साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 68 , शनिवार , 17/07/2021

साहित्य एक नज़र


अंक - 68
जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
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मात्र - 15 रुपये

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अंक - 68
17 जुलाई  2021
शनिवार
आषाढ़ शुक्ल 8
संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण - पत्र -  5
कुल पृष्ठ -  6

सहयोगी रचनाकार  व साहित्य समाचार -

1.  आ. साहित्य एक नज़र 🌅
KA - BIGGEST INSTA CONTEST हुआ संपन्न
2.  आ. विजय कुमार यादव जी , 
3. आ.  रामप्रीत आनंद (एम.जे.) जी
गोरखपुर उत्तर प्रदेश ।
4. आ.  साधना सिंह जी
5. आ. नरेश कुमार बेसरा जी
6. आ. सुरेश लाल श्रीवास्तव जी
7.आ. रोशन कुमार झा जी
8. आ. सुनील "सुगम" जी
9. आ. विनय साग़र जायसवाल जी ,बरेली


🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
130 . आ. विजय कुमार यादव जी
गुवाहाटी असम, भारत - 17/07/2021






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हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏💐
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
साहित्य एक नज़र  , मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक पत्रिका ( मासिक ) - मंगलवार
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी - गुरुवार

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 68
Sahitya Ek Nazar
17 July ,  2021 ,  Saturday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी






सम्मान पत्र - 1 - 80
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सम्मान पत्र - 79 -
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फेसबुक - 1

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अंक - 54 से 58 -
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रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र  🌅 ,
Sahitya Ek Nazar , Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

आ. ज्योति झा जी
     संपादिका
साहित्य एक नज़र 🌅 मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक - मासिक पत्रिका

आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम "  जी
          संपादिका
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने
वाली दैनिक पत्रिका का इकाई


कविता :- 20(55)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2055-12072021-63.html

अंक - 63
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https://online.fliphtml5.com/axiwx/jtka/

कविता :- 20(56)
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अंक - 64
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/64-13072021.html

https://online.fliphtml5.com/axiwx/pfpt/
अंक - 65
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https://online.fliphtml5.com/axiwx/osxc/

कविता :- 20(57)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2057-14072021-65.html

अंक - 66
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/66-15072021.html

https://online.fliphtml5.com/axiwx/cgpv/

कविता :- 20(58)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2058-15072021-66.html

अंक - 67
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/67-16072021.html

https://online.fliphtml5.com/axiwx/iwmf/

https://online.fliphtml5.com/axiwx/ndqq/

https://imojo.in/9Gs5NG

कविता :- 20(59)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2059-16072021-67.html

अंक - 68
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/68-17072021.html

https://online.fliphtml5.com/axiwx/jurd/
कविता :- 20(60)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2060-68-17072021.html

अंक - 69
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/69-18072021.html

कविता :- 20(61)

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2061-18072021-69.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 1
http://vishnews2.blogspot.com/2021/04/blog-post_95.html
मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 2

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/2.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 3

http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/3-2000-18052021-8.html

मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 4
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/4-03072021-54-2046.html

सम्मान पत्र
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/079.html


विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी , अंक - 3
https://online.fliphtml5.com/axiwx/xdai/

अंक - 59
Thanks you
https://online.fliphtml5.com/axiwx/hsua/

14 जून 2021 कोलकाता से गांव आएं
अंक - 35

http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/35-14062021.html

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/06/2027-14062021-35.html

KA - BIGGEST INSTA CONTEST हुआ संपन्न

13 दिनों से चलने वाला यह बिगेस्ट कॉन्टेस्ट 4 जुलाई को शुरू हुआ और 16 जुलाई को खत्म हुआ।  कुल मिलाकर 20 से ज्यादा सदस्यों ने इस प्रतियोगिता में सहभागिता ली थी , उनमें से 10 लोगों ने दूसरे चरण में पदार्पण किया, यह दूसरा चरण इंस्टाग्राम के सोशल प्लेटफॉर्म पर हुआ, यहां से लोगों के वोट से जो टॉप 3 राइटर्स रहे उनके नाम कुछ इस प्रकार हुमा अंसारी प्रथम, सुदिक्षा क्षत्रिय द्वितीय, सुचिता सुकेन तृतीय।
इस प्रतियोगिता के मुख्य रश्मि सिंग तथा इस प्रतियोगिता को आयोजित करने का काम सागर गुडमेवार ने दर्शाया।।

Head Of Contest                 Founder Of KA
Rashmi Singh                   Sagar Gudmewar

Roshan Kumar Jha plz add in news

निम्नलिखित मेरी कविताएं  आपको प्रस्तुत है,कृपया यदि उचित समझें तो  पत्रिका में प्रकाशित करने की कृपा करें

सादर 🙏विजय कुमार यादव, गुवाहाटी असम, (भारत) मोबाइल नंबर 9957550052,7002975122
imvkya@gmail.com

जिंदगी कि अनजान राहों का  I

कोई तो ठिकाना होगा     II
क्या पता, किस मंजिल पर III
यह सफर सुहाना होगा  IIII
नदियां तो  चलना ही जाने  I
ना जाने कहां उसका मुहाना होगा
मद्धम होगा वेग कहीं तो
तीव्र कभी बहाना होगा
श्रम रूपी तपस्या में तो
खुद को तड़पाना होगा
फल रूपी आम्र को तुमको
कर्म से ही पकाना होगा
कर महान प्रयास तू जीवन पथ में
फिर तेरे पीछे ही जमाना होगा

✍️ विजय कुमार यादव,
गुवाहाटी असम, (भारत)  9957550052,7002975122
imvkya@gmail.com


मैं यह घोषणा करता हूं कि यह कविता मेरे द्वारा स्वरचित है, और मौलिक है, इसका कहीं भी प्रकाशन, किसी पत्रिका में नहीं हुआ है

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फोटो नहीं

आदरणीय ! सादर नमन के साथ
'भारतीय संविधान में नारी के अधिकार ' पर आलेख  -
✍️ रामप्रीत आनंद (एम.जे.)

भारतीय जनमानस के प्राचीन परिवेश पर चिंतन किया जाए तो नारी सदा से सदाचार और कदाचार का शिकार होती रही है। पुरुष सोच के केंद्र में रहकर पूजी जाती रही है और उपभोग की वस्तु भी बनती रही है। समाज में उसका स्थान एक शून्य मात्र था, जिसे सामाजिक विडंबनाओं, प्रथाओं, पाखंडों और जातिगत भावनाओं के आधार पर अपराध और उपचार के बीच रखकर सदुपयोग और दुरुपयोग किया जाता रहा है ।
जब  विदेशी आक्रामकों से भारत देश को संवैधानिक आजादी मिली तो भारतीय संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष एवं संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर जी ने संविधान के द्वारा समाज में सम्मान से जीने का अधिकार दिया और तब से नारी मन साँस की राहत लेने लगी ।
अगर भारतीय संविधान के अंतर्गत नारी के  अधिकारों की बात की जाए तो सबसे पहले उसे अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता का अधिकार दिया गया है,  15 (3) में स्त्री के लिए विशेष उपबंध की बात की गई है । अनुच्छेद 16 के माध्यम से लोक सेवाओं में जाने का अवसर प्रदान किया गया है । अनुच्छेद 19 में स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है ।धारा 23 और 24 में उसके  विरुद्ध किए जाने वाले शोषण को समाप्त करने का उल्लेख किया गया है । 
धारा 39 के द्वारा जीविका और समान वेतन का प्रावधान किया गया है । संविधान के भाग चार के अनुच्छेद 51 क(ड.)में स्त्री विरोधी प्रथाओं के त्याग एवं उसके सम्मान को दर्शाया गया है । धारा 243 के द्वारा  पंचायती चुनावों में 1/3स्थान सुरक्षित किया गया है । 292 से लेकर 294 तक विशिष्टता एवं सदाचार का प्रावधान है । 312-318 तक गर्भपात के विरुद्ध दंड का उल्लेख है तो 325 में निर्वाचक नियमावली में पुरुष के समान अधिकार दिया गया है ।
भारतीय दंड संहिता के तहत सीआरपीसी नियम 125, 127 में  दहेज उत्पीड़न , वसूली की बात की गई है तो 498 के तहत भरण पोषण बढ़ाने आदि की बात की गई है। इस तरह भारत के संविधान में अनेक अधिकार दिए गए हैं, जिनके कारण नारी आज के सामाजिक परिवेश में अपना स्थान सुरक्षित करने में काफी हद तक सफल हुई है । घर-गृहस्थी, ज़मीन-जायदाद , राजनीति, समाजसेवा, धर्म, संस्कृति, पूजा-अर्चन , अर्थ, व्यापार , विज्ञान, तकनीक, शिक्षा, आदि सभी में अग्रणी हुई है । अतएव प्राचीन सभ्यता से लेकर आधुनिक सभ्यता तक जीवन के  अनेक उतार-चढ़ाओं को झेलते हुए अपने अधिकारों को हासिल की है, जिसके कारण उसे अंतिम उपनिवेश की संज्ञा दी गई है । अंत में उसके अनेक रूपों और रिश्तों पर विचार किया जाए तो यही बात स्पष्ट होती है कि संवैधानिक अधिकारों के बावजूद भी प्रत्येक छः मिनट में नारी किसी न किसी अपराध का शिकार होती है जिसे तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित करने की पहल करनी चाहिए । स्वयं नारी वर्ग को भी घरेलू हिंसा और सामाजिक बुराइयों आदि से बचने    के लिए अपने अधिकारों को जानने और समझने की जरूरत है, तभी संवैधानिक अधिकारों को पूरी तरह अमल में लाया जा सकता है ।

✍️ लेखक- रामप्रीत आनंद (एम.जे.)
गोरखपुर उत्तर प्रदेश ।

अंतर्मन की वेदना - (पद्य)

निज अंतर्मन की व्यथा-कथा,
हर जन से तुम क्यों कहते हो।
देकर   अपने  मन  की   बातें,
उपहास   का  मौका देते   हो।
परिवर्तित  युग  अब   ऐसा है,
दुःख-दर्द   न   कोई बाँटता है।
ऐसे   में  दिल के   कष्टों    को,
सब  जन को  क्यों  सुनाते हो।।
माना कि दिल में कष्ट बहुत,
हर तरफ से पीड़ा पहुँची है।
दुःख  में न कोई साथ दिया,
तुमको  रोना ही आया   है।
दुःख से बोझिल तेरे मन को,
मदद भी कहीं से नहीं मिली।
फिर भी तेरा जीवन  अपना,
तूँने   क्यों  इसे   रुलाया  है।।
सच्चे हो पथिक यदि जीवन के,
तो  जीवन  से अति प्रेम   करो।
निज  अंतर्मन  की  वेदना  को,
हर  किसी से न  इज़हार  करो।
हो आत्मबली दुःख को  झेलो,
सुख  के   दिन  इसके पीछे हैं।
दुःख झेल लिए  सुख पाओगे,
इस दुःख का तुम सम्मान करो।।
अच्छे  दिन  के  सब    साथी हैं,
अच्छे   के   परं    प्रशंसक    हैं।
अच्छे  पर   होते   मित्र     बहुत,
बुरे     वक्त  कहाँ   होते        हैं।
दुःख  की   बदली  जैसे    छायी,
शुभ चिंतक भी  सब  छोड़ दिये।
अपनी   लठिया  खुद ही पकड़ो,
इसको   ही   जीवन   कहते  हैं।।
अंतर्मन की वेदना, रखो  खुद  के पास।
इसी वेदना पर तुम्हें, रचना है  इतिहास।
बाँटा जो भी है इसे,हुआ बहुत शर्मिन्दा।
अंतर्मन लेकर बढ़ा, हुआ वही ही खास।।

✍️ सुरेश लाल श्रीवास्तव
     प्रधानाचार्य
राजकीय विद्यालय अम्बेडकरनगर
उत्तर प्रदेश,9415789969

सच सजा है.

सच सजा है, झूठा झुका सकता नहीं!
फरेब से फरियाद किया नहीं जाता !!
कठोर वाणी व्यक्त विचार का घेरा!
या फरक दीप तले भले होअंधेरा!!
जलती वाती जग स्वत: प्रकाश मिले!
जितनी जिनकी बनी प्रीति, प्राण खुले!!
बना जोंक-सा मानुष -मुर्ख पला जो!
मरा सबके -सब बिना वाती दीया वो!! 
जिनके वाती जले नहीं दीया में  !
चाहे कौन रहना उस अंधेरे में  !!
अपना समझकर साझा करता जीवन!
कब किसी का मोहताज रहा है रोशन!!
कौन किसे क्या कहता, सुनता भला ना!
बिना नीति-रीति राही पथ पग चले ना!!
गाँव -समाज कोई पूत मिले नारद!
गंवार" सुनील "को मानव का दे वरद!!

✍️ सुनील "सुगम"

ग़ज़ल--
1212-1122-1212-22

तुम्हारे शहर का मंज़र बड़ा सुहाना है
हमें भी दोस्त यहाँ आशियां बनाना है
क़दम के रखते ही अहसास हो गया हमको
तुम्हारे दम से ही रौशन ग़रीबख़ाना है
इशारा दे दिया उसने ये बातों बातों में
सवेरे शाम यहाँ रोज़ मिलने आना है
अँधेरे में भी उजाला मिले मुसाफिर को
हमें चराग़ मुढेंरों पे भी जलाना है
महकने ख़ुद ही लगेगी चमन सी यह बस्ती
कि एक दूजे के दुख को  फ़कत बँटाना है
हमारे ज़िक्र पे ख़ूश होगी कल यही दुनिया
भले खिलाफ हमारे अभी ज़माना है
तुम्हारे साथ से महसूस हो रहा * साग़र*
तमाम उम्र हमें अब तो मुस्कुराना है

✍️ विनय साग़र जायसवाल ,बरेली
14/7/2021

कविता का शीर्षक है
    नारी-

भारतीय नारी के
पश्चिमी परिधान में
बहुत बेहतरीन ,
लाजवाब और
खूबसूरत लगते हैं
सूरजमुखी की तरह
नैनों में झलकती हैं
नारी घर आंगन की
शोभा बढ़ाते है
नारी किसी की
मां-बेटी-बहन तो
किसी की बहू का
रिश्ता निभाते हैं
काबिले तारीफ है
मैं कितना भी कहूं
मेरे होठों के लब्ज
कम पड़ जायेंगे
भारतीय नारी के
पश्चिमी परिधान से
इस कदर प्यार की
बारिश हो जाए तो
जल-थल हो जाऊं
तुम घटा बनकर
चले आओ तो
मैं बादल हो जाऊं
भारतीय नारी के
सोलह सिंगार और
हर पहनावे से झलकती है
सुंदरता की एक चिंगारी
चमकते हुए मोती की तरह
लगते हैं सचमुच
एक भारतीय नारी

✍️ नरेश कुमार बेसरा

दहशत कि भेट मानवता ✍️ साधना सिंह

रोज की तरह सुबह आँख खुली, मैं उठते ही मुँह ही रही थी..।कि तभी आवाज सुनाई दी,चाची जी की ,....लतिका   लतिका ...मैं मुंह धोते हुए  ,मैंने सोचा इतनी सुबह सुबह तो चाची जी उठती नहीं है ..।फिर क्यों आवाज दे रही है...क्या हुआ होगा..।मैं दौड़ती भागती हुई उनके पास पहुंची ....जैसे ही उनके पास पहुंची  तो देखा कि वह गहरी गहरी सांसें ले रही हैं ....। उनकी सांस बहुत तेजी से फूल रही थी ..। मुझे यह देखकर एकदम से घबराहट होने लगी। चाची  जी मुझसे बोलने लगी कि लतिका मुझे बहुत  तकलीफ हो रही हैं..सांस लेने में...।मैंने सचिन को तेज तेज आवाज देने लगी सचिन  जल्दी आओ देखो चाची जी को क्या हो गया...। सचिन सो रहे थे मेरी आवाज  सुनकर वह भी घबरा गए... ।  दौड़ते   हए आये चाची जी को देखकर सचिन सोचने लगा  .।अब क्या करूं, इतनी सुबह कौन डॉक्टर मिलेगा..।  ऊपर से कॅरोना कि दहशत...वह चाची  को पेट के बल लिटा कर जोर जोर से सांस लेने को बोलने लगा... थोड़ी सी चाची नॉर्मल हुई तो वह बोला कि मैं देखता हूं कोई डॉक्टर मिल जाए शायद..। हमारे -बगल  में एक डॉक्टर रहते थे  .। सचिन ने उनको फोन मिलाया..और उनसे बात हुई और उन्होंने बोला मैं अभी आता हूँ डॉ अमित  बहुत भले  आदमी थे..। मोहल्ले में कोई भी बुलाता वो आ जाते थे ...।थोड़ी ही देर में वो घर पर आ पहुंचे ,जब वह पहुंचे तो चाची जी खत्म हो चुकी थी...।  सचिन रोने लगे .।. डॉ अमित ने उन्हें संन्तावना देके चले गए...।  अब इस कॅरोना काल में घर में सिर्फ दो मेंबर  और  बच्चे क्या करते...।  सचिन चिल्ला चिल्ला कर रोने लगे...।चाची जी ने बचपन से सचिन को पाला था...। मेरा दिल भी फटा जा रहा था..। पर हमारा रोना सुनकर भी कोई अगल-बगल से ना  आया...। मैं थोड़ा नॉर्मल हुई...। सचिन अभी भी रो रहे थे..। मैंने अपनी ऑफिस की फ्रेंड  को फोन किया । सूची....चाची जी खत्म हो गई है....मेरी फ्रेंड सूची थोड़ी सी चुप रहने के बाद उसने कहा अरे यह कैसे कब हुआ....?   मैंने उसे बताया सारी  स्थिति, अगल बगल से भी कोई आने को तैयार नहीं है...।और  बोलते बोलते मैं फिर रोने लगी..। उसने कहा चुप रहो यह सब तो आजकल आम बात होती जा रही है रोते हुए मैंने बोला मैं बहुत अकेली हो गई हूं  सूची...बोली   अच्छा ठीक है मैं अभी आती हूं तुम परेशान ना हो और वह  थोड़ी देर में मेरे पास आ गयी..। चाची  जी को देखकर वह भी रोने लगी थोड़ी देर बाद वह नॉर्मल हुई...और उसने हम लोगों को चुप कराया..। और  अपने घर से चाय मंगायी...। और  वापस घर चली गई मेरे हस्बैंड सचिन इधर-उधर फोन करने लगे...। ना कोई आने के लिए तैयार ना कोई रिश्तेदार आने के लिए तैयार...। बहुत देर तक हम हस्बैंड वाइफ अकेले बैठे रहे सोचते रहे .  और रोते रहे...। .. अब क्या होगा? कैसे करें तभी थोड़ी देर बाद  फिर सूची आई बच्चों के लिए चाय ब्रेड लेकर उसने कहा भैया आप ज्यादा मत सोचिए गांव पर फोन करिए ...। और  चाची जी को लेकर वहां ले जाइए... सूची कि सलाह हम सबको ठीक लगी...।जैसे तैसे किसी तरह से इन्होंने मन बनाया कि अब मैं गांव  लेकर ही जाऊंगा और गांव पर फोन किया वहां घर के बगल के चाचा जी ने से बोले चाचा जी,..... चाची नहीं रही.। चाचा जी के मुंह से निकला ओह.....बेटा.।  थोड़ी देर चुप रहकर चाचा जी बोले बेटा परेशान ना हो...। तुम उनको लेकर यहां लेकर आ जाओ यहां सब चीज मैं करवा दूंगा...और वह इंतजाम करने लगे....।यहां किसी तरह से हम लोगों ने उनको नीचे उतारा और कार डाला और सीधे लेकर गांव पहुंचे  ....। सबने चाची जी का काम  करवाया...।वहां सब कुछ आसानी से हुआ और हम लोगों ने शव दाह संस्कार करने के बाद अपने घर पर वापस आ गए ...।मैं अब सोचने लगी गाड़ी में बैठे बैठे क्या   कॅरोना कि दहशत मानवता पर भारी  पड़ गई ..। मानवता धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है...। करोना काल में आदमी ऐसे   भी किसी के घर नहीं जाता...।कम से कम मरने में तो  उसके साथ खड़े होजाये ..।अकेला आदमी क्या करेगा......।बहुत बुरे दिन आ गए हैं...। पहले जहां मरने में अगल बगल के लोग इक्क्ठा  हो  जाते थे,  रोना सुनकर..। वहां अब कोई भी  ना आने के लिए तैयार हैं...। कॅरोना काल में ......। क्या यही अंत समय  हैं,क्या यही इंसानियत है..।इंसानों की इंसानियत खत्म हो चुकी है.। करोना की बलि चढ़ गई है मानवता और संस्कृति हमारी, इंसानियत मर चुकी है...। आगे भगवान ही जाने क्या होगा ...,। कब घर आ गया, पता ही नही चला...हम लोग घर पर आकर चाची जी को याद करने लगे..। दूसरे का आंसू पूछते हुए 😭  

✍️ साधना सिंह

नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅
कविता -  कुछ न कठिन है -

कुछ न कठिन है ,
आज मेहनत कर लो
कल अच्छे दिन है ।
कर्म में सब लीन है ,
कोई न अमीर और कोई
न दीन है ।।

✍️  रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(60)
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
17/07/2021 ,  शनिवार
, Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 67
Sahitya Ek Nazar
17 July 2021 ,  Saturday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
विश्‍व साहित्य संस्थान / साहित्य एक नज़र 🌅
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
# कल वाला कविता :- 20(59) में , शुक्रवार के जगह गुरुवार गलती से कर दिए 16/07/2021




साहित्य एक नज़र 🌅


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