#साहित्यसंगमसंस्थान
#मीतमेरेमनके
#
साहित्य संगम संस्थान
मीत मेरे मन के
पत्र - लेखन

ओ मेरे मेरे मन के मीत, मेरे प्रिय संस्थान!!!

आज फिर मैं कुछ लिखने बैठा हूँ। क्या लिख सकता हूँ, वही जिससे मन उद्वेलित है। मैं कितना भी खुद को समझाकर छंद लिखने का प्रयास करूं पर मेरा मन पुनः उसी पर आ टिकता है जिससे वह बहुत परेशान है। भला विचलित मन से कोई साहित्य रच सकता है? अच्छा है कि आज की विधा पत्र रखी गई है।

क्या अच्छा बनना, इतना ख़राब है? क्या किसी को सम्मानित करना कोई गुनाह है? क्या किसी को सिखाना और उससे अच्छी बातें और विद्या सीखना इतना कष्टदायक हो सकता है? क्या अपनी माता की सेवा करना बुरा कार्य है? क्या सत्यवादी, स्पष्टवादी, ईमानदार और निष्ठावान होना अपराध है? क्या सरल होना घातक हो सकता है? हां मैंने नीतिशास्त्र पढ़ा है, जिसमें स्पष्ट लिखा है-

नात्यंतं सरलीभाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यंते सरलास्त्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपा:।।

अर्थात् नीतिकार कहते हैं कि अत्यंत सरल स्वभाव के मत बनो। जाकर जंगल देखो, जो पेड़ सीधे होते हैं वे ही काटे जाते हैं और जो टेढ़े-मेढ़े होते हैं। वे खड़े रहते हैं। तो यह जो संत लोग प्रवचन करते हैं वह हम लोगों को कटवाने के लिए और वेदादिक शास्त्रों में सत्पुरुष बनने का ज्ञान-विज्ञान वर्णित है वह जीवन को परेशानी में डालने के लिए है?

मैंने हिंदी सेवा का व्रत क्या ले लिया दिन का चैन और रातों की नींद हराम हो रही है। जिन्हें सिखा और सम्मानित कर प्रतिष्ठित और महिमामंडित करना चाहा वे ही कुठाराघात पर उतारू हैं। ये कैसे लोग हैं? मैंने तो इनका न तो कुल देखा और न गोत्र, न जाति न प्रांत, यहां तक की कभी आमने-सामने से मुलाकात भी नहीं हुई। पर ये क्यों पीछे पड़े हैं? यह अच्छी तरह से मैं जानता हूँ कि इनका सत्यानाश सुनिश्चित है। पर जब तक ये सुरक्षित हैं तब तक तो हमें जीने नहीं दे रहे। कोई भी अच्छा काम करने में ये अडंगा डाले बिना नहीं रहते। इन्होंने आपकी/संस्थान की शुरुआत से ही हमारी परीक्षा लेना शुरू कर दिया था। पांच वर्ष व्यतीत हो गए इनकी परीक्षा समाप्त नहीं हो रही। मैं वैसा ही तटस्थ हूँ, पर ये घूम-घूमकर दुनिया भर के संस्थानों में यही काम करते रहते हैं। इन्हें सफलता से कोई लेना-देना नहीं। इनकी समस्या यह है कि कोई सफल कैसे हो सकता है? हमारी तटस्थता और सफलता में ये अपनी असफलता और अपमान महसूस कर रहे हैं। तो करते रहें, मेरी इसमें क्या कमी  है? मैंने तो इनका कभी कुछ नहीं बिगाड़ा, सदैव हित ही चाहा है। इनकी नीयत ही गंदी है जो ये न इधर के रहे न उधर के। कहते हैं जब दीपक बुझना होता है तो वह भकभकाता बहुत है। ये ऐसे भकभका रहे हैं कि कमज़ोर हृदय वाले तो डर जा रहे हैं। हर आदमी कठोर हृदय का तो नहीं होता। कुछ तो परेशानी देख भाग खड़े होते हैं, भले उसका नाम ज्वाला सिंह क्यों न हो।

आप तो बहुत महिमाशाली हैं। आपने हमें वे सारी शक्तियां और वह सब कुछ प्रदान किया जो हमने चाहा। कभी कोई कमी नहीं रहने दी। यह भी नहीं देखा आपने कि मैं बहुत बड़ा आदमी नहीं हूँ।  जब जो सोचा वह पूरा हुआ। आपसे विनम्र निवेदन है कि ईश्वर को बोलकर इन नकारात्मक शक्तियों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त कीजिए। वरना ये जब तक भटकती रहेंगी न तो स्वयं चैन से रहेंगी और न हमें तथा हमारे सहयोगियों को रहने देंगी।

आपका मीत-
✍️ राजवीर सिंह मंत्र जी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली



8.
नमन मंच
दिनाँक २-६-२०२१
दिन-बुधवार
अंक-२२ से२४ के लिए
शीर्षक:

फ़ुर्सत के पल

आओ बेटा कुछ देर बैठ कर सुस्ता लें,
भाग दौड भरी जिंदगी को कुछ पल बाँध लें
आ दोनों बैठ कर एक दूसरे को निहार ले
इन फ़ुर्सत के पलों को प्यार में बांध लें
आ बेटा कुछ देर फ़ुर्सत से बैठ लें...
आ मेरी नज़रों से सारा प्यार पा ले
आ आज जी भर दोनों देख लें
कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुन ले
इस पल को अपनेपन में बाँध लें
आ बेटा कुछ देर फ़ुर्सत से बैठ लें...
कितने सालो साल बीत गए यूँ ही
जब हम इतने उन्मुक्त हो बैठ पाए
ये खुशी के पल हमारे पास आये
जी भर देख के जी ले आज  हम पास आये
आ बेटा कुछ देर फ़ुर्सत से बैठ लें..
जिंदगी कानों में कुछ कह सा गई
बीते पल लौट कर आते नही ये बोल गई
जो कुछ करना हैं कर लो अभी कह गईं
न जाने कल आएगा कि नहीं बता गई
आ बेटा कुछ देर फ़ुर्सत से बैठ लें...
अब जिंदगी की कुछ सुन तो ले
आ कुछ देर माँ के पास बैठ तो ले
क्यों उलझे हम जब हाथ में कुछ भी नहीं
सालों साल बीत गए इन्हीं उलझनों में
आ बेटा कुछ देर फ़ुर्सत से बैठ लें..
            "माँ"

✍️ डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद
घोषणा:स्वरचित रचना

9.

हाइकु

नशे की लत
खोखला कर देती,
चेत जा जरा।
नशा मुक्त का
प्रण कर लो तो,
जीवन हर्ष।
नशे के साथ
जीवन का हो नाश,
बचना होगा।
घाव नशे का
बहुत रूलाता है,
संयम रख ।
नशीला जहां
मौत का कुँआ जैसा,
बचना होगा।
बच लो यारों
नशे के जहर से,
बड़ा सूकून।

नशा कुँआ है
हमारी मौत पक्की,
बच लो भाई।

★✍️सुधीर  श्रीवास्तव
      गोण्डा (उ.प्र.)
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित,

10.
हुतात्माओं की हुंकार.

मृत्यु को पराजित कर
अमर होगा कौन?
वो है आंदोलित
हुतात्मा किसान!
दर्द खुद कहेगा मरहम से
तुम्हारी औकात नहीं
खींच लो मुझे बाहर
जिजीविषा ही है उपचार!
बंध-उपबंध की होड़ में
उत्सवी धूम धड़ाके में
विस्थापित आत्माओं में
फड़फड़ाते जन सरोकारों में
कीलें ठुक चुकी हैं
जंग लगी धाराओं की.
वाक्छल की आंधी में
हो रहे हैं औंधे सब
युद्ध के मैदान में युद्ध
ललकार रही है जनता को
दमघोंटू अशांति के धुएँ में
जल रहे हैं लोग
विस्थापन की आग में.
सुरक्षा की दुदंभी में
जीत से पहले ढोल बजा
जीत के बाद बजा नगाड़े
असुरक्षा के हैं शिकार
पछाड़ रही है तानाशाही
बहुसंख्यावाद की
घूर रही है हिंस्त्र आंखें
अल्पसंख्यावाद है
धकेलता मुमुर्षा की ओर.

@ ✍️  अजय कुमार झा.
    12/12/2020.

11.

#साहित्य एक नजर
#अंक   :- 22-24
#दिनांक:-1 से 3/6/2021के लिए
विधा - कविता

                 #दिनेश कौशल

        जीवन की आशा
     
जीवन के हर रंग क्षण
हो सुनहरे-प्यारे,
खुशियों से घर -
आँगन हरी भरी रहे,
कामना, स्वप्न, लालसा
, खुशी सबकी,
चाहतों की पूरी
बारात हमेशा सजी रहे।
कभी ना  इच्छाओं 
का करना हो दमन  ,
आशाओं का दीप
प्रज्वलित होती रहे,
जब  कभी भी  जीवन
में हो अँधियारा,
जीवन पूर्णिमा की
रोशन से हो उजियारा।
गर काल तब्दील
हो जाए प्रलय में,
निस्वार्थ सेवा-भावना
तन-मन में बनी रहे,
क्या गैर, क्या अपने,
क्या बेगाने सभी के,
जीवन में,  जिंदगी में
  आस जगी रहे।
टूटते, दरकते, बिखरते
,स्वप्न गर दिखे,
कभी ना हम हताश-निराश
, नाउम्मीद रहे,
इतनी क्षमता, मनोबल
मुझमे देना भगवन,
जीवन की आशा
उम्मीदों पर टिकी रहे।

✍️ दिनेश कौशल
कवि एवं शिक्षक
लक्ष्मीसागर
दरभंगा ( बिहार )

12.
||ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः||

  बेटी

सुनकर बहू ने जनी है
बेटी, सास हुई रुआंसी
दुःखी हैं दादा, पिता हैं पीड़ित,
फूफी पर है उदासी|
पिता सोचते कहाँ
होगा ब्याह बेटी का?
ब्याह होकर भी सुख
पाएगी या डूबेगी दुःख सागर में,
करके वितर्क बनकर
पिता कन्या का,
अनुभव करते हैं कष्टों का |
पर नहीं समझते- यही
शक्ति है, यही धात्री है,
यही जनयित्री, यही
पालन-कर्त्री सृष्टि की|
मातृत्व शक्ति केवल
बेटी ही है पाती,
बेटी ही जनती दिव्य कोख
से राम,कृष्ण से बेटों को |
बुद्ध ,महावीर ,नानक, ईसा
भी जाये हैं बेटी ही ने|
अपाला,घोषा,गार्गी,लक्ष्मी
,चाँदबीबी और चेन्नमा,
इन्दिरा,कल्पना,मदरटेरेसा
क्या नहीं ये बेटी थीं ?
करके कर्म अलौकिक जग में,
नाम अमर कर गईं, स्व,
स्वजनों और सर्वजनों का|
अब वह अबला नहीं,
बुद्धि-ज्ञान से सबला है,
शुद्ध श्लाघनीय कर्मों से
उद्धारिका है पितरों की |
क्यों ऐसा होता है कि,
दुःखी लोग होते हैं बेटी पाने से?
दोषी इस हेतु है समाज हमारा,
जो भेद उपजाता बेटा-बेटी में |
करने में अत्याचार नारी पर
, क्या नारी पीछे है ?
उत्पीड़न दहेज हेतु, करता
शोषण तन-मन का,
समाज में फिरता वह स्वछंद है |
बाद भाई-भतीजे का त्यजकर,
करे समाज यदि मर्दन उसका
समाज सुसंस्कृत हो जिससे-
सभी प्रसन्न हों पाकर बेटी भी|

✍️ गणेश चंद्र केष्टवाल
मगनपुर ( किशनपुर )
कोटद्वार गढवाल ( उत्तराखण्ड )
             ३१/०५/२०२१

13.
प्रकाशन हेतु मेरी दूसरी रचना

नमन मंच
शीर्षक- प्यार बहुत करता हूँ
गीत

अपने एकाकी पन से मैं
प्यार बहुत करता हूँ
जब हो जाता अंधियारा
तक़रार बहुत करता हूँ
रास नही आते हैं
मुझको , सावन वाले झूलें
दिल पर घाव लगे हैं
कैसे,साजन वाले भूलें
साजन की बातों से मैं,
दो चार बहुत करता हूँ
जब हो जाता अंधियारा,,
खिली धूप सुबह की हो या
,तारों सजी चांदनी
मन रहता है सूना सूना,
ढोल बजे या रागिनी
छेड़ के जख्मों का तबला,
झंकार बहुत करता हूँ
जब हो जाता अंधियारा,,
मुझे चिढ़ाने आते हैं,
हर रात को चाँद सितारें
आकर देख ज़रा सचिन,
तेरा साजन तुझे पुकारे
फ़िर अश्क़ों से तकिये का मैं,
श्रंगार बहुत करता हूँ
जब हो जाता अंधियारा,,
अपने एकाकी पन से मैं
प्यार बहुत करता हूँ
जब हो जाता अंधियारा
तक़रार बहुत करता हूँ

© ✍️ सचिन गोयल
गन्नौर शहर
सोनीपत हरियाणा
28-05-2021
Insta@,,
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14.

यहाँ   ख़ामोश  होंठों   पर  
मुहब्बत  मुस्कराती  है , 
कली जो अधखिली उस
पर मुहब्बत भुनभुनाती है ।
तुम्हारी  याद  में  तनहा 
बहाते  अश्क  आँखों  से ,
दिलों से  याद कर  के फिर 
मुहब्बत चुलबुलाती है ।
ज़मीं  कुछ  उर्वरा  थी 
बीज बोया  प्यार का हमने ,
बिना मौसम कि बारिश 
पर मुहब्बत लहलहाती हैं ।
शबक कुछ  नेह के हमने पढ़े
अपनी किताबों पर ,
निगाहें  चार  करने  पर 
मुहब्बत  तिलमिलाती  है ।
श्री - फरिहाद,राँझा - हीर,
की गायब  कहानी कुछ ,
लतीफे  जोकराना  अब
मुहब्बत सुन -सुनाती  है ।
ना भूलें  हम तुम्हें कुछ  याद
के लम्हे  सजोए पर ,
"सजल" की  कातिलाना हर
अदाएँ  हँसहँसाती हैं ।

✍️ रामकरण साहू "सजल"
बबेरू (बाँदा) उ०प्र०

परम् आदरणीय भाई साहब सादर प्रकाशनार्थ प्रेषित एक ग़ज़ल रचना धन्यवाद।

15.

साहित्य एक नज़र रचना समीक्षा सम्मान - पत्र से सम्मानित किया -

साहित्य एक नज़र कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका मंगलवार 1 जून 2021 को समीक्षा स्तम्भ के अंतर्गत साहित्य एक नज़र के सह संपादक / समीक्षक आ. प्रमोद ठाकुर जी ने आ. श्रीमती सुप्रसन्ना झा जी व आ.श्री अनिल राही जी की रचना का समीक्षा किये । साहित्य एक नज़र के संस्थापक / संपादक रोशन कुमार झा आदरणीया श्रीमती सुप्रसन्ना झा जी , आ.श्री अनिल राही जी को रचना समीक्षा सम्मान - पत्र व आ. डॉ. मंजु अरोरा जी को साहित्य एक नज़र रत्न सम्मान से सम्मानित किए । साहित्य एक नज़र पत्रिका का शुभारंभ मंगलवार 11 मई 2021 मंगलवार को हुआ रहा , सहयोगी सदस्य  आ. आशीष कुमार झा जी , आ. रोबीन कुमार झा जी , आ. पूजा कुमारी जी , आ. ज्योति झा जी , आ. प्रवीण झा जी , आ. नेहा भगत जी , आ. कवि श्रवण कुमार जी , आ. धर्मेन्द्र साह जी एवं आ. मोनू सिंह जी हैं ।।




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