साहित्य एक नज़र 🌅, अंक - 39 , शुक्रवार , 18/06/2021

साहित्य एक नज़र

अंक - 39
https://online.fliphtml5.com/axiwx/qdxz/

अंक - 38
https://online.fliphtml5.com/axiwx/lnjf/


जय माँ सरस्वती

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 38

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

अंक - 39
18  जून  2021

शुक्रवार
ज्येष्ठ कृष्ण 8 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र - 5 - 6
कुल पृष्ठ -  7

मो - 6290640716

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
84.आ. डॉ . श्याम लाल गौड़ जी ( 1 - 38 )
85. आ. धीरेंद्र सिंह नागा जी ( 1 - 39 )

सम्मान पत्र - 1 - 80
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सम्मान पत्र - 79 -
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 39 , शुक्रवार
18/06/2021

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 39
Sahitya Ek Nazar
18 June 2021 ,  Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

_________________

1.
परिचय -
✍️ रामकरण साहू"सजल"ग्राम-बबेरू
जनपद - बाँदा , उत्तर प्रदेश , भारत
शिक्षा- परास्नातक
प्रशिक्षण- बी टी सी, बी एड, एल एल बी
संप्रति- अध्यापन बेसिक शिक्षा
सम्पर्क सूत्र-  8004239966

2.
समीक्षा स्तम्भ - काव्य संग्रह - " मुक्तावली " ( समीक्षा )

आज मैं बात करने जा रहा हूँ द्वितीय चरण की समीक्षा की जी हाँ आप सही समझें श्री रामकरण साहू "सजल" जी के काव्य संग्रह "मुक्तावली" की छः खण्डों उत्साह, मुस्कान ,प्रेम, आशा,सम्बन्ध और ममता इन छः खण्डों में विभाजित किया गया है। अवस्थाओं की बात करें तो शायद ऐसी होगी एक बगीचे में जब माली एक बीज को रोपता है तो बड़े उत्साह से उस बीज से एक पौधा अंकुरित होता है और उस में लगती है एक कली जैसे कोई किशोर अवस्था मे युवती हो  जब कली किशोर अवस्था के अंतिम चरण में होती है तो उसके यौवन में और निखार आता है । एक दिन उस कली की नज़र पास के फूल पर पड़ती है। फूल को देख कर कभी कभी कली मुस्कुरा देती है। फूल भी चोर नज़रों से कली को ताकता है जैसे पूरे यौवन से भरी युवती किसी युवक को प्यार भरी नज़र से देखती है। कभी कभी जब पुरवाई चलती है तो फूल का स्पर्श काली से हो जाता है। और अंतर मन पुलकित हो जाता है जैसे ज़वानी की दहलीज़ पर खड़े जोड़ों के बीच जो भावनाएं जाग्रत होती है। जब कभी पुरवाई नहीं चलती तो दोनों के चेहरे उदास नज़र आते है । जैसे किसी प्रेमी को जब अपनी प्रयसी नज़र नहीं आती। दोनों फूल और कली आशा करते है कि जब माली हमें तोड़े तो एक ही माला में गूंथे जिससें हमारा सम्बन्ध हमेशा साथ रहे। यही दो प्यार करने बालो की तमन्ना होती है। जब वही दो प्रेमी परिणय सूत्र में बंध जाते है और अपनी संतान को जन्म देते है तो वही चक्र फिर शुरू हो जाता है । श्री साहू जी ने इस काव्य संग्रह में  यही वर्णित करने का प्रयास किया है जिसका नाम है  "मुक्तावली" ।
  अच्छा तृतीय चरण की समीक्षा में फिर मिलूँगा। तब तक के लिए
राम-राम

समीक्षक ✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
ग्वालियर , मध्य प्रदेश
9753877785


3.

जो लोग आज
तुझ पर हँसतें है।
कल वही अपने
आप पर हँसेगें।

दुर्गम सही वो पथ
तू चल तो सही।
एक दिन रास्ते
खुद व खुद बनेगें।

अखबारों की चिंता
छोड़ न छपे तेरा नाम।
देखना एक दिन तेरे
शब्द शिलालेख बनेंगे।

✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर , मध्यप्रदेश
4.
उसका मुकद्दर यू रूठ गया ,
बकरा कसाई हाथ लग गया।
वो दिल में आ बत्तियां बुझा
नभाक कर गया,
कोई जुगनू पकड़ दामन
फिर उजाला कर गया।
तुम अच्छे हो अच्छे ही सही
हम बुरे हैं बुरे ही सही,
देख लेते जो अच्छी नजर से
बुरे हम भी नहीं।
कहते हो जीरो हमें कोई
मलाल नहीं
तुम्हें मिला जो ताज दहाई का
इकाई को दहाई बनने में
जीरो का ही हाथ है।
क्या क्या नहीं किए
उसकी नजरों में उठने के लिए,
कितनी कितनी बार गिरे
अपनों की नजरों में,
माना कि शिक्षित बहुत है
पर संस्कार से नीचे है।
उसके शब्दों के तीर चले हैं ऐसे
दिल में एक घाव गंभीर है,
दर्द में आंखें गमगीन है,
मन व्यथित, रो रहा गगन है
गिरे जो आंसू सहमी धरती है
है उम्मीद की आंसुओं से
सिंचित पुष्प खिलेंगे,
खुशबू मिल हवाओं में
गगन तक जाएगी,
हर्ष उल्लास कायनात में
फिर आएंगी।
जिन आशियानों में है उजाला
वो समझते है जुगनू को कहां?
जो समझते हैं जुगनू को
उन आशियानों में अंधेरा कहां ?
बड़े महफूज जिंदगी है वो
जो समझते मां-बाप के
कदमों को जन्नत,
कम अक्ल है वो
जो बहाए इक अश्क इनके।
सम्मुख शिकायत करें
तो हिदायत है,
पीठ पीछे करें तो सियासत है।

✍️ धीरेंद्र सिंह नागा
( ग्राम -जवई,तिल्हापुर,  कौशांबी )
उत्तर प्रदेश
5.
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र

विषय :- गिराकर आगे बढ़ना ठीक नहीं ।
विधा :-
कविता -
गिराकर आगे बढ़ना ठीक नहीं ।

किसी को गिरा कर आगे
बढ़ना ठीक नहीं ,
चाहिए हमें ये भीख नहीं ।।
मेहनत के हिसाब से ही
चाहिए फल
चाहिए उससे अधिक नहीं ,
मंजिल तक जाना पड़ता
मंजिल किसी के नज़दीक नहीं ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग
कॉलेज,कोलकाता
रामकृष्ण महाविद्यालय,
मधुबनी , बिहार
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
शुक्रवार , 18/06/2021
मो :- 6290640716,
कविता :- 20(31)
Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 39
Sahitya Ek Nazar
18 June 2021 ,   Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

6.

बेटियां

बेटियां भी बेटों से कम नहीं है,
युग परिवर्तन के साथ-साथ
बेटियां भी बदल रही है,
देश मेरा आगे बढ़ रहा है
बेटियां भी तो आगे बढ़ रही है,
बेटों की तरह बेटियां
भी हर  क्षेत्र में ।
अपना परचम फहरा रही हैं,
गाँव से देश की सीमाओं तक
रसोई से ले करके रण-क्षेत्र तक
हल से ले कर हवाई जहाज
तक चला रही है,
अपने देश तो क्या विदेशों तक
अपना हर कर्म का कमान
संभाल रही है,
ईश्वर की अद्भुत कारीगरी है बेटियां,
आज के युग में एक मिसाल है बेटियां,
जीवन की चलती गाड़ी के दो
पहियों में से एक पहिया ही है बेटियां,
मत रोको इनको आगे बढ़ने भी दो,
बेटों की तरह बेटियों को भी पढ़ने दो,
इनके हौसलों को हौसला
-अफजाई करो तुम,
उनके भी सपनों को साकार
करने करने दो तुम,
बढ़ती है बेटियां उनको तुम बढ़ने दो,
बेटियां बढ़ेगी तभी तो सृष्टि बढ़ेगी,

✍️ चेतन दास वैष्णव
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा , राजस्थान
          
7.
विधा- कविता
शीर्षक- "
कविता -
कत्ल इज्ज़त का करते हो"

ज़माने के उन अदीबों से
सवाल किया करते हैं,
ख़ुद के क़ल्ब से आवाक
किया करते हैं,
बेशक हैं कुसूर मेरे
इरादों का अब,
हम खामोशी से बस
वफ़ा किया करते हैं।
बेहद मशहूर थे जब
खता किया करते थे,
उन कायदों के गुरूर
को तोड़ा करते थे,
समेट लिया है जिंदगी
के दायरों में,
तनहा अब गमों को अपने
नाम किया करते हैं।
इस पाबंदी में भी
आजमाईश हमसे करते थे,
आरज़ू जिस्म की थी और
इकरार- ए- मुहब्बत करते थे,
दासतां इस जालिम जहां
का बखूबी पता है हमें,
इरादा इश्क का नहीं
कत्ल इज्ज़त का करते थे।
कैद किया है जो इन
कायदों में कुबूल करते हो,
हमें वास्ता इस  दुनियां
जहां ख़ुदा की देते हो,
औरत का वजूद क्या है
पता नहीं है तुम्हें,
दुवाओं की पनाह में हो,
सौदा आंचल की करते हो।

✍️ कीर्ती चौधरी
पता- जमानियां,
गाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)

8.
||ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः||"

आश्चर्य होता है -

आश्चर्य होता है जब,
लोग कहते हैं
समाज टूट रहा है
रिश्ता बचाने में जन-
जन का पसीना छूट रहा है |
हमारी असंख्य कोशिशों
और दुआओं के बाद,            
सुशीला सुंदर कमाऊ
बहू घर आई थी |
न जाने क्यों उसने बसे
घर में हलचल मचाई थी?              
जितना कमाया था  उसने, 
सूद समेत मुआवजे में
वह हमसे ले गई थी |
नाक कट गई हमारी,
जो समाज में बहुत ऊंची थी |
हमारे बेटे का तो
चमन ही उजड़ गया है,
एक साल पहले ही तो
चालीस में शादी रचाई थी |       
हो गया है जीवन उसका अँधेरा,
चली गई वह ज्योति जो
उसके जीवन में आई थी|                
न जाने यह समाज
कहाँ जा रहा है ?
विघटन रिश्तों का
लूट मचा रहा है |
गलती अपनी इंसान
नहीं देख पा रहा है,
निर्लज्ज हो बेढंगी रचना
वह रचा रहा है |
पैंतीस लाख बेटे का पैकेज,
फिर भी कमाऊ
बहू ही चाह रहा है |
जो योग्यता कमाने
की रखती है,
वह भी तो कुछ
अपेक्षाएं रखती होगी |
भावनाएं आहत
होगी जब उसकी,
तभी विग्रह मार्ग पर
पद रखती होगी |
धिक्कार उन रुपयों लाखों को, 
जिनमें परिवार पालने का
नहीं विश्वास होता है|           
इन्हीं  अपेक्षाओं से तो  नर,
स्वयं को और समाज
को भी खोता है |
संस्कृति और संस्कार
की करके उपेक्षा,
संबंध आधार "स्टेटस"
जब होता है|
तब जीवन में निश्चय ही,
सद्भावनाओं का प्रायः
अभाव होता है |
आधार जब रिश्तो का पैसा हो
वह चंचला-लक्ष्मी की तरह
कहाँ स्थिर होता है?

✍️ गणेश चंद्र केष्टवाल,
ग्राम मगनपुर, पोस्ट-किशनपुर
वाया कोटद्वार, गढ़वाल (उत्तराखंड)

9.

मैथिली - कविता

बात- बात पर लड़ैत एलहुँ
कहियो नहि हम भेलहुँ एक
जाति-पाति मे बंटि गेलहुँ
संस्कारकेँ देलहुँ कतओ फेक
जपैत छी हर- हर गंगा
करू नहि कहियो मारि आ दंगा।

सीताक भाइ अहाँ छी,
राम केँ छी साला
मर्यादि आर त्यागी बनू अहाँ
खोलि अकलक ताला
जखन अहाँक बास दरभंगा
औ जपि फेर हर-हर गंगा
करू नहि कहियो मारि आ दंगा।

विद्यापतिक गान अहाँ
मंडन-अयाचिक छी स्वाभिमान
मिसरी स' मीठ बोल "मैथिली"
सगरो बनल हमर पहचान
ली नहि बिनु मतलब केर पंगा
जपि नित हर-हर गंगा
करू नहि कहियो मारि आ दंगा।

गार्गी-भारती माइ -बहिन
जनक बनलाह हमर राजा
दर-दर केर तैयो ठोकर खाइत
आइ मैथिल बनल अभगला
पेटक सोहारी जुरय नहि
तन पर शोभय नहि अंगा
तैयो नहि मान बेचय ओ
बस रटैत रहय हर-हर गंगा
करय नहि कहियो मारि ओ दंगा।

✍️ प्रवीण झा

10.

अंक - 37
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/37-16062021.html

कविता :- 20(29)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2029-15062021-37.html

अंक - 38
अंक - 38
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/38-17062021.html

कविता :- 20(30)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2030-17062021-38.html

अंक - 39
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/39-18062021.html

कविता :- 20(31)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2031-18062021-39.html
अंक - 40
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/40-19062021.html

कविता :- 20(32)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2032-19062021-40.html

अंक - 34
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/34-13062021.html

अंक - 36

http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/36-15062021.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2028-15062021-36.html

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