साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 34 , रविवार , 13/06/2021, अंक - 36, मंगलवार , 15/06/2021

रोशन कुमार झा

अंक - 36

https://online.fliphtml5.com/axiwx/esdu/

अंक - 35

https://online.fliphtml5.com/axiwx/hqzf/

अंक - 34
https://online.fliphtml5.com/axiwx/lxhh/

अंक - 18
https://online.fliphtml5.com/axiwx/ifjz

जय माँ सरस्वती

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 36

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

अंक - 36
15 जून  2021

मंगलवार
ज्येष्ठ शुक्ल 05 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 8 - 9
कुल पृष्ठ -  10

मो - 6290640716


🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆

79. आ. अनीता नायर "अनु " जी , नागपुर ( महाराष्ट्र )
80. आ.  पूनम शर्मा जी , मेरठ

सम्मान पत्र - 1 - 80
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/295588932203890/?sfnsn=wiwspmo

सम्मान पत्र - 79 -
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/308994277530022/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 31 से 33
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/305570424539074/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 34 से 36 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/307342511028532/?sfnsn=wiwspmo

फेसबुक - 1
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फेसबुक - 2

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https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/309173174178799/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 37 से 40 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/309307190832064/?sfnsn=wiwspmo

आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 36 , मंगलवार
15/06/2021

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 36
Sahitya Ek Nazar
15 June 2021 ,  Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

_________________
माँ  सरस्वती, साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका मंच को नमन 🙏 करते हुए आप सभी सम्मानित साहित्य प्रेमियों को सादर प्रणाम 🙏💐।

साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका में जिन - जिन रचनाकारों की पाँच रचनाएं प्रकाशित हुई हो और उन्हें साहित्य एक नज़र रत्न सम्मान से सम्मानित नहीं किया गया हो। वे अपना नाम व फोटो इस पोस्टर के कॉमेंट्स बॉक्स में प्रेषित करें ।। ताकि हर एक दिन एक एक रचनाकार को " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित किया जाएगा ।।

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
_ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _

साहित्य एक नज़र 🌅 , कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका की मधुबनी इकाई ( साप्ताहिक )

संपादिका :- आ. ज्योति झा जी
बेथुन कॉलेज , कोलकाता

2.
श्री रामकरण साहू "सजल"जी के ग़ज़ल संग्रह "हँसते हुए ख़्याल" , समीक्षा -

जब भी हमारे ज़हन में ग़ज़ल का ख़्याल आता है तो बस हमारे दिमाग में उर्दू भाषा के अल्फ़ाज़ हमारे दिमाग के ईद-गिर्द मण्डराने लगतें है। लेकिन उर्दू  और हिन्दी दोनों भाषायें एक गंगा-जमुना की तरह है। कहते है अगर हिन्दी माँ हैं तो उर्दू  ख़ाला ( माँसी यानी माँ की तरह) दोनों के संगम से ही होता है एक अनमोल साहित्य का सृजन मुझें पंकज उदास जी की गायी एक ग़ज़ल याद आ रही कि

"चाँदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल।
एक तु ही धनवान है गोरी, वाकी सब कंगाल।

कि हिन्दी भाषा में भी ग़ज़ल का सृजन किया जा सकता है। माफ़ कीजिये आप गलत समझ रहें है मैं मौसी यानी उर्दू को छोड़ने की बात नहीं कर रहा हूँ।उसे तो छोड़ा ही नहीं जा सकता । जैसे माँ को नहीं छोड़ सकतें बैसे ही मौसी को भी नहीं लेकिन श्री रामकरण साहू "सजल" जी ने अपने ग़ज़ल संग्रह मैं कुछ ऐसी ग़ज़लों का सृजन किया जिनमें भारी-भरकम अल्फ़ाज़ों का बोझ नहीं कि समझने में परेशानी हो सरल भाषा में अपनी भावनाओं को निकाल कर रख दिया। उनके इस ग़ज़ल संग्रह में कुछ ग़ज़ल है कि

" बात हमसे नहीं तस्वीर से वह करता रहता हैं।
जिसे देखा नहीं वह आज उस पे मरता रहता है।
"वतन के हम सिपाही लीजिये प्राणों से प्यारा हैं।
हमारी शान भारत कीजिये प्राणों से प्यारा हैं।
यही नहीं सजल जी के इस ग़ज़ल संग्रह में प्रेम, देशभक्ति और अपने दिल की बात कुछ
इस तरह व्यक्त की कि
"सजाओं बाल में गजरा के आज आएँगे।
मिटे न आँख से कजरा के आज आएँगे।

देश प्रेम, सामाजिक, दर्द और प्रेम के भावों से भरी श्री रामकरण साहू "सजल" जी का ये ग़ज़ल संग्रह " हँसते हुए ख़्याल" सभी रसों से पूर्ण है इसका जिसनें रसास्वादन नहीं किया वो अपूर्ण है।
तो अब इज़ाज़त दीजिये कल फिर मिलेंगे इसी ग़ज़ल संग्रह के साथ।
नमस्कार 🙏

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

3.

#साहित्य एक नजर.
अंक : 34 - 36.

जीने की जिद्द.

मिट्टी मानुष संग जीया है
मैंने देखा है नजदीक से
मौत के आगोश में छटपटाते
जिजीविषा के जीवट जिद्द को
संघर्ष - शहादतों की इबारतों में
"सोनार बांगला" से हो नामित
सराबोर गरीबी और जहालत में
चुनावी समर के ऊंघते क्षेत्र को
उर्धश्वांस लेते जंगल महल को.
परिवर्तन की तृषित प्यास में
व्यवस्था के बिडंबित झोल में
बदस्तूर अदला बदली खेल में
महज चेहरे बदलते देखा है.
टूटेगा जरूर टूटेगा एकदिन
दर्द से बंद आंखों का विराम
छलकेगा समंदर आँखों से
तिल तिल मरते मानुष की
जीने की तमन्ना मरी नहीं
हाँ जीना है तुम्हें
जिओगे पूरी जिद्द के साथ.

✍️ अजय कुमार झा.
     27/3/2021.

4.
पिता

घर की सारी खुशियाँ
जुड़ी हैं उनसे,
वह अपने सारे फ़र्ज़ निभाते हैं।।
प्यार भरा सागर ले आते
जुबां से कुछ
कह ना पाते,बिन
बोले मेरे दिल की
हर बात समझ जाते।।
वो तो मेरे पापा हैं जो हैं
मेरे जान से प्यारे।
नन्ही उंगली थाम  कर
चलना हमें सिखाया,
जीवन के सारे पहलु को,
अपने अनुभवों से
हमें बताया,पापा एक
उम्मीद है, एक आस हैं,
परिवार के विश्वास हैं।।
संघर्ष की आँधियों में,
हौसले की मज़बूत दीवार है।।
हमें गोद में खिलाया हैं,
कंधों पर बिठाकर
मेला घुमाया हैं।।
जो हर पल साथ निभाया हैं,
वो तो मेरे पापा हैं जो हैं
मेरे जान से प्यारे।।
पापा हर फ़र्ज़ निभाते हैं,
जीवन भर कर्ज चुकाते हैं।।
बच्चों की खुशी के लिए वो,
अपना हर गम भूल जाते हैं।।
जीवन में समस्या हो कोई,
उसका भी हल ढूँढ लाते हैं।।
वह तो मेरे पापा हैं जो हैं
मेरे जान से प्यारे।।

✍️ सीमा सिंह
     मुंबई
14/6/2021
5.

साहित्य जगत में ख्याति प्राप्त
अनूप कुमार वर्मा "छोटा" कवि/
लेखक/पत्रकार/समाजसेवी,
बिलखिया रामनगर बाराबंकी
उत्तर प्रदेश को गीत गौरव
परिवार के संस्थापक कुमार
नवीन "गौरव" जी ने गीत
गौरव परिवार "मुख्य पटल"
का सचिव पद पर मनोनयन
किया है। गीत गौरव परिवार
आपके उज्जवल भविष्य की
कामना करता है।
मुझे आशा एवं पूर्ण विश्वास है
कि आप गौरव परिवार के
लिए निष्ठा पूर्वक कार्य करते रहेंगे।

6.

- भाग्य

बैठ गए जो भाग्य भरोसे
बैठे ही रह जाते हैं
कोशिश जो करते हैं पूरी
अपनी मंजिल पा जाते हैं।
भाग्य प्रधान होता जीवन तो
कर्म नहीं कोई करता
सारे सुख मिलते सबको
दुख सारे भाग्य हरता।
चंद पलों के जीवन में
भाग्य को किसने देखा है
अपने ही निज कर्मों का
लिखा भाग्य में लेखा है।
सत्कर्मों की मेहनत से
रुठे भाग्य बदल जाते
विश्वास यदि खुद पर हो
सौभाग्य के ताले खुल जाते ।
कर्म प्रधान इस जीवन में
सुख दुख तो आना जाना है
पौरुष तुम अपना मत भूलो
भाग्य का सिर्फ बहाना है।

✍️ निलेश जोशी "विनायका"
बाली, पाली, राजस्थान।

स्वरचित एवं मौलिक रचना।

7.

14 जून
विश्व रक्तदाता दिवस पर दोहे

रक्तदान करके मानव, जीवन लेव बचाय।
सेवा का संकल्प करो, पुण्य ये आड़े आय ।।1।।
दान रक्त का देकर तो , बने न तू कमजोर ।
बह कर नित्य शिराओं में, आयेगी नव भोर ।।2।।
कोरोना के काल में, संकट में थे प्राण ।
जीवन सरस बचा लिया, प्लाज्मा देकर दान ।।3।।
लहू दान की प्रेरणा, दान ये अति महान ।
काम काज हो बाद में, दो महत योगदान ।।4।।
कदम बढ़ें मानवता को, हो ऐसी पहचान ।
हरने ताप जहान का, करें अवश्य रक्तदान ।।5।।
कतरा अपने खून का, दोगे जब उपहार।
दे जीवन में प्राणी को, खुशी भरा संसार ।।6।।
लाल लहू का रंग है,जाति धरम से दूर ।
देना बिना मलाल के, प्रेम मिले भरपूर ।।7।।

✍️ डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप"
शिक्षाविद् एवम् कवयित्री
ग्वालियर मध्यप्रदेश भारत
सर्वांगीण दक्षता हेतू राष्ट्रपति
भवन नई दिल्ली की ओर से
भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति
महामहिम स्व. डॉ. शंकर दयाल
शर्मा स्मृति स्वर्ण पदक,विशिष्ट
प्रतिभा सम्पन्न शिक्षक के रूप
में राज्यपाल अवार्ड से सम्मानित

8.
ये हंसी

कोरोना का बीत
गया एक साल,
न गया और ना ही
खत्म हुआ यह काल,
दुबारा फैल रहा है
तीव्र गति से दूसरी
लहर में यह काल,
ये हंसी मुश्किल से लौटी है
इसे सहेज के रखिए,
मास्क लगाना जरूरी है
और दो गज की दूरी ये
याद रखिए,
भले आ गया है
कोरोना का वैक्सीन
तुम न इतराना,
क्योंकि...!
कोरोना का प्रवेश वैक्सीन
नहीं रोकेगा,
आँख-मुँह और नाक
से प्रवेश करेगा,
इसलिए.......,
बार-बार हाथ धोइए भीड़-
भाड़ में कम जाइए,
हो सके कम से कम घर से
बाहर जाइए,
माना कि रंगों का त्योहार भी है,
पर ध्यान रखना भी जरूरी है,
कहीं रंग में भंग न हो जाए,
खुशियों का माहौल
गमगीन न  हो जाए,
खुद भी सुरक्षित रहे
अपनों को भी रखे,
समय को देखते
सरकार के आदेशों की
पालना भी रखे,
ये हंसी मुश्किल से लौटी है
इसे सहेज के रखिए !!

✍️ चेतन दास वैष्णव
  गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा , राजस्थान

स्वरचित मौलिक मेरी रचना

9.

1.
सच जो लिख न सके
वो कलम तोड़ दो,
ये सियासत का 
अपने  भ्रम  तोड़ दो,
इन गुनाहों   के  तुम 
भी  गुनहगार  हो,
यार सत्ता  न  संभले
तो  दम  तोड़ दो।।
भटक रहा हूँ मैं अपनी
तिश्नगी के लिए..
ज़रूरी हो गया तू मेरी
जिन्दगी के लिए..
फक़त सूरज ही नहीं है
इसका तलबगार
हर इक जुगनू है
कीमती रोशनी के लिए।।
जिस दिन मेरे विश्वास  को
फांसी पर लटकाया गया,
उसी रात  बेगुनाहों  को सूली
पर चढ़ाया गया ।
गुनाहगार था नहीं फिर भी सज़ा
सुनाया गया मुझे ,
मेरे जेहनी सुकरात को
फिर जहर पिलाया गया।।
पानी की तलाश में अब
कुआ भटक रहा दरबदर,
प्यासा है अब्र जल लिए
केचुआ भटक रहा दरबदर,
जहां की रूह में दफन हो
गई है अब इंसानियत
सुकूंन की तलाश में अब
इंशा भटक रहा दरबदर।।
प्यासे हैं बेजुबा  कहने
से डरते हैैं हमसे,
तुम इंसान नहीं शिकारी
हो कहते हैं हमसे,
सींचो पौधे या रखो
अपने छतो पर पानी,
जिंदा रखो इंसानियत
बेजुबा कहते हैं हमसे।

✍️ धीरेंद्र सिंह नागा
ग्राम -जवई,तिल्हापुर, (कौशांबी)
       उत्तर प्रदेश

10.
मेरी कविता
सोए में सपनों सी ,
परायों में अपनों सी,
रात में चांदनी सी,
अनुराग में बंदनी सी ,
होती है मेरी कविता।।
समाज का दर्पण सी,
न्यौछावर में अर्पण - सी,
सन्नाटों में कौतूहल - सी,
झंझाबातों में निपट विरल- सी,
होती  है  मेरी  कविता ।।
मेरे पथ की पाथेय हैं ,
मेरी  ये   कविताएँ ,
इक  हारे हुये मन  के लिए,
अजेय है मेरी कविताएँ ।
मैं बाँटता हूं स्वयं के दुःख,
अपनी इन कविताओं से,
मैं पाता हूं असीम - सुख
अपनी इन कविताओं से ।
स्वान्त:सुखाय तुलसी की,
मनोभाव स्वरूप है मेरी कविता।
मीरा के असीम दुख की,
परिकल्पना है मेरी कविता ।
प्रेरणा के रूप में ,
एक मूरत है मेरी कविता।
मेरे अंतःकरण की
विराजमान सूरत है मेरी कविता।
ये कविताएं मेरा एक संदेश हैं।
ये कविताएं प्रदेश नहीं स्वदेश हैं ।      
ये कविता मुझे ठोकरों से बचाती है।
यह कविता मुझे अंधेरे से
उजाले की ओर ले जाती है ।।

✍️ रामकृष्ण पोखरियाल (सरस )
मुनि की रेती
ऋषिकेश (उत्तराखंड)
11.

अंक 34 से 36

नमन मंच
साहित्य एक नजर

आज मिले हैं हम वफ़ा की
रहमत से इस मुकाम पर
न जाने  कब   इस   गली में
हम बदनाम   हो  जाए।।
संभलकर रह ये मुसाफिर
आबो हवा ठीक नहीं
अगर हम निगाहों में तेरे
तो कहीं. इल्जाम हो जाए।।
गर रहे हम गैरो की नज़र
में तो इल्जाम हो जाए
कल फिर न जाने इस
शहर में ....जुकाम हो जाए।।
अगर रहमत खुदा की हो
तो हर कदम बढ़ता रहे
न जाने कब गली में जिंदगी
का ...मुकाम हो जाए।।
मना  लो  खुशियां  जिंदगी
में  झूमकर  मेरे  यारो
न जाने कब इस मयखाने
में .....इंतकाम हो जाएं।।
अभी प्यार  वफ़ा  मुहब्बत 
सब  कर रहा हूं यहां
बसा लो  दिल में न  जाने
कब .....बेनाम हो जाए।।
तेरी  जुल्फों  के  साए  में
  यूं छुप   खो   जाऊं
निहारते   निहारते   ज़िंदगी
  की ...शाम हो जाए।।

✍️ कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान
12.

#नमन मंच
#साहित्य मंच
#विषय - देशभक्ति
#विधा - गीत
#दिनांक -13/6/ 2021

शहीद माँ का लाल ।

माँ ये कैसा संदेशा आया है?
भाई के शहीद होने
का संदेशा आया है?
ये रास्ते कैसे सहमे
हुए लग रहे है ?
खेत खलिहान पे जैसे टोटे पड़े है ?
बाग बगीचे जैसे रास्ता देख रहे?
भैया के आने का रास्ता देख रहे हैं।
क्यू ये घर ये बस्ती क्यू मुर्दा सा लगे है?
ये फिजा में कैसी लाली छाई?
ये सूरज के तपन में कैसी नमी आई।
ये भाभी कैसी चूड़ी तोड़ रही?
मांँ आज तेरी जैसे ममता टूट गई।
क्यू आज मेरी राखी भी रूठ गई?
ये सन्नाहट क्यू छा गया यहां?
क्यूं इतना अशवकून हो गया यहां ?
मेरे भैया का शव को निकालो जरा ?
भैया थोड़ा सा बस मुस्कुराओ जरा ?
तिरंगे से शव को थोडा लपेटो जरा।
कैसे बेरहम दुश्मनो ने मार दिए
हर जगह भैया के शरीर पे वार किए।
बच्चे को घर मे ले जाओ जरा ?
मांँ भैया के अर्थी को सजाओ जरा।
भाभी को भी थोडा समझाओ ज़रा।
भाभी भैया को अब यूं न देखो जरा ?
बिटिया तेरा ये भैया क्यू नहीं बोल रहा ?
ये मातम कैसी चारो ओर सुनाई है ?
ये चीख से कान मेरी फट आई है।
देखो आज कितने सुहागीन की
मांग आज उजड़ ये आई है?
ना जाने कितनी सुहागन थी आज
विधवा बनके आई है?
ना जाने कितनो की घर आज
उजड़ गई है ना?
चंद पैसे के लिए नही मरते
ये किसी के घर के लाल?
हम और देश महफूज रहे इसलिए
सीमा पे मर मिटते ये किसी के घर
के लाल।
मौत सी पसरी लाचारी ये चिता
भी भरती जैसे हुंकारी?
ये शव जैसे है सहमे हुए। रास्ते पे
जैसे पहरे पड़े।

✍️राजेश सिंह
  बनारसी बाबू
उत्तर प्रदेश वाराणसी
8081488312
13.
विषय - "मोबाइल "

जैसे मायावी कोई माया से
झूठ को सच है बतलाता
वैसे ही मोबाइल अपने
गुण-दोषों से नंगा नाच नचाता ।
लील गया सबकी भावनाओं
को ये बस ढोंग ढकोसला जारी है
बसे- बसाये कितने सुन्दर घरों
को मोबाइल है तुड़वाता।।
चौपट कर गया चिट्ठी पत्री,
और कैमरा , घडियों का व्यापार
कैल्क्यूलेटर, टॉर्च, रेडियो
टीवी का है उजड़ा संसार ।
लुटेरे मोबाइल तूने हर मानव
का सुख चैन है लूटा
भाग दौड़ बढायी तूने और
बर्बाद किए अनेक घर परिवार ।।
ऑनलाइन शिक्षा व ज्ञान विज्ञान
के लिए बड़ा उपकारी है
दूर रहकर भी अपनों से संवाद
कराता सभी तेरे आभारी हैं ।
सरल साधन ये भजन सुनाता
गीत सुनाता और विश्व घुमाता
अब जीवन का अंग बन गया
मोबाइल, इस बिन जीवन भारी है।।
प्रातः जगने से रात सोने तक
मोबाइल ज्यौं अन्धे की लाठी
आज के युवाओं को मोबाइल
बिन घबराहट सद्य: हो जाती।
अद्भुत गुणशाली यन्त्र मोबाइल
मिठास भरे ये रिश्तों में
मोबाइल गर हाथ में हो
तो दुःख की रातें
अकेले ही कट जाती।

✍️ डॉ देशबन्धु भट्ट
प्रवक्ता संस्कृतम् रा इं कॉ
तोलीसैण मुखेम
प्रताप नगर
टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड

14.
नमन मंच

रक्तदान है महादान
नहीं कोई आम दान।।
अधर में जिसके अटके हो
प्राण रक्तदान से मिलता
जीवनदान मिलते उसके सपनों
के नई उड़ान रक्तदान ही महादान
नहीं कोई आमदान ।।
नर को तुम नारायण समझो
रक्तदान का व्रत लो महान
मन में शपथ लो
नहीं रक्त कमी से निकले प्राण
रक्तदान है महादान
नहीं कोई आमदान।।
व्यर्थ न जाएगी  की हुई नेकी
कर्मों के फल मिलते हैं
बच जाए गर एक जान तो
जाने कितने चेहरे खिलते हैं
रक्तदान महादान नहीं
कोई आमदान।।
हम सब युवा शक्ति
निभाए कर्तव्य महान
करेंसब मिलकर रक्तदान
रक्त दान ही महादान
नहीं कोई आमदान।।

   ✍️ सुनीता बाहेती
  जोरहाट, असम
15.

फिर मिलेंगे

धीरज धरो
न बेचैन हो,
मिलने की खातिर
न ही अधीर हो।
समय मुश्किल है
हालात प्रतिकूल है,
पर ये सब भी तो
स्थाई तो नहीं है।
जीवन है तो सुख दु:ख
खट्टे मीठे अनुभव तो
होते ही रहेंगे,
अच्छे बुरे दिन यूँ ही
आते जाते रहेंगे।
अब इनसे घबराना कैसा?
ये सब तो जीवन का हिस्सा है
आज दूर दूर ही सही
कल को फिर तो मिलेंगे।

✍️ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
   8115285921
©मौलिक, स्वरचित

https://www.facebook.com/groups/1719257041584526/permalink/1942776279232600/?sfnsn=wiwspmo
16.

नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र

नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान
पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 15/06/2021
दिवस :- मंगलवार
विषय :- बिना बुलाएं ‌मेहमान
विधा :- हास्यरस
विषय प्रदाता :- आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी
विषय प्रवर्तक :- आ. रजनी हरीश जी

चले आएं हैं
बिना बुलाएं मेहमान ,
कहाँ दूं इन्हें स्थान ।
मेहमान होते है भगवान समान ,
पर अभी तो है दो गज दूरी ,
मास्क है जरूरी की अभियान ।।

कब तक करूँ मान - सम्मान ,
बिना बुलाएं ही चलें
आएं है मेहमान ।।
अभी अपने से ही है लोग परेशान ,
बाद में करेंगे मेहमानी
पहले बच तो जाएं जान ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मंगलवार , 15/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(28)
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 36
Sahitya Ek Nazar
15 June 2021 ,   Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

अंक - 37 - 40

नमन :- माँ सरस्वती
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
मो :- 6290640716

रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -

अंक - 37 से 40 तक के लिए आमंत्रित

दिनांक - 16/06/2021 से 19/06/2021 के लिए
दिवस :- बुधवार से शनिवार
इसी पोस्ट में कॉमेंट्स बॉक्स में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें । एक से अधिक रचना भेजने वाले रचनाकार की एक भी रचना प्रकाशित नहीं की जायेगी ।।

यहां पर आयी हुई रचनाएं में से कुछ रचनाएं को अंक - 36 तो कुछ रचनाएं को अंक 37 , कुछ रचनाएं को अंक - 38 एवं बाकी बचे हुए रचनाओं को अंक - 39 में प्रकाशित किया जाएगा ।

सादर निवेदन 🙏💐
# एक रचनाकार एक ही रचना भेजें ।

# जब तक आपकी पहली रचना प्रकाशित नहीं होती तब तक आप दूसरी रचना न भेजें ।

# ये आपका अपना पत्रिका है , जब चाहें तब आप प्रकाशित अपनी रचना या आपको किसी को जन्मदिन की बधाई देनी है तो वह शुभ संदेश प्रकाशित करवा सकते है ।

# फेसबुक के इसी पोस्टर के कॉमेंट्स बॉक्स में ही रचना भेजें ।

# साहित्य एक नज़र में प्रकाशित हुई रचना फिर से प्रकाशित के लिए न भेजें , बिना नाम , फोटो के रचना न भेजें , जब तक एक रचना प्रकाशित नहीं होती है तब तक दूसरी रचना न भेजें , यदि इन नियमों का कोई उल्लंघन करता है तो उनकी एक भी रचना को प्रकाशित नहीं किया जायेगा ।

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र 🌅

अंक - 37 से 40 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/309307190832064/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 34 से 36
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अंक - 31 से 34
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अंक - 36
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अंक - 31
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कविता :- 20(23)
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अंक - 32
, शुक्रवार , 11/06/2021 ,

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कविता :- 20(24)

अंक - 33
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12/06/2021 , शनिवार

कविता :- 20(25)

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अंक - 30
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रोशन कुमार झा




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