साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 41 , रविवार , 20/06/2021 , विश्व साहित्य संस्थान
अंक - 41
https://online.fliphtml5.com/axiwx/tjxw/
अंक - 40
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जय माँ सरस्वती
एक साल हो गया विश्व साहित्य संस्थान का
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साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
अंक - 41
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785
अंक - 41
20 जून 2021
रविवार
ज्येष्ठ शुक्ल 10 संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण पत्र - 12
कुल पृष्ठ - 13
मो - 6290640716
🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
88.आ. नेतलाल यादव जी
सम्मान पत्र - 1 - 80
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सम्मान पत्र - 79 -
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अंक - 37 - 40
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अंक - 34 से 36
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 41 , रविवार
20/06/2021
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 41
Sahitya Ek Nazar
20 June 2021 , Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
_________________
1.
परिचय -
✍️ रामकरण साहू"सजल"
ग्राम-बबेरू ,जनपद - बाँदा , उत्तर प्रदेश , भारत
शिक्षा- परास्नातक
प्रशिक्षण- बी टी सी, बी एड, एल एल बी
संप्रति- अध्यापन बेसिक शिक्षा
सम्पर्क सूत्र- 8004239966
प्रकाशक
रूद्रादित्य प्रकाशन
190 एच/आर/3-एन, ओ0 पी0 एस0 नगर कालिंदीपुरम, प्रयागराज उत्तर प्रदेश- 211011
दूरभाष - 8187937731
आज प्रथम चरण की समीक्षा में मैं लेकर आया हूँ श्री रामकरण साहू "सजल"जी का ग़ज़ल संग्रह "सजल की ग़ज़ल" तो ज़नाब मैं प्रथम चरण की समीक्षा में बात करता हूँ प्रकाशक की इस पुस्तक के प्रकाशक हैं।
रूद्रादित्य प्रकाशन, ये एक नया प्रतिष्ठान है लेकिन मैंने इनकी प्रकाशित की पुस्तकों का अवलोकन किया तो किसी भी पुस्तक का आवरण या संपादकीय में कोई कमी महसूस नहीं हुई। ऐसा एहसास ही नहीं हुआ कि मेरे हाथ मे किसी नये प्रकाशक की पुस्तक है । और जब श्री रामकरण साहू "सजल" जी का ग़ज़ल संग्रह "सजल की ग़ज़ल" का आवरण और कागज़ की गुणवक्ता को देखा तो ऐसा एहसास हुआ जैसे किसी अनुभवी प्रकाशक की पुस्तक हो। इनकी पुस्तक के प्रकाशन का तरीका ऐसा जैसे कोई अनुभवी तैराक अपनी तैराकी के हुनर दिखाते हुए अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रहा है। ऐसे ऊर्जावान प्रकाशक को मेरी अनेकों शुभकामनाएं। पुस्तक की समीक्षा लेकर कल दूसरे चरण में मैं फिर उपस्थित होऊँगा। तब तक के लिये
राम-राम
समीक्षक - ✍️ आ. प्रमोद ठाकुर जी
सह संपादक / समीक्षक
9753877785
---------
पिता के कदमों में चारों धाम है ।
पिता घर के आसमान हैं
पिता परिवार के शान हैं
पिता बच्चों के अरमान हैं
पिता बहुत मूल्यवान हैं ।
पिता जीवन के संचित ज्ञान हैं
पिता समाज के मान है
पिता संतानों के धनवान है
पिता के कदमों चारों धाम है
पिता मेहनत करते हैं
पिता तकलीफ को सहते हैं
पिता आशीर्वचन ही देते हैं
दुनियाँ दूसरे भगवान कहते हैं
पिता संस्कारों के बीज बोते हैं
पिता अनुशासन प्रिय होते है
पिता सिंधु-सा गंभीर होते हैं
पिता मुश्किलें में वीर होते हैं । ।
✍️ नेतलाल यादव
पता - चरघरा नावाडीह,
पंचायत-जरीडीह, थाना-जमुआ ,
जिला-गिरिडीह (झारखंड)
पिन कोड़-815318
व्हाट्सएप नम्बर-829419071
असीमित खरोंचे , ✍️ डॉ. मधु आंधीवाल
पूस की रातें बहुत ठंडी होती है। यह पुरानी कहावत है। ऐसी ही एक ठंडी रात थी । मानसी बैचेनी से ठहल रही थी । घर के सब सदस्य सो चुके थे । अभी अभी ब्रेकिंग न्यूज में सुन रही थी कि कल फुटपाथ पर सोने वाली एक मानसिक रुप से कमजोर लड़की को कुछ लोग उठा कर ले गये और उसके साथ बलात्कार करके छोड़ गये नग्नवस्था में ठिठुर कर उसकी लाश को पुलिस ने बरामद किया । ये खबर उसके जेहन में हल चल मचा रही थी । शादी से पहले उसके घर के सामने एक प्रेस वाला मोहन सारी कालोनी के कपड़े प्रेस करता था । वहीं उसने अपनी छोटी सी झोपड़ी बना रखी थी । उसकी दो बच्चियां थी । एक बच्ची मानसिक रुप से कमजोर थी । दोनों बच्चियां मानसी के पास आजाती थी । मानसी एक स्कूल में अध्यापिका थी । वह उनको पढ़ाती रहती थी । एक रात शायद सबसे ठंडी रात थी । तेज हवा बारिश एक तूफान सा आया हुआ था । इस तूफानी रात में तीन नर पिशाच भी नशे में धुत उस झोपड़ी के आगे रुके । झोपड़ी का दरवाजा कमजोर था । एक लात के प्रहार से वह खुल गया । तीनों ने उस मासूम बच्ची को उठाया और ले जाने लगे । बड़ी बहन ,मां और बाप शोर मचाते रहे पर तूफानी रात के शोर में किसी ने उनकी आवाज नहीं सुनी या कहिये कोठीवाले उन गरीबी आबाजों को अनसुना कर गये । मानसी जाग कर जब तक वहाँ पहुँची वह कुछ समझ पाती देर हो चुकी थी । मानसी ने मोहन के साथ मिल कर अधेंरे में खोजा पर कुछ नहीं पता चला । मानसी पूरी रात झोपड़ी में उन लोगो के साथ बैठी रही । सुबह रात का तूफान थोड़ा थमा । बाहर दूर तक निकल कर ढूंढा एक गड्ढे में उस मासूम बच्ची की लाश असीमित खरोचों के साथ खून से लथपथ ठंड में ठिठुरी हुई मिली । कितना मुश्किल होता मां बाप को दिलासा देना । आज समाचार ने उसके दिल विचलित कर दिया । शायद ये घटना कभी कम ना होगी ।
✍️ डॉ. मधु आंधीवाल
पिता को नमन
पूज्य पिता को नमन है मेरा
शत - शत बार प्रणाम।
कोटि - कोटि वंदन है उनको
बारम्बार प्रणाम।
पिता है तो हम हैं
हम हैं उन्हीं की कृपा से।
पले हैं, बढ़े हैं आज जमीं पे
खड़ा हैं उन्हीं की कृपा से।
अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया
हंसाया, रुलाया
अंदर से मजबूत बनाया।
पिता है तो हर सपने हैं अपने
हर खुशियां, उमंग
और चाहत है अपने।
अपनी ख्वाहिशें दफ़न कर
पूरा करते हैं
परिवार के हर सपने।
अभिलाषा है उनकी बड़े हो कर
नाम रौशन करेंगे औलाद,
पूरा करेंगे पिता के सपने।
मां की ममता है छलकती अगर
तो पिता का पुण्य भी है बरसता।
ये भीम समझ जग में कैसा है
पिता का पावन -ए-रिश्ता।
✍️ भीम कुमार
गांवा, गिरीडीह, झारखंड
#साहित्य एक नजर.
अंक - 41 से 44.
दिनांक - 20/6/2021.
परित्राण प्रत्याशा.
अग्नि पुष्प की आभा से
निरर्भ अभ्र में गूंजती
निरति निरत नियति
कराह कमलपुष्प की
विध्वंस के विलाप में.
र्निलेप नियंता मूक है
निर्निमेष निहार रहा
योगी है निमग्न योग में
जिद्द है कि मानता नहीं
परेशान धर्म आचमन से
जातियों के सूखते जल से
कोरोना के जलकुम्भियों से
मुरझा रहा कमल क्लेश से.
मुमुर्षा के परित्राण में
जिजीविषा की खोज में
धन्वंतरि की प्रत्याशा में
अनुष्ठानित यज्ञ प्रारंभ है
प्रज्जवलित समिधा धूम्र से
यज्ञ फल आशांकित है.
✍️ अजय कुमार झा.
उठो भद्रे प्रकृति सुकुमारी
नव नूतन श्रृंगार करो !
सजन सॉवरे द्वारे आये
तुम उनका सत्कार करो !!
चले गए थे दूर पिया
तुझे छोड़ अकेली
अश्विन में !
मिल कर उनसे तुम अपने
मन की बातें चार करो !!
संग लाये है मेघा प्यारे
बूँदों का अनुपम उपहार !
भीग जाओ तुम उसमे सारी
शांत हिये अंगार करो !!
भर लो अपने ताल तलैया
तुम वारि की रिमझिम से !
तोड़ के अपना मौन का व्रत
तुम सरगम की झंकार करो !!
निकलों अपने कोप भवन से
बदलों अपना तुम परिवेश !
फिर से महक जाओ मस्ती में
घर अँगना में बहार करो !!
✍️ " कवि " सुदामा दुबे
मुकाम - बाबरी पोस्ट - डिमावर
तहसील - नसरूलागंज
जिला - सीहोर ( म० प्र० )
भाग्य और कर्म , ✍️ धीरेंद्र सिंह नागा
एक ही टाइम ( समय ) पर दो बच्चों का जन्म होता है। एक का जन्म राष्ट्रपति के यहां और दूसरे का जन्म किसान के यहां, एक की किस्मत में सोने की थाली में खाना और दूसरे की किस्मत में पत्तल में खाना। यह तो हुआ भाग्य। राष्ट्रपति का बेटा जो अपने आप को संविधान का बेटा समझता है और वह किसी अपराध की दुनिया में कदम रख देता और अपराधी बन जाता है और किसान का बेटा कड़ी मेहनत और अध्ययन करके जज बनता है और यही जज उस राष्ट्रपति के बेटे को सजा-ए-मौत सुनाता है। यह तो हुआ कर्म।भाग्य से कर्म नहीं बनता बल्कि कर्म से भाग्य बनते है।
✍️ धीरेंद्र सिंह नागा
ग्राम- जवई, तिल्हापुर ,
कौशांबी, उत्तर प्रदेश
पिता
पिता से ही मेरी दुनिया
है, इतनी न्यारी-न्यारी
पिता ही मेरे जीवन दाता
पिता ही मेरे जीवन
का है आधार
पिता की उँगली
पकड़कर ही
देखी मैंने दुनिया सारी
पिता से ही मेरे सपनों
को मिलता पँख
पिता ही मेरे संस्कारों
के कर्त्ता धर्ता
पिता से ही मेरी हिम्मत है
जीवन के मार्गदर्शक पिता मेरे
पिता से ही जीवन में हैं
मेरे अनंत प्रेम
पिता ही मेरे अभिमान है
उनसे ही है पहचान मेरी
पिता ही मेरी खुशियों
के है हमराज
पिता ही मेरे सच्चे साथी
पिता ही मेरे है सुरक्षा कवच
परिवार की मज़बुती
का राज है पिता
बिन इनके मेरा जीवन
मानो जैसा कोरा कागज़।
✍️ सपना 'नम्रता'
हर वक़्त सोचता रहता हूँ ,
कैसे तुम्हें हँसाऊँ मैं?!
खुद़ बनकर मुस्क़ान तेरे,
होठों में बस जाऊँ मैं?!!
ये कैसा बधंन है अपने बीच,
और कैसे अच्छे से निभाऊँ मैं!
ग़र आराम मिले मेरे छूने से,
माथे पे तेरे सहलाऊं मैं!
सुकून से नींद मुकम्मल हो तेरी,
तुझे ख़्याव में झूला झुलाऊँ मैं!
तनाव से राहत मिल सके तुझे,
एक कड़क चाय पिलाऊँ मैं !
ग़र ऊब गई हो घर में बैठे बैठे,
चल आ न तुझे घुमाऊं मैं!
चीनी लाईफलाइन हो
तुम जिन्नी की,
अब कैसे यकीन तुम्हें दिलाऊँ मैं!
तू खुश रहे वस ये चाहुँ मैं,
तेरी ख़ुशी पे कुर्बान हो जाऊँ मैं!
तेरी जिंदगी रहे रौशन ऐ दोस्त,
दीया बनकर ख़ुद जल जाऊँ मैं!
✍️ राजेश "तन्हा"
रतनाल, विश्नाह, जम्मू ,
जे के यू टी-181132
||ॐ वागीश्वर्यै नमः||
पितृदिवस
पितृदिवस सब शोर मचाते|
संदेश बधाई जग लहराते||
पिता या संतति कौन मनाएं?
पितृत्व का कौन भाव जगाएं?
कल्पनाओं से सपने बुनता|
बुजुर्गों की राह भी चलता||
एक दिवस वह दारा को पाता|
पितृत्व मग नव पग को बढाता||
घर में आनंद संगीत लहराए|
संतति पितृ पद जब दिलाए||
हँसकर पिता हर पीड़ा पीता|
हर पल संतति हित वह जीता||
संतति बिन सब जग है रीता|
उर नेह मुख क्रोध ले जीता||
संतति-खुशियाँ शान बढ़ाती|
उन्नति उनकी मान बढाती||
हरा पिता को जीत दिलाएं|
विश्व में उनका मान बढ़ाएं||
पिता को सत्कर्मों से हर्षाए|
वही सच्ची संतति कहलाए||
हम क्यों पितृ दिवस मनाएं?
निज सदाचरण से उन्हें हर्षाएं||
✍️ गणेश चंद्र केष्टवाल
मगनपुर किशनपुर
कोटद्वार गढ़वाल उत्तराखंड
सादर प्रेषित
ग़ज़ल
क्या खबर थी आपके
बिनअब गुजर होगी नहीं
जिन्दगी अपनी ही अपने
से बशर होगी नहीं |
पत्थरो का आईनों पर ..
ये ही होता है कर्म
मिट भी जायें दोस्ती मे
कुछ कदर होगी नही|
लाख तोहमत भी लगाये
नेक लोगों पर जहाँ
इनकी कोई भी नजर
पर बदनजर होगी नहीं |
कब तलक खाते रहेंगे
रोज बेटी.. भेडिये
ये अँधेरा कब मिटेगा ...
क्या सहर होगी नहीं |
दर्दो ग़म से थक चुके
है मेरे रब इतना... बता
क्या खुशी थोडी बहुत
भी अब इधर होगी नहीं |
माँ के मन को ना दुखा
तू सुन अभागे मान ले
कितनी भी करना
इबादत बाअसर होगी नहीं |
स्वार्थों की ज्यादती
ने प्रेम.. दिल पत्थर किये
इस जहाँ मे स्वार्थ के
बिन अब गुजर होगी नहीं |
✍️ डॉ. प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद बिजनौर
"हाँ मैं पिता हूँ "
कर्तव्य पथ आरूढ;
निज -धर्म निभाता हूं।
हां पिता हूं व्यक्त नहीं
कर पाता हूं!!
मेरे ह्रदय के टुकडों सुनो~
मैं अब तुमलोगों में
ही जिन्दा हूं।
मैं पतवार हूं ~
हर संकट से तुम्हें
खींच लाता हूं!!
मैं पिता हूं व्यक्त
नहीं कर पाता हूं।
तुम्हें मिले हर खुशी
जो मैंने ना पाई है;
इसलिए आज भी कर्म
अपना नित निभाता हूं।
मैं स्नेह-पाश से बंधा हूं,,
तुम फलो-फूलो,
वट-वृक्ष बनो,
इसलिए हर बाधा को
मोङ देता हूं;
मैं पिता हूं व्यक्त
नहीं कर पाता हूं।
पर तुम्हें कष्ट हो कोई ,
ये देख नहीं मैं पाता हूं ।
आश्रय मिले तुम्हें छांव का;
इसलिए ही जीवन
का कङा धूप
सहता जाता हूं।
हां मैं पिता हूं,,,
व्यक्त नहीं कर पाता हूं।
* एक पिता के मन की भावना *
✍️ डाॅ . पल्लवी कुमारी "पाम "
मेरे पापा -
अनुभव तो नहीं एहसास है।
उनकी मेहनत पर नाज है।
पापा की लाडली बिटिया मैं
वो मेरे सर के ताज है।।
भरपूर प्यार बरसाते है।
कदमों से कदम मिलते है।
अटूट प्रेम मुझसे करते,
मेरे दिल की अरदास है ।।
पापा.......
जीवन का अर्थ बताते है।
जीने की राह दिखाते है।
मेरे खातिर वो नायक है,
माँ के माथे की साज है।।
पापा........
हर ख्वाहिश पूरी करते।
चुन चुनकर खुशियाँ भरते।
मेरी हिम्मत मेरी ताकत,
एक पावन सा एहसास है।।
पापा.......
राहें मेरी है मुसाफिर वो।
चाहत मेरी पर माहिर वो।
सपने दिखलाए है मुझको,
पाने की उनमें प्यास है।।
पापा.......
पापा की लाडली बिटिया मैं।
वो मेरे सर के ताज है।।
✍️ सरिता त्रिपाठी 'मानसी'
सांगीपुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
नमन मंच
🙏सभी को गंगा दशहरा की शुभकामनाएं
ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है। इस साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि आज यानि २० जून को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आईं थीं। हिंदू धर्म में इस दिन का बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिन विधि- विधान से मां गंगा की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। मां गंगा की पूजा करने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार कोरोना वायरस की वजह से घर में रहकर ही मां गंगा की पूजा- अर्चना करे। कोरोना काल में गंगा दशहरा का पर्व घर पर ही मनाएं. इस दिन सुबह स्नान करने से पूर्व जल में गंगा जल की कुछ बूंंद मिलाएं. और माँ गंगा का स्मरण करते हुए स्नान करें. इसके बाद स्वच्छा वस्त्र धारण कर पूजा प्रारंभ करें. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए. पूजा के बाद घर में भी गंगाजल का छिड़काव करें. जरूरतमंद लोगों को दान भी दें. हिंदू धर्म में पतित पावनी व मोक्षदायिनी मां गंगा को सबसे पवित्र नदी माना जाता है, जिसमें आस्था की डुबकी लगाने मात्र से लोगों के सभी पाप धुल जाते हैं. मां गंगा के धरती पर अवतरण दिवस को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है. मां गंगा धरती पर मानव जाति और जगत के कल्याण के लिए अवतरित हुईं थी, इसलिए गंगा दशहरा के दिन उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।मेरी और से पुनः आपसभी को गंगा दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं।
✍️ डॉ. मंजु सैनी
गाज़ियाबाद
🌹🌹🌹🌹🎈🙏💐
संपादिका :-
✍️ आ. ज्योति झा जी
बेथुन कॉलेज , कोलकाता
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली
दैनिक पत्रिका की
मधुबनी इकाई ( साप्ताहिक )
#विषय-_झांसी की रानी स्मृति दिवस"
#दिनांक-19/6/2021
#विधा-कविता
- झांसी की रानी स्मृति दिवस "
आज सुनाती हूं मैं कहानी,
वीरांगना लक्ष्मीबाई की,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो ,
झांसी वाली रानी थी...।
मणिकर्णिका नाम था जिसका ,
वाराणसी में जन्म हुआ,
गंगाधर राव से ब्याह कर,
झांसी की रानी वह बनी..।
नाना की मुंहबोली ,
छबीली वह जानी जाती थी..,
मराठा की वीरांगना ,
वह झांसी की मरदानी थी..।
रानी लक्ष्मीबाई के ,युद्ध
कौशल के बड़े चर्चे थे...,
बरछी, ढा़ल, कृपाण, कटारी ,
उन्हें प्राणों से भी प्यारी थे।
रानी लक्ष्मीबाई के तो,
अस्त्र-शस्त्र ही गहने थे....,
दामोदर राव लक्ष्मीबाई के,
दत्तक पुत्र कहलाए थे...।
पीठ पर बांध पुत्र को युद्ध
किया, इतिहास बताता है,
उनकी वीरता की गाथा
,इतिहास आज भी गाता है..।
सूनी गोद हुई ,सुहाग भी उजड़ा,
फिर भी लक्ष्य को जिसने
ना छोड़ा था,
आजादी की शंमा लेकर के ,
जिसने अंग्रेजो को
लोहा मनवाया था।
तेईस वर्ष की आयु में ,
जिसने गौरव इतिहास रचाया था...,
लड़ते-लड़ते बलि चढ़ी ,
वह काला दिन भी आया था....।
है झांसी में आज भी अमर
निशानी, उसके बलिदान की...,
बुंदेले हरबोलों के मुख,अब
भी जिसकी कुर्बानी है....।
बच्चे बच्चे के मुंह पर ,रानी
लक्ष्मी बाई की कहानी है...,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो,
झांसी वाली रानी है......।
✍️ रंजना बिनानी "काव्या"
गोलाघाट असम
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅
सब कुछ मेरे पिता है ,
मेरे पालन पोषण में ही
इनके जीवन बीता है ।।
इनके आशीर्वादों से ही
हम हारकर भी जीता है ,
ये पिता श्री पर
एक कविता है ।।
पढ़ने के लिए
रामायण गीता है ,
मिथिला पुत्री सीता है ।
सब बताएं
बताने वाले पिता है ,
आज पिता दिवस
पिता दिवस पर रोशन
द्वारा रचित यह कविता है ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
रविवार , 20/06/2021
मो :- 6290640716, कविता :- 20(33)
✍️ रोशन कुमार झा , Roshan Kumar Jha , রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 41
Sahitya Ek Nazar
20 June 2021 , Sunday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
पितृ दिवस , Happy Father's Day
পিতৃ দিবস বা বাবা দিবস , 🙏🌹💐
1. रोशन कुमार झा
पिता - श्री श्रीष्टु झा
2. पूजा कुमारी
पिता - श्री परमेश्वर प्रसाद गुप्ता
पिता प्रेम है प्यार है,
पिता बच्चों का व्यवहार है।
पिता कर्म,धर्म सदाचार है,
पिता पुण्य गुण्य आचार है।।
पिता धन दौलत दुलार है,
पिता हर घर का उलार है।
पिता धूप है छांव अलाव है,
पिता मधुर हवा सा बहाव है।।
पिता धैर्य है सहाय उपाय है,
पिता हर घर को सजाय है।
पिता से बड़ी न कोई कमाई है,
पिता हर चीज के दवाई है।।
पिता सुख सम्पदा सम्पति है,
पिता के साथ न कोई विपत्ति है।
पिता शिक्षा दीक्षा गति है,
पिता की आज्ञा ही सुमति है।।
पिता घर घर का व्यवहार है,
पिता हर बच्चे का संसार है।
पिता गाड़ी बंगला कार है,
पिता के बिना जीवन बेकार है।
पिता ज्ञान विज्ञान सुजान है,
पिता माँ की मुस्कान है।
पिता हर चीज की दुकान है,
पिता के बिना बच्चा बेनाम है।।
पिता एक उम्मीद है आस है,
पिता परिवार की हिम्मत विश्वास है।
पिता हर रीत और रिवाज़ है,
पिता परिवार का अनाज है।।
पिता संघर्ष होंसलों की दीवार है,
पिता परेशानी से लड़ने
की तलवार है।
पिता से हर घर गुलजार है,
पिता से ही तो हमारा संसार है
✍️ डॉ. जनार्दनप्रसादकैरवान:
ऋषिकेश उत्तराखंड
पिता -
अपनी खुशियों को त्यागता
खुद के भाव खोता
जबरन मुस्कराता दर्द पीता,
बच्चों के साथ बच्चा बनकर
बच्चों की खातिर
हाथी घोड़ा बनकर,
आंसू पीकर भी हंसता
रोना चाहकर भी
मुस्कुराता,
पिता बनना नहीं
होना कठिन है,
जब तक बच्चा
नहीं बनता पिता।
🖋 ✍️ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा(ऊ.प्र.),
8115285921
विश्व साहित्य संस्थान
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विश्व साहित्य संस्थान
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विश्व न्यूज़
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एनसीसी
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अंक - 41
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कविता - 20(33)
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अंक - 42
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कविता - 20(34)
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अंक - 43
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कविता - 20(35)
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अंक - 44
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कविता - 20(36)
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अंक - 37
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कविता :- 20(29)
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अंक - 38
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कविता :- 20(30)
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अंक - 39
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कविता :- 20(31)
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अंक - 40
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/40-19062021.html
कविता :- 20(32)
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