साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 57 , मंगलवार , 06/07/2021, जन्मोत्सव संकलन आ. ज्योति सिन्हा जी

साहित्य एक नज़र 🌅

अंक - 57

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जन्मोत्सव संकलन , मंगलवार , 06 जुलाई  2021

आ. ज्योति सिन्हा जी
साहित्य एक नज़र अंक - 57
🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

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मात्र - 256 रुपये में
अंक - 57
6 जुलाई  2021
मंगलवार
आषाढ़ कृष्ण 12 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  8 - 9
कुल पृष्ठ -  11

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
साहित्य एक नज़र  , मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक पत्रिका ( मासिक ) - मंगलवार
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

मात्र :- 15 रुपये

जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 57
6 जुलाई  2021
मंगलवार
आषाढ़ कृष्ण 12 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण पत्र -  8 - 9
कुल पृष्ठ -  11

सहयोगी रचनाकार व साहित्य समाचार -

1. आ.  डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ( जन्मोत्सव )
2. आ. साहित्य संगम संस्थान साहित्य समाचार
3. आ.  कलावती कर्वा जी
4. आ. राजेश कुमार पुरोहित जी
5. आ. रोशन कुमार झा
6.आ. आरती तिवारी सनत जी , दिल्ली
7.आ. रणधीर चंद्र गोस्वामी जी
8. आ. मानसी मित्तल जी
9. आ.  सपना नर जी
10. आ. सुधीर श्रीवास्तव जी
11. आ. श्रीमती सुप्रसन्ना झा जी
12. आ. कीर्ति रश्मि नन्द जी
13. आ. देवानन्द मिश्रा सुमन जी ( मैथिली )
14.आ. डॉ . एमए शाह ,"सहज़" जी

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
116 .  आ. डॉ. राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" जी
117. आ. आरती तिवारी सनत जी , दिल्ली

हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏
आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

अंक - 56

साहित्य एक नज़र, अंक - 56 खरीदने के लिए धन्यवाद 🙏
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अंक - 55
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रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716

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( साप्ताहिक पत्रिका, अंक - 2 )
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मधुबनी - 1
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अंक - 1

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मात्र :- 15 रुपये

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सम्मान पत्र - 79 -
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अंक - 49 से 53
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रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
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अंक - 57 ,  मंगलवार
06/07/2021

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 57
Sahitya Ek Nazar
06 July ,  2021 , Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

_________________

रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक
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Sahitya Ek Nazar , Kolkata , India
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মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

आ. ज्योति झा जी
     संपादिका
साहित्य एक नज़र 🌅 मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक - मासिक पत्रिका

आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम "  जी
          संपादिका
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने
वाली दैनिक पत्रिका का इकाई





कविता :- 20(46) , शनिवार , 03/07/2021 , अंक - 54

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2046-03072021-54.html


अंक - 55
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/55-04072021.html

कविता :- 20(47) ,
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2047-04072021-55.html

अंक - 56
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/56-05072021.html

कविता :- 20(48)

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2048-05072021-56.html

अंक - 57
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/57-06072021.html

कविता :- 20(49)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2049-06072021-57.html

अंक - 58
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/58-06072021.html

कविता :- 20(50)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2050-07072021-58.html

अंक - 53
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/53-02072021.html

कविता :- 20(45)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2045-53-02072021.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 1
http://vishnews2.blogspot.com/2021/04/blog-post_95.html
मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 2

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/2.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 3

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/3-2000-18052021-8.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 4
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/4-03072021-54-2046.html

अंक - 57

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शुभ जन्मदिन , Happy Birthday , শুভ জন্মদিন

🎁🎈🍰🎂🎉🎁 🌹🙏💐🎈

6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्‍वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी।
मृत्यु - 23 जून 1953 (उम्र 51)
साहित्य एक नज़र 🌅

जन्म :- 6 जुलाई 1901

आ.नीलम द्विवेदी की काव्य संग्रह "आहुति" (साहित्य संगम संस्थान विशेषांक) का विमोचन।

हिंदी साहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्ध संस्थान "साहित्य संगम संस्थान" द्वारा पंचम स्थापना वर्ष के चतुर्थ दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में "आहुति" पुस्तकमाला के क्रम में आज दिनांक- 05 जुलाई 2021 को रायपुर, छत्तीसगढ़ की अनुभवी एवं प्रतिभावान साहित्यकारा आ० नीलम द्विवेदी जी की "आहुति" पुस्तक का विमोचन किया गया।
पुस्तक का विमोचन दोहाशाला के कुशल समीक्षक आ. नेतराम भारती जी के  करकमलों से संपन्न किया गया। इस मौके पर "साहित्य संगम संस्थान" के संचालक समूह के अभी गणमान्य सदस्य आ० राजवीर सिंह मंत्र जी, आ० मिथलेश सिंह मिलिंद जी, आ० रोहित रोज जी  उपस्थित थे। प्रस्तुत पुस्तक का पृष्ठांकन एवं सम्पादन आ० भारती यादव "मेधा" जी ने किया है। आ० नीलम द्विवेदी जी की इस "आहुति" पुस्तक में उनकी 36 सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का समायोजन है। सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं एवं कवयित्री ने अपनी रचनाओं के माध्यम से एक अलौकिक अलख जलाने का प्रयास किया है। पुस्तक का आरंभ सरस्वती वंदना के साथ हुआ है  एवं सत्य का पथ, जीवन का संघर्ष, नारी की अपेक्षा, श्याम की बंसी, पनघट की ओर, रक्तदान महादान, बेटी की अभिलाषा, पर्यावरण संरक्षण जैसी बेहतरीन रचनाओं से सुसज्जित होते हुए अंत मे  कवयित्री के द्वारा संस्थान के प्रति "धन्यवाद ज्ञापन" से पुस्तक का समाप्त किया गया है। कुल मिलाकर यदि कहा जाए तो साहित्य संगम संस्थान के सहयोग से रचित यह पुस्तक किसी भी साहित्य प्रेमी को अपनी ओर आकर्षित करेगी।
✍️ कुमार रोहित रोज़ जी
कार्यकारी अध्यक्ष
साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली

क्षितिज" शीर्षक के साथ सम्पन्न हुआ साहित्य संगम संस्थान का चार दिवसीय स्थापना दिवस समारोह

- राजेश पुरोहित,भवानीमंडी
दिल्ली- साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली स्वर्णिम स्थापना दिवस पांच जुलाई की भव्यता हेतु आयोजित चार दिवसीय कार्यक्रम का समापन वास्तव में ऐतिहासिक रहा। संस्थान के पंचम स्थापना दिवस के चतुर्थ दिवस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आ. सुमनेश सुमन जी, विशिष्ट अतिथि आ. छगनलाल मुथा जी, कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो० (डाॅ०) अनूप प्रधान जी तथा मंच संचालिका आ. वंदना नामदेव जी की उपस्थिति समारोह की उत्कृष्टता का प्रतीक है। साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष आ राजवीर सिंह जी वक्तव्यों में जबरदस्त सकारात्मकता दिखी, उनका मानना है कि किसी भी संस्थान व संगठन में गति व प्रगति का समन्वय अत्यंत आवश्यक होता है, क्योंकि गति जहां संस्थान की नींव निर्माण करती है, वहीं प्रगति उसी नींव पर विशाल व भव्य भवन का निर्माण कर्ता है, वह इसलिए क्योंकि प्रगति नवीन तकनीकों और असीम ऊर्जा से युक्त होती है। कार्यक्रम अध्यक्ष कुलपति सनराइज विश्वविद्यालय अलवर राजस्थान प्रो० (डाॅ०) अनूप प्रधान जी ने सभी साहित्यकारों से हिन्दी व संस्थान की सेवा हेतु अनुरोध करते हुए, आपने कहा कि सहयोग जीवन का मूल मंत्र और कीमती उपहार होता है, क्योंकि सहयोग जब किसी को दिया जाता है तो पाने वाला ही खुशहाल नहीं होता, अपितु देने वाला भी खुशहाल होता है। अतः जितना बन सके हिन्दी व संस्थान की सेवा जरूर करें। आ. प्रधान जी ने इन अमूल्य बातों के साथ-साथ संस्थान को आशीर्वचन भी प्रदान किया।
मुख्य अतिथि आ. सुमनेश सुमन जी ने मंच को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे रास्ते जरूर अलग-अलग हो सकते हैं, मगर हमारा लक्ष्य तो एक ही है कि हमारी हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त हो। इसी शुभ आशीर्वचनों के साथ आपने काव्य पाठ भी प्रस्तुत किया तथा संस्थान व संस्थान से जुड़े सभी सहयोगियों की भूरि-भूरि प्रसंशा की। कार्यक्रम में शामिल पूर्व आईपीएस अधिकारी आदरणीय प्रशांत करण जी ने युवाओं को संबोधित करते हुए स्वरचित दो खण्डीय रचना प्रस्तुत की, जिसका एक खण्ड हमारा गौरवशाली इतिहास है तो वहीं दूसरा खण्ड हमारा वर्तमान। प्रशांत करण जी की यह रचना वास्तव में अद्भुत व अद्वितीय प्रस्तुति रही। कार्यक्रम में विशेष संबोधन के अंतर्गत आ. महागुरुदेव डाॅ राकेश सक्सेना जी, आ. राजवीर सिंह मंत्र जी, आ. तरुण सक्षम जी, आ. मिथलेश सिंह मिलिंद जी, आ. प्रमोद चौहान जी, आ. छाया सक्सेना प्रभु जी, आ. नवल किशोर जी, आ. अर्चना पांडेय/अर्चना की रचना जी, आ. वंदना श्रीवास्तव वान्या जी, आ. अनिता सुधीर आख्या जी, आ. ओऽम् प्रकाश मधुव्रत जी, आ. कुमुद श्रीवास्तव कुमुदिनी जी, आ. प्रमोद पांडेय जी, आ. ऐश्वर्या सिन्हा चित्रांश जी, आ. प्रेमलता चौधरी जी, आ. डाॅ. पंकज रुहेला जी, आ. धर्मराज देशराज जी, आ. शिव शंकर लोध राजपूत आदि ने अपने वक्तव्य व शुभ आशीर्वचनों को प्रेषित किया। संस्थान के वार्षिकोत्सव मीडिया सहयोगियों में आ. अनुज मिश्रा जी, आ. रवि प्रकाश गुप्ता जी, आ. राजेश शर्मा पुरोहित जी, आ. नवीन भट्ट नीर जी, आ. हेमराज पारिक जी, आ. अमित कुमार जी , आ. सत्यवान अवस्थी जी, आ. अनुज मिश्र अंटु जी आदि का सहयोग सराहनीय रहा, जिस कारण संस्थान की ऐतिहासिकता का प्रचार-प्रसार देश ही नहीं विदेशों में भी देखने को मिला।

कुण्डलिया छंद
भारत की महिमा लिखूँ, कैसे मैं श्रीमान।
गौरव गाथा से भरा,मेरा हिन्दुस्तान।।
मेरा हिन्दुस्तान, जगत में सबसे आगे।
बदल रहा परिवेश, देशहित जन गण  जागे।।
कह कविवर राजेश, विश्व को यह उद्धारत।
ऋषि मुनियों का देश,जगत में केवल भारत।।
रघुवर ही रटते रहो, जपो सदा शुभ नाम ।
हाथ जोड़ विनती करो,तभी मिलेंगें राम।।
तभी मिलेंगे राम,रोज ही जप तप करना।
जीवन का गढ़ लक्ष्य  , ध्यान धर आगे बढ़ना।।
कहते कवि राजेश , मान ले हरि को गुरुवर ।
नित्य जपो मम नाम , यथा जपते  हो रघुवर ।।
दूरी बढ़ती जा रही,रिश्तों में क्यों आज।
मतलब के साथी मिले, जान न पाए राज।।
जान न पाए राज, समय यह ऐसा आया।
खाली हाथ पसार,न फूटी कौड़ी पाया।।
हुई न मन की आस, कभी भी उनकी पूरी।
मिटी नहीं है आज,यहाँ रिश्तों की दूरी।।

✍️ डॉ. राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित"
कवि,साहित्यकार
भवानीमंडी,  झालावाड , राजस्थान

भारत की वीरांगनाएं

भारत भूमि पर वीर
सपूतों ने जन्म लिया
महिलाओं ने भी
आजादी में योगदान दिया
वीरांगना महिलाओं
की जब भी चर्चा करते
झांसी की रानी लक्ष्मी
बाई का नाम बोलते
लक्ष्मी बाई विद्रोह
करने में प्रमुख शख्सियत
अपनी वीरता से विख्यात,
हासिल की शोहरत
महारानी जीजा बाई
भारत की महान वीरांगना
शिवा जी जीजा बाई के
संस्कारों से महान बना
रानी पद्मिनी ने अपना
जौहर खूब दिखलाया
खिलजी के मनसूबे पर
पूरा पानी ही फ़ेर दिया
सरोजनी नायडू महिलाओं
की प्रेरणास्रोत बनी
भारत कोकिला देश की
पहली महिला गवर्नर बनी
हमारा भारत देश वीर
और वीरांगनाओं की धरती
भारत भूमि पर जन्म लिया
देश पर सदा गर्व करती
हमे भी इन वीरांगनाओं
सी हिम्मत दिखानी चाहिए
नारी की इज़्ज़त लूटने वालों
को सबक सिखाना चाहिए

✍️ कलावती कर्वा

ताश के महल

तरंगें उमड़ती थी
लहरों से
खेला था कभी
अपने लिए
सपनों के रजत-महलों की
कतार ही एक
खड़ी कर दी थी मैंने
मिटटी से दूर...बहुत दूर...
हशीन
खयालों की दुनियाँ में
पलभर को
खो गया मै
समय के
लम्बे हाथों ने पर
बटोर लिए
सारे के सारे
रंग जीवन के
सारे के सारे
महल ताश के
मेरे आँखों के सामने
देखते ही देखते
बिखर गए।

✍️ रणधीर चंद्र गोस्वामी

टिप्पणी: यह मेरे द्वारा १९६९ में रचित प्रथम कविता है।
फोटो नहीं

हिंसा

हे! धरती माँ तुमको ,
जाने कितने नाम दिये।
लेकिन जन मानस ने देखो,
शर्मनाक हैं काम किये।
विहग घरोंदे तोड़े तुमने
वन उपवन का है नाश किया।
अपनी वसुधा का देखो तुमने
कैसा है संहार किया !
अपने स्वार्थ की खातिर
वृक्षों पर अत्याचार किया।
अपनी भूमिजा का देखो तुमने
क्यों श्रृंगार बिगाड़ दिया।
प्रकृति की अनुपम कृति से,
मिलते हैं  लाभ अनेक,
प्राणदायिनी होती ये है
बस काम यही है नेक।
आओ शपथ करें यह हमसब,
अब नही करेंगे प्रहार।
ये हिंसा नही छोड़ा तो,
जीवन से जाएंगे हार।

✍️ मानसी मित्तल
शिकारपुर, जिला बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश

मंच नमन🙏🏿

विषय-

पिता

पिता हमारे जनक..
पिता सूर्य जैसा..
हमारे जीवन में प्रकाश..
जीवन का आधार..
जीवन मिला..
भविष्य की चिंता...
हमारे जन्म से ही..
पिता कहते तो कुछ नहीं..
खामोशी ही सब कुछ ..
बच्चों की चिंता रहती..
घर का आर्थिक ढांचा..
पिता ही खड़े करते हैं..
पिता वट वृक्ष है..
पिता से संपूर्णता..
हम सब निश्चिंत हैं..
कल की चिंता हमें नहीं..
पिता है सब कुछ..
बच्चों की प्रेरणा पिता..
पिता बिना जीवन की..
कल्पना नहीं .!!

✍️ आरती तिवारी सनत
दिल्ली

लेख - एक पल ✍️ सुधीर श्रीवास्तव

समय का महत्व हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है।इसी समय का सबसे छोटा हिस्सा है "पल"।कहने सुनने और करने अथवा महत्व देने में अधिकांशतः हम लापरवाही में ,भ्रमवश भले ही एक पल को अधिक भाव नहीं देते,परंतु हम सबको कभी न कभी इस एक पल के प्रति अगंभीरता, लापरवाही अथवा अनजानी भूल की भारी कीमत चुकानी पड़ जाती है। बहुत बिर मात्र एक पल के साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि उसका विस्मरण असंभव सा होता है। वह अच्छा और खुशी देने वाला भी हो सकता है और टीस देता रहता ग़म भी। उदाहरण के लिए एक पल की देरी से ट्रेन छूट जाती है, एक पल की लापरवाही या मानवीय भूल बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है, धावक विजयी हो जाता है और नहीं भी होता। एक पल में लिए निर्णय से जीवन की दशा और दिशा बदल जाता ।बहुत बार एक पल के आगे या पीछे के निर्णय अविस्मरणीय खुशी या ग़म तक दे जाते हैं। एक पल में ही दो अनजान शख्स जीवन के अटूट बंधन में बंधकर पति पत्नी बन जीवन भर निभाते जिंदगी गुजार देते हैं। एक पल में ही रिश्ते बनते भर ही नहीं हैं बहुत बार बिखर भी जाते है। सबसे अहम तो यह है कि जीवन की ड़ोर भी तो एक मात्र पल में छूट जाती है और इस पल में जीवित प्राणी मृतक कहलाने लगता है। आशय सिर्फ़ इतना है कि हर एक पल का अपना महत्व है और इस एक पल को नजरअंदाज करना कभी भी किसी पर भी भारी पड़ सकता है। जिसका हमारे आपके जीवन में दूरगामी परिणाम भी अवश्यंभावी है। इसलिए एक पल की महत्ता को लापरवाही में नजर अंदाज करना हम सबकी भूल ही कहा जायेगा।

✍️ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921

नमन मंच

बरसे बदरिया सावन की
सावन की मनभावन की
रुत है सखि री मनभावन की
रिमझिम-रिमझिम बूँदे छनछन
नवजीवन है पुलकित तन मन
धवल-धवल धरा मुस्कुराया
भींगा-भींगा मौसम आया
पुष्पित कलियां खुशबू छाया
सावन आया बादल लाया
बरसे बदरिया सावन की
सावन की मनभावन की
रुत है सखि री मनभावन की

✍️ श्रीमती सुप्रसन्ना झा
     जोधपुर, राजस्थान।

मंच को नमन 🙏
#साहित्य एक नजर
54---58 अंक हेतु रचना
#विधा -- कविता( मौलिक व स्वरचित)
#शीर्षक --- नींद का सफर
#दिनांक -- 05/ 07/ 21
#नाम  कीर्ति रश्मि नन्द
#स्थान ---#वाराणसी
                  ------------

ऐ नींद ,
तेरे आने के सफर में
यादों के बड़े पड़ाव आते हैं
कुछ ठोकरें होती हैं...
डूबती निराशाओं सी
तो कुछ समतल राहें..
.जगती आशाओं सी
कई मोड़ आते हैं
आज के कार्यों के मोल सा
कई गालियां पार करती है तू
कल के कार्यों के भूगोल सा
कुछ पर्वत पार करती
बीती जिंदगी के चिंतन सी
कभी घाटी में उतरती
भूले बिसरे यादों में मनन सी
क्या छूटा क्या पाया सा
रास्तों में निहारती निहारती
कब आके तू मेरी पलकों
को बंद कर देती हैं
कब मुझे अपने
आगोश में ले लेती है
मुझे एहसास ही नहीं होता
एहसास ही नहीं होता...
ऐ नींद !
मैं भी तेरे साथ
सफर तय करती हूं
हर मोड़ पे तेरे साथ होती हूं ।

✍️   कीर्ति रश्मि नन्द

सभ कहैत छि  हम छि मैथिल

सभ  कहैत  छि,
हम  छि  मैथिल,
मिथिला  हमर  गाम
हमर पाग छै पहचान
  देव  पूछै की  प्रमाण
  छि  मैथिलक  संतान
बाजू बाबू बाजू सोना
के छलैथ राजा शलहेश
दीना भद्री लोरिक मिथिला
कालीदास डीह आ उच्चैठ
संस्कृति स भयलहु बिमुख
आन संस्कृति लेल उन्मुख
कनैत  अछि   ब्रम्हस्थान
अहाँ कहैत छि हमर स्थान
शहर गेलहुँ गाम बिसरलहु
विद्यापतिक गीत बिसरलहु
मण्डन अयाची ग्राम त देखु
आइयो अप्पन धाम के देखु
जानकी आ पाहुन राम देखु
मैथिली सदीखन अहाँ बाजू
ज्यौ एतेक ध्यान ऐच्छ बाबू
तखन कहूं ने हम छि मैथिल

✍️ देवानन्द मिश्रा सुमन

ये साजिशें हैं ,फ़क़त
कुर्सी के चंद भूकों की,.

फिज़ाओं में तुम ज़हर,
क्यों घोलते हो ?
मासूम बेगुनाहों का सर ,
क्यों फोड़ते हो ?
क्या राम ने कहा या हिदायत,
है खुदा की ,
शैतानियत का लबादा क्यों ,
ओढ़ते हो ?
मंदिर - मस्जिद में उलझने ,
वालों ,खाकर कसम ,
कहो क्या हर वक्त खुदा और
राम को तुम पूजते हो ?
ये साजिशे हैं फ़क़त, कुर्सी के,
चंद भूखों की ,
इक जरा सी है बात तुम क्यों ,
नहीं सोचते हो ?
एक जगह आग लगाकर के,
एक नादानों ,
तमाम , मुल्क को शोलों में ,
क्यों झोंकते हो ?
कौन हिन्दू और कौन मुस्लिम,
है यहां पर , मुश्ताक ,
प्यारे बापू के अरमानों
को इस ,तरह,
क्यों रौंदते हो ?

✍️ डॉ . एमए शाह ,"सहज़"
मगरधा हरदा  मध्यप्रदेश

वीर सपूतों को नमन

भारत माँ के
वीर सपूतों को नमन हमारा...
आँधी, तूफाँ, सर्द हवाओं के बीच
  सरहदों पर भारत माँ की
सेवा में चारों पहर रहते तत्पर..
हम सोए चैन से
अमन, शांति का
माहौल बना रहे देश में,
उसके लिए न जाने
कितनी रातें गुजराते
जागते हुए ठंड में, बर्फ़ में...
जब पूरा देश मना रहा होता
उत्सव, त्यौहार ऐसे में भी
सरहद पर अपना कर्तव्य निभाते..
अपनो से दूरी स्वीकार
भारत माँ के ये ऐसे वीर,
माँ की रक्षा में
रहते सीना चीर,
कभी दुश्मन की गोली
से होता गर इनका सीना छलनी
प्राणों की आहुति
जब ले लेती जननी
मातृभुमि की कर रक्षा,
यूँ उसका मान बढ़ाते
कभी न पछताते..
भारत माँ के उन
वीर सपूतों को नमन हमारा.
उनसे ही गुलज़ार है
यह चमन हमारा
सबसे प्यारा।

    ✍️    सपना 'नम्रता'

कविता :- 20(49)
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र

पता न अब हमें
सम्मान पत्र का भूख
क्यों मिट गया ,
हार कर भी हार से
हम जीत गया ।
वक्त भी सुख दुख
के साथ बीत गया ,
हम भी चल देंगे
देखों
आषाढ़ आया
गर्मी और शीत गया ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(49)
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
06/07/2021 , मंगलवार
✍️ रोशन कुमार झा , Roshan Kumar Jha , রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 57
Sahitya Ek Nazar
06 July 2021 ,  Tuesday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
विश्‍व साहित्य संस्थान / साहित्य एक नज़र 🌅
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर







साहित्य एक नज़र


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