साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 75 , 24/07/2021 , शनिवार
अंक - 75
जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
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अंक - 75
24 जुलाई 2021
शनिवार
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा
संवत 2078
पृष्ठ - 1
प्रमाण - पत्र - 5
कुल पृष्ठ - 6
सहयोगी रचनाकार व साहित्य समाचार -
1. आ. साहित्य एक नज़र 🌅
2. आ. महाकाल काव्य वृष्टि ( संपादिका - ज्योति सिन्हा जी )
3. आ. रोशन कुमार झा
4. आ. भीम कुमार जी
गांवा, गिरिडीह, झारखंड
5. आ. ज्योति सिन्हा जी , मुजफ्फरपुर बिहार
6. आ. अशोक कुमार गोंंड जी
7.आ. सुनील कुमार सिंह "सुगम" जी
खगड़िया ( बिहार )
8. आ. सुधीर श्रीवास्तव जी
गोण्डा, उ.प्र.,भारत
🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
137. आ. अशोक कुमार गोंड , जी ,अंक - 75 , शनिवार , 24/07/2021
अंक - 62 से 67
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अंक - 70 , 71 , 72 , 73 , 74 , 75
के लिए रचनाएं व अन्य कलाओं सादर आमंत्रित -
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हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏💐
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
साहित्य एक नज़र , मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक पत्रिका ( मासिक ) - मंगलवार
विश्व साहित्य संस्थान वाणी - गुरुवार
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 75
Sahitya Ek Nazar
24 July , 2021 , Saturday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्व साहित्य संस्थान वाणी
सम्मान पत्र - 1 - 80
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रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र 🌅 ,
Sahitya Ek Nazar , Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्व साहित्य संस्थान वाणी
आ. ज्योति झा जी
संपादिका
साहित्य एक नज़र 🌅 मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक - मासिक पत्रिका
आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम " जी
संपादिका
विश्व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने
वाली दैनिक पत्रिका का इकाई
कविता :- 20(57)
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अंक - 66
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कविता :- 20(58)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2058-15072021-66.html
अंक - 67
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कविता :- 20(59)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2059-16072021-67.html
अंक - 68
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/68-17072021.html
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कविता :- 20(60)
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अंक - 69
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कविता :- 20(61)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2061-18072021-69.html
कविता :- 20(62)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2062-20072021-71.html
अंक - 70
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कविता :- 20(63)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2063-20072021-71.html
अंक - 71
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अंक - 72
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कविता :- 20(64)
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कविता :- 20(65)
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अंक - 73
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अंक - 74
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कविता :- 20(67)
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अंक - 75
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कविता :- 20(68)
http://roshanjha9997.blogspot.com/2021/07/2068-25072021-76.html
अंक - 76
http://vishnews2.blogspot.com/2021/07/76-25072021.html
मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 1
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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 2
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/2.html
मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 3
http://vishnews2.blogspot.com/2021/05/3-2000-18052021-8.html
मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 4
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सम्मान पत्र
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विश्व साहित्य संस्थान वाणी , अंक - 3
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अंक - 59
Thanks you
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जय माँ सरस्वती
अंक - 70 , 71 , 72 , 73 , 74 , 75
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सोमवार से शनिवार तक
16 - 20 पंक्ति से अधिक रचनाएं व बिना मतलब के स्पेस ( अंतराल ) वाली रचनाओं को स्वीकृति नहीं किया जायेगा ।
शब्द सीमा - 300 - 350
सूचना - साहित्य एक नज़र 🌅 पत्रिका में प्रकाशित करवाने हेतु सहयोग राशि -
एक रचना 16 - 20 पंक्ति अन्य विधा शब्द सीमा - 300 - 350 - 15 रुपये
एक महीना में दस अंक में दस रचनाएं
प्रकाशित करवाये मात्र - 120 रुपये में
आप किसी को जन्मदिन की शुभकामनाएं भी पत्रिका के माध्यम से दे सकते है ।
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आपका अपना -
✍️ रोशन कुमार झा
मो - 6290640716
संपादक / संस्थापक
साहित्य एक नज़र 🌅
मधुबनी इकाई - মিথি LITERATURE ,
मिथि लिट्रेचर साप्ताहिक - मासिक पत्रिका ( मंगलवार ),
विश्व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका - मासिक पत्रिका )
अंक - 62 से 67
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खुशखबरी ! खुशखबरी ! खुशखबरी
🌅 साहित्य एक नज़र 🌅
( कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका )
की प्रस्तुति
महाकाल काव्य वृष्टि
संपादिका - ज्योति सिन्हा
महाकाल काव्य वृष्टि संग्रह में आपकी रचनाएं सादर आमंत्रित है ।
भोलेनाथ पर लिखी हुई आप अपनी दो रचनाएं एक फोटो भेजें ।
पद्य 16 - 20 पंक्ति व गद्य विधा ( 250 - 300 शब्दों में होनी चाहिए )
इस काव्य संग्रह में सम्मिलित होने के लिए 55 रुपये का सहयोग करना होगा ।
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JYOTI SINHA ,
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महाकाल काव्य वृष्टि संग्रह में सम्मिलित सभी सम्मानित साहित्यकारों को " काव्य नीलकण्ठ सम्मान " से सम्मानित किया जाएगा ।
रचना भेजने का अंतिम तिथि - 29 जुलाई 2021
प्रकाशित होने की दिनांक - 2 अगस्त 2021 , सोमवार
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अंक - 1
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अजय नाथ शास्त्री
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बिहार
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**
गुरु की गरिमा धूमिल क्यों -
गुरुवर धन्य हैं आप
आप हैं इतने महान
माता-पिता ने जन्म दिया
दिया आपने जीवन का ज्ञान।
प्राचीन काल में महत्ता थी
इन गुरुओं की
वशिष्ठ, विश्वामित्र, सांदीपनी
सहित द्रोण की।
गुरकुल में होती थी पढ़ाई
और उपदेश शिक्षा की
पालन करते आज्ञा शिष्य
अपने गुरुवर का,
मान रखते उनकी इच्छा की।
आधुनिक समय में बदल गई
कार्यशैली और परिभाषा शिक्षा की
बाल केंद्रित बनी है नीति
खेल के साथ पढ़ाई और
आनंददायी शिक्षा की।
पूछता हूं मैं आज स्वयं से
सम्मान का प्रतीक रहा जो
सदियों से
क्यों नजरिया बदल रहे लोग
विद्वेष क्यों शिक्षक के नाम से।
बात आखिर वो नहीं है
है घट रहा क्यों सम्मान उनका ?
याद करो उस महाभारत काल को
एक शिष्य को प्रिय बनाया
दूसरे को अस्वीकार क्यों ?
कटा अंगूठा एकलव्य का
कर्ण को दुत्कार क्यों ?
समता का पाठ पढ़ाया जिसने
फिर अंतर विभेद क्यों ?
जग में था सम्मान गुरु का
अब रहा वो मान कहां ?
चंद्रगुप्त था प्रिय शिष्य
चाणक्य का
उस मगध का अब ज्ञान कहां ?
विक्रमशिला, बल्लभी, तक्षशिला
उस खंडहर नालंदा का ज्ञान कहां ?
घर-घर पूजे जाते थे गुरु
रही उसकी पहचान कहां ?
धूमिल हुई है शिक्षक की गरिमा
विमुख हुए हैं शिक्षा से।
कभी जनगणना,मतगणना
कभी कराते पशुओं की गणना।
शिशु गणना हो या प्रवासी गणना,
राशन कार्डधारी की करते गणना।
कभी विद्यालय की साफ-सफाई
शौचालय को भी स्वच्छ हैं रखते।
बावर्ची बन भोजन बनवाते
अंडा,फल भी खूब खिलाते।
आते-जाते समय बीतता
रिपोर्टिंग भी खूब बनाते।
कर्तव्य हम अपना भूल गए
आरोप अन्य पर क्यों हैं मढ़ते।
आओ फिर से सजग हो हम
खोई स्मिता को वापस लाएं।
शिक्षक की महिमा जगजाहिर है
ऐसा कुछ हम कर दिखाएं।
पूज्य पद है गुरुवर का भीम
लोगों में फिर विश्वास जगाएं।
राष्ट्र निर्माता शिक्षक हैं हम
शिक्षा को हम फिर शीर्ष पर लाएं।
विश्व में अपने देश का मान बढ़ाएं
फिर से भारत को महान बनाएं।
✍️ भीम कुमार
गांवा, गिरिडीह, झारखंड
राजनीति के एलाने जंग में..
सभी अलग अलग होते हैं..
किन्तु सरकार निर्माण हेतु..
सबको एक होना पड़ता है !!
हाथ की पांचों अंगुलियां..
कभी भी बराबर नहीं होती ..
किन्तु खानपान करने हेतु...
उनको भी एक होना पड़ता है !!
✍️ अशोक कुमार गोंंड
....( साधक )
आज गुरु-पूर्णिमा है ! भारतीय संस्कृति में गुरू का पद देवताओं के समान रखा गया है। सैल्यूकस और सम्राट चन्द्रगुप्त के बीच हुए ऐतिहासिक युद्ध में ये दोनों राजा और इनकी सेनायें नहीं लड़ीं, उस रणभूमि में लड़े थे दो महान गुरुओं के अस्तित्व ! भारतीय युवा-गुरु, तक्षशिला-स्नातक चाणक्य और यूनान के कुल-गुरु, 'अरस्तू' के अस्तित्व के टकराव का परिणाम पूरे संसार के सामने था ! यहीं से पूरे पश्चिम के मन में भारतीय गुरु-परंपरा को लेकर एक अज्ञात भय व्याप्त हो गया ! मैकाले के मानस-पुत्रों ने भारत को जो भीषण कष्ट दिए हैं उन में से एक यह भी है कि उन्होंने हमारी पूरी शिक्षा-पद्धति से षड्यंत्र-पूर्वक 'गुरु' को हटा कर उस की जगह 'शिक्षक' को बिठा दिया ! जीवन में सर्वप्रथम अक्षर ज्ञान देने वाली माँ से लेकर आजतक जिन्होंने भी ज़रा भी कुछ सिखाया उन सब "गुरु-चरणों" में मेरा शीश सादर विनत है ! आज 'गुरु-पूर्णिमा' के अवसर पर, चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने, समय-असमय, आज तक के जीवन में प्रथम-गुरु 'माँ' से लेकर हर उस गुरु के चरणों में सादर-साष्टांग प्रणाम, जिन की कृपा से मनुष्यता की यात्रा सहज-सुगम हो सकी ! संसार के समस्त 'गुरुओं' के सतत् आशीष की अपेक्षा में ...
"तुम्हारे होने से किस-किस को आस क्या-क्या है ?
तुमहारी आम सी बातों में ख़ास क्या-क्या है,
आपने हम को सिखाया है अपने होने से,
भले वो कोई हो उसके पास क्या है.....
✍️ ज्योति सिन्हा
मुजफ्फरपुर बिहार
गुरु बिन ज्ञान
हमारे देश में गुरु शिष्य परंपरा की
नींव सदियों पूर्व से स्थापित है।
इस व्यवस्था के बिना
ज्ञान और ज्ञानार्जन की
हर व्यवस्था जैसे विस्थापित है।
माना कि हमनें विकास की सीढ़ियां
बहुत चढ़ ली है,
मगर एक भी सीढ़ी
हमें भी तो बता दो
जो गुरु के बिना गढ़ ली है।
भ्रम का शिकार या
घमंड में चूर मत हो,
धन,दौलत का गुरुर
अपने पास ही रखो,
आँखे फाड़कर जरा
अपने आसपास देखो।
कब,कहाँ और कैसे
तुमनें ज्ञान पाया है?
जिसमें गुरु का योगदान
जरा भी नहीं आया है।
जन्म से मृत्यु तक
वह समय कब आया है?
जब तुम्हारा खुद का ज्ञान
तुम्हारे अपने काम आया है।
जिस ज्ञान पर आज इतना
तुम इतराते हो,
ये ज्ञान भी भला तुम
क्या माँ के पेट से लाये हो?
कदम कदम पर
ये जो ज्ञान बघारते हो,
सोचो क्या ये ज्ञान भला
स्वयं से ही पाये हो।
प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष हमें जीवन में
हजारों गुरु मिलते हैं,
उनके दिए ज्ञान की बदौलत ही तो
हमारे एक एक दिन कटते हैं।
गुरु के बिना भला
ज्ञान कहाँ मिलता है?
गुरुज्ञान की बदौलत ही तो
हमारा जीवन चलता है।
✍️ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.,भारत
8115285921
©मौलिक, स्वरचित,
दुलारती
वो रात वो वरसात,
कीचरों का उपहास,
घर का टपकता सिर पर
वो धूआँ की कजली सनी ,
फूस से टपकती बरसाती
बूंदें भी खूब थी दुलारती ।
आज तो एक छत के नीचे
भी एक लकीर सी खींच दी गई है।
जीवन जीवन के ही बोझ से
सबकी दब सी गई है ।
रो रही जिंदगी सजा सी
सोच में खिची जा रही है ।
✍️ सुनील कुमार सिंह "सुगम"
साहित्य एक नज़र
खगड़िया ( बिहार )
24/07/021
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅
कविता - गुरुओं का योगदान ..
आज हमें जग से पहचान है ,
पहचान करवाने वाला
गुरुओं का ज्ञान है ।
गुरु का आत्मा महान है ,
तब जाकर हम जाकर
हम शिष्यों का मान - सम्मान है ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(67)
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
24/07/2021 , शनिवार
, Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 75
Sahitya Ek Nazar
24 July 2021 , Saturday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
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মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर