साहित्य एक नज़र 🌅 अंक - 60 , शुक्रवार , 09/07/2021 ,

साहित्य एक नज़र

अंक - 60
जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
मो - 6290640716
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मात्र - 15 रुपये

जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका

अंक - 60
9 जुलाई  2021
शुक्रवार
आषाढ़ कृष्ण 15 संवत 2078
पृष्ठ -  1
प्रमाण - पत्र - 6
कुल पृष्ठ -  7

रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
साहित्य एक नज़र  , मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक पत्रिका ( मासिक ) - मंगलवार
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

सहयोगी रचनाकार  -

1.  आ. सीमा रंगा जी , हरियाणा , भारत
2.  आ. रोशन कुमार झा
3. आ.  आनंद पांडेय जी ,  बलिया उत्तर प्रदेश
4. आ. शिवाँग मिश्रा राजू जी ,  बाराबंकी उत्तर प्रदेश
5. आ. रेखा शाह आरबी जी , बलिया उत्तर प्रदेश
6. आ. विनय साग़र जायसवाल जी, बरेली
7.आ. अर्चना जोशी जी , भोपाल मध्यप्रदेश
8. आ. रंजना बिनानी "काव्या" जी ,गोलाघाट , असम

🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
122. आ. सीमा रंगा जी , हरियाणा , भारत

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रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
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आपका अपना
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो :- 6290640716
अंक - 60 ,  शुक्रवार
09/07/2021

साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 60
Sahitya Ek Nazar
09 July ,  2021 ,  Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

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रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र  🌅 ,
Sahitya Ek Nazar , Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

आ. ज्योति झा जी
     संपादिका
साहित्य एक नज़र 🌅 मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक - मासिक पत्रिका

आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम "  जी
          संपादिका
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने
वाली दैनिक पत्रिका का इकाई





कविता :- 20(46) , शनिवार , 03/07/2021 , अंक - 54

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2046-03072021-54.html

http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/59-08072021-3.html

अंक - 55
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/55-04072021.html

कविता :- 20(47) ,
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2047-04072021-55.html

अंक - 56
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/56-05072021.html

कविता :- 20(48)

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2048-05072021-56.html

अंक - 57
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/57-06072021.html

कविता :- 20(49)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2049-06072021-57.html

अंक - 58
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/58-06072021.html

कविता :- 20(50)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2050-07072021-58.html

साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 59

http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/59-08072021-3.html

विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी साप्ताहिक पत्रिका
अंक -3
http://vishshahity20.blogspot.com/2021/07/59-08072021-3.html

अंक - 2
http://vishshahity20.blogspot.com/2021/06/52-2-01072021.html

कविता :- 20(51)

http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2051-08072021-59-3.html

कविता :- 20(52)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2052-0972021-60.html

अंक - 60
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अंक - 61

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कविता :- 20(53)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2053-10072021-61.html

अंक - 61
http://vishnews2.blogspot.com/2021/06/53-02072021.html

कविता :- 20(45)
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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 1
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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 2

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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 3

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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 4
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अंक - 57

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विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी , अंक - 3
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अंक - 59
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साहित्य एक नज़र , अंक - 59 , गुरुवार , 08/07/2021 , विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी, अंक - 3

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कुल पृष्ठ - 14
पृष्ठ - 1
08 जुलाई 2021 , गुरुवार ,
आषाढ़ कृष्ण 14 संवत 2078











मेरी बीमारी

मेरी बीमारी तुम्हारी
बेचैनी सब कुछ कह गई
चाहे तुम कुछ कहो या ना
कहो आंखों की नमी, दिल की
तड़प ने जगती रातों में,
धड़कते दिल ने उस भूखे इंसान
की भूख ने सब कुछ बयां कर दिया
मेरी बीमारी तुम्हारी
बेचैनी सब कुछ कह गई
भीगती वर्षा में गीले कपड़ों ने
उस दर्द भरी आंखो के अश्रु ने
उस तड़प ने,उस चुभन ने
पल -पल निहारती आँखों
ने सब बयां कर दिया
मेरी बीमारी तुम्हारी
बेचैनी सब कुछ कह गई
उस मेरे चिखते- चिल्लाते
दर्द ने आपकी बेचैन आँखों
की कड़क भोहों ने
सब कुछ बयां कर दिया उस दिन
अश्रु धरती पर गिरे मेरे दुख में
मेरी बीमारी तुम्हारी
बेचैनी सब कुछ कह गई
उस छोड़कर चले जाने के डर ने
उस अकेलेपन ने, उस मजबूरी
ने तन्हाई के छोने ने
,उन दर्द भरी चीख ने
  समीप आकर बार-बार
दर्द को बांटने ने
मेरी बीमारी तुम्हारी बेचैनी सब
कुछ कह गई उन दर्द भरी
आंखों से निहारने ने सारी रिपोटो
को बार- बार देखना ने  न कोई
बीमारी होने पर खुशी जाहिर करना
छुट्टी वाले पल ने, उस कड़क कमांडो की
नरमी ने सब कुछ कह दिया
मेरी बीमारी तुम्हारी बेचैनी
सब कुछ कह गई

✍️ सीमा रंगा
हरियाणा , भारत

स्वरचित मौलिक रचना

कविता :- 20(52)
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र
कविता - महादेव भरते जेब

देवों के देव
प्रभु महादेव ,
वही भरते
दुनिया का जेब ।
भोलेनाथ का हम पर
दया हो आशीर्वाद हो ।
हमारी मंजिल
आँधी तूफ़ान के बाद हो ।।
हम अपना
कर्म करूँ , हमें न किसी
से वाद विवाद हो ,
भोलेनाथ का पुजारी
घबड़ाऊँ क्यों ?
सुख - दुख तो साथी
इससे न हम आज़ाद हो ।
देवों के देव प्रभु महादेव ,
उन्हीं पर तो भरा है
दुनिया का जेब ।।

✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(52)
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
09/07/2021 , शुक्रवार
✍️ रोशन कुमार झा
, Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 60
Sahitya Ek Nazar
09 July 2021 ,  Thursday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
विश्‍व साहित्य संस्थान / साहित्य एक नज़र 🌅
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर


बेकार नहीं हैं हम
हमको भी ईश्वर ने
अपने हाथों से बनाया है।
अपने हाथों से मेरा
सुंदर रूप सजाया है।।
मत कोस हमें तु बार-
बार शिकार नहीं हैं हम।
बेकार नहीं हैं हम,
बेकार नहीं हैं हम।।
मुश्किल घड़ियों में
साथ तुम्हारा देंगे हम।
हंस-हंस के सह लेंगे
तेरे ढ़ाये वो सितम।।
तु कह ले तेरे ममता
के हकदार नहीं हैं हम।
बेकार नहीं हैं हम,
बेकार नहीं हैं हम।।
किश्मत की लकीरों
को हम भी खूद बदलेंगे।
दे छोड़ भले तु तनहा
कुछ तो कर हीं लेंगे।।
जो डूबो दे मंझदार में
वो पतवार नहीं हैं हम।
बेकार नहीं हैं हम,
बेकार नहीं हैं हम।।
जो करते हैं वो
करने दो मत रोको अब।
मेरे भी साथ खड़ा है
जो तेरा है रब।।
अरमानों की इस बगिया के
गुलजार तो हीं हैं हम।
बेकार नहीं हैं हम,
बेकार नहीं हैं हम।।
आनंद की आँखों में
भी देखो पानी है।
दुःख सुख को हमने भी
नजदीक से जानी है।।
ये आता जाता रहता है
बीमार नहीं हैं हम।
बेकार नहीं हैं हम,
बेकार नहीं हैं हम।।

   गीतकार
   ✍️ आनंद पांडेय
बलिया उत्तर प्रदेश
  मो. 9454261955/
9721106924

🌧 मेघ 🌧

ऐ मेघ है तुम्हे प्रणाम
कर रही धरती ।
कर दो दया अब प्यास से
व्याकुल बङी धरती ॥
उसका कुटुम्ब जल
रहा है नीर के बिना ।
अब हो नही सकता
कुछ तेरी दया बिना ॥
तुम आते हो दिख जाते हो
खिल जाता उसका मन ।
जब खाली ही चले जाते हो
दुखता है उसका मन ॥
निज प्यार के कुछ बूँद
अब गिरा दो इस धरा ।
शरीर और मन सहित
तृप्त हो धरा ॥
साथ मे राजू भी यही
कर रहा अरदास ।
अब हो मेहरबान तुम
बुझा दो सबकी प्यास ॥

✍🏻 शिवाँग मिश्रा राजू
     बाराबंकी उत्तर प्रदेश
        8960272788

  सच् एक विकार है ##

व्यंग कविता -
सच् एक विकार है

सच की कीमत हमेशा
चुकानी पड़ती है
यह कलयुग है यहां
झूठ की जय चलती है
सच के पीछे कभी भी ना
बिल्कुल भी भागिए
झूठ की महिमा को
समझिए और जागिए
सत्य वचन दुर्गत कराएं
स्वजन को दुश्मन बनाएं
झूठ का साम्राज्य अपार
भर भर कर मिलता है प्यार
झूठ बोलकर होता संभव
मूर्ख बन जाता  मिनिस्टर
सच झूठ के खेल से ही
घर चलाता है बैरिस्टर
सच से दुश्मनी एकसार है
झूठ से सबको प्यार है
सच्चाई एक विकार है
झूठ से पटा तो अखबार है
अगर गलती से कभी
सत्य वचन को बोला
कीचड़ से भर देंगी दुनिया
आपका मुखड़ा भोला
झूठ की जय जय कार हो
चाहे कोई सरकार हो
एक बार नहीं जय उसकी
हजारों लाखों बार हो

✍️ रेखा शाह आरबी 
जिला बलिया उत्तर प्रदेश

गीत---

तेरे अंतस की प्यास बुझाने आया हूँ ।
अपने हाथो जयमाल बना कर लाया हूँ ।।
दीप जलाकर घर में कर लो तुम उजियारा
बन्दनवारों से आज सजाओ घर-द्वारा
अपने स्वागत में तत्पर है यह जग सारा
कंचन सपनों का सार लुटाने से पहले
पाकर बाँहों में सकल सृष्टि इतराया हूँ।।
अपने हाथों ----
लेकर थाली में आ जाओ रोली चावल
चूड़ी बिंदी झुमका गजरा लाली काजल
रस घोल रही हो कानो में छमछम पायल
भर दूँ सिंदूर कणों से तेरी माँग अभी
बर्षों में जाकर आज कहीं मुस्काया हूँ।।
अपने हाथो---
मादक झोंको से झूम रही है अमराई
चंदा तारों ने सुधा-सिंधु भी बरसाई
अब द्वार तुम्हारे गूँज रही है शहनाई
यह अग्नि कुण्ड भी देता है वरदान हमें
तेरी साधो को सच आखिर कर पाया हूँ ।।
अपने हाथो---
रजनीगंधा के सुमन यहाँ खिल जायेंगे
सब रिश्तों में हम मधुर गंध बरसायेंगे
सारे जग में हम प्रणय गीत मिल गायेंगे
तुम वीणा की झंकार सुनाओ तो *साग़र*
मैं मिलन पर्व की बेला में भरमाया हूँ ।।
अपने हाथो जयमाल बनाकर लाया हूँ।
तेरे अंतस की प्यास बुझाने आया हूँ ।।

✍️ विनय साग़र जायसवाल
बरेली
अंतस-हदय ,दिल

बस रहा शीतल मन्द समीर
बन  नन्हा  बालक ,
मैंने पूछा तो कह रहा
, धूम आया जग सारा
नहा आया , नदी , समुन्दर,
झरना , गिरती जलधारा
अब क्या बाकी रहा ,
तो जिद कर बैठा
अभी तो और भिगूंगा
,बारीश की बूंदों से
खेलूंगा , छोटे छोटे पोखर
में कागज की नाव खैना है,
‌बचपन सब  खो गया , 
मुझे तो अभी न टोक
न रोक बस जीवन है ,जीने दे
बचपन को  बस बचपन रहने दें
,मैं मौन  हो गई निशब्द सी ,
शायद मंद समीर सही कह रहा था ,
बचपन तो जैसे बस गुम हो रहा था
मैं कुछ भी न कह पाई पवन उड़ गया
बादलों पे सवार हो ,
आँखों से ओझल हो गया

✍️ अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश


#विषय-बरखा
#विधा-

कविता - बरखा 🌧️🌦️

बरखा का मौसम, होता है खास,
मानसून आता है ,लाता उल्लास।
बरखा रानी ,रिमझिम बरसती,
बुझ जाती ,धरती की प्यास..।
जेठ मास की ,तपती गर्मी से ,
मिल जाता ,सब को निजात..।
आषाढ़ मास के, आते ही....,
बादलों की गड़गड़ाहट
, सुनती है खास।
उमड़ घुमड़ कर बरखा बरसे,
मन मयूर उढ़ता है नाच,
तन मन हर्षित हो उठता
,वर्षा की बूंदे सिहराती आज।
नदी नाले पानी से,
लबालब भर जाते,
चंहुऔर हरियाली
,दिखती है,खास....।
बरखा के मौसम में
,मोर की पिऊ -पिऊ
आवाजें सुनती है खास,
मेंढक की टर्र-टर्र भी सुनती
,झूम झूम कर कोयल गाती।
मानसून  के आते ही,
मन में खुशियां छा जाती है खास,
धरा भी हंसती मुस्कुराती,
लगता ज्यूं सुंदर गीत है गाती आज।
वर्षा ऋतु के आते ही
,मन प्रफुल्लित हो जाता ,
मन में भर जाता उल्लास,
इंद्रधनुषी छटा मन को मोहती,
कजरी के गीत सुनाई देते खास,
सावन के आते ही ,झूले पड़ जाते ,
तीज की धूम मच जाती ,
छम छमा छम बदरा बरसे, आसमान
में चमकती बिजुरिया आज।

✍️ रंजना बिनानी " काव्या "
गोलाघाट असम






साहित्य एक नज़र


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