साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 45 , गुरुवार , 24/06/2021
अंक - 45
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अंक - 44
https://online.fliphtml5.com/axiwx/nzjh/
जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 45
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
आ. ज्योति झा जी
संपादिका
साहित्य एक नज़र
मधुबनी इकाई
अंक - 45
24 जून 2021
गुरुवार
ज्येष्ठ शुक्ल 15 संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण पत्र - 8
कुल पृष्ठ - 9
मो - 6290640716
🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
94. आ. अवधेश राय जी
सम्मान पत्र - 1 - 80
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सम्मान पत्र - 79 -
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अंक - 45 से 48 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
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अंक - 41 - 44
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अंक - 37 - 40
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मधुबनी इकाई
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 45 , गुरुवार
24/06/2021
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 45
Sahitya Ek Nazar
24 June 2021 , Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
_________________
ज्ञान की बात आपके साथ
कितने आश्चर्य की बात है... भारत के 29 राज्यों के नाम श्री. संत तुलसीदास जी के एक दोहे में समाई हुई है। क्या संयोग बना है... 😍😍
" राम नाम जपते अत्रि मत गुसिआउ।
पंक में उगोहमि अहि के छबि झाउ।। "
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जिसने ख़ोज की होगी उसको नमन है
रा - राजस्थान | पं- पंजाब
म - महाराष्ट्र | क- कर्नाटक
ना - नागालैंड | मे- मेघालय
म - मणिपुर | उ- उत्तराखंड
ज - जम्मू कश्मीर | गो- गोवा
प - पश्चिम बंगाल | ह- हरियाणा
ते - तेलंगाना | मि- मिजोरम
अ - असम | अ- अरुणाचल प्रदेश
त्रि - त्रिपुरा | हि- हिमाचल प्रदेश
म - मध्य प्रदेश | के- केरल
त - तमिलनाडु | छ- छत्तीसगढ़
गु - गुजरात | बि- बिहार
सि - सिक्किम | झा- झारखंड
आ- आंध्र प्रदेश | उ- उड़ीसा
उ - उत्तर प्रदेश |
अत्यंत आश्चर्यजनक...👌🌺👏👏👏👏🙏💐🌹🌅🌍
जय श्री राम ,
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 45 , गुरुवार , 24/06/2021
परिचय -
✍️ रामकरण साहू"सजल"
ग्राम-बबेरू ,जनपद - बाँदा , उत्तर प्रदेश , भारत
शिक्षा- परास्नातक
प्रशिक्षण- बी टी सी, बी एड, एल एल बी
संप्रति- अध्यापन बेसिक शिक्षा
सम्पर्क सूत्र- 8004239966
समीक्षा "लेखनी पंचकाव्य"
जब श्री रामकरण साहू "सजल" जी की पुस्तक "लेखनी पंचकाव्य" मेरे हाथ में आयी तो में स्तब्ध था मुझे लगा कि मैं श्री रामधारी सिंह "दिनकर"जी का उपन्यास उर्वशी मेरे हाथ में है। पाँच श्रेणी में विभाजित पंचकाव्य लेखनी, दीपक, किरण, पवन और तिरंगा ये ऐसे विषय है जिस पर साहित्यकार सोचता है कि क्या लिखूँ। लम्बी रचनायें पहले प्रचलन में थी लेकिन अब तो लोग दस- बारह पंक्तियों की रचना लिख पाते है और उनकी लेखनी आगे नहीं बढ़ती लेकिन सजल जी की यह पुस्तक जिसमें प्रथम काव्य लेखनी में सजल जी ने कहा कि
लिख सको तो माँ चरण में स्वर्ग लिख,
जिसका आँचल छत्र सर का ताज लिख,
जिसने मर कर भी जन्म तुमको दिया,
दे दिया सब कुछ नहीं कुछ भी दिया,
मत रुको जननी को जगदम्बा लिखो,
दर्द उर से बह रहा उसको लिखो।
एक माँ को समर्पित ये पंक्तियाँ जिसका एक - एक शब्द दिल के सागर में डूबकर लिखा हो।
द्वतीय भाग काव्य दीपक में कहते है कि
जल सको तो सुर सा जलते रहो,
भक्ति की अविरल कथा गढ़ते रहो,
हर ह्रदय में वह जिसे तुम ढूढ़तें,
सामने है वह जिसे तुम पूछतें,
वह बसा कण-कण में कहते लोग है,
कण नही अणू में समाया योग है,
स्वयं की रचना रचाते तुम रहो,
हर ह्रदय के तिमिर को हरते रहो।
जिस तरह दीपक प्रज्वलित होकर ईश्वर की भक्ति में लीन होता है उसी तरह अगर कोई ज्ञानी है तो अज्ञान के तिमिर को हर लेता है। तृतीय काव्य में किरण की व्याख्या करते हुए कहते है कि -
लालिमा फूटी हुआ जग लाल है,
जो अंधेरे का सबल एक काल है,
भागता चहुँ और ना स्थान है
रो रहा आंसू बह रहा शैतान है,
तिलमिलाता अब बना नादान है,
मैं मिटा दूँ ये बाद हैवान है,
मैं किरण सम्मान मुझको मान लो,
प्रकृति का उपहार हूँ यह जान लो।
जब दिनकर की किरण धरा पर फैलती है तो काल बना अंधेरा चारों ओर धरा पर फैले अंधकार के काल को लील लेता है। कितनी सुंदर अभिव्यक्ति है।ऐसा ही चतुर्थ काव्य पवन में उन्होंने कहा है कि
मैं धरा की शक्ति नभ का गान हूँ,
बोलती पगडंडियों की शान हूँ,
उड़ रही रज चरण का सम्मान हूँ,
लिख रही जो कलम गौरव गण हूँ,
डोलती हर ज़िन्दगी की जान हूँ,
जान ही हूँ जान न बेजान हूँ,
मैं रहूँ हर पल पवन यह जान लो,
मैं पवन हूँ प्राण सबका मान लो।
इस लम्बी कविता में दिवा-रात्रि
कर्म शीलता को देखकर यह संदेश
दिया है। और वही दूसरी ओर
पंचकाव्य "तिरंगा"में कि
हर जन का अधिकार है झण्डा,
हर प्राणी का प्राण है झण्डा,
शिरा और धमनी है झण्डा,
हर दिल की धड़कन है झण्डा,
निकल रही हर बोली झण्डा,
स्वंय दिवाली होली झण्डा,
प्यारी-प्यारी चितवन झण्डा,
बदली गीत मिलन के गाये,
उड़गन छिप-छिप जाये,
जब तक सब धारा लहराये,
हम सब मिल झण्डा फहराये।
जैसे एक प्रेमी अपनी प्रेमिका में
सब कुछ देखता है उसका रूप ,
यौवन और अन्य खूबियाँ उसी
तरह हर भारतीय को तिरंगे में
सभी कुछ दिखता है।आजकल लम्बी
रचनाओं का दौर जैसे खत्म ही हो गया।
अब तो सभी साहित्यकार 20-20 क्रिकेट
खेलते है बस दस-बारह पंक्तियों लिखी
और हो गयी रचना पूरी पुराने कवि ,
साहित्यकार ऐसे ही नहीं हुए उन्होंने
अपनी लेखनी से प्रकाश फैलाया उन्होंने
अपनी लेखनी से उस ऊँचाई को छुआ है ।
और ऐसा ही सर्जन श्री रामकरण
साहू "सजल" जी कर रहे है। मैं
कह सकता हूँ ये पंचकाव्य अमर
काव्य है।अब आप लोग सोच रहें
होंगे कि मैंने ज्यादा समय ले लिया
क्या करूँ ये "लेखनी पंचकाव्य"पुस्तक
ही ऐसी है कि मेरी लेखनी को भी
विदा लेने का मन नहीं कर रहा लेकिन
विदा तो लेना पड़ेगी। तृतीय चरण की
समीक्षा में फिर मिलेंगे तब तक
के लिये ! - राम-राम
समीक्षक - ✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
गीत ही गाना अच्छा है "
इस निश्छल जीवन मे हमने संगीत तुम्ही से सीखा है,
खालीपन में भी हमने गीत तुम्हारा लिखा है,
आस में रहने से अच्छा गीत ही गाना अच्छा है,
मन मेरे जो शांत करे वो संगीत ही गाना अच्छा है।
तुमसे अच्छी संगीत है मेरी, जब चाहे गा लेता हूँ,
गुनगुन करके ही सही पर, हर प्यार वहाँ पा जाता हूँ,
नयनो में जो नीर बही वो ,संगीत बन उतरती है,
आंसू-आंसू ,क्रंदन-क्रंदन गीत मेरी बन जाती है।
राह तेरे तकने से अच्छा गीत ही गाना अच्छा है,
मन मेरे जो शांत करे वो संगीत ही गाना अच्छा है।
हरे दरख्तों से सीखा मैं ,गीत तेरी हरियाली का,
फूलों से सीखा था मैंने,गीत तेरी मुसकानि का,
नाजुक सी कलियों से सीखा गीत तेरी नाजुकता की,
मृदकपोलों से गीत मैं लिखा,तेरे अरुणिम कपोलों की।
इन हरे दरख्तों की छावों में,गीत ही गाना अच्छा है,
मन मेरे जो शांत करे वो संगीत ही गाना अच्छा है।
बहती नदियों से लिखा मैं, गीत तेरी हर चालों का,
घाघरा उठाये धूल से लिखा, गीत तेरी चंचलता का,
हरी लताओं से लिखा मैं, संगीत तेरी यौवनता की,
अलसी को देख लिख दी मैंने, गीत तेरी अठखेली की।
यूं तन्हां-तन्हां से अच्छा तो तेरी गीत ही गाना अच्छा है,
मन मेरे जो शांत करे वो गीत ही गाना अच्छा है।
प्रकृति की रंग में रंग कर, गीत लिखा तेरे जीवन का,
पल दो पल की जीवन मे एक,उम्र लिखा है जीवन का,
यादों की नौका में बैठ कर ,गीत लिखा मंझधार की
तुमसे दूर होकर भी मैंने, गीत लिखा है प्यार की
प्रकृति संग- संग में रह कर संगीत ही गाना अच्छा है
मन मेरे जो शांत करे वो संगीत ही गाना अच्छा है।
✍️ कवि तुलसी विश्वास
गिरीडीह झारखंड पिन-815313
8651792869
ईमेल-tulsiprasad8651@gmail. com
My you tube लिंक-https://youtube.com/channel/UCHrmoB1G7mcLAUntNvX4k2w
कविता- प्रेरक जीवन
हर कर्म का फल भोगना,
यह रीत है संसार की।
फैलती सुगंध चहुं दिस,
सुकर्म की, उपकार की।।
उपकार, एक मानवीय गुण
यह सदा से ही रहा।
उपकार की खातिर यहां
अवतारों ने भी दुख सहा।।
मिलता सुखद परिणाम अंततः
उपकार के हर काम का।
देखिए जीवन चरित्र
श्रीकृष्ण का श्रीराम का।।
बुद्ध,नानक, गांधी आदि
सब रहे उपकारी जन।
प्रेरणा जन मन को देता,
उपकार हित इनका जीवन।।
✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर उत्तर प्रदेश
(1)
ये पवन तू एक संदेशा देना,
जब निकले गाँव मेरे
,मेरे भैया से ये कहना
हर पल हर दिन ,
याद करे तेरी बहना
आख़ियांन राह भिगोऊँ
,मुतियन द्धार सजाऊँ।
कैसे मैं अब तेरे पास हैं आऊं।
ये वीरा व्योग कब तक
पड़ेगा सहना ।
जब निकले गांव मेरे-–-
बो पीपल की छइयां
उमर लड़कियां
संग-संग खेले थे हम तुम भैया
बो बचपन की यादें,कब
तक पड़ेगीं सहना
जब निकले गांव मेरे---
डोली में जब बिठाया था तुमने
राखी पे हर साल आऊँगा मिलने
उन वादों का अब ,क्या है कहना
जब निकले गांव मेरे----
✍️ प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर , मध्यप्रदेश
9753877785
यह मेरे एक शिष्य की रचना है, पसंद आये तो पत्रिका में स्थान देने की कृपा करेंगें
नई पीढ़ी और पुराने संस्कार
आजकल आधी रात सोचते हुए और बची आधी रात रोते हुए निकल जाती है। नींद की खुमारी चेहरे पर स्पष्ट नजर आती है। चेहरे पर झुर्रियां उगने लगी है, जिसके वजह से समय से पहले बुढापा दस्तक देने लगा है। अब समझ आता है कि हीर को रांझे से और मजनू को लैला से बिछड़ के कैसा लगा होगा। वो फैसले जो हमारे लिए हो और हमसे पूछा भी न जाये वो वास्तव में फैसले नही मुकर्रर की गई सजाएं होती है। हम बीसवीं सदी को पीछे छोड़ 21वी सदी में प्रवेश कर चुके है और दुनिया तरक्की, स्वतंत्रता और महिला सशक्तिकरण का ढोल पिटती है, जबकि भारतीय गाँवो के मिडिल क्लास में सिर्फ लड़कियाँ ही नही लड़को के शादी के मामले में भी ऐसी ही सजा मुकर्रर होती है। जिसके परिणामस्वरूप उनके साथ साथ प्रेमी/प्रेमिका को भी ताउम्र सजा भुगतते रहना पड़ता है। और फिर वही प्रेमी जोड़े वही बंदिशें अपने बच्चों के ऊपर लाद देते हैं, जिसका दंश वो खुद झेल चुके होते हैं। क्या एक जिंदगी और एक ठोकर सीख लेने के लिये काफी नही होता है? इंसान अपने वैवाहिक जीवन को कितना भी खुशहाल क्यो न बना ले, लेकिन बिछड़े हुए प्यार की कशक दिल से नही मिटा सकता। वो रह-रहकर पूरे जीवन टीस देता रहता है। जब कभी थोड़े वक़्त के लिए भी खालीपन सा महसूस होता है, दिल मतवाले हाथी की तरह मचल उठता है, और अतीत रूपी सरोवर में यादों के कतरन रूपी कमल का मर्दन करने लग जाता है। मर्दन करते करते जब उन्ही यादों के दलदल में फस जाता है, तो निकलने के लिए तरह-तरह के उपाय ढूँढता है और अंत मे निस्सहाय होकर दृग जल से यादों के कीचड़ को साफ करते हुए अपने किस्मत को कोसने लगता है। कुछ मामले में फ़ैसले इंसान के हाथ मे न होकर वक़्त के हाथ मे होता है, और वक़्त का किया गया फैसला अमूमन कठोर होता है। जिसका कुठाराघात आजीवन महसूस किया जा सकता है।
✍️ "विवेक सोनू"
#साहित्य एक नजर.
अंक - 45 से 48 के लिए.
*
बदहवास चीख.
अरमानों की चिता पर,
चिता नहीं आग जल रही है,
जलती आत्मा की लपटों में,
नजरअंदाज हुए लोगों की,
पगलाई संवेदना जल रही है.
आंसुओं का मदिरापान कर,
जिजीविषा निगलने को आतुर,
बदहवास सत्ता चीख रही है,
"आत्मा नश्वर है, आत्मा नश्वर है."
शहीदी धुआँ बन फिजाई उर्धश्वांस,
उम्मीदों के सपनें जिंदा हैं,
प्रतीक्षा की पथराई दृष्टि में,
अपराध के बाद भूल और क्षमा,
खो चुका है अपना अर्थ,
नसों में दौड़ता पानी अब,
लहू बन चुका है,
यह आवर्तन है परिवर्तन का!
✍️ अजय कुमार झा.
||ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः||
धीरज ( धैर्य )
विशेष ध्यान से सुनो सुधीर चित्त में रहे|
नहीं किसी विपत्ति में महान धैर्य त्याज्य है|
विदेश में विपत्ति में अपार बाधा भीति में|
बना रहे अजेय वो रखे सुधैर्य चित्त में||
घिरे कभी समुद्र में विशाल वातचक्र में|
तरानवार यान का लगा रहे बचाव में|
बचाव में बचा रहे जहाज भी कभी कभी|
जहाज जो बचा रहे बचे रहें सवार भी||
कराल काल सामने खड़ा कभी मिले सुनो|
डरो नहीं डटे रहो बचाव राह को चुनो|
फले उपाय काल जाय मृत्यु तो अवश्य है|
सदैव धैर्य धार्य है सुमित्र एक धैर्य है|
✍️ गणेश चन्द्र केष्टवाल
मगनपुर किशनपुर
कोटद्वार गढ़वाल उत्तराखंड
* योग के अर्थ का संक्षिप्त अनुशीलन *
आजकल योग की बात करना एक फैशन सा हो गया है। इसलिए योग के वास्तविक अर्थ निर्धारण में कठिनाई होने लगी है। अतः आवश्यक है कि योग का वास्तविक अर्थ निर्धारित किया जाये। आजकल चिकित्सा और उपचार में योग की बात अधिक की जाती है। ऐसा स्वाभाविक भी है क्योंकि इस दृष्टिकोण से भी योग की महती भूमिका है। लेकिन योग को केवल सीमित अर्थ में देखना इसके वास्तविक और व्यापक अर्थ की उपेक्षा ही होगी। अतः योग की शाब्दिक अर्थ के संबंध में योग का अर्थ है- मिलना, संयोग, जुड़ना, संयुक्त होना, कोई विशिष्ट एवं शुभ काल, अवसर, योगफल, चित्त को एकाग्र करने का उपाय या शास्त्र आदि। इस प्रकार योग शब्द की उत्पत्ति 'युज्' शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है- मिलना। अर्थात "योग मिलन की प्रक्रिया का सूचक है।" जिस विधि से साधक अपने प्रकृतिजन्य विकारों को त्यागकर अपनी आत्मा के साथ संयुक्त होता है वही 'योग' है। अर्थात विकारों को उतारकर अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त हो जाना ही योग है।
'योगसूत्र' के प्रणेता 'महर्षि पतंजलि' ने योग का अर्थ - 'चित्तवृत्तियों का निरोध' (योगसूत्र-1:2) बताया है अर्थात चित्त की वृत्तियों का रुक जाना और चित्त की वृत्तियों को सांसारिक भोग से अलग करके ईश्वर की ओर लगाना। इस प्रकार योग का अर्थ है - आत्मा और परमात्मा का मिलन। चित्तवृत्तियों का निरोध समाधि में होता है, इसलिये योग को "योगः समाधि" भी कहते हैं। अतः इस बात को सतत् स्मरण रखना नितांत आवश्यक है कि हमें योग के वास्तविक अर्थ के प्रति उचित न्याय करके और उसका अनुशीलन करके हम अपना तथा विश्व का कल्याण करें।
✍️ देश दीपक
ईश्वरपुर साई हरदोई उत्तर प्रदेश
ddesh619@gmail.com
7897588165
बढ़ाओ हाथ तुम ही दोस्ती का!
पुराना राग छोड़ो दुश्मनी का!!
नशे में हूं जरा रहना संभल कर !
भरोसा कुछ नहीं है जिंदगी का!!
मुअत्तर अम्न से हो जाए दुनिया!
खिलाओ फूल अमनो-आष्टी का !!
अँधेरा सारा मिट जाएयहाँ से .l
दिया हर घर जलाओ रोशनी काll
सलीका इक़तदा का भी नहीं है l
लगा है शौक कैसा रहबरी का ll
✍️ अकील अहमद अनस
Ex Editor Paigame Aman
naisaray sherkot Bijnor up
Pin 246747mob @
7017429798
नमन
#विधा-पद्य
महाराणा प्रताप
थे प्रताप शूरवीर जन जन
के प्यारे प्रचंड प्रतिभा के
धनी और उपकारी थे
प्रखर बुद्धि के योद्धा थे
चेतक पर सवार हाथ में
तलवार तेजस्वी झनकार
प्रखर स्वाभिमान को नमन
विवेकशील कर्म प्रधान
अग्नि आकाश नभ जलचर
थलचर अगणित अमित
अनुपम गुणों से युक्त भाल
कृत्रिम नहीं रहा स्वभाव।
दुश्मनों के दुश्मन तेज धनाधन,
दंभ का नहीं था फन,
सत्य पुरुष का चरित्र
थे प्रताप बलशाली चेतक
पर सवार मारवाड़ की आन।।
✍️ कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान
सोच की गहराई
कभी-कभी
फैसले को कमज़ोर करती है...
ज़्यादा सोचते सोचते
निष्कर्ष पर तो नहीं निकलती ,
लेकिन सोंच सोंच कर,
भितर भीतर सोचने वाले को तोड़ती है...
सोंच की गहराई कभी-कभी
फैसले को कमजोर करती है...
कभी ऐसा भी होता है कि,
जो सोचा हो ,वह पूरा हो जाता है...
कुछ पल के लिए खुशियों भरा ,
माहौल छा जाता है..
दिल में खुशियां होती है
और प्यार उमड़ कर आता है..
दूरियों वाला रिश्ते भी
करीबी में जोड़ा जाता है...
लेकिन फिर भी
इस बात से इंकार नहीं ..
कि सोच की गहराई
कभी-कभी
फैसले को झकझोर देती है ...
हमेशा तोड़ती नहीं रिश्तों को
कभी-कभी जोड़ भी देती है.
झूठे ,बेवफा, दगावाजों के भी,
राज़ यही सोच खोलती है...
बहुत ज़्यादा सोचती है
और फिर
कुछ बोलती है..
सोच सोच कर ही
रिश्तो की मर्यादा को
अपने संस्कारों से तौलती है..
विश्वास की डोर
थाम कर ,और
दिल पर हाथ रख कर...
सच्चाई तो बोलती है,,
यह सोच कभी-कभी
बहुत बातचीत करती है,
सोचें हुए फैसलों को
कभी मजबूत और
कभी कमजोर करती है...
सोच की गहराई कभी-कभी...
✍️ ज्योति सिन्हा
मुजफ्फरपुर , बिहार
आज "साहित्य सरिता" अंतर्राष्ट्रीय काव्य संग्रह के लिए चयन मण्डल का गठन किया गया।
चयन मण्डल
1.मधु खन्ना -ब्रसबेन ऑस्ट्रेलिया- +61 400190965
2. डॉक्टर देवेंद्र तोमर मुरैना मध्यप्रदेश भारत
+91 7828148403
3. विभा श्री साहू , न्यूयॉर्क अमेरिका - +1(845) 327-8569
4. श्री रामकरण साहू "सजल" बाँदा उत्तर प्रदेश भारत
+918004239966
5.श्री सुंदर लाल मेहरानियाँ अलवर राजस्थान भारत +917891640945
6.देवप्रिया अमर तिवारी
अबू धाबी (यू ए ई)
सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ।
संदेह
संदेह के बादल
एक बार घिर आये,
तो सच मानिए कि
फिर कभी न छंट पाये,
मान लिया छंट भी गये तो भी
उसके अंश अपनी जगह
कभी अपनी जगह से
न हिल पाये।
संदेह ऐसा नासूर है
जो लाइलाज है यारों
जो भी इसका शिकार
हो गया एक बार
मरने के बाद ही
वह इससे मुक्त हो पाये।
✍️ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित
#विषय-"यादों के समंदर में"
#विधा-
कविता -
" यादों के समंदर में "
यादों कि समंदर में ,
जो गोते लगाते हैं,
वो जीवन भर ,
तड़पते रह जाते हैं..।
यांदे है कि कमबख्त,
पीछा नहीं छोड़ती,
यादें कुछ अच्छी ,
तो कुछ बुरी होती है।
यूं तो यादें ,जीवन
भर की पूंजी होती है,
सुहानी यादें जीवन को ,
सुखमय बनाती है।
जीवन पथ पर आगे बढ़ने का,
रास्ता दिखाती है,
"यादों के समंदर में ",याद
तेरी जब गोते लगाती है।
मेरे दिल का ,सुख
चैन उड़ाती है....,
सुरमई रातों की तस्वीर,
आंखों में घूम जाती है।
तेरे संग बिताए लम्हों
की, याद सताती है,
सांसों में बसी हो तुम,
नींद मेरी उड़ाती हो।
कभी सपनों में आ, मेरे
सामने खड़ी हो जाती हो,
लगता है यूं, तुम कहीं
आस-पास हो मेरे।
दिल मानता ही नहीं ,
कि तुम बस ख्वाब में हो मेरे,
न जाने क्यूं,तेरा जाना,
मुझे स्वीकार नहीं होता।
मेरी यादों में तुम,
जीवित रहोगी हमेशा।।
✍️ रंजना बिनानी "काव्या"
गोलाघाट , असम
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅
International Day Against Drug Abuse and Illicit Trafficking
अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस
न करेंगे और नहीं करने देंगे नशा ,
सुधारेंगे मिलकर विश्व की दशा ।।
मनाओ अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस ,
करों नशीली पदार्थों का तहस नहस ।।
✍️ रोशन कुमार झा
Name - Cdt Roshan Kumar Jha
Reg no - WB17SDA112047
Mob - 6290640716
31st Bengal Bn Ncc Fort William
Kolkata -B , National Cadet Corps Directorate - West Bengal & Sikkim
Coy - 5 ( N.D.College )
Narasinha Dutt College , Howrah
_______________
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
वृहस्पतिवार , 24/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(37)
✍️ रोशन कुमार झा , Roshan Kumar Jha , রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 45
Sahitya Ek Nazar
24 June 2021 , Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
अंक - 45
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/45-24062021.html
कविता :- 20(37) , गुरुवार , 24/06/2021 , अंक - 45
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2037-24062021-45.html
अंक - 46
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/46-25062021.html
कविता :- 20(38)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2038-25062021-46.html
अंक - 47
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कविता :- 20(39)
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अंक - 48
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कविता :- 20(40)
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अंक - 44
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कविता - 20(36)
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