साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 55 , रविवार , 04/07/2021, पत्रिका - 10 रुपये

साहित्य एक नज़र 🌅


अंक - 55
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अंक - 55
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मात्र :- 15 रुपये

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 55
4 जुलाई  2021
रविवार
आषाढ़ कृष्ण 10 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  9
कुल पृष्ठ - 10

प्रकाशित रचनाकारों के रचना
1. आ. सपना  'नम्रता' जी -  वैवाहिक वर्षगांठ शुभकामना
2. आ. गणेश चन्द्र केष्टवाल जी
3. आ. तबरेज़ अहमद जी ( सम्मान पत्र )
4. आ. डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम जी
5. आ. विनोद कुमार सीताराम दुबे जी
6.आ. अनिता तिवारी जी
7.आ. रीता मिश्रा तिवारी जी
8. आ. तबरेज़ अहमद  जी
9. आ. सुरेश लाल श्रीवास्तव जी ( आलेख )
10. आ. रोशन कुमार झा
11. आ. केशव कुमार मिश्रा  जी
12. आ. डॉ देशबन्धु भट्ट  जी
13. आ. श्रीमती सुप्रसन्ना झा जी

हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏
आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

आओ बारिश गीत विशेषांक
अभिव्यक्ति अंक-62
इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ें
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साहित्य एक नज़र, अंक - 55 खरीदने के लिए धन्यवाद 🙏
पुस्तक पढ़ें यहाँ से
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रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

अंक - 54
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अंक - 54
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अंक - 52
https://online.fliphtml5.com/axiwx/ucgf/

विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका, अंक - 2 )
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अंक - 51
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अंक - 50
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मधुबनी - 1
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जय माँ सरस्वती

साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 55
4 जुलाई  2021
रविवार
आषाढ़ कृष्ण 10 संवत 2078
पृष्ठ - 
प्रमाण पत्र -  9
कुल पृष्ठ - 10

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक

मो - 6290640716

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
112. आ. तबरेज़ अहमद जी

सम्मान पत्र - 1 - 80
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/295588932203890/?sfnsn=wiwspmo

सम्मान पत्र - 79 -
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/308994277530022/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 54 से 58 तक के लिए इस लिंक पर जाकर सिर्फ एक ही रचना भेजें -
https://www.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/320528306376619/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 49 से 53
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/317105156718934/?sfnsn=wiwspmo

अंक - 45 - 48
https://m.facebook.com/groups/287638899665560/permalink/314455886983861/?sfnsn=wiwspmo

मधुबनी इकाई अंक - 2
https://www.facebook.com/groups/310633540739702/permalink/320660943070295/?sfnsn=wiwspmo

विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी , अंक - 3 के लिए रचना यहां भेजिए -
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धन्यवाद सह सादर आभार

आपका अपना
रोशन कुमार झा
रविवार, अंक - 55
04/07/2021

फेसबुक - 1

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फेसबुक - 2
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साहित्य एक नज़र
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 55 , रविवार
04/07/2021

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 55
Sahitya Ek Nazar
04 July ,  2021 , Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

_________________

रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र  🌅 ,
Sahitya Ek Nazar , Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

आ. ज्योति झा जी
     संपादिका
साहित्य एक नज़र 🌅 मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक - मासिक पत्रिका

आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम "  जी
          संपादिका
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने
वाली दैनिक पत्रिका का इकाई

Happy Anniversary , शुभ वैवाहिक वर्षगांठ
💐🙏🌹🍰🎉🎂💖🎁 🌅

समर्पण का दूसरा भाव हैं आपका रिश्ता,
विश्वास की अनूठी गाथा हैं आपका रिश्ता,
प्यार की मिसाल हैं आपका रिश्ता,
शादी की सालगिरह की ढेर सारी शुभकामनाएं प्रिय बहना और जीजू को।🎂💐🍫🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳

✍️  सपना  'नम्रता'

बरसात

घनघोर घटाएं छाई
मौसम ने ली अंगड़ाई
मंद-मंद ठंढी  हवाएं
पानी की बूंदें लेआई
बरसात ने रंग जमाया
चहुंओर पानी ही पानी
ताल तलैया भरे सभी
नदियों ने तुफान मचाया
जलीय जीव में खुशियां छाई
वृक्ष हंसे मुस्कराई घास
पृथ्वी पर हरियाली  छाई
सभी जीव-जंतुओं ने
बरखा रानी को किया प्रणाम

✍️ विनोद कुमार सीताराम दुबे
शिक्षक व हिंदी प्रचारक
गुरु नानक इंग्लिश हाई स्कूल
एन्ड जूनियर कालेज भांडुप
मुंबई महाराष्ट्र

Sadar prashit

ग़ज़ल

बड़ा तरस आता है आज के जवानों पर
दर्द की दवा ढूँढे सब दर्द की दुकानों पर|1
क्या गजब ढाती हैआज की तालीमे भी
हाथ मे किताबें हैं....गालियां जबानों पर|2
माँ ही भूखी रहती है कुछ घरों में देखाेगे
पायेंगें क्या जाने से पूजा के ठिकानों पर|3
हर गली तिराहे पर ..हैं दोस्तों खुदा देखो
क्या कहोगे तुम इनके.बेतुके बयानों पर|4
प्रेम यें सहमे परिंदे क्या करें कहाँ जाये
हर तरफ यहाँ जुल्मी बाज हैं उड़ानों पर| 5

✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम नजीबाबाद

||ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः||
          मेरा गाँव
         
हमारे गाँव में आओ, खुशी से झूम जाओगे|
सुहानी वायु के झोंके, यहाँ पर रोज पाओगे
खिलेगा चेहरा तेरा, पड़ेगी धूप जब उस पर|
निराली कांति खेतों की, दिखेगी फूल-पत्तों पर||
हरितिमा को दिशाओं में, निरखने चित्त जाएगा|
चलेगा वो सदा आगे, न पीछे दौड़ पाएगा|
बहारों से भरी बूँदे, गिरेंगी तेज झरनों से|
सुनेगा गीत तू प्यारा, सुनाएगा उदक झरनों से||
वृषों की कंठ की घंटी, अनोखा गीत गाएंगी|
खगों की कूक मीठी भी, मिलन संगीत गाएंगी|
हँसी मीठी सुनेगा तू, युवतियों की लुभाती वो|
सुनो मेरी मनोहारी, धरा सुंदर बुलाती वो||
मनोहारी उषा होती, सुहानी साँझ भी होती|
वनों में और बागों में, हवा भी झूमने आती|
चले न्यारी हँसी की भी, बहारें गाँव-कूचों में|
सभी मिल खेलते बच्चे हमारे गाँव हर घर में||
मनोहर गाँव है मेरा, मधुरता देख लो आकर|
सुरभि माटी सदा देती, करो अनुभव यहाँ आकर|
दिलों में भी धरा में भी, मधुरता ही विलसती है|
मधुर होता यहाँ जीना, मधुरता ही खनकती है||

✍️ गणेश चन्द्र केष्टवाल
मगनपुर किशनपुर
कोटद्वार गढ़वाल उत्तराखंड

सादर नमन 🙏
शीर्षक-

जिंदगी ✍️ अनिता तिवारी

क्या जिंदगी जब मौत
बन जाएगी तब समझोगे
संभालो अपनी जिंदगी यारों
एक बार ही तो मिलती है
बार-बार क्यों मरते हो
खत्म कर दो मरने के
कारणों को जी लो मन भर कर
तोड़ दो जीवन के गलत बंधन को
अपना लो नए नियमों को
खत्म हो जाएगी खुद- ब- खुद
तेरी जिंदगी की बुराइयां
एक बार ही सही
कुछ नया करके देखो
देखो विश्व कैसे आगे बढ़ रहा है
कैसे उन्नति के पथ पर चल रहा है
नित्य नए कीर्तिमान बनाकर
पथ को प्रशस्त कर रहा है
तुम्हें क्या हुआ है
तुम भी कर्णधार बनो
क्या जिंदगी जब मौत
बन जाएगी तब समझोगे
आज नहीं तो कल तुम्हें बदलना ही है
इस जीवन के नियम बदलना ही है
क्यों ना अभी से बदले
क्यों ना नया निर्माण करें
तुम्हें किसने रोका है
जिस ने रोका है वह तो तुम हो
अपने ही आप में विघ्न पैदा मत करो
आगे बढ़ो सफलता इंतजार में है
चुम लो उसे जो इंतजार में खड़ी है
एक बार सफलता को गले
लगा कर तो देखो
एक बार जिंदगी को जी कर के देखो
अपनी बुराइयों को जला दो
अपनी आदतों को बदल दो
जिस पथ पर जाना नहीं छोड़ दो
एक नया घोंसला बना कर तो देखो
लाख जतन कर लिया
अगर कुछ बदल ना पाया
तो तेरे रास्ते में गड़बड़ी है
नए पथ पर जाकर देखो

क्यों बैठे हो हाथ पर हाथ रखकर
किस आस में प्रभु की तरफ देख रहे
अरे वह तो उसी की मदद करता है
जिसने पहल स्वयं की है
ईश्वर को मत छोड़ो
पर अपना हौसला बना कर तो देखो
आज नहीं तो कल तुम्हारा होगा
सफलता अब दूर नहीं
यह सोच अपना कर तो देखो
पीछे मत देखो आगे बढ़ते रहो
अपनी कमजोरियों का कारण
सिर्फ तुमको ही पता है
उन कमजोरियों पर विजय
पाकर तो देखो
बढ़ती उम्र से डरो नहीं
अपनी उम्र जी कर तू है तो देखो
खुद का खुद को बुलंद कर लो
यह दुनिया बड़ी जालिम है
वह इतनी जल्दी तुम्हें ना अपना आएगी
तुम्हें इनको अपनाना होगा
क्या जिंदगी जब मौत
बन जाएगी तब संभलोगे

✍️ अनिता तिवारी
दिल्ली

नमन मंच
साहित्य एक नजर

#

बारिश ✍️ रीता मिश्रा तिवारी

ऑफिस से अभी निकल कर थोड़ी दूर गया ही था की आगे सर्कल पर काफी भीड़ देख कर मैंने साइड में गाड़ी लगा उतर कर देखने चला गया कि आखिर भीड़ क्यूं है। पुछने पर किसी ने कुछ नहीं बताया तो मैं भीड़ को चीरता अंदर प्रवेश किया तो देखते ही मेरा दिल भर आया और साथ में गुस्सा भी, कि ये भीड़ तमाशा देखने वालों की लगी है।  तभी तेज बारिश शुरू हो गई। लोगोें पर गुस्सा जाहिर करते हुए मैंने उस घायल औरत और उसके नवजात शिशु को उठाया और फौरन हॉस्पिटल ले कर गया डॉक्टर को सारी बातें बताई और इलाज करने को कहा। थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने आकर कहा बच्ची ठीक है पर बच्ची की मां को नहीं बचा सके। बच्ची को लेकर मैं गाड़ी में आकर बैठ कर सोचने लगा कि अब क्या करें। बारिश भी अपनी यौवनवस्था की सीमा पार कर थमने का नाम नहीं ले रही थी। बाहर की तूफान को लांघता आगे तो बढ़ तो गया, पर अंदर उठे तूफानों के सवाल में घिरा घर पहुंचा।बच्ची को गोद में देख पत्नि की सवालिया नजर मेरी ओर टकटकी लगाए खड़ी थी। मैंने अपने इष्ट देव को स्मरण कर सारा वाक्या सुना दिया।जो डर था ठीक उसके विपरीत पत्नि ने मेरी गोद से बच्ची को लपक कर ले लिया और चूमने लगी मेरी बच्ची मेरी बच्ची कहते हुए बीस सालों से सीने में दबी उसकी ममता बच्ची को देख फुट पड़ी । मैंने भी उसकी गोद में बच्ची को उसे प्यार करते देख चैन की सांस लेकर इष्ट देव को धन्यवाद किया ।

✍️ रीता मिश्रा तिवारी
शिक्षिका स्वतंत्र लेखिका
1.7.2021

मैं बादल नहीं जो
बेरुख़ी से गुज़र जाऊंगा
मैं तो बरसात की बारिश की
वो बूँद हूँ जो प्यार बनकर
तुझपर बरस जाऊंगा
तू प्यासी है ज़मीं की तरह
मैं बादल हूँ पागलो की तरह
तू राह तकती है मेरी जैसे
बंज़र ज़मीं हो तू
मैं तुझपर इस तरह प्यार
बरसाता हूँ जैसे मूसलाधार
बारिश की बूँद हूँ मैं
तू बादलो की तरह
मुझसे बेरुख़ी करती है
मैं बरसात की बूंदो की तरह
तुझसे बरस कर
मुहब्बत करता हूँ
जब तुझे अक्सर तन्हाई या
महफ़िल में मेरी याद आती है
तेरी आँखों से मैं ही तो बारिश
की बूंदो की तरह बरसता हूँ
तेरी आँखों में जो ये काजल
है वो मैं ही तो बादल हूँ
तेरी दिल की ज़मीं का तबरेज़ 
ही तो बरसात सावन और बादल है

✍️ तबरेज़ अहमद
नई दिल्ली बदरपुर

प्रकाशनार्थ

मामकाः पाण्डवाः

मेरे पुत्र (मामकाः)और पाण्डुके पुत्र (पाण्डवाः)-इस मेरे -तेरे मतभेद से या मनभेद से ही राग-द्वेष पैदा हुए, जिससे युद्ध हुआ , महाभारत हुई।धृतराष्ट्र के भीतर पैदा हुए राग-द्वेष का फल यह हुआ कि शत-शत कौरव मारे गए और पांडव शेष बचे रहे।
जैसे दही बिलोने पर मक्खन का जन्म होता है, ऐसे ही मामकाः और पांडवाःके भेद से पैदा हुई महाभारत से अर्जुन के मन में कल्याण की अभिलाषा जाग्रत हुई, जिससे भगवद्गीतारुपी मक्खन निकला।
अर्थात यहां तात्पर्य ये है कि धृतराष्ट्र के मन में हुई हलचल ने महाभारत उत्पन्न की जबकि अर्जुन के मन की हलचल ने गीता को प्रकट किया।

✍️ श्रीमती सुप्रसन्ना झा
जोधपुर, राजस्थान।

भवानीमंडी की बाल कवयित्री शुभांगी शर्मा ने फेसबुक मंच पर किया ऑनलाइन काव्यपाठ -

भवानीमंडी :- अखिल भारतीय साहित्य परिषद भवानीमंडी की सबसे कम उम्र की बाल कवयित्री शुभांगी शर्मा ने दिल्ली की साहित्यिक संस्था ,साहित्य संगम संस्थान के साक्षात्कार संगम फेसबुक पेज पर ऑनलाइन काव्य पाठ के दौरान शुक्रवार शाम 4 बजे से कविताएं सुनाई जिसे देश भर के कई रचनाकारों ने सराहा करते हुए प्रशंसा की। शुभांगी शर्मा ने बताया कि साक्षात्कार संगम फेसबूक पेज पर मेरा साक्षात्कार देश की सुप्रसिद्ध कवयित्री व संगम सुवास नारी मंच की प्रचार सचिव उमा मिश्रा प्रीति जी ने साक्षात्कार लेते हुए मेरे साहित्य जगत में  प्रवेश से लेकर अब तक कि उपलब्धियों के बारे में प्रश्न पूछे। मैंने साक्षात्कार के दौरान ही  मेरी कविताएं दोहे जो देशभक्ति ,  पर्यवरण ,शिक्षा व स्वच्छता सम्बधी विषयों पर आधारित सुनाए। मुझे कई रचनाकारों ने बधाई देते हुए आशीर्वाद दिया है। ये मेरा फेसबुक पर ऑनलाइन काव्य पाठ प्रथम बार हुआ। मैं साहित्य संगम संस्थान से जुड़कर बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। मैं संस्थान के अध्यक्ष महोदय उमा मिश्रा जी को बहुत बहुत धन्यवाद देती हूँ। मुझे कविताएं लिखने की प्रेरणा मेरे पिताजी डॉ. राजेश पुरोहित जी से मिली। कोरोना काल मे  अभी मैं कविताएं लिखने में प्रयासरत हूँ।


स्वामी विवेकानंद ( संक्षिप्त आलेख )

मानव को मानवता का स्वस्थ एवं मर्यादित पाठ पढ़ाने वाले, वाणी में अपार शक्ति तथा नेत्रों में सम्मोहनता से संयुत्, मानव समाज के ज्योतिर्मान नक्षत्र, जीवन के प्रारंभिक काल में नरेन्द्र नाम से अभिहीत स्वामी विवेकानंद ने भारत वसुंधरा पर 12 जनवरी 1863 को  अपने अवतरण द्वारा अधिवक्ता पिता विश्नाथ और परं धर्म परायणा, वात्सल्यमयी भुवनेश्वरी देवी के दाम्पत्य जीवन को धन्य किया था। ज्ञानता और अज्ञानता के आधार पर सुखमय एवं दुखमय यह लोक में मानवता का वरण करने वाले, अनुपम विवेक शक्ति मण्डित महसपुरुषों का पर सेवा परायण जीवन ही धन्य है, इसे आलोकित व चरितार्थ करने वाले, विश्व मानवता के मसीहा स्वामी विवेकानंद ने अखिल विश्व में भारतीय संस्कृति व सभ्यता की अद्वितीयता का परचम लहराया। सर्वधर्म समभाव की विचारधारा का मिलन केंद्र "मानव धर्म"  की महनीयता से सर्व साधारण को बाधित कराने वाले विवेकानंद ने हिन्दू धर्म के विषय में ओजस्विता पूर्ण ढंग से कहा है कि-"मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता, तथा सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी।हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते,वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं।" अपने गुरु श्रद्धेय रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि के बाद सन्यास लेने वाले नरेन्द्र ने गुरु की आज्ञानुसार मानवता के कल्याणार्थ कार्य साधना में सदैव तत्परता दिखाई।गुरु की इच्छा को इन्होंने अपने जीवन का महाव्रत बनाया।कभी सच्चिदानंद तो कभी विवेकानंद नाम से स्वयं को प्रत्यक्षित कराने वाले नरेंद्र को सर्वप्रथम खेतड़ी नरेश ने विवेकानंद नाम से संबोधित किया था। विश्‍व के प्रथम सर्वधर्म सम्मेलन (11 सितंबर,1893),जो कि शिकागो में आयोजित हुआ था(8हजार से अधिक अमेरिकी नर-नारियों की प्रतिभागिता)में विवेकानंद के संबोधन के दौरान करतल ध्वनि से सभागार गुंजित हो उठी थी तथा विवेकानंद जी ने लोगों के दिल में अपना पवित्र साम्राज्य कायम कर लिया था।अगले दिन न्यूयार्क के हेराल्ड समाचार में छपा था कि-"सर्वधर्म सम्मेलन में सबसे महान व्यक्तित्व विवेकानंद जी का है।" स्वस्थ समाज निर्माण और दलित मानवता की सेवा में किशोर वय व युवावस्था को पूर्णरूपेण समर्पित करने वाले इस महापुरुष(जिसकी महानता के विषय में जितना भी कहा जाय कम है) ने अपनी जीवन यात्रा 04 जुलाई 1902 ईस्वी को पूरी की थी।

✍️ सुरेश लाल श्रीवास्तव
             प्रधानाचार्य
राजकीय उ.मा. विद्यालय
अम्बेडकरनगर, उ. प्र.
9415789969

कविता :- 20(46) , शनिवार , 03/07/2021 , अंक - 54

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2046-03072021-54.html


अंक - 55
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/55-04072021.html

कविता :- 20(47) ,
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2047-04072021-55.html

अंक - 56
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/56-05072021.html

कविता :- 20(48)

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2048-05072021-56.html

अंक - 57
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/57-06072021.html

कविता :- 20(49)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2049-06072021-57.html

अंक - 58
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/58-06072021.html

कविता :- 20(50)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2050-07072021-58.html

अंक - 53
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/53-02072021.html

कविता :- 20(45)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2045-53-02072021.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 1
http://vishnews2.blogspot.com/2021/04/blog-post_95.html
मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 2

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/2.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 3

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/3-2000-18052021-8.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 4
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/4-03072021-54-2046.html

कविता :- 20(47)
नमन 🙏 :-  साहित्य एक नज़र 🌅

मैं रूकता , मेरा कलम रूकती नहीं  ,
मैं तो झुक जाता पर ये सर झुकती नहीं ।।
देख चुका हूँ इस जीवन की राह
अब इससे होने वाला मुक्ति नहीं ,
निभाते रहो कर्त्तव्य ...
कर्त्तव्य निभाते - निभाते थक जाओगे ,
रूक जाओगे
ये कर्त्तव्य कभी चुकती नहीं ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(47)
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
04/07/2021 , रविवार
Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 55
Sahitya Ek Nazar
04 July 2021 ,  Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
विश्‍व साहित्य संस्थान /
साहित्य एक नज़र 🌅
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर

* शेर सा जीवन *

दिए की रोशनी बनकर,
जगत में नाम करना है।
बहुत आराम कर बैठे,
चलो कुछ काम करना है।
जिएं तो शेर सा जीवन,
नहीं डर डर के मरना है।
कफन सर बांध के निकला,
जमाने से भी लड़ना है।
लड़ा जिसने भी है जीता,
कभी रन को कभी दिल को।
यदि रण जीत जाएंगे,
बहुत सम्मान पाएंगे।
कभी गर हार भी जाएं,
जगह दिल में बनाएंगे।
दिलों को जीत कर ही तो,
यहां तक साथ आए हैं।
मिला मानव का चोला,
उसी का फर्ज निभाए हैं।
जिएं तो शेर सा जीवन,
नहीं डर डर के मरना है।
दिए की रोशनी बनकर,
जगत में नाम करना है।।
 
✍️ केशव कुमार मिश्रा
सिंगिया गोठ, बिस्फी,
मधुबनी,बिहार।
" अधिवक्ता " , व्यवहार
न्यायालय दरभंगा।

शीर्षक -

" पहचान "

पहचान हमारी सबसे विशिष्ट
है पूरे विश्व में निराली है
लोहा मानती दुनिया भारत का
सिंह सी चाल मतवाली है।
त्याग तपस्या और बलिदान
ज्ञान की गाथा गाती है दुनिया
वसुधा कुटुम्ब में कल्याण हो
सबका प्रज्ञा इस सोच वाली है ।।
सिखाई विश्व को सुप्रवृत्तियां
सत्कर्म सिखाए हैं सभी
ज्ञान की ज्योति जलाकर विश्‍व
को दिखाई सत्य की राह भी।
शिष्टाचार और मानव धर्म बताकर
पशुवत् आचरण से बचाया है
भारतीय पहचान हमारी माने जाते
विश्वगुरु थे हम कभी।।
        
   ✍️ डॉ देशबन्धु भट्ट
प्रवक्ता संस्कृत
राजकीय इण्टर कॉलेज तोलीसैण
मुखेम टिहरी गढ़वाल

  सर्वथा मौलिक, स्वरचित, अप्रसारित एवं अप्रकाशित रचना



साहित्य एक नज़र


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