साहित्य एक नज़र 🌅, अंक - 38 , गुरुवार , 17/06/2021

साहित्य एक नज़र

अंक - 38
https://online.fliphtml5.com/axiwx/lnjf/
अंक - 37
https://online.fliphtml5.com/axiwx/arjp/

जय माँ सरस्वती

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 38

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

अंक - 38
17 जून  2021

गुरुवार
ज्येष्ठ कृष्ण 7 संवत 2078
पृष्ठ -  10
प्रमाण पत्र - 9
कुल पृष्ठ -  10

मो - 6290640716

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
83. आ.  सीमा सिंह जी ,  मुंबई

सम्मान पत्र - 1 - 80
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सम्मान पत्र - 79 -
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/308994277530022/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 34 से 36 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
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फेसबुक - 2

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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 38 , गुरुवार
17/06/2021

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 38
Sahitya Ek Nazar
17 June 2021 ,  Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

_________________

1.

समीक्षा स्तम्भ - काव्य संग्रह - "मुक्तावली"

आज मैं उपस्थित हूँ समीक्षा के प्रथम चरण में श्री रामकरण साहू "सजल" जी का काव्य संग्रह "मुक्तावली" लेकर जो लोकोदय प्रकाशन प्रा. लि. 65/44 शंकरपुरी, छितवापुर रोड़ लखनऊ से प्रकाशित है।

प्रथम चरण की समीक्षा में हम हमेशा बात करते है प्रकाशक की जैसे माँ बेटे को जन्म देती है। बैसे ही एक प्रकाशक रचनाकार की एक - एक रचना को संजोकर एक पुस्तक का रूप देता है।  श्री रामकरण साहू "सजल" जी की ऐसी ही एक - एक रचना को संजोकर  एक काव्य संग्रह का रूप दिया लोकोदय प्रकाशन ने जिसका नाम है "मुक्तावली" कल में चर्चा करूँगा इस अनमोल काव्य संग्रह की जिसकों लोग पढ़ने के लिए लालायित है ऐसा क्या है इस काव्य संग्रह में कल की समीक्षा में ज़रूर पढ़िये
तब तक के लिये।

राम-राम

समीक्षक -
आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785

परिचय -
✍️ रामकरण साहू"सजल"ग्राम-बबेरू
जनपद - बाँदा , उत्तर प्रदेश , भारत
शिक्षा- परास्नातक
प्रशिक्षण- बी टी सी, बी एड, एल एल बी
संप्रति- अध्यापन बेसिक शिक्षा
सम्पर्क सूत्र-  8004239966

2.

कविता -
कब तक ये आग यूँ बरसेगी

आँखे नम, लब खामोश,
और दिल रोता है।
क्यों हर बार, इन आतंकियों
की निगाह में 'देव'
मेरा ही घर होता है।।
कब तक, ये आग यूँ बरसेगी।
जन्नत सुख चैन ,को तरसेगी।।
कब तक होंगी गोदें
सूनी,सिंदूर माँग को तरसेगा,
राखी भी मांगे हक अपना
,पानी आँखों से बरसेगा,
  नन्ही सी जान यूँ बिलखे
,अब प्यार पिता का तरसेगी।
  कब तक ये,
आग यूँ  बरसेगी।।
लहु बहाया है तूने
,देदी अपनी क़ुरबानी है,
बना तिरंगा शान ये तेरी ,
सच्ची तेरी जवानी है,
  रणचंडी बन खून माँग रही,
और ये कितना परखेगी।
  कब तक ये आग यूँ  बरसेगी।।
भारत माँ के शेर खड़े हैं
,कफन बाँध अपने सर पर,
गद्दारों की औकात कहाँ,
लहरा दें पताका भी यम पर,
   देख रूप विकराल
यहाँ,दुश्मन की छाती दरकेगी।
   कब तक ये आग यूँ  बरसेगी।।
कर देंगे कलम, सर उसका गर,
कोई बुरी नजर जो उठ जाये,
सुलग रही ज्वाला नफरत की,
काश: आज वो बुझ जाये।
हो रही लहू की प्यासी,
वो तलवार म्यान से सरकेगी।
कब तक, ये आग यूँ  बरसेगी।।
कब तक, ये आग यूँ बरसेगी।
जन्नत सुख चैन ,को तरसेगी

✍शायर देव मेहरानियाँ
      अलवर,राजस्थान
_ 7891640945
slmehraniya@gmail.com

3.
शीर्षक-

नमन माता-पिता

नमन माता पिता तुमकों
,मुझे दुनिया में लाये हो
मैं हूँ अनभिज्ञ अज्ञानी,
मुझे क़ाबिल बनाये हो
मेरी पहली गुरु माता
,मुझे नज़रों से समझाया
सिखाया ख़ुद मुझे चलना
,जहां सारा ये दिखलाया
भरे हैं कूटकर माँ ने,
सभी संस्कार मुझमें जी
खिलाया पेट भर खाना,
करी आँचल की फ़िर छाया
चरण रज माँ की मिल जाये,
ज्यूँ गंगा में नहाये हो
नमन माता पिता तुमकों,,
पिता बनकर मेरी बाहें,
मुझे देते सहारा हैं
मेरी ग़लती को भी झट
से पिताजी ने निखारा है
कभी जो डगमगाया मैं,
सम्भल ख़ुद से न पाया मैं
बने पतवार वो मेरी,
भंवर से फ़िर उबारा है
नमन करता सचिन इनको,
के बन भगवान आये हो
नमन माता पिता तुमकों,,
नमन माता पिता तुमकों
,मुझे दुनिया में लाये हो
मैं हूँ अनभिज्ञ अज्ञानी,
मुझे क़ाबिल बनाये हो

✍️ सचिन गोयल
गन्नौर सोनीपत,हरियाणा
Insta@,, Burning_tears_797

4.
#साहित्य एक नजर.
अंक:: 37 - 40.
दिनांक - 16/6/2021.

माँ मेरी माँ.

व्यथा अभिरंजित कथ्य
व्योम विस्तारित प्रतीक
डिम्ब अनुधारित बिम्ब
जननी पालक शैली में
पुंसवादी शाश्वत सत्य में
एक अदद औरत मेरी माँ.
लोरी में जीवन गीत पिरोती
अन्न प्रासन करती मुंह पोछती
आंसू पोछती व्यथा हरती
उंगली पकड़ चलना सिखाती
करुण रस धारिता
खुद आंसू पीती
छंदों में क्षण क्षण जीती
मातृ दिवस पर तुम
एक यक्ष प्रश्न बन जाती
औरत बनकर याद आती
मेरी प्यारी भोली भाली माँ.

✍️ अजय कुमार झा.
   9/5/2021.

5.
आज कल की नारी

सभी वर्ग में, सर्वश्रेष्ठ
कला की, नखड़ा कारी
उपवान के, बागों में रह के
,फेके शब्दों की चिंगारी
इनके चरित्र कला को,
परख न पाए, देव मुरारी
आज कल की नारी,
देती है पति को गाली ।
बरतन को भी, धुलवाती
है, प्रेस कराती है साड़ी
घर में झगड़ा करके, पकड़ती
है, मायके की गाड़ी
मन्द मन्द मुस्कानों से,
आकर्षित करती है नारी
बिन गलती के, बातों पे
भी, बुलवाती है सॉरी
सावित्री, सती अनुसुईया
का, मान घटाती है
अपने को अबला, कह कर,
चंडी कथा सुनाती है
माँ के ममता के, आँचल
की, नमी भूलाती है
झूठे शब्दों के बातों के,
चार पकौड़े तलती है
सखी सहेली के कर्मो से,
ईर्ष्या करके जलती है
मन के घृणा के भावों
से, देखे पूरी दुनिया सारी
मुक़दमा कर जेल खटाती,
कहती है तू अत्याचारी
बिन गलती के, बातों पे
भी, बुलवाती है सॉरी
प्यार से इनको मिर्ची कह दो,
बन जाती है दुर्गा काली
बात मनवाने के खातिर,
चाहिए, सोने की ही बाली

गंगा के निर्मल धारा सी,
बनती ज्वार भाटा
की लहर तूफ़ानी
ऑडर पे ऑडर देती है,
जैसे नाना की है नानी
प्रकृति के प्रतिपादन की,
यह सब कथा है, बड़ी पुरानी
सौंदर्य प्रसाधन के, मंडी में,
सब्जी की बिकती तरकारी
माथे पर तांडव करती है, हम
कहते है गुस्सा धारी
बिन गलती के, बातों पे भी,
बुलवाती है सॉरी
खुद को प्रकृत कहती है, सींचे नहीं
उपवन की क्यारी
तिष्कार करती रहती है,
फिर भी दुनिया में ये सबसे प्यारी
स्वाभिमान के कर्तव्यों में, सो कर,
बेड पर मांगे चाय की प्याली
कभी न छूटे, चमक दमक में,
ओंठो की ये प्यारी लाली
प्रेम योग को दूषित कर दे,
निष्ठुर हृदय विसारग गामी
कई युगों से, चर्चा में,
सर्वप्रथम है,स्त्री नामी
स्वरचित यह कथा लिखी है,
कलम नहीं मेरी सरकारी
बिन गलती के, बातों पे भी,
बुलवाती है सॉरी ।

✍️ इंजी० नवनीत पाण्डेय
सेवटा (चंकी)

6.
🙏नमन  समस्त आदरणीय

३४-३६ अंक के लिए

विषय - धरती
विधा - कविता
दिनांक - १५.०६.२०२१
नाम - अनिता तिवारी
द्वारका,दिल्ली

धरती

सुनहरी किरणों की चादर
ओढ़े, धरा मुस्कुराई
सज संवर कर आसमान
संग वो मिलने आई
यौवन  उसका निखर
रहा था नव ब्याहता जैसे 
कंगना उसकी खनक
रही थी, शिशु के पुकार जैसे ।
सब कुछ ठीक चल रहा था
,पुलकित मन जैसे
प्यार मुहब्बत बरस रहा
था, माता के स्नेह जैसे
तभी एक मानव अवतीर्ण
हुआ, एक जीव जैसा
धरा ने अपनाया
उसे, एक माँ जैसा ।
मानव  ने धरा 
का दोहन शुरु किया
सब कुछ उसका ले लिया
धरा हार गई उससे
जिसको सबसे
ज़्यादा सम्मान दिया ।
वृक्षों के दोहन
से वसुधा घबराई
उसने अनेकों दिए संकेत
पर मानव पर तो जैसे
धुन सा था सवार ।
वसुंधरा के
चादर में  लगा दाग
जब से ओजोन
में हुआ छेद
बार- बार धरा वृक्ष के
गुण का करती बखान
पर मानव जानकर
भी बना रहा अनजान।
धरा ने फिर समझाया
जीवन का सहारा
वृक्ष हमारा
ऑक्सीजन के बिना
जीना होगा मुश्किल

इन हालातों में
तो समझ लो ।
पक्षियों का बसेरा है
तुझे भी तो देती छाया है
हरियाली का सूचक है
करता तेरा काम है ।
सूख जाने पर भी
आता तेरा काम
तेरे अंत समय में
बनता तेरा सहारा
मृत्यु सी विपदा में
भी अपना फर्ज़ निभाता
तेरे अनगिनत सपनों को 
है पूरा करता।
मेरे श्रृंगार का सामान है वृक्ष
मेरी पहचान है वृक्ष
बिन श्रृंगार लगूंगी मैं विधवा
तू मुझे तो रहने दे
जैसे रहे सुहागन ।
समझाते समझाते धरा
की उम्र ढ़ल गई
वो जवान से बूढ़ी हो गई
अनगिनत बच्चे बिना
ऑक्सिजन
काल के गाल में समाए ।
आज भी धरा को है इंतजार
कोई तो हो जो लाए बहार
फिर से उसे हरे चादर में डाल
कर दे उसका श्रृंगार ।

✍️ अनिता तिवारी
द्वारका ,दिल्ली

स्वरचित

7.
# नमन मंच
37-40
विषय

बुजूर्ग की व्यथा ( लघुकथा ) , ✍️ भूपेन्द्र कुमार भूपी

द्वारका के सबसे अमीर श्याम बहादुर सिंह जी के आज खुशियों का ठिकाना नहीं था l हो भी क्यों नहीं आज उनके दोनों बेटे पढ़ लिख कर भाभा नाभकीय संस्थान में सहायक विज्ञानिक बन गये हैं  l एक माता पिता के लिए इससे ज्यादा ख़ुशी और क्या हो सकती है। आज से तीस साल पहले ऐसी बात नहीं थी,जब वे गाँव से शहर आये थे तब उनके पास सर छूपाने को एक झोपडी भी नहीं थी l दो बच्चे और पत्नी के साथ सड़क के किनारे झोपडी  ड़ाल कर रहने लगे थे l काम कोई नहीं मिला तो कबाड़ खरीदने का काम करने लगे,कभी रोटी मिलती कभी भुखे पेट ही सोना पड़ता था l भाग्य सदा ही नहीं सोता रहता ,मेहनत रूपी पसीने की बूंद पाकर वह हीरा बन जाता है। पाई पाई ज़ोड़ ,खुद को भुखा रख अपने लाल को पढ़ाया लिखाया और इस मुकाम को हासिल किया कि आज उनकी गीनती यहाँ के धनाढ़यों में होने लगी l
आज जब दोनों ही बेटे सफलता का परचम लहराने लगे है तो वे अपना सब गम भूल गए l आज दो साल बाद  उनके बेटे उनके पास आए हैं ,ख़ुशी का ठिकाना नहीं है l खाना खाने के बाद बेटों ने कहा "पिताजी अब हमलोगों को रहना तो बाहर ही है ,आपकी उम्र भी हो गयी है क्यों नहीं सब कुछ बेच कर वहीं रहा जाय" l
अनमने मन से उन्होने हामी भर दी l आज वो बड़े बेटे के साथ उसके शहर में रहने को चले गए l
कुछ दिन तो समय सही से गुजरा पर उसके बाद रोज ही खटपट होने लगी l एक दिन बेटे ने कहा मेरा तबादला हो गया है ,जब तक नये शहर में सही का ठौड थिकाना नहीं मिल जाये आप और माँ यहाँ एक वृधाश्रम में रह लें ,कुछ ही दिनों की बात है फिर मै आप सभी को ले जाऊँगा l उन्होंने हामी भर दी l
आज दो साल हो गया पर वो लौट कर नहीं आये l
श्याम जी स्वाभिमानी थे उन्हें इस तरह यहाँ रहना अच्छा नहीं लग रहा था l उन्होने अपनी पत्नी से कहा "आज से पैंतीस साल पहले जहाँ से सफर की शुरुआत की थी ,चलो प्रिये फिर से वहीं से शुरुआत करें " l रूँधे गले से एक दुसरे का हाथ पकड़ कर वो वृद्धाश्रम से रातों रात निकल पड़े l

✍️ भूपेन्द्र कुमार भूपी
     नई दिल्ली

8.
#नमन मंच
#साहित्य एक नजर
#दिनांक-16/6/21से19/6/21
#अंक   -37,38,39,40
#विषय -देशभक्ति
#विधा  -कविता

                     #दिनेश कौशल

देशभक्ति

मेरी  पूजा ,मेरी देशभक्ति,
नहीं मुझमे  इतनी शक्ति,
ना ही मुझमे इतना  बल ,
कर सकूं  राष्ट्र से मैं छल,
जीता-मरता पल-प्रतिपल,
सदैव ऊंचा रहता मनोबल।
देशप्रेम की भावना सर्वोत्तम,
त्याग, बलिदान ,सेवा,उत्तम,
इस चाहत  में नहीं  चाहता,
कभी भी मिले उनका साथ,
काले करतूतों ,काले धब्बों से,
रंगे -सने हो  जिनके हाथ।
आतंकियों , देशद्रोहियों के
छक्के छुड़ाने का प्रण मेरा,
वतन की रक्षा का सौगंध,
देशभक्ति  रग-रग  में  मेरे,
देश के माटी का तिलक करूँ,
शान से दमकते मस्तक पर मेरे।
ठहरा में तो सच्चा देशप्रेमी,
तप-साधना  देशभक्ति  मेरी,
निर्णय मेरा, मान-अभियान मेरा,
आन-बान और शान देश का,
पराक्रमी  सैन्य  मेरे देश का,
श्रद्धा, देशभक्ति  अटूट  मेरी।

✍️ दिनेश कौशल
कवि एवं शिक्षक
लक्ष्मीसागर, दरभंगा ( बिहार )

9.
क्यूँ न जीवन को जी लिया जाय,
क्यूँ न गमो को पी लिया जाय।
सुख दुःख का ही नाम तो जिंदगी है,
क्यूँ न इससे भी इतर कुछ किया जाय।।
संसार मे आना जाना तो एक बहाना है,
क्यूँ न इस बहाने को ही जी लिया जाय।
बहुत हो गया दूसरों के दोष देखना।
क्यूँ न  अपने भीतर ही देख लिया जाय।।
दुनियां को पढ़ने में लगया सारा समय,
क्यूँ न कुछ समय अपने को ही दे दिया जाय।
ये दौड़ाना ये भागना रातों को जगाना,
क्यूँ न अपने मन को ही जगा लिया जाय।।
क्या खोया क्या पाया क्या है ये काया,
क्यूँ न इसका आकलन कर लिया जाय।
ये धन ये दौलत ये अनजानी मया,
क्यूँ न इसकी हकीकत जान लिया जाय।।
दुनियाँ में खोना व्यर्थ का ही रोना,
क्यूँ न  इसको सार्थक किया जाय।
बहुत समय बिताया यहाँ घूमते फिरते,
क्यूँ न अब श्री हरि का आश्रम लिया जाय।।

✍️ डॉ0.जनार्दनप्रसादकैरवान:
     प्रभारी प्रधानाचार्य
श्री मुनीश्वर वेदाङ्ग महाविद्यालय
ऋषिकेश उत्तराखंड

10.
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र
विषय :- ये पेड़ बहुत कुछ सीखा दिया
विधा :-  कविता

देखो-देखो इस आम के पेड़ को ,
और कुदरत की खेल को ।।

जितनी पेड़ की वज़न नहीं ,
हार मान लेने की इसे मन नहीं ।।
इस पेड़ सीख लिए
अब हार मानने वाला मैं रोशन नहीं ,
कौन कहा - मैं प्रसन्न नहीं ,

भले इस पेड़ को
अपने हाथों से लगाये थे ,
हम न इन्हें बकरी , जानवरों व
हालातों से बचाएं थे ।।
एक सौ में पिता
और दुर्गेश चाचा संग
मिथिला नर्सरी से लाएं थे ,
एक न तीन पेड़ लगाएं थे ‌‌।।

तीन में से दो हार गया ,
वह भी क्या साल गया ।।
शरीर जाते , कब यह संसार गया ,
पेड़ में लगे हुए आमों को देखकर
मेरे अंदर से हार मानने की विचार गया ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
गुरुवार , 17/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(30)
✍️ रोशन कुमार झा ,
Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 38
Sahitya Ek Nazar
17 June 2021 ,   Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর

11.
नई जिंदगी

क्यों लोग दिख रहेहैं ....
हताश ! निराश ! उदास !
मातम है छाई आस ~ पास ।।
कहां मर गया ...
खुशी ! उमंग ! उत्साह !
व्यर्थ हो गया सारा उल्लास ।।
क्यों बढ़ गया इर्ष्या...
घमंड ! गुमान ! अभिमान !
सब हो गया तेरा सर्वनाश ।।
हो रहा किसकी तलाश ...
उन्नति ! प्रगति ! विकाश !
धरा ही रह गया सब तेरे पास ।।
अब देर किस बात की ..
सोचो ! समझो ! चिंतन करो !
चूक कहां से हुई अब
सुधार का करो प्रयास।
भीम , नई जिंदगी की
करो शुरुआत,
रचो फिर से नया इतिहास।

✍️   भीम कुमार
  गांवा, गिरिडीह, झारखंड

12.
विषय-- "

अलमारी में रखे पुराने ख़त -

आज जब "अलमारी में
रखे पुराने खत" देखती हूं,
अपने पुराने जमाने को
याद कर, मुस्कुराती हूं।
वो भी क्या जमाना था ,
बेसब्री से खतों का
इंतजार रहता था,
पोस्टमैन की साइकिल की
ट्रिन -ट्रिन सुन ,बाहर दौड़ पड़ते थे।
खतों के पुलिंदे में,अपने
नाम को खोजा करते थे,
एक-दूसरे के खतों को छुपा
,कितना चिढ़ाया करते थे।
आज समय बहुत बदल गया है
,ये सब एक सपना सा हो गया है,
लैटरपैड व पेन की जगह,
मोबाइल ने ले लिया है।
ये सब बातें "अलमारी में रखे
पुराने खत", याद दिलाते हैं,
बदलती टेक्नोलॉजी के
महत्व को, समझाते हैं।
खतों का इंतजार,
कितना लंबा होता था,
आज मिनटों में ,समाचारों
का आदान-प्रदान होता है।
समय के साथ आज,
हम भी चल रहे हैं,
"अलमारी मे रखे पुराने खतों में
"अपने कल में, हम
आज भी जी रहे हैं।

✍️ रंजना बिनानी "काव्या"
गोलाघाट असम

13.

नमंन मंच
विधा-
कविता -
पिता

मेरी दृष्टि में दायित्व
निर्वहन के सारथी हैं पिता
मौन होकर जो कर्तव्य
निभाये वो महारथी हैं पिता
बरगद की छाँव,नीम सा
सुखद अनुभूति है पिता
शिशुओं की पालक अगर है
माँ तो इनके पालनहार पिता
बच्चे सपने बुनते हैं
साकार करते हैं पिता
जगतविदित है कृष्ण की
जन्मदात्री थी माँ देवकी
किंतु सिरपर टोकरी रखकर
भादव की भयावह रात्रि में
प्राणरक्षा हेतु यमुना
पार करानेवाले थे पिता
श्रीराम भले ही कौशल्या
के पुत्र थे लेकिन
राम, राम की रट लगाकर
प्राण तजने वाले थे पिता
कठोरता और मृदुता के
सम्मिश्रण है पिता
इसलिये  पितृदेवो कहलाते है पिता
पिता धर्मः पिता स्वर्गः
पिता ही परमं तपः।।

✍️ सुप्रसन्ना झा


14.
Rani Sah
#नमन मंच
#विषय - बनावटी रिश्ते
#विधा -

कविता - बनावटी रिश्ते

उल्फ़त का अजीब तराना हैं,
संगदील सनम की चाहत में,
हर अरमान हमने गवाया हैं,
किसी महफ़िल में
सुर्ख बिटोरते हैं,
दर्द से खुद ही
टूटते बिखरते हैं,
महज चंद लम्हों
की आरजू ने,
तबाह हमे सरेआम किया,
जिसे चाहा
जमाने से बढ़कर,
उसी ने थोड़ी खुशी के लिए,
क्या खूब बर्बाद किया,
अपने हर मौसम हर
मिजाज बदल कर,
खोया रहता हूँ उसके
ख्यालो में खो कर,
मैं  मैं ना रहा
उसका हो कर,
किसी बेचैन रूह
का किनारा हूं,
दर बदर भटके वो
फिज़ा आवारा हूं,
क्या खूब लिखा है किसी ने,
नगमे मोहब्बत के इस कदर,
इश्क़ में सब अच्छा पर,
अच्छा नहीं सराफत हैं,
रिश्ते तो दिल से
निभाए जाते हैं,
फरमाये जाने वाले रिश्ते,
रिश्ते नहीं फकत
एक बनावट हैं ।

✍️ रानी साह
कोलकाता - पश्चिम बंगाल

15.
#नमन मंच
#विषय

महिला उत्थान के लिए
बाबा साहिब का योगदान

आज हम बाबा साहिब के
योगदान का उल्लेख करे
महिलाओं के उत्थान के
लिए बड़ा भारी काम किया।।
नारी सशक्तिकरण पर
उन्होंने संयम का जाप किया
नारी सशक्तिकरण
पर उम्मीद जगाकर
जीवन बलिदान किया।।
आज  सभी सपना  अपना राग 
अलाप रहे अपनी मान बढ़ा रहे
बाबा साहिब ही थे जिन्होंने हिदू
महिलाओं का दबदबा चढ़ा रहे।।
बाबा साहिब  ने महिलाओं 
को  उनका  हक
दिलाकर  नाम रोशन किया
5 फ़रवरी 1951 को बाबा
साहिब ने संसद में हिन्दू
कोड बिल पास किया।।
बाबा साहिब ने नर नारी में
भेद भाव को कम किया ये
मौलिक अधिकार दिया
हिन्दू   महिलाओं  को शोषण 
मुक्त्त  कर  पुरुष समान
  अधिकार  दिया।।

✍️ कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान

अंक - 37 - 40

नमन :- माँ सरस्वती
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
मो :- 6290640716

रचनाएं व साहित्य समाचार आमंत्रित -

अंक - 37 से 40 तक के लिए आमंत्रित

दिनांक - 16/06/2021 से 19/06/2021 के लिए
दिवस :- बुधवार से शनिवार
इसी पोस्ट में कॉमेंट्स बॉक्स में अपनी नाम के साथ एक रचना और फोटो प्रेषित करें । एक से अधिक रचना भेजने वाले रचनाकार की एक भी रचना प्रकाशित नहीं की जायेगी ।।

यहां पर आयी हुई रचनाएं में से कुछ रचनाएं को अंक - 36 तो कुछ रचनाएं को अंक 37 , कुछ रचनाएं को अंक - 38 एवं बाकी बचे हुए रचनाओं को अंक - 39 में प्रकाशित किया जाएगा ।

सादर निवेदन 🙏💐
# एक रचनाकार एक ही रचना भेजें ।

# जब तक आपकी पहली रचना प्रकाशित नहीं होती तब तक आप दूसरी रचना न भेजें ।

# ये आपका अपना पत्रिका है , जब चाहें तब आप प्रकाशित अपनी रचना या आपको किसी को जन्मदिन की बधाई देनी है तो वह शुभ संदेश प्रकाशित करवा सकते है ।

# फेसबुक के इसी पोस्टर के कॉमेंट्स बॉक्स में ही रचना भेजें ।

# साहित्य एक नज़र में प्रकाशित हुई रचना फिर से प्रकाशित के लिए न भेजें , बिना नाम , फोटो के रचना न भेजें , जब तक एक रचना प्रकाशित नहीं होती है तब तक दूसरी रचना न भेजें , यदि इन नियमों का कोई उल्लंघन करता है तो उनकी एक भी रचना को प्रकाशित नहीं किया जायेगा ।

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आपका अपना
✍️ रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र 🌅

अंक - 37 से 40 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
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अंक - 31 से 34
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सम्मान पत्र - साहित्य एक नज़र ( 1 - 80 )
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अंक - 36

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RAM KRISHNA , COLLEGE

अंक - 37
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कविता :- 20(29)
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अंक - 38
अंक - 38
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कविता :- 20(30)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2030-17062021-38.html

अंक - 39
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कविता :- 20(31)
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अंक - 40
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कविता :- 20(32)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2032-19062021-40.html

अंक - 34
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अंक - 36

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