साहित्य एक नज़र 🌅 , अंक - 81 , शुक्रवार , 30/07/2021

साहित्य एक नज़र 🌅


अंक - 81
जय माँ सरस्वती
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
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अंक - 80 , 81 , 82 , 83 , 84 , 85 , 86
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अंक - 81
30 जुलाई  2021
शुक्रवार
श्रावण कृष्ण 7
संवत 2078
पृष्ठ -   1
प्रमाण - पत्र -  4
कुल पृष्ठ -  5

सहयोगी रचनाकार  व साहित्य समाचार -

1.  आ. साहित्य एक नज़र 🌅
2.  आ.  महाकाल काव्य वृष्टि ( संपादिका - ज्योति सिन्हा जी 
3. आ. मुंशी प्रेमचंद - आ. सुधीर श्रीवास्तव जी
4. आ.  सुनील कुमार सिंह "सुगम " जी
कैथी, खगड़िया , बिहार
5. आ.   आ. सपना मिश्रा "वर्णिका" जी ,
6. आ. डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल' जी
धामपुर उत्तर प्रदेश
7.आ. रोशन कुमार झा
8. आ.  बारिश की पानी पूर्व रेलवे व दक्षिण पूर्व रेलवे , हावड़ा स्टेशन के पटरियों पर ...


🏆 🌅 साहित्य एक नज़र रत्न 🌅 🏆
143. आ. सपना मिश्रा "वर्णिका" जी ,
अंक - 81 , 30/07/2021

अंक - 80 , 81 , 82 , 83 , 84 , 85 , 86
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अंक - 70 , 71 , 72 , 73 , 74 , 75
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सम्मान पत्र - 1 - 80
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सम्मान पत्र - 79 -
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फेसबुक - 1
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हार्दिक शुभकामनाएं सह बधाई 🙏💐
रोशन कुमार झा
संस्थापक / संपादक
मो - 6290640716
साहित्य एक नज़र  , मधुबनी इकाई
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
साप्ताहिक पत्रिका ( मासिक ) - मंगलवार
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी - गुरुवार
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 81
Sahitya Ek Nazar
30 July ,  2021 ,  Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

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रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक
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आ. ज्योति झा जी
     संपादिका
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साप्ताहिक - मासिक पत्रिका

आ. डॉ . पल्लवी कुमारी "पाम "  जी
          संपादिका
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका )
साहित्य एक नज़र 🌅
कोलकाता से प्रकाशित होने
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अंक - 70
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कविता :- 20(64)

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अंक - 74
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अंक - 77
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अंक - 82
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कविता :- 20(74)

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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 1
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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 2

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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 3

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मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, भाग - 4
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सम्मान पत्र
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सम्मान पत्र
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विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी , अंक - 3
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जय माँ सरस्वती
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सम्मान पत्र , प्रमाण पत्र संख्या - 146
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, 02/08/2021 सोमवार
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माँ सरस्वती, साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका मंच को नमन 🙏 करते हुए आप सभी सम्मानित साहित्य प्रेमियों को सादर प्रणाम 🙏💐।

साहित्य एक नज़र दैनिक पत्रिका में जिन - जिन रचनाकारों की पाँच रचनाएं प्रकाशित हुई हो और उन्हें साहित्य एक नज़र रत्न सम्मान से सम्मानित नहीं किया गया हो। वे अपना नाम व फोटो इस पोस्टर के कॉमेंट्स बॉक्स में प्रेषित करें ।। ताकि हर एक दिन एक एक रचनाकार को " साहित्य एक नज़र रत्न " सम्मान से सम्मानित किया जाएगा ।।

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रोशन कुमार झा
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दिनांक :- 29 जुलाई 2021 से 04 अगस्त 2021 तक
गुरुवार से बुधवार तक
16 - 20 पंक्ति से अधिक रचनाएं व बिना मतलब के स्पेस ( अंतराल ) वाली रचनाओं को स्वीकृति नहीं किया जायेगा ।
शब्द सीमा - 300 - 350
सूचना - साहित्य एक नज़र 🌅 पत्रिका में प्रकाशित करवाने हेतु सहयोग राशि -
एक रचना 16 - 20 पंक्ति अन्य विधा शब्द सीमा - ( 300 - 350 )  -  15 रुपये
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आप किसी को जन्मदिन की शुभकामनाएं भी पत्रिका के माध्यम से दे सकते है ।

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✍️ रोशन कुमार झा
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संपादक / संस्थापक
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मधुबनी इकाई - মিথি LITERATURE ,
मिथि लिट्रेचर साप्ताहिक - मासिक पत्रिका ( मंगलवार ),
विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी
( साप्ताहिक पत्रिका - मासिक पत्रिका )

अंक - 70 - 79

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अंक - 62 से 67
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रोशन कुमार झा
मो :- 6290640716
संस्थापक / संपादक
साहित्य एक नज़र  🌅 ,
Sahitya Ek Nazar , Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर / विश्‍व साहित्य संस्थान वाणी

कविता:- 20(73)
नमन 🙏 :- साहित्य एक नज़र 🌅
कविता :-  परीक्षा है ।

एक कोरोना
ऊपर से बारिश भी
लोगों को दिखा रहे है नीचा  ,
और इसमें ही हो रहें है परीक्षा ।
बिजली भी नहीं
ये कैसी है प्रभु की इच्छा ,
बड़े कठिन से प्राप्त होती है शिक्षा ।।

✍️  रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज,कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :- 6290640716, कविता :- 20(73)
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी , बिहार
30/07/2021 ,  शुक्रवार
, Roshan Kumar Jha ,
রোশন কুমার ঝা
साहित्य एक नज़र  🌅 , अंक - 81
Sahitya Ek Nazar
30 July 2021 ,  Friday
Kolkata , India
সাহিত্য এক নজর
विश्‍व साहित्य संस्थान / साहित्य एक नज़र 🌅
মিথি LITERATURE , मिथि लिट्रेचर
Part - 3 Exam
Roll no - 2117-61-0012 , Reg no - 117-1111-1018-17 , Roshan Kumar Jha
Hindi - 6

....... पड़ोसी ......

पड़ोसी स्वंम में एक परिभाषा,
परिचय भी इसी से,
व्यक्तित्व व्यक्तियों का
परिवार, समाज, व्यवहार है।
विश्वास पर चढना-उतरना
सभ्य-असभ्य भी यही ,
यही सोच की समानता
असमानता का द्योतक
सर्जना - निर्जना भी है।।
क्या फरक पड़ता?
आज सबकेसब मोहताज है
पाने को आपस में
एक-दुसरे का अपनापन ।
परिभाषा के मुताबिक
सोचो... मानवीय आधार
बचा है जीवन में किसी का?
तो ही पड़ोसी का होना
तुम्हारी जिंदगी भी
सम्मुन्नत है ।।

✍️ सुनील कुमार सिंह "सुगम "
कैथी, खगड़िया , बिहार

मुंशी प्रेमचंद

लमही बनारस में
31जुलाई 1880 को जन्में
अजायबराय आनंदी देवी सुत प्रेम चंद।
धनपतराय नाम था उनका
लेखन का नाम नवाबराय।
हिंदी, उर्दू,फारसी के ज्ञाता
शिक्षक, चिंतक, विचारक, संपादक
कथाकार,, उपन्यासकार
बहुमुखी ,संवेदनशील मुंशी प्रेमचंद
सामाजिक कुरीतियों से चिंतित
अंधविश्वासी परम्पराओं से बेचैन
लेखन को हथियार बना
परिवर्तन की राह पर चले,
समाज का निचला तबका हो
या समाज में फैली बुराइयाँ
पैनी निगाहों से देखा समझा
कलम चलाई तो जैसे
पात्र हो या समस्या
सब जीवंत सा होता,
जो भी पढ़ा उसे अपना ही
किस्सा लगा,
या अपने आसपास होता
महसूस करता,
उनका लेखन यथार्थ बोध कराता
समाज को आइना दिखाता,
शालीनता के साथ कचोटता
चिंतन को विवश करता
शब्दभावों से राह भी दिखाता।
अनेकों कहानियां, उपन्यास लिखे
सब में कुछ न कुछ समस्या
उजागर कर अपना स्वर दिया,

लेखन से जागरूकता का
जन जागरण किए।
'सोजे वतन' चर्चित हुई
मगर नबाब छिन गया,
गरीबों के हित चिंतक
महिलाओं के उद्धारक
मुंशी प्रेमचंद नया नाम
'पंच परमेश्वर' से आया।
गबन, गोदान, निर्मला
कर्मभूमि ,सेवासदन लिख
उपन्यास सम्राट हुए,
चर्चित कहानियों में
'सवा सेर गेहूँ' की
'गुप्त धन' सी तलाश में
'ठाकुर के कुएँ' के पास
'बड़े घर की बेटी'
'बूढ़ी काकी' और
'नमक का दरोगा' के सामने
'पूस की रात'
'ईदगाह' के मैदान में
ये 'शतरंज का खिलाड़ी'
'कफन' की चादर ओढ़
8 अक्टूबर 1939 को
दुनिया को अलविदा कह गया,
परंतु अपनी अमिट छाप
धरा पर छोड़ गया,
मुंशी प्रेमचंद नाम
सदा सदा के लिए
अमर कर गया।

✍️  सुधीर श्रीवास्तव
         गोण्डा, उ.प्र.
      8115285921

शीर्षक:

🙏 द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तुति🙏

सोमनाथ    सौराष्ट्र   में , करुणाकर    अवतार।
चारु  चन्द्र  धर  शिखर शिव , गंगाधर   संसार।।१।। 
उच्च   शिखर श्रीशैल पर , प्रमुदित देव निवास।
बाघम्बर   मल्लिकार्जुन , पूजन   पति  कैलाश।।२।।
अकालमृत्यु   रक्षक   प्रभु , मोक्ष  प्रदाता सन्त।
महाकाल    उज्जैन   में , महिमा  नमन  अनंत।।३।।
कावेरी    नर्मद    मिलन , पावन    निर्मल  धार।
ओंकारेश्वर   शिव    करे , भवसागर    से  पार।।४।।
चिताभूमि      पूर्वोत्तरी , सदा   वास  गिरिजेश।
देवासुर    पूजित    मनुज , बैद्यनाथ     परमेश।।५।।
आभूषण   सज्जित   प्रभु , दक्षिण  क्षेत्र सदंग।
भक्ति  मुक्ति  दाता   स्वयं , नागेश्वर     अर्धाङ्ग।।६।।
बसे    सदा   केदार   तट ,    नीलकंठ   केदार।
मुनि देवासुर यक्ष अहि , पूजित  शिव    संसार।।७।।
दर्शन   दे   पातक    हरे , सह्यशिखर     उत्तुंग।
बसे  त्र्यम्बकेश्वर  प्रभु ,मानस  शिव  जय गुंज।।८।।
सेतु   बना निज बाण से , उच्छल जलधि तरंग।
रामेश्वर   शिव  स्थापना , राम   भक्ति    नवरंग।।९।।
भूत  प्रेत  सेवित   सदा , नमन   करूं करुणेश।
डाकशाकिनी    वृन्द   में , भीमशंकर     जटेश।।१०।।
विश्वनाथ    शरणं   व्रज , काशीपति    भगवान।
हरो   पाप   पातक   मनुज, शरणागत   वरदान।।११।।
ज्योतिर्मय   भगवान्   प्रभु , इलापुरी   रनिवास।
घृष्णेश्वर   समुदार  शिव, करूं  नमन   उपवास।।१२।।
पूजन   विधि पूर्वक   करूं,धतुर  भांग  बेलपत्र।
थाल   सजा   शिव  आरती , गाऊं   मंगल  मंत्र।।१३।।
कर ताण्डव विकराल बन,धर त्रिशूल अरि नाश।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग शिव , त्रिपुरारी   जन  आश।।१४।।
सत्य शिवम नित सुन्दरम् , सुखमय हो   संसार।
महाकाल    गौरीश  तव ,  महिमा     अपरम्पार।।१५।।
फिर सीता आहत विकल ,कलि  रावण  दुष्कर्म।
रक्षण कर शिव  द्रौपदी ,  सती   लाज रख धर्म।।१६।।
संकट  में  मां  भारती ,  क्लेशित  निज   गद्दार।
प्रलयंकर  शंकर   विभो ,  करो   दनुज  संहार।।१७।।
दुश्शासन  करता  हरण , भरी  सभा   निर्लाज।
ठोक रहा  निज  जांघ  को , दुर्योधन  आवाज।।१८।।
पुन:   उठाओ   पाशुवत्  , हे   त्रिनेत्र  भु्वनेश।
नंदीश्वर   तारक    दमन ,  महादेव    हर क्लेश।।१९।।
शूलपाणि  जगदीश   शिव , हरो   जगत    संताप।
कर निकुंज कुसमित सुरभि,जलता ख़ुद मन पाप।।२०।।
आज महाशिवरात्रि   में ,  रख   पूजन     उपवास।
परिणय गौरी - शिव प्रभो , दर्शन  मन   अभिलाष।।२१।।

✍️ सपना मिश्रा "वर्णिका"

बरसात

बदरा छा आकाश में, मचा रहे हैं शोर।
काले भूरे उमड़ चले, बरसेंगे घनघोर।।
तड़के चमके बिजुरिया,श्याम घनों के बीच।
प्यासा मन,प्यासी धरा,आकर प्यारे सींच।।
सांवरिया आया नहीं,दिवस गये कई बीत।
याद सताए है तेरी,आजा रे   मनमीत।।
मन को प्यारी लग रही,शीतल मन्द बयार।
छेड़ रही है प्यार से,मन संग तन के  तार।।
कुछ ही बरसे लौट चले,बादल घर की ओर।
ये भी बेदर्दी हुए,जैसा वो चित्तचोर।
इस बैरन बरसात ने छेड़े मन के तार।
बादल बरसे चले गए,रुकी न अश्रुधार।।

✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर उत्तर प्रदेश



साहित्य एक नज़र 🌅


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