साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 47, शनिवार , 26/06/2021
शादी सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं आ. पकंज श्रीवास्तव जी व आ. ज्योति सिन्हा जी
27/06/2021 , रविवार
Happy Anniversary
शुभ वैवाहिक वर्षगांठ 💐💐🙏🌹🍰🎉🎂💖🥰🎁
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अंक - 47
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अंक - 46
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जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 47
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
साहित्य एक नज़र 🌅
विश्व साहित्य संस्थान
आ. ज्योति झा जी
संपादिका
साहित्य एक नज़र 🌅 मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम " जी
संपादिका
विश्व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने
वाली दैनिक पत्रिका का इकाई
अंक - 47
26 जून 2021
शनिवार
आषाढ़ कृष्ण 2 संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण पत्र - 6 - 9
कुल पृष्ठ - 10
मो - 6290640716
🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
96. आ. यू.एस.बरी जी
97.आ. अवधेश राय जी
98. आ. डॉ देशबन्धु भट्ट जी
सम्मान पत्र - 1 - 80
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सम्मान पत्र - 79 -
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अंक - 41 - 44
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अंक - 37 - 40
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मधुबनी इकाई
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
🌅
अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस
अंक - 47 , शनिवार
26/06/2021
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 47
Sahitya Ek Nazar
26 June 2021 , Saturday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
_________________
अंक - 45
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/45-24062021.html
अंक - 46
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/46-25062021.html
कविता :- 20(38)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2038-25062021-46.html
अंक - 47
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/47-26062021.html
कविता :- 20(39)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2039-26062021-47.html
अंक - 48
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/48-27062021.html
कविता :- 20(40)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2040-27062021-48.html
अंक - 44
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कविता - 20(36)
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अंक - 57 सम्मान पत्र
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साहित्य एक नज़र के साथ सम्मानित हुए , आज मैं बहुत बहुत खुश हूँ , 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌅
प्रेरणा , अंक - 57
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अंक - 47
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अंक - 46
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जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 47
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
साहित्य एक नज़र 🌅
विश्व साहित्य संस्थान
आ. ज्योति झा जी
संपादिका
साहित्य एक नज़र 🌅 मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम " जी
संपादिका
विश्व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने
वाली दैनिक पत्रिका का इकाई
अंक - 47
26 जून 2021
शनिवार
आषाढ़ कृष्ण 2 संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण पत्र - 6 - 9
कुल पृष्ठ - 10
मो - 6290640716
🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
96. आ. यू.एस.बरी जी
97.आ. अवधेश राय जी
98. आ. डॉ देशबन्धु भट्ट जी
सम्मान पत्र - 1 - 80
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अंक - 41 - 44
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अंक - 37 - 40
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मधुबनी इकाई
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
🌅
अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस
अंक - 47 , शनिवार
26/06/2021
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 47
Sahitya Ek Nazar
26 June 2021 , Saturday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
_________________
परिचय -
✍️ रामकरण साहू"सजल"
ग्राम-बबेरू ,जनपद - बाँदा , उत्तर प्रदेश , भारत
शिक्षा- परास्नातक
प्रशिक्षण- बी टी सी, बी एड, एल एल बी
संप्रति- अध्यापन बेसिक शिक्षा
सम्पर्क सूत्र- 8004239966
_________________
अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस
_________________
साहित्य एक नज़र 🌅 कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका का इकाई
विश्व साहित्य संस्थान वाणी ( साप्ताहिक पत्रिका )
संपादिका - आ. डॉ पल्लवी कुमारी "पाम " जी
___
मैथिली साहित्यक वरिष्ठ कथाकार, कवि (साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त), झारखण्ड पुलिस सेवाक पूर्व पदाधिकारी, मधुबनी जिलाक बरहा गामवासी श्याम दरिहरे नहि रहलाह! विगत राति वृन्दावनमे ब्रेन हेमरेजसँ हुनक निधन भ' गेलनि। सम्पूर्ण मैथिली साहित्यजगत शोक संतप्त अछि।
विनम्र श्रद्धांजलि 🌼🙏🏼 ॐ शांति...
✍️ ज्योति झा
बेथुन कॉलेज , कोलकाता
कलकत्ता विश्वविद्यालय
संपादिका - मधुबनी इकाई
साहित्य एक नज़र 🌅
মিথি LITERATURE
मिथि लिट्रेचर , विश्व साहित्य संस्थान
मंच को नमन🙏
पत्रिका में प्रकाशन हेतु ( अंक 45,46,47 )
गृहिणी की कविता
जी अभी आई!!!!
अभी तो मैंने कुछ पल निकाला है
अभी तो इसे अपने लिए संभाला है
सुबह की जागी हूं
दैनिक दिनचर्या में भागी हूं
सभी के लिए नाश्ता तैयार किया
फिर साफ सुथरा घरबार किया
व्यवस्था की सास ससुर के नहाने की
और उनके उतारे कपड़े धोने की
बच्चो को नहला धुला कर खुद नहाई
सभी को नाश्ता करा अपने भी खाई
की लंच की तैयारी, धुल के बर्तन सजाया
सारे काज निपटा मैंने था कुछ पल चुराया
सोचा समय है कुछ लिख लेती हूं
अपने मन की तरंगों को शब्दों में बुन लेती हूं
ज्यों कुछ पंक्तियां लिख पाई
तभी पतिदेव की आवाज आई
सुनती हो ! चुन्नू ने किया है डाईपर गीला
ओह!! खर्च हो गया समय जो था मुझे मिला
जी अभी आई!!!
चुन्नू का डाईपर बदल उसे दूध पिलाया
चूल्हे पे भी दाल चढ़ाया
लग गई दोपहर के भोजन में
बुनती रही शब्दों के जाल मन ही मन में
अभी लॉकडाउन में सब घर पे है
मेरे काम काज बृहत स्तर पे हैं
वैसे भी गृहिणी का समय कहां होता है
और इस अवसर पर वक्त और भी छोटा है
खैर! भोजन तैयार हुआ
सभी का खत्म इंतजार हुआ
खा पी के सब आराम में लग गए
मेरे कर पग व्यवस्थित इंतजाम में लग गए
ससुर जी की दवा के वास्ते पानी किया गर्म
जग में डाल उसे, पुनः लिखने बैठी मर्म
जैसे ही कुछ कागज पे उतारा
वक्त हुआ तो ससुर जी ने पुकारा
तीन बजे हैं!! बहू पानी लाना
अब कुछ है दवाई खाना
जी अभी आई!!!
पानी लेकर लगाई मैंने अपनी हाजिरी
वहीं बैठ कुछ उनकी सुनी कुछ अपनी कही
कैसे छोड़ कर जाऊं जब सब बैठे हों इकट्ठा
बेला शाम की हुई कहते सुनते कथा व्यथा
इस बीच मुझे थे छोटे बड़े काम निपटाने
चाय के साथ थे बाल मनुहार व्यंजन पकाने
परिवार रूपी सूर्य की करती परिक्रमा
अपनो के लिए जीना जिसका नहीं थमा
अपनी धुरी पे घूमती मैं वो धरती हूं
तमाम झंझावतों को सहन करती हूं
स्वयं के लिए जीने की जो प्रबल
चाहत हुई तत्काल ही गृहिणी
रूप में मैं आहत हुई
विषम परिस्थिति में अपने को वरण करते
अनेक हालातों में अस्तित्व को धारण करते
फिर स्वयं के लिए चुराए पल संवर से गए
शाम को जब सभी टहलने बाहर घर से गए
कुछ पल पश्चात मुझे फिर लगाई
गई आवाज़ सभी के लौट आने
का था कुछ ऐसा अंदाज़
जी अभी आई!!!
देकर अपनी कलम को पुनः आराम
शब्दों की गति रोक, दिया उन्हें विराम
सब्ज़ी थाम कर्तव्य निर्वहन को चल पड़ी
जैसे चलती रहती टिक टिक सी एक घड़ी
रजनी बेला में सबके निद्रगमन के पश्चात
निश्चित मन एकांत में खुद से करने चली बात
जी अभी आई " की बेला की समाप्ति थी
अब इस पल में मनचाहा की प्राप्ति थी
चंद पंक्तिओं को उकेरने का ये संघर्ष है
फिर भी मनोभावों को लिखने का हर्ष है
मेरे शब्द- चित्र कागज के हृदय पे
मेरी कलम ने बड़े धैर्य के साथ उकेरे
मै कहती रही और वह सुनती रही जज्बात
जिसे कहने की बेला मैं खोजती हूं दिनरात
सारे दिवस अपने मन को भरमाया है
अब जाके मन से तुष्टि पाया है
पल पल जोड़ के समग्र किया जो था अधूरा
मुझ गृहिणी की कविता का सफर
इस तरह हुआ पूरा ।
✍️ कीर्ति रश्मि नन्द ( वाराणसी)
--: नववधु :--
घूँघट भीतर से मुख झांके।
नर नारी मुख खोले ताके।।
लागे जैसे सब कुछ छूटे।
दरश हेतु अब धीरज छूटे।।
नववधु रूप सीय सम साजा।
स्वागत में बाजें सब बाजा।।
सजी धजी आई घर रानी।
लागे उतरी नारि सयानी।।
रूप राशि अनुकूल विचारा।
नभ में ज्यों चमके ध्रुवतारा।।
नववधु देखि कहहिं नर नारी।
नववधु पर जाऊँ बलिहारी।।
✍️ राम प्रकाश अवस्थी 'रूह'
जोधपुर, राजस्थान
🙏
(स्वरचित एवं मौलिक रचना)
नमन :- साहित्य एक नज़र 🙏
अंक - 46 - 48
दिनांक - 25 - 06 - 2021
दिन - शुक्रवार
विधा - कविता
शीर्षक -
मेरी प्यारी भांजी
मेरी भी है एक रानी ,
जो करती बहुत मनमानी ,
जो दिखती है
बिल्कुल राजकुमारी ।
हां जी ! पूछो - पूछो
एक बार फ़िर से
कौन है मेरी ?
लगती है मेरी प्यारी भांजी ।
ठुमक - ठुमक कर जब चलती है ,
हम सभी का मन मोह लेती है ।
अपनी तोतली आवाज़ों से ,
कैसी सभी को
भाव - विभोर करती है
रंग - बिरंगी चूड़ियों
की कितनी शौकिन है ,
दिन भर खनखनाती रहती है ।
सीबीएसई की छात्रा
होने के बावजूद भी ,
हिंदी से कितनी प्रेम करती है ।
उसकी मामाजी जब से बताए ,
हिंदी के महत्व के बारे में ।
दिन भर पढ़ती रहती है
कविता और कहानी वो ,
सपनों में भी कितना
स्मरण रखती वो ।
मामाजी से बेहतर
काव्य कैसे लिखूं ?
यही बात दिन भर बैठे -
बैठे सोचती रहती ।
इतनी प्रश्न पूछती है हमसे ,
मैं डर के मारे भागता -
फिरता रहता हूं उससे ,
कहीं हार न जाऊं हिंदी में उससे ।
बताइए ! अभी से इतनी टक्कर
देती है हिंदी में मुझे ,
बड़ी होकर किन - किन
को टक्कर देगी ?
यही बात तो
सोच रहा हूं कब से ।
✍️ प्रकाश राय
समस्तीपुर , बिहार
सारंगपुर
समस्तीपुर , बिहार
पिन कोड - 848505
मोबाइल नंबर - 9709388629
पेशे खिदमत एक ग़ज़ल
आज कोई मत कहे
पागल मुझे मैं होश में हूँ ,
इश्क़ की मकसूद मंजिल
ही मिले इस जोश में हूँ ।
इकरार के मजबून पर
इंकार ने दस्तख़त किया ,
यह मुहब्बत देखकर झूँठी
तुम्हारी रोष में हूँ ।
अब ख़्वाहिशें जितनी
तुम्हारी जो जहाँ पूरी करो ,
दूर तक दिक्कत नहीं
काबिज़ यहाँ मैं कोष में हूँ ।
एकान्त की तनहाईयों से
अब ब्यथित मेरा हृदय ,
श्रृंगारिका के शिखर से
अब गूँजते हर घोष में हूँ ।
आज वैभव,कीर्ति,जल्वा
और रुतबा है तुम्हारा ,
मैं पराजित पालियों के
साथ चलते दोष में हूँ ।
धवलाँचलों से तू सरकती
धार कोई बन "सजल",
अब ज़िगर पत्थर दबाए
देख लो हर ठोस में हूँ ।
✍️ रामकरण साहू "सजल"
बबेरू (बाँदा) उ०प्र०
परम् आदरणीय भाई साहब सादर उपरोक्त ग़ज़ल प्रकाशन हेतु है धन्यवाद।
मेरा फोटो आपके पास है।
आज फिर आपके समक्ष उपस्थित हूँ श्री रामकरण साहू "सजल" जी पुस्तक "पुरूषार्थ ही पुरूषार्थ" की प्रथम चरण की समीक्षा लेकर जिसके प्रकाशक है।
लोकोदय प्रकाशन प्रा.लि.
65/44 शंकरपुरी, छितवापुर रोड़, लखनऊ - 226001
(यू.पी.)
मैं प्रथम चरण की समीक्षा में हमेशा बात करता हूँ प्रकाशक के बारे में , लोकोदय प्रकाशन पिछलें
तीन दशक से साहित्कारों के सृजन को प्रकाश में लाने का कार्य कर रहें है। अनेकों पुस्तकों का प्रकाशन कर आज देश में एक प्रतिष्ठित प्रकाशन में से एक है। मैं लोकोदय प्रकाशन के बारे में सिर्फ इतना ही कहूँगा कि जिस तरह एक भटके सफ़ीने को साहिल की तलाश होती है। यह प्रकाशन साहित्यकारों का एक साहिल है। इसी श्रृंखला में प्रकाशित श्री रामकरण साहू "सजल" जी की पुस्तक "पुरूषार्थ ही पुरूषार्थ" जो आज आप के समक्ष है।
कल मैं बात करूँगा इस पुस्तक की क्या है इस पुस्तक में और क्यों ये पुस्तक बाजार में पाठक माँग रहें है। तो कल फिर मिलूँगा आपसे तब तक के लिए।
राम-राम
* सदियों का मेला है *
जीवन के,
सफर में तुम।
कभी हार भी,
यदि जाओ।
चुप रह के,
सब दुख को।
खुद ही,
निबटा जाओ।
दुनिया बड़ी,
जालिम है।
उपहास,
उड़ाती है।
गर मांगने,
कुछ जाओ।
ये बात,
बनाती है।
गर राज,
पता चल जाय।
बदनाम,
कराती है।
मौके का,
उठा फायदा।
हम को,
तरपाती है।
इसलिए हमें,
जीवन में।
चलना ही,
अकेला है।
दो दिन का,
है जीवन।
सदियों का,
मेला है।
अपने हैं,
सभी सपने।
गैरों का,
रैला है।
तुम भूल,
चलो सबको।
बस ईश का,
ध्यान रखो।
सब अपने,
सब दूजे।
इस बात का,
ज्ञान रखो।
जीवन के,
सफर में तुम।
कभी हार भी,
यदि जाओ।।
✍️ केशव कुमार मिश्रा
सिंगिया गोठ, बिस्फी, मधुबनी,बिहार
अधिवक्ता व्यवहार न्यायालय दरभंगा
लघुकथा- अवसर ✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
जब रिश्तेदारों और सगे संबंधियों ने भी कोरोना की दुहाई देते हुए इस अवसर पर आने से साफ इंकार कर दिया तो भला पास पड़ोसी,मुहल्ले वालों से ही क्या शिकायत।उसने प्रशासन से सहयोग की गुहार लगाई।
"सर ! मैं घर में अकेला हूं।मेरी मां का निधन हो गया है और कोई पड़ोसी , रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए नहीं आ रहा।हेल्प मी प्लीज़।" इससे आगे उसकी रुलाई फूट पड़ी। " अरे आप रोइए नहीं,अपना एड्रेस नोट कराइए।हम पंहुचते है।" एस एस आई ने पता
नोट करते करते सांत्वना दी। अपने तीन चार साथियों के साथ पी पी ई किट पहन, एस एस आई बताए गये पते पर पहुंचे और तत्काल मृतका के अंतिम संस्कार की व्यवस्था की।इतना ही नहीं शव को शमशान तक पहुंचाकर अंतिम संस्कार होने तक वहीं रहे। चलते समय अपना पर्सनल नंबर देते हुए उससे कहा,"चिंता,मत करना कोई परेशानी हो तो काल करना।हम है न। हमारे सीने में भी दिल धड़कता है यार।कुछ पुण्य कमाने का अभी तो अवसर मिला है।"
✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर,उत्तर प्रदेश
उस ओर *
शांत वहती नदी के,
किनारे वैठा हो मेरा अस्तित्व
प्रत्यक्षारत संध्या की ।
कुछ हो हल्का अन्धेरा
दिशा हो तरुणाई
कुछ और हो गहरा आकाश
तव वैठूं नाव में...।
चल दूँ कहीं,विना दिशा के
तब चमके क्षितिज में शशि ...।
मैं अपने अस्तित्व को उसी
मन्द्र शीतल आलोकित
सलिला में लिऐ चलूं...।
कहीं दूर विना दिशा के
बस खो जाऊं कहीं उन्ही,
शांत वहती हुई सरिता में
सदा-सदा के लिये ...।
चमकता रहे चन्द्रमा
हमेशा-हमेशा के लिये
मेरे जीवन के अस्तित्व में...।
✍️ यू.एस.बरी,
, लश्कर,ग्वालियर म.प्र.
Udaykushwah037@gmail.com
परिचय
नाम -यू.एस.बरी
पिता श्री बी.एल.कुश.
शिक्षा डवल एम.ए.
कार्य भारतीय जीवन बीमा निगम मे
लेखन कार्य मे कविता ,कहानियां ,पत्र पत्रिकाओं मे प्रकाशित होतीं रहती हैं।
कविता स्वरचित है।
[26/06, 12:05] +91 75: Writer Tabrez Ahmed
[26/06, 12:07] +91 : विधा - ग़ज़ल
शीर्षक -
ग़ज़ल
मैं उसके इश्क़ में बीमार हूँ
मैं उसके इश्क़ में बीमार हूँ
सारी सारी रात उसके
लिए तड़पा बेशुमार हूँ
कह देता हूँ दिल
की बात दोस्तों से
मगर उस से अपनी बेताबी
बताने में लाचार हूँ
मैं हो तो गया हूँ
बदनाम ज़माने में
मगर उसकी
रुस्वाई नहीं चाहता
मैं इतना समझदार हूँ
मैं हर अपनों के
लिए कमाल हूँ
मगर उस संग
दिल के लिए बेकार हूँ
उसकी ना जाने कितनी
रातें कटती है मेरे बिन
मेरी राते कटती नहीं उसके
बिन इतना बेक़रार हूँ
माँग ले मेरा दिल या
मेरी जान वो मुझसे
उसपे ही तो मैं दिलो
जान से जाँनिसार हूँ
उस से कहो की पढ़े
अपने शहर की हर ख़बर
तबरेज़ मैं ही तो उसके
शहर का अख़बार हूँ
Writer Tabrez Ahmed
कविता :- 20(39)
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र
कविता
बिहार की पहचान ।
जहाँ जन्म ली मर्यादा पुरुषोत्तम
राम की पत्नी सीता ,
राजा जनक जैसे पिता ।।
महाकवि विद्यापति,
नागार्जुन और दिनकर की कविता ।।
आज ही न सदियों से
भारत को आगे बढ़ाने
में बिहार का सहयोग ही था ।।
मुजफ्फरपुर के लीची ,
हाजीपुर का केला ।
पटना राजधानी ,
गया में ही मिटे गौतम
बुद्ध का अंधेरा ।।
छठी माई का पूजा , सोनपुर का मेला ,
लिट्टी चोखा खाना अपना ,
बिहार हमारा गुरु हम रोशन उसका चेला ।।
बांग्ला और उड़िया अक्षर का हुआ
मिथलाक्षर से ही निर्माण ,
स्वंय आये बिहार के मिथिलांचल
भूमि पर शिव शंकर और राम भगवान ।।
आम , लीची , फल - फूल खेत में भरा धान ,
मैथिली , मगही, भोजपुरी ,
उर्दू , हिन्दी बोले जाने वाला हैं ये स्थान ।।
यहीं से आर्यभट्ट दिए दुनिया को शून्य ,
माता गंगा यहीं से गुजर कर की
बिहार पवित्र भूमि को पुण्य ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(39)
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
शनिवार , 26/06/2021
Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 47
Sahitya Ek Nazar
26 June 2021 , Saturday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
विश्व साहित्य संस्थान / साहित्य एक नज़र 🌅
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साहित्य एक नज़र 🌅 कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका का इकाई
विश्व साहित्य संस्थान वाणी ( साप्ताहिक पत्रिका )
संपादिका - आ. डॉ पल्लवी कुमारी "पाम " जी
अंक - 45
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/45-24062021.html
कविता :- 20(37) , गुरुवार , 24/06/2021 , अंक - 45
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2037-24062021-45.html
अंक - 46
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/46-25062021.html
कविता :- 20(38)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2038-25062021-46.html
अंक - 47
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/47-26062021.html
कविता :- 20(39)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2039-26062021-47.html
अंक - 48
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/48-27062021.html
कविता :- 20(40)
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अंक - 44
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कविता - 20(36)
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अंक - 57 सम्मान पत्र
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साहित्य एक नज़र के साथ सम्मानित हुए , आज मैं बहुत बहुत खुश हूँ , 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌅
प्रेरणा , अंक - 57
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