साहित्य एक नज़र 🌅, अंक - 37 , बुधवार , 16/06/2021

साहित्य एक नज़र

अंक - 37
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अंक - 36
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जय माँ सरस्वती

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 37

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

अंक - 37
16 जून  2021

बुधवार
ज्येष्ठ शुक्ल 06 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 7 - 8
कुल पृष्ठ -  9

मो - 6290640716

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
81.आ. स्वाति 'सरु' जैसलमेरिया जी
🏆 🌅 पुस्तक समीक्षा सम्मान पत्र  🌅 🏆
82. आ. रामकरण साहू " सजल " जी - "  ( हँसते हुए ख्याल ( ग़ज़ल संग्रह ) पुस्तक समीक्षा सम्मान पत्र - 4

82.

सम्मान पत्र - 1 - 80
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सम्मान पत्र - 79 -
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 37 , बुधवार
16/06/2021

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 37
Sahitya Ek Nazar
16 June 2021 ,  Wednesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

_________________

1.

मैं फिर उपस्थित हूँ श्री रामकरन साहू "सजल" जी के ग़ज़ल संग्रह "हँसते हुए ख़्याल" के तृतीय चरण की समीक्षा लेकर इस अनमोल ग़ज़ल संग्रह को पढ़े इसका रसास्वादन करें। ये आपके रसास्वादन के लिये उपलब्ध है।

1. सरोकार प्रकाशन
30,अभिनव काकड़ा मार्केट, अयोध्या बायपास, भोपाल
मध्यप्रदेश-462041
दूरभाष- 9993974799

2. श्री रामकरण साहू "सजल"
कमासिन रोड़, नीलकंठ पेट्रोल पम्प के पास, ग्राम-पोस्ट बबेरू
जनपद बाँदा (ऊ.प्र.) 210121
दूरभाष- 8004239966

2.

#tanhawritings
#tanhagazal

तुम तो समझदार हो...

कुछ ऐसे समझदारी की
कीमत हम चुकाते रहे।
हर किसी   से अपने
दिल पे     चोट खाते रहे।।
दिल रोता रहा खून के
आँसू अंदर ही अंदर,
होंठ हँसते हँसते ज़ख्म
-ए-दिल छुपाते रहे।
जब कोई न मिला दर्द
-ए-दिल बाँटने बाला,
दर्द लफ़्ज बनकर गज़ल
के रूप में आते रहे।
एक ही नतीज़ा रहा मेरे
इंकार और इज़हार का,
तुम तो समझदार हो
,सब मुझे समझाते रहे।
जब भी जिसको भी मौक़ा
मिला कोई न चूका,
जैसे तैसे दिल में आया
इल्ज़ाम लगाते रहे।
तुम्हारी आँख से आँसू
न गिरें मेरे आँसू देखक़र,
इसलिये जब भी तुमसे
मिले फक़त मुस्कराते रहे।
जब भी जिसके भी जितना
भी काम आ सकता था,
अपना काम निकाल
कर सब जाते रहे।
ख़ुदा तेरे रहम-ओ-कर्म
से न गिरा कभी भी"तन्हा"
तूने कुछ ऐसे दोस्त भी
वख्श़े जो हौसला बढ़ाते रहे।

✍️ राजेश "तन्हा"
रतनाल, बिश्नाह, जम्मू,
जे के यू टी -181132

3.
अंक - 37 से 40
शीर्षक -

राही बच्चें

सहम जाती हूँ देख उन्हें,
जो दर दर राह भटकते है।
जिनका है कोई ठिकाना न,
बच्चे भी शूली चढ़ते है।।
जीवन का रखते लक्ष्य नही,
बस पेट पालने को जीते।
बच्चे भी जिंदा रह पाए,
ऐसे उनमें वे गुण सीते।
दिनरात कर्म भरपूर करें,
पर पेट न उनके भरते है।।
जिनका....
शैक्षिक जीवन से बच्चों का,
है दूर तलक कोई मेल नही।
न खेल खिलौने गुड्डे है,
माँगन के सिवा है खेल नही।
फटे वस्त्र चेहरे धूमिल,
बिन चप्पल आगे बढ़ते है।।
जिनका...
राहों पर चलते चलते जो,
मिल जाए वो ही भोजन।
पेट भले हो तृप्त नही,
पर चलना है उनको योजन।
न थकते उनके पैर कहीं,
जहाँ रात हुई वही बसते है।।
जिनका...
कोमल मासूम से चेहरे पर,
दिखती है बस आशाएँ।
बातें रह रह थम जाती,
उनकी चाहत को दर्शाए
उड़ान की चाहत रखते जो,
गर्म धूप में तपते है।।
जिनका...
हम विश्व सहायक कहलाते,
देश सहायता कब होगी।
नन्हें मुन्हें प्यारे बच्चे,
फिरेंगे कब तक बन योगी।
रखदो हाथ सिर पर उनके,
उम्मीद वे तुमसे रखते है।।
जिनका...
हम कहते विश्व कुटुंब मेरा,
पर सबको न अपनाते है।
देख गरीबी लाचारी,
हम दूर से ही मुड़ जाते है।
साथ निभादो बस उनके,
इतिहास स्वयं वे रचते है।।
जिनका.......
सहम जाती हूँ देख उन्हें,
जो दर दर राह भटकते है।।

✍️ सरिता त्रिपाठी 'मानसी'
सांगीपुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

4.

" मेरे विचार "

अपना पतन खुद चुनता है
राह फ़ना की खुद बुनता है।
पेड़ न होते,
कुल्हाड़ी में बेंट न होता।
न किसी के हाँथों,
पेड़ों का पतन होता।
अपनी राह-ए फ़ना,
खुद बनता हैं।
अपना पतन खुद चुनता है।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर , मध्यप्रदेश

5.

अंक 37 से 39 हेतू सादर प्रेषित

गजल
्््््््््््््््््््््््््

ग़ज़ल

सारी दुनिया को मुझी से
कुछ अदावत..है तो है
माना सच कहना बुरा है
पर ये अादत ...है तो है! 1
मैने तो दुश्मन को भी
दुश्मन कभी समझा नहीं
फिर भी लोगों को अगर
मुझसे शिकायत.. है तो है! 2
शुक्र है सच कह के भी यारों
अभी महफूज़ हूँ
मेरे मालिक की है मुझपे
ये इनायत....है तो है! 3
वक़्त के हाथों छला है
रात दिन इसने मुझे
मेरी किस्मत की मुझी से
गर बगावत.. है तो है! 4
कल तलक नफरत थी
लेकिन अपने दिल का क्या करूँ
मुझको दुश्मन से भी अपने
अब मुहब्बत..है तो है! 5
मेरी माँ .. मेरा ख़ुदा है उससे
क्या शिकवा भला
* प्रेम..अब दिल पर मेरी
माँ की हुकूमत..है तो है! 6

✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद बिजनौर

6.
      
शीर्षक -

प्रेम

सृष्टि  आरंभ  हो  चुकी  है ।
यह  कैसे  आरंभ  हुई ?
इसके  लिए  ही ' कामायनी '
महाकाव्य  लिखी  गई  है ,
जिसकी  रचना
जयशंकर  प्रसाद ने  की ।
मनु  और  श्रद्धा  ने 
जो अभिनय किये ,
हम - दोनों  भी
साथ  मिलकर करेंगे ।
प्रेम  का  पाठ  पढ़ायेंगे ,
लोगों  के  बीच 
अपनापन  की
भावना  जगायेंगे ।
रावण  की  तरह 
अहंकारी  हो गये
  हैं  लोग ,
एक  दिन  पुनः
रामराज्य  बनाएंगे ।

✍️  प्रकाश  राय
समस्तीपुर , बिहार
मोबाइल नंबर - 9709388629

7.
अंक -37-40

शीर्षक :-

सूरज की तरह उँगना सीखो।

सूरज की तरह उँगना सीखो !
फूलों कि तरह हँसना सीखो !!
ऐ यार जरा गम से निकलो !
दीपक की तरह जलना सीखो !!
माना कि ह्रदय में अँधेरा है !
पर बाहर बहुत उजाला हैं !!
इस ख्वाब की नगरी से जागो !
धरती का रंग बहुत सुनहरा है !!
जब काली घटा यूँ सफा हुई !
चिड़ियों का चहकना सुबह हुई !!
रश्मियाँ क्षितिज पर जैसे पड़ी !
बागों में कोई कली जवान हुई !!
भँवरों का प्रेम देख के मन !
किसकी चिन्ता में खोया मन !!
चहुँ ओर दिशा कौतूहल मँचा !
वह मिला मुझे अपने ही मन !!

✍️ प्रभात गौर
पता:- नेवादा जंघई
प्रयागराज ( उत्तर प्रदेश )

8.

पिता

पिता के जीवन की सब सांसें,
होती हैं, बच्चों के हित।
पिता उन्हें देता आजीवन,
संरक्षण,निज प्रेम सहित।।
करता है बच्चों के मन की,
अपने मन को लेता मार।
जतलाता है क्रोध अधिकतर,
दिखलाता न अपना प्यार।।
सभी जरुरत पूरी करता,
लेना पड़ता भले उधार।
अपनी आवश्यकताएं अधूरी,
झेले हर मौसम की मार।।
मुझसे आगे हों संतानें,
एक पिता की ये ही चाह।
करता है जीवन भर कोशिश,
बने सुगम जीवन की राह।।
पिता देन ईश्वर की अनुपम,
धरती पर अपना भगवान।
इनकी नेह छत्रछाया से
वंचित हो न कोई इंसान।।

✍️ डॉ.अनिल शर्मा अनिल
धामपुर, उत्तर प्रदेश

9.
****मैं माली हूं***

मैं माली हूँ

मैं  माली हूं।
सींचना  धर्म है मेरा//
नहीं जानता
कौन फल खाएगा....
किसको मिलेगी  छाया//
बस अपने कर्म में रत
निरन्तर सेवता तरू को....
जिसको कभी लगाया है//
चुभ जाते अक्सर कांटे
हथेलियां भी फट जाती हैं....
नहीं देखता गौर से उनको
कि ध्यान अब फूलते
तरूओं पर है//
श्रम कितना किया
स्मरण नहीं‌...
मिलेगी छाया किसको?
कौन फल  खाएगा?
किस थकित
पथिक को यह
खगों का गान सुनाएगा?
भान  नहीं अब तो
कि शाम ढल आया है//
पर संतोष बहुत
मैंने अपना
धर्म निभाया है।
माली हूं
कई फूलों को लगाया है।
सभी बढें
फलें ‌...फूलें
अपने रंगों का मान रखें।
कि मैंने तो बस
अपना धर्म निभाया है//
नहीं जानता
तरू कौन इनमें से
अपना या पराया है।
माली हूँ .....
बस कर्तव्य पथ
पर मौन खङा
सेवा धर्म अपनाया है।
मौन साध करता
रहा वह सब
जिसके लिए ईश
ने बनाया है।
हर पिता अपने
बगीचे का माली है।
  
✍ डाॅ पल्लवी कुमारी " पाम "

                   25/4/21

10.

अंक-37-40
समाचार
झारखंड की बेटी को मिला'साहित्य  एक नजर सम्मान'

झारखंड राज्य के धनबाद शहर में रहने वाली नवीन युवा कवयित्री श्वेता कुमारी को लेखिनी के क्षेत्र में 'साहित्य एक नजर सम्मान' से अलंकृत किया गया।वे स्वयं कहती हैं-"मुझे मालूम नहीं था कि साहित्य की नजर में मैं सम्मान के काबिल कब बन गई।'साहित्य एक नजर'पत्रिका का मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ।हाल ही में उन्हें पोइट्री क्लब द्वारा ' साहित्यिक गौरव सम्मान' भी प्रदान किया गया है।

✍️ श्वेता कुमारी
धनबाद झारखंड।

11.
कल दिनांक १४/०३/२१ विश्व रक्त दान दिवस के उपलक्ष्य में " लफ्ज़ों का कमाल काव्य मंच" (मुजफ्फरपुर, बिहार)* पटल पर " रक्तदान महादान " के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
हमारे इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आ सपना नेगी, विशिष्ट अतिथि आ हरि ओम शर्मा जी, मंच संचालिका आ कल्पना भदौरिया जी, एवं अध्यक्ष आ दीन दयाल दीक्षित दीन जी* रहे। इन सभी के देख रेख कार्यक्रम आयोजित किया गया और ठीक तरह से संपन्न हुआ।
कल के हमारे जो कलमकार प्रतिभागी साथी थे जिन लोगों ने कार्यक्रम में अपने रचना से पटल पर चार चांद लगाए! संजय सिंह जी, सुखमिला अग्रवाल जी, डा.अम्बे कुमारी जी, प्रियंका मित्तल जी, प्रो कुलविंदर सिंह जी ( जिन्होंने इस कोरोना काल में भी अपने जान का परवाह नहीं करते 76 बार रक्त दान,6 बार प्लाज्मा दान किया है।) असल मानवता का पाठ हमें ये सिखला दिए। रामबाबू शर्मा जी, अनुराधा'अनु' जी, सीता देवी राठी जी, अभिलाज जी, रानू मिश्रा जी आदि रहे।

12.

नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र
विषय :- रचना है कहानी
विधा :-  कविता

माता- पिता , चाचा- चाची
भाई - बहन , मामा-मामी, नाना- नानी ,
सीख लाएं दादा-दादी , गुरुजनों
बोलना मीठा वाणी ।
हर जगह से कुछ न कुछ सीखता हूँ
सीखकर ही तो बनना है ज्ञानी ,
तब न रचेंगे नई कहानी ।।

जिसमें उम्मीद की रंग होगा ,
सुख-दुख संग होगा ।
हर अवस्था में जीना का ढंग होगा ,
मैं हार मानने वाला हूँ न
मेरी सफलता से
मेरे दुश्मनों तंग होगा ।।

शहर मधुबनी , मुंबई , कोलकाता ,
वहाँ लोग पाँच सौ से दस हज़ार न
जाने एक दिन में लोग कितना कमाता ।।
कोई पूजा पाठ करने मंदिर जाता ,
यही तो है जीवन न जाने एक दिन में
कितने जन्म लेता तो शरीर मर जाता ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
बुधवार , 16/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(29)
✍️ रोशन कुमार झा , Roshan Kumar Jha , রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 37
Sahitya Ek Nazar
16 June 2021 ,   Wednesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর


अंक - 37 - 40

नमन :- माँ सरस्वती
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
मो :- 6290640716

रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -

अंक - 37 से 40 तक के लिए आमंत्रित

दिनांक - 16/06/2021 से 19/06/2021 के लिए
दिवस :- बुधवार से शनिवार
इसी पोस्ट में कॉमेंट्स बॉक्स में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें । एक से अधिक रचना भेजने वाले रचनाकार की एक भी रचना प्रकाशित नहीं की जायेगी ।।

यहां पर आयी हुई रचनाएं में से कुछ रचनाएं को अंक - 36 तो कुछ रचनाएं को अंक 37 , कुछ रचनाएं को अंक - 38 एवं बाकी बचे हुए रचनाओं को अंक - 39 में प्रकाशित किया जाएगा ।

सादर निवेदन 🙏💐
# एक रचनाकार एक ही रचना भेजें ।

# जब तक आपकी पहली रचना प्रकाशित नहीं होती तब तक आप दूसरी रचना न भेजें ।

# ये आपका अपना पत्रिका है , जब चाहें तब आप प्रकाशित अपनी रचना या आपको किसी को जन्मदिन की बधाई देनी है तो वह शुभ संदेश प्रकाशित करवा सकते है ।

# फेसबुक के इसी पोस्टर के कॉमेंट्स बॉक्स में ही रचना भेजें ।

# साहित्य एक नज़र में प्रकाशित हुई रचना फिर से प्रकाशित के लिए न भेजें , बिना नाम , फोटो के रचना न भेजें , जब तक एक रचना प्रकाशित नहीं होती है तब तक दूसरी रचना न भेजें , यदि इन नियमों का कोई उल्लंघन करता है तो उनकी एक भी रचना को प्रकाशित नहीं किया जायेगा ।

समस्या होने पर संपर्क करें - 6290640716

आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र 🌅

अंक - 37 से 40 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
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अंक - 34 से 36
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/307342511028532/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 31 से 34
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/305570424539074/?sfnsn=wiwspmo

सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र ( 1 - 80 )
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/295588932203890/?sfnsn=wiwspmo

सम्मान पत्र ( 79 -

https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/308994277530022/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 36

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_____________________
RAM KRISHNA , COLLEGE

अंक - 37
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/37-16062021.html

कविता :- 20(29)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2029-15062021-37.html

अंक - 38
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/38-17062021.html

कविता :- 20(30)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2030-17062021-38.html

अंक - 39
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/39-18062021.html

कविता :- 20(31)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2031-18062021-39.html
अंक - 40
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/40-19062021.html

कविता :- 20(32)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2032-19062021-40.html

अंक - 34
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/34-13062021.html

अंक - 36

http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/36-15062021.html

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साहित्य एक नज़र 🌅


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