साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 35 , सोमवार , 14/06/2021

साहित्य एक नज़र 🌅

अंक - 35

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अंक - 34
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जय माँ सरस्वती

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 35

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

अंक - 35
14 जून  2021

सोमवार
ज्येष्ठ शुक्ल 04 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 8 - 9
कुल पृष्ठ -  10

मो - 6290640716


🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
77. आ. सचिन गोयल जी , गन्नौर , सोनीपत       हरियाणा , 14/06/2021
78. आ.  डॉ. दीप्ति गौड़ ‘ दीप ’ जी



साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 35
Sahitya Ek Nazar
14 June 2021 ,  Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

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सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र ( 1 - 78 )
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अंक - 31 से 33
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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा

मो - 6290640716

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अंक - 31
10/06/2021 , गुरुवार
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/31-10062021.html

कविता :- 20(23)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2023-31-10062021.html

अंक - 32
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/32-11062021.html
, शुक्रवार , 11/06/2021 ,

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2024-11062021-32.html

कविता :- 20(24)

अंक - 33
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12/06/2021 , शनिवार

कविता :- 20(25)

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अंक - 30
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सम्मान पत्र - 1 - 72

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_____________

1.

https://youtu.be/oM4OZF0B3p0

2.

परिचय -
✍️ रामकरण साहू"सजल"ग्राम-बबेरू
जनपद - बाँदा , उत्तर प्रदेश , भारत
शिक्षा- परास्नातक
प्रशिक्षण- बी टी सी, बी एड, एल एल बी
संप्रति- अध्यापन बेसिक शिक्षा
सम्पर्क सूत्र-  8004239966

श्री रामकरण साहू " सजल " जी
प्रकाशक -

सरोकार प्रकाशन
30, अभिनव काकड़ा मार्केट
अयोध्या बायपास, भोपाल ( मध्यप्रदेश ) -462041
दूरभाष- 9993974799

श्री कुमार सुरेश स्वयं एक कवि और उपन्यासकार और सरोकार प्रकाशन के प्रबंध संचालक है। ये सरकारी अधिकारी पद से सेवानिवृत्त है। ये प्रकाशन लगभग पाँच दशक से सहित्य की सेवा में सेवारत है इस प्रकाशन की नींव श्री कुमार सुरेश के पिता जी ने रखी थी । उसी परम्परा को आपने आगे बढ़ाते हुए श्री रामकरण साहू "सजल" जी के अनमोल ग़ज़ल संग्रह "हँसते हुए ख़्याल" को पाठकों के बीच लेकर आयें। आज प्रकाशन के क्षेत्र में सरोकार प्रकाशन एक जाना पहचाना नाम है।

नमन मंच
साहित्य एक नज़र
अंक 34-36
प्रकाशन हेतु कविता

   " हे जगदम्ब "

हे जगत
जननी जगदम्ब,
माँ तुमबीन कोई
ना अबलम्ब l
किससे कहूँ मैं
मन की बात,
ना कोई सुने ,
माँ दयानिधे स्कंद l
काम -क्रोध
में लिप्त ये मन, 
रहना चाहे
हर पल स्वच्छंद l
हे महागौरी
ममतामयी,
चरणों में ले
माँ ,बना
दो स्वाबलम्ब l
जपूँ तुम्हारा
नाम सदा ही ,
मिटे जीवन के
सारे कलंक l
चरण वंदन
कर हो जाऊँ ,
कामना रहित
पुत्र परमहंस l
दे आशीष हे दूर्गा
,दूर्गतिनाशिनी,
सबके जीवन में
हो सदा आनन्द l

✍️ भूपेन्द्र कुमार भूपी
      8760465156

घूंघट ( कविता )

कविता - घूंघट

घूँघट की आड में,
चुप रही सदियों तक।
उगा नया सूर्य अब,
नष्ट प्रथा पातक।

कदम कदम मिला रही,
है आज की ये नारियां।
सती, घूंघट गए सब,
उगी नई क्यारियां।

स्त्री पुरुष सभी,
एक ही पतवार।
घूंघट के नाम पर,
ना हो अत्याचार।

लगा मास्क दो ही दिन में
थक गया यह आदमी।
जो कहता था औरत को,
घूंघट में रहना लाज़मी।

छोड़े हम घूंघट,
यह नया ज़माना है।
आत्मा के पट खोल,
स्वर्ग को बसाना है।

अब न कोई वाद करो,
नया शंखनाद करो ।
स्त्री को अबला कहे,
उसका प्रतिवाद करो।

घूंघट से निकलकर
नारी ने थामी कमान ।
हर ऊँचे-ऊँचे पद पर,
श्रेष्ठता से किया नाम ।

बनाएँगे मिल के हम,
नव समाज प्यारा।
कमल-कमलिनी खिले,
देश बने न्यारा।

'स्वाति' का सन्देश
घूंघट अब छोड़ो।
पुरानी ये रीतियां,
यथा शीघ्र तोड़ो।

✍️ स्वाति 'सरु' जैसलमेरिया
जोधपुर ( राजस्थान )

4.

आँखों के लिऐ बने हैं पलकें जैसे
वैसे आप बने हैं एक-दूजे के लिए
मेरी तरफ से शादी की दूसरी वर्षगांठ की ढ़ेरों सारी शुभकामनाएँ💐💐🎂🎈🎁🎉🍰
प्रिय सखी और जीजू💐💐💐
14/06/2021 , सोमवार

      तुम्हारी सखी
       सपना नेगी।

5.
मेरी मौलिक रचना

पिता हैं  तो हम निर्भीक हैं;
जैसे आने वाले कितने तूफानों
का पता भी नहीं चलता जब
उनसे जूझने कई वर्षों से खड़ा
पेंड ओट बन जाता है।
पिता रूग्ण ऑर वृद्ध भी
होता तो भी ढाढस होता कि
कोई उसका अहित नहीं सोच
सकता;ना ही कर सकता है।
    - जब तक पिता  की छांव है तो
; हर इंसान शहंशाह हैं -

" एक उदगार पिता के नाम "

पिता, तुम मेढ़,
मैं बहता पानी.
तुम निर्झर,
मैं उसकी धार हूँ..
तुम सृजन, मैं 
तृण मात्र हूँ...
तुम ह्रदय विणा,
   मैं मधुर राग हूँ...
तुम स्निग्ध ज्योति,
मैं बिखरा प्रकाश हूँ...
तुम बीज प्रबुद्ध,
मैं अंकुरण मात्र हूँ..
तुम श्वास निर्बिघ्न,
मैं प्रखर प्राण हूँ....
तुम अविचल धारा,
मैं तरंग मात्र  हूँ...
तुम काव्य सम्पूर्ण, 
मैं अक्षर मात्र हूँ...
तुम इंद्रधनुष,
मैं रंग प्रकार हूँ...
तुम अमृत कलश,
मैं तृषित मात्र हूँ...
तुम बीज प्रबुद्ध,
  मैं अंकुरण मात्र हूँ...
तुम वटबृक्ष,
  खग मात्र हूँ...
तुम मेढ़,
मैं बहता पानी हूँ..
तुम निर्झर,
मैं अविरल धार हूँ..

   ✍️  डॉ पल्लवी कुमारी "पाम "
   अनीसाबाद , पटना
    16/5/2020

#नमन मंच
अंक- 34से 36
    मुक्तक
                   
ये शब्दों और वर्णों,जिस
विधा की बात करते हो
जहाँ पर मौन रहना है,
वहीं संवाद करते हो
तुम्हारी इस कुशलता का,
बहुत मैं दाद देता हूँ
जहाँ संदर्भ लिखना था,
वहाँ अनुवाद लिखते हो
ये छवियों कि तो अपनी,
इक अलग पहचान होती है
विधाता ने गढ़ा सबको यहाँ,
और सबकी ईमान होती है
ये सौन्दर्य जो झलकता है
,सदा प्राकृतिक दृश्यों से
मिला उपहार हम सबको
,खुदा की ये नेमत है
ये चित्रलेखाओं का वर्णन,
बहुत सृजनता से होती है
जो सुन्दर है धरा अपनी
,ये नदियों से सुशोभित है
कोई काला कोई गोरा
,कोई अत्यंत सुन्दर है
ये तो भू-भाग है जीवन,
यहाँ हर वस्तु सुन्दर है

✍️  प्रभात गौर
   नेवादा जंघई
   प्रयागराज  ( उत्तर प्रदेश )

साहित्य एक नजर
अंक 34-36
लघुकथा - व्याह    ✍️ भगवती सक्सेना गौड़

राजसी ठाट से अपनी गैज़ेटेड अफसर की अवधि पूरी कर वर्मा जी अब रिटायर हो चुके थे, बच्चे अपनी उड़ान भर चुके थे, करने को कुछ खास नहीं था, सोशल साइट्स से नफरत सी थी । कभी कभी किताबो में डूब जाते थे ।

जीवन भर उनकी हां में हां मिलाने वाली पत्नी रजनी भी अब अपने दोस्तो और ऑनलाइन गतिविधियों में पूरे दिन व्यस्त रहती थी ।
एक दिन वर्मा जी ने कहा," सुनो, तुम्हारे साथ सात फेरे मैंने लिए थे, पर अब लगता है तुमने फेसबुक से व्याह रचा लिया, दिनभर कुछ लिखती रहती हो, इससे तुम्हे क्या मिलता है !!!
याद करो, एक वक़्त था, जब तुम्हारे पास मेरे लिए समय नही था, अब समझ लो, मैं व्यस्त हो गयी ।

✍️ भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर

साहित्य एक नजर
अंक 34-36

* पिता का प्यार -

बचपन में हम
कई बार गिरे,
पर पिताजी के उन
हाथों ने हमें संभाला,,
लोगों की डाँट पर हम
कई बार रोये,
पर पिताजी के उन हाथों
ने आंसुओ को पोंछा,,
छोटी-छोटी बातों पर
हम कई बार बिगड़े,
पर पिताजी ने हमारी
हर बिगड़ी को संवारा,,
पिताजी के इस हर पल
के प्यार से महसूस किया,
कहा फ़िक्र न करो
मैं साथ हूँ तुम्हारे
हर पल, हर दम मैं
साये की तरह
तुम्हारा ख़्याल करता हूँ
पर हमारे पिताजी कहाँ से
लाये वो हौंसला, वो हिम्मत
जो अपने पालनहार को दिल
से गले लगाकर ये कह सके
मैं तुमसे प्यार करता हूँ।
तुम्हारा ख़्याल रखता हूँ।।

✍️ देश दीपक
हरदोई, उत्तर प्रदेश
13/05/2021

आसान नहीं होता
है लेखक होना,
कई रातें गुजर जाती है,
विचारों को शब्दों
से सजाने में,
कहने को तो आसान
होता है पर,
एहसासों को शब्दों
से निखारने वाला
होता है लेखक,
कलम का भक्त
होता है लेखक,
समाज का प्रतिबिंब
होता है लेखक,
एहसासों का रचनाकार
होता है लेखक,
शब्दों का स्पर्शज्ञान
होता है लेखक,
संकीर्ण सोच का
खादक होता है लेखक,
दूसरों के एहसासों को वर्क
पर सजाने वाला
होता है लेखक,
जरूरत पर पावक होता है,
जरूरत पर शांत
नीर होता है लेखक,
सूरज की पहली
किरण होता है लेखक,
विचार तो हर मनुष्य
के पास होते हैं,
उन्हें सजाने  वाला
तो लेखक होता है,
शब्दों का खिलाड़ी
होता है लेखक,
कल्पना को
वास्तविक जिंदगी
पर उतारने वाला
होता है लेखक,
कल्पना और
रचनात्मकता
का दिग्गज
होता है लेखक।

✍️ इं.निशांत सक्सेना"आहान"✍️

अंक 34 से 36
नमन मंच
साहित्य एक नज़र
विषय---
माँ सरस्वती

हे माँ सरस्वती देवी!
करें आरती, वंदना तेरी।
एक हाथ में पोथी पकड़े,
एक हाथ में है वीणा।
ब्रह्मा की ब्रह्माणी तूं,
बहाती ज्ञान की गंगा।
हे मां सरस्वती देवी!
करें आरती, वंदना तेरी।
मुझ अज्ञानी को दे दो ज्ञान,
द्वार तुम्हारे आई हूं ।
बुद्धि, विद्या का दे दो दान,
साधना का दीया जलाई हूं ।
हे मां सरस्वती देवी!
करें आरती, वंदना तेरी।
तू हंस वाहिनी, ज्ञान दायिनी,
धैर्य, साहस ह्रदय में भर दो।
तू सुहासिनी, महापातक नाशिनी
बुद्धि, ज्ञान अंतर्मन में भर दो।
हे मां सरस्वती देवी!
करें आरती, वंदना तेरी ।

✍️ प्रेम लता कोहली

नमन मंच
शीर्षक- चले आओ

मेरा अब दम निकलता है
, चले आओ मेरे हमदम
बहुत ये दिल मचलता है,
चले आओ मेरे हमदम
कहो क्या बात है मुझसे
मेरी जाँ कुछ बताओ तो
न दिन निकले न ढलता है,
चले आओ मेरे हमदम
तेरे बिन अब सहर में भी
न जाने क्यों अंधेरा है
नही कुछ ज़ोर चलता है,
चले आओ मेरे हमदम
हवाएं तेज चलती है मेरा
दिल धक से करता है
मुक़द्दर हाथ मलता है
,चले आओ मेरे हमदम
मुझे लाकर खिला दो
तुम जहर थोड़ा मेरे सचिन
तेरा व्यवहार खलता है,
चले आओ मेरे हमदम
*( के हर त्यौहार खलता
है, चले आओ मेरे हमदम )*

✍️ सचिन गोयल
सोनीपत हरियाणा
27-05-2021
Insta@,
Burning_tears_797

#दिनांक-13/6/2021
*विषय-कागज के फूल*
#विधा-कविता
        
   🌷कविता 🌷

ये दुनिया है , कागज़ के
फूलों सी,
ये समझ ले ,तू इंसान...।
कुछ भी यहां अमर नहीं ....,
नश्वर , है संसार.....।
मानव की ,ये जिंदगी....,
ज्यूं सेमल, का फूल.....।
एक दिन हवा में ,उड़ जाएगी ,
ज्यूं ,"कागज के फूल".......।
दो दिन की,ये जिंदगी.....,
मत कर ,रे तू गुमान.....।
माटी की ये ,काया ....
माटी में, मिल जाएगी....।
कागज के फूलों की तरह ...,
जिंदगी की महक ....,
एक दिन फीकी, पड़ जाएगी।
खुशबू कभी आती नहीं....,
" कागज के फूलों" से....।
जिंदगी कभी चलती नहीं।  ,
झूठे वसूलों से....।
जीवन का यह सार....,
समझ जो जाता है....।
जिंदगी का, रास्ता उसका ,
आसां,हो जाता है. ।।।

✍️ रंजना बिनानी "काव्या"
गोलाघाट असम

नमन मंच
#साहित्य एक नज़र
#विषय:बुढ़ापे का जीवन कैसा
#दिनांक :12/06/2021
#विधा:कविता

* बुढ़ापे का जीवन कैसा -

बुढ़ापे का जीवन कैसा
यह प्रश्न है
इस समाज, घर परिवार,
के नव युवकों से
क्यों बुढ़ापे मे
घर परिवार के लोग
छोड़ आते है बुजुर्गों को
वृद्धााश्रम मे
वो है घर के वटवृक्ष
जिनकी छाया मे रहकर
गुजरा हमारा जीवन
जिन्होंने पालपोस कर
बड़ा किया हमें
बुढ़ापे मे बुजुर्गों को
सहारे की होती है जरुरत
उनके जीवन के अनुभव
हमारे लिए धरोहर है
जीवन के अंधेरे मे
रौशनी का काम है करते
उनका सम्मान व आदर
ही उनकी खुशी की है पूँजी
बुढ़ापे मे शरीर के
सभी अंगों का शितिल होना
मन उनका चिड़चिड़ा होना
उनको समय न देना
अकेलेपन का महसूस होना
समय पर खानपान व
दवा का ध्यान ना रखना
उनके मन को नकारात्मक
की सोच की ओर ले जाता है
उनकी सेवा करना व
आशीर्वाद लेना
ईश्वर को पाना है
जैसा करोगे कर्म
वैसा ही फल पाओगे इंसान
यह है गीता का ज्ञान
क्योंकि यह बुढ़ापा
कल तुम्हें भी आएगा
बुढ़ापे का जीवन कैसा
यह प्रश्न फिर उठेगा

✍️ शिवशंकर लोध राजपूत
दिल्ली
व्हाट्सप्प no.7217618716

यह रचना स्वरचित व मौलिक है !

Rani Sah
नमन मंच
#साहित्य संस्थान
#दिनांक - 12/06/21
#विषय -

गाँव की बातें

गाँव की बहुत याद आती है,
आँखों में बसी गाँव की हर
पत्ता पत्ता डाली है,
गाँव मेरा उजालों सा है,
सूरज की रौशनी में अंगारो सा है,
गाँव की सड़के सुनहरी सुंदर
हर चौराहा है,
गाँव की याद मे जिंदा
हर शहर वाला है,
आंसू समेट कर आँखो
में दास्तान छुपाते है,
चंद रुपयो के मोहताज बन
अपना स्वर्ण सा गाँव छोड़ जाते है,
गाँव की बातें शब्दों कौन लिख सकता है,
गाँव जैसा सुकून और कहां मिल सकता है,
बेशक कुछ संसाधनों की कमी है,
पर शहर से अच्छा गाँव की छवी है,
कुछ खास बात तो गाँव में होगा,
जो हर शख़्स को अपने तरफ खिंचती है,
मिलो दूर शहर वालों के दिल मे बस्ती है,
गाँव की हरियाली तीज सी,
गाँव की आबोहवा बिल्कुल अजीज सी,
गाँव हर रूप हर बहार है,
गाँव ही बेचैनी गाँव ही करार है,
गाँव में जो सादगी है,
गाँव ही हस्ते खेलते
घर का श्रृंगार है,
गाँव की मिट्टी महान वंदनीय
इसकी महिमा है, 
हर बात निराली गाँव की
और अद्भुत * सावन *
का महीना है, गाँव कथा में
गाँव प्रथा मे है,
गाँव व्याकुलता में गाँव शीतलता में,
गाँव ही शिव गाँव ही
राम गाँव ही राघव है,
शहर मे उलझी मौत
तबाही का तांडव है।

✍️  रानी साह
कोलकाता - पश्चिम बंगाल

ज़िन्दगी की बेजान शाखों में,
कोंपल आने लगे।
रेतेली मरुस्थल सी,
गुज़र रही थी ज़िन्दगी।
खिलेंगे फूल पलाश के,
बहारों सी सजेगी ज़िन्दगी।
न कोई उम्मीद थी,
इस नीरस जीवन की मरीचिका से।
एक दिन सामने के ,
मका की खिड़की खुली।
ध्वल श्रृंगरित सी, एक छवि दिखी।
अब उस छवि के,
ख़्वाब आने लगे।
ज़िन्दगी की बेजान---
चरू चन्द्र की ध्वल किरणें से,
हिम सी चमकती काया।
ध्वल श्वेत बस्त्रों में,
छुपाती वो अधरों की माया।
श्वेत पुष्प गुच्छों से,
घन केशों को सवारें।
शीतल बहती पवन में,
वो तन की खुशबू की बहारें।
दिल की बंज़र भूमि में,
फूल आने आने लगे।
ज़िन्दगी की बेजान ----

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर- मध्यप्रदेश
9753877785

मौन   (शीर्षक)

मौन

मौन की लड़ाई विकट,
गहराता मौन,
आंसुओं के समुद्र में
अलग थलग , हिचकोले खाता,
ऊपर शांत समतल धरातल
पलकें झपकतीं ,
आंसू, शब्द और मैं मौन,
अथाह शब्दों का शैवाल
सफेद बर्फ बन,
पिघलता नहीं,,,
उसे भी तपिश चाहिए
नदी बन कर बहने को,
समुद्र में मिलने को,
अपने दर्द की अथाह चुभन को
समुद्र में ढकेलने को,
अपने मौन को कंधे पर रख
इधर तुम, उधर मैं,
बीच में पसरा,
पर्वताकार
निशब्द मौन !!

✍️ पूनम शर्मा  , 
मेरठ

कविता :- 20(27)

नमन 🙏 :-  साहित्य एक नज़र 🌅

कुछ काम से
कोरोना काल इस लॉकडाउन में
कोलकाता से मधुबनी , बिहार
मिथिला भूमि ग्राम झोंझी
जाना है आज ही ,
तो है आज जल्दीबाज़ी ।
साहित्य एक नज़र
पत्रिका पर भी काम करना है
क्योंकि कई महारथियों से लगा
लिए है बाज़ी ,
धर्म - कर्म से जवाब देना है
यही तो ज्ञान दिए हैं गुरु ,
माता और पिताजी ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
सोमवार , 14/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(27)
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 35
Sahitya Ek Nazar
14 June 2021 , Monday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 34 - 36

नमन :- माँ सरस्वती
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
मो :- 6290640716

रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -

अंक - 34 से 36 तक के लिए आमंत्रित

दिनांक - 13/06/2021 से 15/06/2021 के लिए
दिवस :- रविवार से मंगलवार
इसी पोस्ट में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें ।

यहां पर आयी हुई रचनाएं में से कुछ रचनाएं को अंक - 34 तो कुछ रचनाएं को अंक 35 एवं बाकी बचे हुए रचनाओं को अंक - 36 में शामिल किया जाएगा ।

सादर निवेदन 🙏💐
# एक रचनाकार एक ही रचना भेजें ।

# जब तक आपकी पहली रचना प्रकाशित नहीं होती तब तक आप दूसरी रचना न भेजें ।

# ये आपका अपना पत्रिका है , जब चाहें तब आप प्रकाशित अपनी रचना या आपको किसी को जन्मदिन की बधाई देनी है तो वह शुभ संदेश प्रकाशित करवा सकते है ।

# फेसबुक के इसी पोस्टर के कॉमेंट्स बॉक्स में ही रचना भेजें ।

# साहित्य एक नज़र में प्रकाशित हुई रचना फिर से प्रकाशित के लिए न भेजें , बिना नाम , फोटो के रचना न भेजें , जब तक एक रचना प्रकाशित नहीं होती है तब तक दूसरी रचना न भेजें , यदि इन नियमों का कोई उल्लंघन करता है तो उनकी एक भी रचना को प्रकाशित नहीं किया जायेगा ।

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र 🌅

अंक - 34 से 36 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
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अंक - 31 से 34
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सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र
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अंक - 31
10/06/2021 , गुरुवार
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/31-10062021.html

कविता :- 20(23)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2023-31-10062021.html

अंक - 32
, शुक्रवार , 11/06/2021 ,

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2024-11062021-32.html

कविता :- 20(24)

अंक - 33
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/33-12062021.html
12/06/2021 , शनिवार

कविता :- 20(25)

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2025-12052021-33.html

अंक - 30
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/30-09062021.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2022-09052021-30.html

http://sahityasangamwb.blogspot.com/2021/06/blog-post.html

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अंक - 34
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/34-13062021.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2026-34-13062021.html


अंक - 35

http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/35-14062021.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2027-14062021-35.html

अंक - 36

http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/36-15062021.html

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साहित्य एक नज़र


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